बंगालियों पर उर्दू थोपने सेबंटा था पाकिस्तान
July 19, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

बंगालियों पर उर्दू थोपने सेबंटा था पाकिस्तान

by
Feb 21, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 21 Feb 2015 15:22:58

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (21 फरवरी) पर विशेष

पद्मा नदी से 1952 से लेकर अब तक बहुत सा पानी बह चुका है, पर आज भी अपनी मातृभाषा को चाहने वाले उन बलिदानियों का तज्ञता भाव से स्मरण करते हैं, जिन्होंने अपनी मातृभाषा को उसका सही हक दिलवाने के लिए प्राणोत्सर्ग किया था। 21 फरवरी,1952 के दिन पूर्वी पाकिस्तान( अब बंगलादेश) में बंगला भाषियों पर उर्दू थोपने के विरोध में आंदोलनरत छात्रों पर अकारण की गई पाकिस्तानी पुलिस की अंधाधुंध गोलीबारी में दर्जनों छात्रों की जानें चली गई थीं। यह घटना बार-बार याद दिलाती है कि किसी खास समुदाय पर किसी अन्य भाषा को थोपने के कितने गम्भीर परिणाम निकल सकते हैं। छात्रों पर गोलीबारी की उस घटना ने इस्लाम के नाम पर बने देश पाकिस्तान को दो फाड़ करने के रास्ते की नींव रखी।
हमारे अपने देश में भाषा को लेकर कई आंदोलन चल चुके हैं। निर्विवाद रूप से भाषा बेहद भावनात्मक मुद्दा है, जिसे किसी व्यक्ति से लेकर सरकार को विवाद की स्थिति में बहुत सोच-समझकर सुलझाना चाहिए। कहने की जरूरत नहीं है कि भाषा का सम्बंध जाति, धर्म या पद से नहीं है। पूर्व में देखा गया है कि राजनीतिक कारणों के चलते जब भी इस विषय के साथ खिलवाड़ हुआ तो हालात बद से बदतर हो गए। हो सकता है कि वर्तमान में स्कूल-ॉलेजों में पढ़ने वाली पीढ़ी को मालूम न हो कि खालिस्तान आंदोलन के मूल में भी कहीं न कहीं भाषा का ही सवाल था।
दरअसल पंजाब के हिन्दू संगठनों के आह्वान के चलते वहां के हिन्दुओं ने 1951 तथा 1961 की जनगणना में अपनी मातृभाषा पंजाबी के स्थान पर हिन्दी बताई थी। जाहिर तौर पर जो बिल्कुल गलत था। इसके चलते पंजाब के हिन्दुओं और सिखों के बीच दूरियां बढ़ीं जिसकी परिणति पंजाब में 80 और 90 के दशक में चले खूनी खालिस्तान आंदोलन के दौरान देश ने देखी। पंजाबी सूबे की मांग खारिज होने के चलते पंजाब में हिन्दुओं तथा सिखों के बीच गहरी खाई हो गई। आगे चलकर जो कुछ प्रदेश में हुआ वह खून और आंसुओं से लिखा है।
उधर असम में 80 के दशक में बंगलादेशियों की प्रदेश में घुसपैठ के विरोध में चले लंबे आंदोलन के पीछे भी आंदोलनकारियों की एक चिंता यह थी कि उनके प्रदेश में बाहरी तत्व इतने बढ़ जाएंगे कि उनकी मिट्टी की भाषा के सामने विलुप्त होने का खतरा पैदा हो जाएगा।
दुर्भाग्यवश तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ़ मनमोहन सिंह की बंगलादेश की यात्रा के दौरान उनके कार्यक्रम में शहीद मीनार के लिए जगह नहीं रखी गई। काश, वे शहीद मीनार जाते तो अच्छा होता। यह मीनार याद दिलाती है उन मातृभाषा के चाहने वालों की जिन पर 21 फरवरी,1952 को पाकिस्तान की पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चलाई थीं। उस गोलीबारी में ढाका विश्वविद्यालय के दर्जनों छात्र शहीद हो गए थे।
उसी मातृभाषा के प्रति श्रद्धा, प्रेम और प्राणों की आहुति देने के जज्बे को 21 फरवरी को 62 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस दिन को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में सारी दुनिया मनाती है। दरअसल बंगला बनाम उर्दू के बीच के संघर्ष का चरम था 21 फरवरी, 1952 का मनहूस दिन। ढाका विश्वविद्यालय परिसर के ठीक बाहर बड़ी संख्या में छात्र प्रदर्शन करने के लिए एकत्र हुए थे। उसी दौरान न जाने क्यों,हथियारों से लैस सुरक्षाकर्मियों ने उन निहत्थे छात्रों पर गोलियां बरसानी चालू कर दीं, जिसमें दर्जनों छात्रों की मौत हो गई। इस नृशंस सामूहिक हत्याकांड से दुनिया सन्न रह गई, पर पाकिस्तानी सरकार ने किसी तरह के अपराधबोध का प्रदर्शन नहीं किया। अपनी मातृभाषा को लेकर इस तरह के प्रेम और जज्बे की दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल है। बंगलाभाषा के चाहने वालों में मारे गए छात्रों की स्मृति में घटनास्थल पर स्मारक बनाया तो उसे ध्वस्त कर दिया गया। इस घटना के बाद पाकिस्तान के शासक पूर्वी पाकिस्तान से हर स्तर पर भेदभाव करने लगे। उसकी जब प्रतिक्रिया हुई तो जिन्ना और मुस्लिम लीग की टू नेशन थ्योरी धूल में मिल गई।
हालांकि पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) और देश के शेष भागों की आबादी लगभग समान थी, पर पाकिस्तान के शासकों ने पूर्वी पाकिस्तान के साथ हर स्तर पर भेदभाव करना शुरू कर दिया था। इस भेदभाव का चरम तब सामने आया जब मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने ढाका दौरे के दौरान बार-बार घोषणा की कि नए देश की राष्ट्रभाषा उर्दू होगी। जिन्ना 19 मार्च,1948 को ढाका पहुंचे, उनका वहां पर गर्मजोशी के साथ स्वागत हुआ। पूर्वी पाकिस्तान के अवाम को उम्मीद थी कि वे उनके और उनके क्षेत्र के हक में कुछ अहम घोषणाएं करेंगे। जिन्ना ने 21 मार्च को ढाका के खचाखच भरे रेसकोर्स मैदान में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया। वहां पर पाकिस्तान के गवर्नर जनरल जिन्ना ने घोषणा कर दी कि पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा उर्दू ही रहेगी। उन्होंने अपने चिर-परिचित आदेशात्मक स्वर में कहा कि ' सिर्फ उर्दू ही पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा रहेगी। जो इससे अलग तरीक से सोचते हैं, वे मुसलमानों के लिए बने देश के शत्रु हैं।' पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से में उर्दू को थोपे जाने का विरोध हो ही रहा था, इस घोषणा के कारण जनता में निराशा और गुस्से की लहर दौड़ गई। वे जिनकी मातृभाषा बंगला थी, ठगा सा महसूस करने लगे और असहाय थे। जाहिर तौर पर उन्होंने अलग मुस्लिम राष्ट्र का हिस्सा बनने का तो फैसला किया था, पर वे अपनी बंगला संस्कृति और भाषा से दूर जाने के लिए भी किसी भी कीमत पर तैयार नहीं थे।
जिन्ना ने देश की राष्ट्रभाषा को लेकर जिस प्रकार की राय जाहिर की थी, उन्होंने ठीक वही राय अगले दिन यानी 22 मार्च,1948 को भी ढाका विश्वविद्यालय में हुए एक समारोह में जाहिर की। महत्वपूर्ण यह है कि जिन्ना की घोषणाओं का तीखा विरोध उनकी मौजदूगी में हुआ। उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी इस तरह की कल्पना नहीं की होगी। और ढाका से जाते-जाते उन्होंने अपने एक रेडियो साक्षात्कार में 28 मार्च,1948 को फिर कहा कि पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा तो उर्दू ही होगी और रहेगी। इस विषय पर किसी भी तरह की बहस या संवाद की कोई जगह नहीं है। पाकिस्तान के हुक्मरानों के गैर-बंगलाभाषियों पर उर्दू को थोपने का विरोध हो ही रहा था, उस पर आग में घी डालने का काम जिन्ना ने कर दिया। जिन्ना के ढाका से कराची के लिए रवाना होने के फौरन बाद से पूर्वी पाकिस्तान में उर्दू को थोपने की कथित कोशिशों के विरोध में प्रदर्शन होने लगे। आहत बंगलाभाषियों को राहत देने के इरादे से एक प्रस्ताव यह आया कि वे चाहें तो बांग्ला को अरबी लिपि में लिख सकते हंै। जैसे कि उम्मीद थी, इस प्रस्ताव को स्वाभिमानी बांग्ला भाषियों ने एक सिरे से खारिज कर दिया।
पाकिस्तान और उसके लिए संघर्ष करने वाली मुस्लिम लीग के इतिहास के खंगालने पर साफ हो जाएगा कि पार्टी के भीतर प्रस्तावित इस्लामिक राष्ट्र में भाषा के मसले पर खींचतान शुरू हो गई थी मुस्लिम लीग के लखनऊ में 1937 में हुए सम्मेलन में। तब पार्टी के बंगलाभाषी सदस्यों ने अलग मुस्लिम राष्ट्र में गैर-उर्दू भाषियों पर उर्दू थोपे जाने की किसी भी चेष्टा का विरोध किया था। पर जाहिर तौर पर किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि भाषा को थोपना पाकिस्तान के दो फाड़ का अंत: बड़ा कारण बनेगा। बंगलाभाषियों के अपनी मातृभाषा से प्रेम और उसके लिए किसी भी प्रकार की कुर्बानी देने के जज्बे को सम्मान देते हुए संयुक्त राष्ट्र ने नवंबर 1999 में दुनिया की उन भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए साल 2000 से प्रति वर्ष 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का निश्चय किया जो कहीं न कहीं संकट में हैं। जाहिर है, यह ढाका विश्वविद्यालय के बाहर मारे गए शहीदों को विनम्र नमन है।
किसी भी राष्ट्र या समाज के लिए अपनी मातृभाषा अपनी पहचान की तरह होती है। इसे बचाकर रखना बेहद आवश्यक होता है। अगर हम भारत की बात करें तो यहां हर कुछ कदम पर हमें बोलियां बदलती नजर आएंगी। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा जरूर है, लेकिन इसके साथ ही हर क्षेत्र की अपनी कुछ भाषा भी है जिसे बचाकर रखना बेहद जरूरी है। इस लिहाज से 21 फरवरी का दिन अपने आप में विशेष महत्व रखता है और यह भी याद दिलाता है कि किसी वर्ग या समूह पर किसी भाषा को थोपे जाने के कितने भयावह परिणाम सामने आ सकते हैं।  -पाञ्चजन्य ब्यूरो

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

Pahalgam terror attack

घुसपैठियों पर जारी रहेगी कार्रवाई, बंगाल में गरजे PM मोदी, बोले- TMC सरकार में अस्पताल तक महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं

अमृतसर में BSF ने पकड़े 6 पाकिस्तानी ड्रोन, 2.34 किलो हेरोइन बरामद

भारतीय वैज्ञानिकों की सफलता : पश्चिमी घाट में लाइकेन की नई प्रजाति ‘Allographa effusosoredica’ की खोज

डोनाल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका

डोनाल्ड ट्रंप को नसों की बीमारी, अमेरिकी राष्ट्रपति के पैरों में आने लगी सूजन

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies