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प्रिछले डेढ़ दशक से भारतीय रेल राजनेताओं के लिए सस्ती लोकप्रियता का आधार बनी हुई है। राजनीति चमकाने व व्यक्तिगत वर्चस्व स्थापित रहने के कारण भारतीय रेल आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया वाली कहावत को चरितार्थ करती हुई कंगाली के चरम पर है। 2003 से यात्री-किराया न बढ़ाए जाने और माल भाड़े में मंहगाई के अनुपात में वृद्धि न किए जाने की वजहों से रेल पर हरेक साल 20 हजार करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ा है। बीते तीन-चार वर्षों में तेल और बिजली जैसे ऊर्जा उत्पादों की कीमतें आसमान छूने से भी रेल को 1200 करोड़ का खामियाजा भुगतना पड़ा। इसी दौरान सरकारी कर्मचारियों को अत्याधिक लाभ बांटने के उपक्रम में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू हुईं और रेलवे को वेतन-भत्तों एवं पेंशन के बदले में 70 हजार करोड़ रुपए अधिक खर्च करने पड़ रहे हैं। रेलवे में करीब 25 लाख कर्मचारी हैं। आर्थिक बदहाली के इसी दौर में रख-रखाब का 15 से 20 फीसद खर्च बढ़ा है। यही वह समय रहा जब मानवीय भूलों, नक्सली-आतंकवादी हरकतोें के चलते रेलवे का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। भारतीय रेल को भीतर से खोखले करने के ये ऐसे कारण बने हुए हैं, जो आज रेलवे को 100 रुपए कमाने के लिए 115 से 130 रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं।
भारतीय रेल, भारतीय नदियांे की तरह लोगों की जीवन-रेखा है। प्रतिदिन 60 हजार डिब्बों में डेढ़ से दो करोड़ मुसाफिर और लगभग 12 लाख टन माल-भाड़े की आवाजाही होती है। वातानुकूलित डिब्बों में महज 2 फीसद लोग सफर करते हैं, जबकि 98 फीसद लोग सामान्य शयनयान और सामान्य डिब्बों में यात्रा करते हैं। लेकिन सुविधाएं व सुरक्षा के उपाय केवल वातानुकूलित डिब्बों में किए जा रहे हैं। इस विसंगति को दूर करने की जरूरत है। लिहाजा जरूरी है कि रेल जो आम लोगों के लिए कई मायनों में अहम केन्द्र है, उसको और अधिक सहूलियत पूर्ण बनाया जाए। किराया वृद्धि के साथ ऐसे ठोस उपाय करने की जरूरत है, जिससे यात्रियों को तो सुविधा हासिल हो ही साथ ही माल के आवागमन में भी तेजी आए।
बीते एक दशक में रेल यात्रियों की संख्या दोगुनी बढ़ी है और भाड़े की ढुलाई भी बढ़ी है, लेकिन ढाई लाख कर्मचारी घटे हैं। इस कारण रेल की रफ्तार में सुस्ती आई है। लेटलतीफी बढ़ी है। लिहाजा काम के अनुपात में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। केंद्रीय सांख्यिकी विभाग की रपट के मुताबिक देश में लक्ष्य से पीछे जो योजनाएं चल रही हंै, उनमें रेलवे प्रमुख है। इनमें यात्रियों की सुरक्षा से जुड़ी रेलों को टक्कर-रोधी बनाने, पुराने पुलों की मरम्मत करने और रेलवे फाटकों पर चौकीदारांे की नियुक्ति संबंधी महत्वपूर्ण योजनाएं अधर में हैं। अनेक महत्वाकांक्षी रेल पटरियां बिछाने की परियोजनाएं तीन दशक से भी ज्यादा समय से निर्माणाधीन हैं। ये परियोजनाएं धन की कमी के चलते लटकी हुई हंै। यात्री किराए में रेलवे को हरेक माह 900 करोड़ का घाटा उठाना पड़ रहा है।
रेलवे में महत्वपूर्ण लोगों को 28 प्रकार के रियायती अथवा मुफ्त पास की सुविधा प्राप्त है। इन खैराती सुविधाओं को समाप्त करके भी रेलवे की माली हालत सुधर सकती है। देश के सभी वरिष्ठ नागरिकों को यात्रा के लिए 30 प्रतिशत की छूट लंबे समय से जारी है। यह छूट उन लोगों को भी मिल रही है, जो करोड़पति हैं और हजारों रुपए पेंशन पा रहे हैं। इससे रेलवे को बतौर छूट बड़ी धनराशि गंवानी पड़ रही है। इस वजह से रेलों में बेवजह भीड़ बढ़ी है और जरूरतमंद यात्री को यात्रा में जगह न मिल पाने के कारण यात्रा कष्टदायी हो गई है। लिहाजा इस छूट को बंद किया जाए? यह छूट देनी भी है तो केवल गरीबी रेखा के नीचे आने वाले लोगों को दी जाए? इसी तरह पूर्व सांसद, विधायक को दी जाने वाली रियायतें बंद की जाएं? ये लोग सार्वजनिक हित के लिए कम, व्यक्तिगत लाभ के लिए ज्यादा यात्राएं करते हैं। ये सस्ती लोकप्रियता की ऐसी बानगियां हैं, जिन्हें तत्काल बंद करने की जरूरत है, क्योंकि इन कारणों से रेलवे की वित्तीय दशा खस्ताहाल हुई है, जिससे नतीजतन रेलवे की छूट लागत सालाना 25 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। हाल-फिलहाल के दशक में देखें तो अक्सर रेल मंत्रालय मिलने के बाद रेल मंत्री इसे अपनी जागीर समझ लेते हैं। 1980 के समय से तो इस पद और महकमे को जागीर माना जाने लगा। लिहाजा जो भी रेल मंत्री बना उसने रेलवे का रुख अपने संसदीय क्षेत्र की ओर मोड़ दिया। रेलवे में नौकरियां और ठेके भी खैरात में बांटे जाने लगते हैं। कमलापति त्रिपाठी, अब्दुलगनी खान चौधरी, लालूप्रसाद यादव और ममता बनर्जी इसी लीक पर चले।
लालू प्रसाद और ममता बनर्जी ने बिहार और पश्चिम बंगाल में रेल को वोट का गणित बनाने की दृष्टि से ऐसा समीकरण बिठाया कि रेलवे दुर्दशा की शिकार और घाटे का पर्याय बनती चली गई। लालू ने बिहार के छोटे-छोटे यादव बहुल रेलवे-स्टेशनों पर भी तेज गति की एक्सप्रेस गाडि़यों के ठहराव स्टेशन बनवा दिए। इससे रेलों को यात्री-लाभ उतना नहीं हुआ, जिस अनुपात में उनकी गति प्रभावित हुई और ईंधन खर्च बढ़ा। हालांकि लालू ने गरीब रथ और बिहार के सब्जी उत्पादकांे के लिए पटना से दिल्ली रेल चलाकर सर्वहारा और कृषक समाज को ऐसे उपहार दिए, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। लालू की तर्ज पर ही ममता चलीं। उन्होंने पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार को चुनौती देकर जिस तरह से सत्ता से बेदखल किया, उसमें रेलवे का भी बड़ा योगदान था।
भारतीय रेल देश की सबसे बड़ी सार्वजनिक परिवहन सेवा है। देश की अर्थव्यस्था के संचालन और आर्थिक वृद्धि के लिहाज से भी रेलवे की अहम भूमिका है। साधारण वर्ग के लोग रेल में ज्यादा यात्रा करते हैं, इसलिए रेलवे को महज कारोबारी दृष्टि से नहीं देखा जा सकता है। लिहाजा सस्ती लोकप्रियता से जब रेलवे को उबारने की मशक्कत की जा रही है तो जरूरी है रियायती और मुफ्त यात्रा पत्रों की सुविधा को खत्म करते हुए यात्री किराया वृद्धि कम की जाए। कर्मचारियों की कार्यकुशलता बढ़ाकर तथा जिम्मेदारी निर्धारित करके भी रेलवे हो रहे नुकसान में भरपाई कर सकता है।
भारतीय रेल में प्रतिदिन चलने वाली लगभग 19710 रेलगाडि़यों में 12,335 यात्री गाडि़यां हैं,जिनके संचालन पर रेलवे सालाना 24,600 करोड़ का खाटा उठा रहा है।ल्ल भारतीय रेल में प्रतिदिन चलने वाली लगभग 19710 रेलगाडि़यों में 12,335 यात्री गाडि़यां हैं,जिनके संचालन पर रेलवे सालाना 24,600 करोड़ का खाटा उठा रहा है।
भारतीय रेल के पास 2,34,503 माल डिब्बे और 55, 211 सवारी डिब्बों और 9,549 इंजनों का भी विशाल बेड़ा है, जिसको समय के हिसाब से बढ़ाने की जरूरत हेै।
रेलवे के लिए सबसे बड़ी चुनौती 40 फीसद वह रेल पटरियों का संजाल है, जिस पर लगभग 80 फीसद यातायात चल रहा है। यह 'हाई डेंसिटी नेटवर्क' (एचडीएन) अति संतृप्त हो चुका है। लिहाजा भीड़भाड़ कम करने के लिए अनुरक्षण के लिए समय को ठीक करने के लिए , बेहतर उत्पादकता के लिए इन्हें 'अपग्रेड' किए जाने और इनकी क्षमता का विस्तार किए जाने की अत्यंत आवश्यकता है।
रेलवे के पास 500 से ज्यादा लंबित परियोजनाएं हैं , जिनको पूरा करने के लिए 1.50 लाख करोड़ से ज्यादा रुपये की आवश्यकता है।
– रेलवे के पास 43 हजार हेक्टेयर जमीन खाली पड़ी है। इसका बेहतर उपयोग करके अतिरिक्त संसाधन पैदा किए जाएं।
भारतीय रेल के पास 2,34,503 माल डिब्बे और 55, 211 सवारी डिब्बों और 9,549 इंजनों का भी विशाल बेड़ा है, जिसको समय के हिसाब से बढ़ाने की जरूरत हेै।
रेलवे के लिए सबसे बड़ी चुनौती 40 फीसद वह रेल पटरियों का संजाल है, जिस पर लगभग 80 फीसद यातायात चल रहा है। यह 'हाई डेंसिटी नेटवर्क' (एचडीएन) अति संतृप्त हो चुका है। लिहाजा भीड़भाड़ कम करने के लिए अनुरक्षण के लिए समय को ठीक करने के लिए , बेहतर उत्पादकता के लिए इन्हें 'अपग्रेड' किए जाने और इनकी क्षमता का विस्तार किए जाने की अत्यंत आवश्यकता है।
रेलवे के पास 500 से ज्यादा लंबित परियोजनाएं हैं , जिनको पूरा करने के लिए 1.50 लाख करोड़ से ज्यादा रुपये की आवश्यकता है।
– रेलवे के पास 43 हजार हेक्टेयर जमीन खाली पड़ी है। इसका बेहतर उपयोग करके अतिरिक्त संसाधन पैदा किए जाएं। -प्रमोद भार्गव
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