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तीस्ता के गिर्द कसता कानून का शिकंजा

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Feb 16, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 16 Feb 2015 13:11:47

… हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने लगाई 19 फरवरी तक गिरफ्तारी पर रोक

तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनन्द पर कानून का शिकंजा कसने लगा है। गबन के एक आरोप में उनकी गिरफ्तारी के लिए गुजरात पुलिस मुम्बई जा धमकी, तो वे दोनों दिल्ली के लिए उड़ गए और अपने सेकुलर वकीलों (कपिल सिब्बल और प्रशान्त भूषण) के जरिए सर्वोच्च न्यायालय से कुछ मोहलत ले ली। अब उनकी 19 फरवरी तक गिरफ्तारी नहीं होगी। इसके बाद क्या होगा वह तो वक्त बताएगा, लेकिन उन पर जो आरोप लगे हैं वे काफी गंभीर हैं।
तीस्ता और जावेद पर हेराफेरी के अनेक आरोप हैं। उन्हीं में से एक आरोप है अमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी को 'संग्रहालय' बनाने के नाम पर बनाए एनजीओ के कोष में हेराफेरी करने का। इसी मामले में उनकी गिरफ्तारी का आदेश गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जे.बी. परदीवाला ने पिछले दिनों दिया था। न्यायमूर्ति परदीवाला ने अपने आदेश में लिखा था कि आरोपी जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं और प्रथम दृष्टया लगता है कि आरोपियों ने 'संग्रहालय' के कोष का उपयोग निजी कार्यों के लिए किया है। इसलिए उन्हें अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती है। इस मामले में गुलबर्ग सोसायटी निवासी और पूर्व कांग्रेसी सांसद अहसान जाफरी के बेटे तनवीर जाफरी और फिरोज गुलजार भी आरोपी हैं।
उल्लेखनीय है कि 2002 में हुए दंगों में यह सोसायटी भी प्रभावित हुई थी। इसके बाद तीस्ता और जावेद ने दंगा पीडि़तों को कथित न्याय दिलाने के लिए 'सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस' नामक एक गैर-सरकारी संगठन बनाया था। इसके जरिए देश-विदेश से करोड़ों रुपए इकट्ठे किए गए थे। सोसायटी में रहने वाले अधिकांश लोगों का आरोप है कि 'संग्रहालय' और दंगा पीडि़तों के नाम पर जो पैसा जमा किया गया, उनमें से एक पैसा भी किसी भी पीडि़त को नहीं दिया गया। खबरों के अनुसार उन दोनों के खाते में 14.2 लाख रुपए उनके एन.जी. ओ. के खाते से डाले गए थे। यही रकम उनके लिए भारी पड़ रही है।
जब सोसायटी वालों का शक विश्वास में बदला तो उन्होंने तीस्ता का विरोध करना शुरू किया। पहली बार 28 फरवरी, 2013 को सोसायटी वालों ने उनका जमकर विरोध किया। सोसायटी में तीस्ता को घुसने तक नहीं दिया गया। मालूम हो कि हर वर्ष 28 फरवरी को दंगा पीडि़तों की याद में गुलबर्ग सोसायटी में एक कार्यक्रम होता है और लोग फातिहा पढ़ते हैं।
तीस्ता के एक सहयोगी रहे रईस खान पठान ने भी तीस्ता पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। पठान ने अदालत में शपथपत्र देकर आरोप लगाया है कि तीस्ता ने गुजरात दंगों के सिलसिले में बहुत सारे झूठे मामले दायर किए हैं। नरोदा पाटिया का मामला पूरी तरह मनगढ़ंत है। पठान के इस दावे के बाद गुजरात उच्च न्यायालय ने 11 जुलाई, 2011 को आदेश दिया था कि इस मामले की जांच की जाए। इस आदेश के खिलाफ तीस्ता सर्वोच्च न्यायालय पहुंचीं और 2 सितम्बर, 2011 को तत्कालीन न्यायमूर्ति आफताब आलम की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने इस जांच पर रोक लगा दी थी। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एस. आई. टी.) ने भी अपनी रपट में तीस्ता के झूठ का पदार्फाश किया है। एस. आई. टी. ने लिखा है कि कौसर बानो नामक गर्भवती महिला के साथ सामूहिक बलात्कार नहीं हुआ था और न ही पेट फाड़कर उसका बच्चा निकालने की कोई घटना हुई थी। नरोदा पाटिया में कुएं में लाशों को दफनाने की बात भी गलत थी। जरीना मंसूरी नामक महिला, जिसे नरोदा पाटिया में जिन्दा जलाने की बात की गयी थी, कुछ महीने पहले ही टी. बी. से मर चुकी थी। एस. आई. टी. ने यह भी कहा है कि तीस्ता ने अदालत से भी झूठ बोला है। अदालत से झूठ बोलने के मामले में न्यायालय ने भी तीस्ता को कई बार फटकार लगाई है। कुछ वर्ष पहले विदेशी संस्थाओं के सामने गुजरात दंगों के मामले उठाने पर भी न्यायालय ने तीस्ता को डांट लगाई थी। इसके बावजूद तीस्ता गुजरात सरकार और खासकर नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने के लिए झूठ बोलती रहती हैं। शायद इसीलिए सोनिया के निर्देश पर चलने वाली मनमोहन सिंह सरकार ने तीस्ता को पद्मश्री से नवाजा था।
ये दोनों पति-पत्नी 'कम्युनल काम्बेट' नामक एक अंग्रेजी मासिक पत्रिका का संपादन भी करते हैं। गौरतलब है कि 1999 के आम चुनाव के दौरान एक अभियान भाजपा और राष्ट्रवादी शक्तियों को निशाना बनाते हुए इसी बैनर तले चलाया गया था। अपनी संस्था के लिए ये दोनों जमकर विदेशी चन्दा जमा करते हैं। यह भी खुलासा हो चुका है कि ये दोनों कांग्रेस, माकपा, भाकपा आदि राजनीतिक दलों से पैसे लेकर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा और अन्य हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के खिलाफ लेख और विज्ञापन प्रकाशित करते हैं। 1999 के आम चुनाव से पहले कांग्रेस, माकपा और भाकपा से 'कम्युनल काम्बेट' को एक करोड़ 50 लाख रु. इस आदेश के साथ दिए गए थे कि भाजपा के खिलाफ पूरे देश में मुहिम चलाओ। पिछले 13-14 वर्ष में तीस्ता ने झूठ का जो पहाड़ खड़ा किया था, उसके नीचे की जमीन खिसकने लगी है। इसलिए अब उनकी सचाई सामने आने लगी है।ल्ल अरुण कुमार सिंंह

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