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आलोक गोस्वामी
लंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना के चार दिन (15 से 18 फरवरी, 2015) के भारत के राजकीय दौरे में तीन महत्वपूर्ण आयाम रेखांकित किए जा सकते हैं। एक, अभी 9 जनवरी को ही कांटे की चुनावी टक्कर में पूर्व राष्ट्रपति महिन्दा राजपक्षे को सत्ता से बाहर करके राष्ट्र्रपति पद संभालने वाले सिरिसेना द्वारा अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुनना साफ जताता है कि वे भारत के साथ संबंध गहराने को लेकर काफी उत्सुक हैं। दो, ठीक पड़ोस के देश के नाते भारत और श्रीलंका के रणनीतिक और सामरिक हित जुड़े हुए हैं। तीन, श्रीलंका में चीन की बढ़ती दखल, वहां के ढांचागत विकास में चीन की आर्थिक सहायता के जरिए उसकी घरेलू राजनीति पर चीन का प्रभाव भारत के नजरिए से खास गौर करने की बात है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति सिरिसेना आपसी चर्चा में इस बात पर एकमत थे कि दोनों देशों के बीच रक्षा और प्रतिरक्षा के क्षेत्र में संबंध और गहरे हों। जाहिर है, पड़ोसी होने के नाते दोनों देशों की इस दृष्टि से साझी चिंताएं होंगी, समुद्र के रास्ते दोनों के बीच खास दूरी नहीं है इसलिए नौवहन मार्ग की ज्यादा निगरानी दोनों के लिए लाभदायक है, दोनों मिलकर इस पर सूचनाओं और खतरे के संकेतों का आदान-प्रदान करें तो प्रतिरक्षा में नया आयाम जुड़ेगा ही। इस दिशा में भारत, श्रीलंका और मालदीव के बीच एक त्रिआयामी रणनीति बनाने पर कदम आगे बढ़ने के संकेत हैं। और एक और बात, दोनों देशों के बीच मछुआरों का भटककर एक-दूसरे के इलाके में पहंुच जाना और उन पर कार्रवाई होना एक लंबे अरसे से चली आ रही समस्या है, इस पर भी गहन चर्चा हुई और तय पाया गया कि रचनात्मक और मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए, दोनों तरफ के मछुआरा संगठन आपस में चर्चा-वार्ता बढ़ाएंगे और समस्या के समाधान के लिए जो चीजें की जा सकती हैं, उनके बारे में दोनों देशों की सरकारों को मशविरा देंगे।
खेती और चिकित्सा के क्षेत्र में करारों के साथ ही असैन्य परमाणु सहयोग पर ठोस वार्ता से श्रीलंका ने संतुष्टि व्यक्त की है। वजह यह है कि जापान के फूकुशिमा परमाणु संयंत्र हादसे के बाद से भारत के दक्षिणी छोर पर समुद्र के दूसरे सिरे पर स्थित श्रीलंका ने दक्षिण भारत के परमाणु संयंत्र को लेकर चिंता जताई थी कि जापान जैसा हादसा होने की सूरत में खामियाजा उसके नागरिकों को भुगतना पड़ सकता है। असैन्य परमाणु करार में दोनों देश जानकारी और विशेषज्ञता को आपस में साझा कर हस्तांतरित करने में सहयोग करने, संसाधन साझे करने, परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग करने, विकिरण और परमाणु सुरक्षा के लिए राजी हुए हैं। दोनों नेताओं ने आपसी वार्ता के बाद प्रेस के सामने अपने वक्तव्यों में इस बात का उल्लेख भी किया। इतना ही नहीं, यह करार रेडियो-एक्टिव मलबे से निपटने और परमाणु तथा रेडियोधर्मिता से होने वाले किसी भी तरह के नुकसान को लेकर सहयोग की बात भी करता है। सिरिसेना ने कहा कि दोनों देश सुरक्षा, अर्थ और कारोबारी संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे। श्रीलंका के राष्ट्रपति जानते हैं कि भारत श्रीलंका का सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी है, भारत से श्रीलंका को सबसे ज्यादा निर्यात होता है इसलिए नजदीकी कारोबारी संबंध बनाना श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में एक बड़ा उछाल ला सकता है। प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं, व्यापार के क्षेत्र में दोनों देशों की भागीदारी और संतुलित हो। श्रीलंका यूं भी भारत को निर्यात बढ़ाने में उतना सक्षम नहीं हो पर रहा है। वहां के कारोबारी, उद्यमी चाहते हैं कि व्यापार में और आगे बढ़ा जाए और दोनों को बराबरी के लाभ के अवसर मिलें। भारत के नजरिए से देखें तो भारत को ढांचागत क्षेत्र से ज्यादा व्यापारिक रिश्ते पर गौर करना होगा। यह चीज द्विपक्षीय सहयोग के आयाम से आगे रणनीतिक समझ की भी होगी। वजह यह है कि कोलंबो में बंदरगाह शहर परियोजना के लिए चीन ने 1.4 अरब डॉलर दिए हैं। यह भारत की सुरक्षा के लिहाज से खास तौर पर ध्यान देने योग्य है।
नालंदा विश्वविद्यालय परियोजना में श्रीलंका ने विशेष दिलचस्पी दिखाई है इसलिए उसमें श्रीलंका की भागीदारी सुनिश्चित करने संबंधी करार हुआ है। दोनों देशों के बीच वायुमार्ग और समुद्रमार्ग के बेहतर जुड़ाव की चर्चा करते हुए मोदी ने कहा कि भारत से श्रीलंका जाने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़नी चाहिए।
श्रीलंका का तमिल बहुल उत्तरी प्रांत वर्षों के गृहयुद्ध के बाद फिर से उबरने की राह तक रहा है। ऐसे में भारत का वहां की गृह निर्माण परियोजना सहित तमाम परियोजनाओं में सहयोग देना वहां के बेघर हुए निवासियों को निश्चित रूप से राहत पहंुचाएगा। इस परियोजना के अंतर्गत 27,000 घर बनाए जा चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी अ्रगले महीने श्रीलंका की यात्रा पर जाने वाले हैं। उनके तमिल बहुल उत्तरी प्रांत भी जाने की संभावना है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उनका उत्तरी प्रांत जाना श्रीलंका सरकार के लिए एक संकेत होगा कि देश के सभी नागरिकों को साथ लेकर बढ़ना उस देश के ही हित में है। श्रीलंका के तमिल नागरिकों में पिछले राष्ट्रपति महिन्दा की नीतियों को लेकर एक रोष समय-समय पर झलकता था। उन्हें शिकायत थी कि महिन्दा की नीतियों में उत्तरी प्रांत को छोड़कर शेष देश की चिंता ज्यादा झलकती थी। मोदी के उनके बीच जाने से उन्हें एक आश्वस्ति तो जरूर होगी। साथ ही, मोदी के उस वक्त श्रीलंका में रहने की संभावना है जब जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद का 28वां सत्र चल रहा होगा, जिसमें उस जांच की प्रगति को लेकर चर्चा होनी है जो महिन्दा के शासनकाल में मानवाधिकार के स्तर को मान रही है। चूंकि उनके बाद गद्दी संभालने वाले सिरिसेना की इच्छा उस दौर में कथित प्रताड़नाओं की जांच अपने ही देश के विशेषज्ञों से कराने की रही है, उसमें विदेश विशेषज्ञ सहयोग देना चाहें तो दें। इस दृष्टि से मोदी का उस वक्त वहां होना, उत्तरी प्रांत जाना खास महत्व रखता है। भारत को इस पहलू पर बहुत संभल कर कदम बढ़ाना होगा। यहां ध्यान देने की बात यह भी है कि 1987 के बाद से भारत का कोई प्रधानमंत्री कोलंबो नहीं गया है। उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी श्रीलंका के उस वक्त के राष्ट्रपति जे. आर. जयवर्धने के साथ भारत-श्रीलंका शांति संधि करने गए थे। मोदी की कोलंबो यात्रा सिरिसेना के अपने देश के दक्षिण और उत्तर को साथ लेकर चलने की घोषणा की एक तरह से नब्ज भी टटोलेगी।
भारत-श्रीलंका के बीच हुए महत्वपूर्ण समझौते
असैन्य परमाणु करार – इससे दोनों देशों के बीच जानकारी और विशेषज्ञता के आदान-प्रदान में सहयोग बढ़ेगा। इसके अलावा परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के क्षेत्र में संसाधनों को साझा करने, क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण और परमाणु सुरक्षा सहित अन्य क्षेत्रों में सहयोग बढ़ेगा।
कृषि क्षेत्र में सहयोग का करार
सैन्य और रक्षा क्षेत्र में सहयोग की संधि
नालंदा विश्वविद्यालय परियोजना में श्रीलंका की भागीदारी संबंधी संधि
मछुआरों का मुद्दा हल करने का संकल्प
सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने संबंधी करार
अपने शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने पड़ोसियों के साथ संबंध बेहतर बनाने का संकेत दिया था। उसी दिशा में बढ़ते हुए भूटान, नेपाल, जापान, फिजी, चीन, अमरीका और अब श्रीलंका के साथ सकारात्मक कदम बढ़ाए जा चुके हैं। श्रीलंका में भगवान बुद्ध के बड़ी संख्या में अनुयायी होने के चलते उस देश से भारत के प्राचीन सांस्कृतिक संबंध हैं इसलिए जाहिर है साझे हित के अभी और भी क्षेत्र होंगे जिन पर समय के साथ आगे बढ़ना जरूरी है। मोदी सरकार की विदेश नीति की यह झलक तो साफ बताती है कि भूराजनीति में अपनी भूमिका बढ़ाते हुए सहयोगियों की संख्या बढ़ाने की दिशा में बढ़ा जा रहा है। तेजी से बदलते घटनाक्रमों के बीच भूमध्य रेखा के इस पार अपनी सामरिक और रणनीतिक स्थिति मजबूत करने के लिहाज से एशिया महाद्वीप की बड़ी ताकत बनकर उभरना अंतरराष्ट्रीय मंचों पर साख तो बढ़ाएगा ही, वैश्विक आतंक के र
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