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अब भारत वाली बात तो नहीं होती, लेकिन अमरीका में होली बड़े जोर-शोर से मनाई जाती है। अमरीकी और तमाम दूसरे देशों के लोग भी अच्छे से जानते हैं कि भारतीयों का त्योहार होली है। अक्सर वे पूछते भी हैं, आप हमें अपने 'फेस्टिवल' पर कब 'इनवाइट' कर रही हैं। अगर होली सप्ताहांत में यानी शनिवार या रविवार को पड़ रही है तब तो बहुत ही अच्छा है, वरना हम होली सप्ताहांत में ही मनाते हैं क्योंकि बाकी दिनों में बहुत मुश्किल हो जाती है। यहां होली की छुट्टी तो होती नहीं। तो कई बार हम होली उसी दिन नहीं मना पाते जिस दिन भारत में मनती है।
दूसरे, अमरीका में ठंड बहुत होती है इन दिनों। मौसम के कारण रंग नहीं खेल पाते ज्यादातर लोग। लेकिन हम भाग्यशाली हैं कि हम बर्मिंघम, अल्बामा में रहते हैं जो अमरीका के दक्षिण में है। यहां इन दिनों मौसम ठीक-ठीक सा रहता है और होली खेली भी जाती है जमकर।
यहां बर्मिंघम का मंदिर हम भारतीयों के आपस में जुड़ने का प्रमुख केंद्र है। यहां होली पर तो रौनक देखने लायक होती है। हम शाम को होली जलाते हैं। अगले दिन खेलते भी हैं, शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करते हैं। वह बिल्कुल अनौपचारिक होता है जैसे कि आप भारत में होली मिलन करते हैं, बिल्कुल वैसे ही। यहां अल्बामा, बर्मिंघम में भारतीयों के लगभग एक हजार परिवार हैं। लोग अपने घरों में भी होली मनाते हैं। वहीं त्योहार का खाना-पीना हो गया, रंग खेल लिया। आसपास के पांच-दस परिवार इकट्ठे होकर मस्ती करते हैं।
यहां इंडिया एसोसिएशन भी है। तो वहां सब मिलकर पिकनिक करते हैं और खाने-पीने का बढि़या इंतजाम होता है, खेल होते हैं और उसी के साथ रंग भी खेलते हैं, गुलाल वगैरह। पूरी होली की मस्ती होती है। तो यहां एक होली हम मंदिर में मनाते हैं और दूसरी होली इंडिया एसोसिएशन वाले करते हैं। होली की मिठाइयां तो यूपी वाले लोग अपने घरों में ही बनाते हैं और दोस्तों को भी खिलाते हैं। जो होली का कार्यक्रम होता है उसमें बस यहां के होटल-रेस्तरां वालों के स्टॉल लगे होते हैं। सब उसी में आनंद
करते हैं।
कोई सत्तर के दशक में मैं अपने परिवार के साथ यहां आई थी, तब तो यहां होली मनाने का कोई सामान नहीं मिलता था। रंग तक नहीं मिलते थे। भारतीयों की आबादी भी बहुत कम थी। अब तो बहुत बदल गया है जमाना। भारतीय दुकानों में रंग वगैरह त्योहार से संबंधित हर चीज आसानी से मिल जाती है। तब हम क्या करते थे कि यहां लोग ईस्टर मनाते हैं। उसमें रंगने के लिए रंग मिलते हैं।
हम होली के लिए उसी दौरान रंग खरीदकर रख लिया करते थे। फिर हम उनसे बच्चों के साथ होली खेलते थे। हम चाहते थे कि हमारे बच्चे अपनी परंपराएं और त्योहारों को जानें वरना वे तो क्रिसमस और ईस्टर ही समझते थे। तब हम घर में ही होली मनाते थे क्योंकि लोग कम थे और इंडिया एसोसिएशन भी नहीं बनी थी। यहां तक कि नवरात्र पर कन्या को खिलाते हैं तो हिन्दू लोग यहां खास थे ही नहीं, तो हम अपनी बेटियों की अमरीकी सहेलियों को ही बुलाकर नवरात्र पर कन्या जिमाने की रस्म निभाते थे। उनको भी बड़ा मजा आता था।
मंदिर में होली का उत्सव खूब धूमधाम से मनता है। होली जलाते हैं। नाच-गाना सब होता है। होली का मजा तो पानी वाले रंगों से ही है। लेकिन यहां अगर सर्दी बहुत पड़ी हो तो फिर पानी वाले रंग नहीं खेलते। सूखे रंगों, गुलाल से ही काम चलाना पड़ता है।
अब यहां के लोग भी भारतीय संस्कृति और त्योहारों के बारे में जानने लगे हैं। वे भी आते हैं और उन्हें खूब मजा आता है। कई तो जमकर रंग भी खेलते हैं। -अल्बामा के बर्मिंघम से प्रतिभा खरे
(लेखिका स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय, अमरीका में हिन्दी की प्राध्यापिका हैं)
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