इतिहास दृष्टि - हिन्दुत्व से हैभारत की सनातनता
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इतिहास दृष्टि – हिन्दुत्व से हैभारत की सनातनता

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Feb 16, 2015, 12:00 am IST
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दिंनाक: 16 Feb 2015 12:42:15

भारत जैसे विशाल तथा विश्व के प्राचीनतम राष्ट्र में हिन्दू शब्द की ऐतिहासिक तथा भौगोलिक अभिव्यक्ति का, हिन्दू धर्म की व्यापक वैश्विक तथा शाश्वत प्रकृति का, हिन्दुत्व इसके गत हजारों वर्षों की संस्कृति संस्कार तथा विशिष्ट जीवन प्रणाली का तथा हिन्दू राष्ट्र इसके जागतिक सांस्कृतिक राष्ट्र का द्योतक तथा पहचान है। ये चारों विचार परस्पर इतनी अन्तर्निहित भावनाओं के साथ जुड़े हैं कि इनके विभिन्न स्वरूपों को समझना अत्यंत कठिन है। कुछ विदेशी विद्वानों ने इसके अलावा 'हिन्दुइज्म' शब्द की रचना की है मानो यह कोई 'इज्म' हो जो सर्वथा भ्रामक तथा काल्पनिक विचार है। यदि इसे किसी वाद से ही जोड़ना हो तो, इसे मानववाद का पर्यायवाची कह सकते हैं। भारत के सामान्य नागरिक के लिए इन शब्दों का अर्थ तथा भाव संक्षेप में जानना महत्वपूर्ण है।
हिन्दू
यह उल्लेखनीय है कि अरब देशों में भारत से आने वाले किसी भी व्यक्ति को आज भी हिन्दू देश से आया हुआ माना जाता है। कार्ल मार्क्स ने अपनी भारतीय इतिहास की टिप्पणियों (नोट्स आन इंडियन हिस्ट्री) में जिसमें सातवीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी के भारतीय इतिहास पर टिप्पणियां हैं इसे सर्वत्र हिन्दुओं का देश के नाम से लिखा है जिन्हें बाद में रूस की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने ढंग से सुधार कर प्रकाशित किया है। सामान्यत: हमारे देश के लिए हिन्दू शब्द हजारों साल पुराना है। यह संस्कृत के शब्द सप्त सिन्धु या सिन्धु का परिवर्तित रूप है। डॉ. सम्पूर्णानंद जैसे विद्वानों ने आर्यों का आदि देश सप्त सिन्धु ही माना है। इसे क्रमश: पारसियों ग्रीक यूनानियों, चीनियों, मुसलमानों तथा बाद में अंग्रेजों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसीसियों ने भाषा उच्चारण के कारण सिन्धु से हिन्दू देश कहा है। प्राचीन पारसी अभिलेख तथा जिंद अवेस्ता में इसका नाम मिलता है। भौगोलिक तथा भाषा उच्चारण से उपरोक्त शब्द में अन्तर आया। पारसी के पुराने शब्दकोष तथा पहल्लवी के अनुसार हिन्दू शब्द संस्कृत के सिन्धु से बना है। एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका ने इसे ऐसे ही माना है। पारसी शासक डेरियस प्रथम ने अपना विशाल राज्य स्थापित किया था जिसमें उसके बीस प्रांतों में हिन्द भी एक प्रांत कुछ समय तक रहा। भाषा के उच्चारण में पारसी सिन्धु का सही उच्चारण नहीं कर पाते तथा वे स को ह बोलते हैं। अत: उन्होंने सिन्धु नदी के आसपास रहने वालों को हिन्दू कहा। इसी भांति सप्त सिन्धु से हप्त हिन्दू हो गया। वे आज भी सुर-देवता को हूर तथा असुर-राक्षस को अहूर कहते हैं। जबकि ग्रीक यूनानी मूलत: भारत से गये आर्य ही थे (देखें, पोकोक, इंडिया इन ग्रीक) उन्होंने सिन्धु में स को हल्के ह अक्षर से जोड़कर इन्ड्स कहा। जो हिन्द बन गया। सिकन्दर ने इसे इन्दू कहा। यूनानी यात्री मैगस्थनीज की पुस्तक इण्डिका नाम से प्रसिद्ध है जो ईसा से लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व की है।
प्राचीन चीन देश के लोगों ने भारत को इत्तू, इन्दू आदि शब्दों से उच्चारित किया। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक सीयूकी में इसे इन्दू कहा है। अरब देश में मुस्लिम मजहब से बहुत पहले हजरत मोहम्मद से 165 वर्ष पूर्व एक कवि जराहन बिनतोई ने एक कविता भारत के यशोगान के संदर्भ में लिखी जो दिल्ली के लक्ष्मीनारायण मंदिर में उद्धरित है। (विस्तार के लिए देखें, सतीश चन्द्र मित्तल, मुस्लिम शासक तथा भारतीय जन समाज, नई दिल्ली, 2007) पृ. 9) हजरत मोहम्मद के पिता के बड़े भाई उमर बिन हाशिम ने अपनी एक अरबी कविता में हिन्दू एवं हिन्द शब्द का प्रयोग किया है। (देखें वही पृ. 10) अरबी में भारत से गणित या अंकगणित से जाने के कारण उसे हिन्दसा कहा गया है। महमूद गजनवी के साथ आये अलबुसी ने अपनी पुस्तक का नाम तहीकात-उल-हिन्द रखा था। बाद के मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे हिन्दू देश तथा इस समूचे स्थान को हिन्दुस्थान कहा।
ब्रिटिश लोग पहले इसे इंडस पुकारते रहे। परन्तु 17वीं 18वीं शताब्दी से इसे इंडिया या यहां के लोगों को इंडियन कहा। ब्रिटिश साम्राज्य तथा उपनिवेश की स्थापना के पश्चात उन्होंने भारतीयों में भेदभाव उत्पन्न करने के लिए इंडियन शब्द प्रयोग किया। उन्होंने इंडियन का अर्थ हिन्दू मुस्लिम, ईसाई पारसी के रूप में लिखा (देखें श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर के वंच ऑफ थाट्स, बेंगलुरू, 1966 पृ. 97) अनेक ईसाई पादरी यद्यपि भारत के इतिहास को हिन्दुओं का इतिहास लिखते रहे। पुर्तगालियों तथा फ्रांसीसियों ने इसे इंडीज के नाम से पुकारा। स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस सरकार ने भारतीय संविधान में देश का नाम 'इंडिया दैट इज भारत' लिखा। एक महासागर है जो इस देश के नाम से ही जाना जाता है वह है हिन्द या हिन्दू महासागर।
हिन्दू धर्म
यह तो विदित है ही कि हिन्दू धर्म किसी रिलीजन या मजहब का पर्याय नहीं है। धर्म की व्याख्या विशद्, व्यापक तथा सार्वभौमिक है। यह धृ धातु से बना है धारयते इति धर्म: अर्थात जिससे समाज की धारणा हो, वह धर्म है। धर्म का सीधा सा अर्थ है कर्त्तव्य। यह किसी पैगम्बर, पुस्तक, उपासना, पूजा पद्धति से नहीं जुड़ा है। यह एक वैश्विक तथा व्यापक धर्म है। इसे मानवधर्म, शाश्वत धर्म अथवा सनातन धर्म भी कहा गया है। देश विदेश के विद्वानों ने हिन्दू धर्म के वैशिष्ट्य को अपनी-अपनी भाषा शैली में व्यक्त किया है। स्वामी विवेकानंद ने धर्म को राष्ट्र की आत्मा कहा है। महात्मा गांधी ने हिन्दू धर्म को एक जीवित धर्म माना है (नवजीवन 7 फरवरी 1926) वे धर्म को सत्य की आत्मिक खोज का दूसरा नाम मानते हैं तथा जो सत्ता रोपित नहीं है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. राधाकृष्णन ने इसे निरंतर नव अभ्युदय के आधार पर सत्य की चिरंतन खोज कहा है (देखें द हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ)। विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार यदुनाथ सरकार ने लिखा है- यह पंथों का संयोग, विश्वासों का सहयोगी तथा दर्शन की संघ रचना है। रोमा रोलां ने इसे विविध सम्प्रदायों का एक सुन्दर गुलदस्ता कहा है। प्रसिद्ध यूरोपीय विद्वान आरसी जैकनेर ने लिखा है- जहां सैमेटिक रिलीजन एक विचारधारा है वहां हिन्दू धर्म जीवन का एक मार्ग है। (एट सण्डे टाइम्स, लंदन 1955, पृ. 20) हिन्दू धर्म में कन्वर्जन तथा हिंसा का कोई स्थान नहीं है। यह व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास तथा सामूहिक जीवन बोध का धर्म है। संक्षेप में हिन्दू धर्म एक सकारात्मक, जनहितकारी और मानवता का रक्षक है। इसका अस्तित्व विश्व में सबसे प्राचीन तथा भारत के देशवासियों की पहचान है। हिन्दू धर्म तथा संस्कृति विश्व के सभी धर्मों की जननी है।
हिन्दुत्व
हिन्दुत्व एक भाववाचक संज्ञा है। यह संस्कृत के दो शब्दों हिन्दू-तत्व से बना है। संस्कृत का शब्द हिन्दुत्व, मनुष्यत्व के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग में आता है। हिन्दुत्व भारतीय समाज की दर्शन परंपरा, संस्कृति तथा विरासत की सामूहिक अभिव्यक्ति है। हिन्दुत्व, वास्तव में देवत्व तथा मानवता का संयोग है। यह सेवा, संस्कार, समर्पण समरसता तथा सहअस्तित्व पर आधारित है। यह सर्वपंथ समभाव में पूर्ण आस्था रखता है। दूसरे धर्मों के प्रति उदारता तथा सहिष्णुता इसके मुख्य लक्षण हैं। विश्व प्रसिद्ध लेखिका कैरी क्राउन ने लिखा है- यह एक संस्कृति है जिसे हिन्दुत्व या हिन्दू संस्कृति या भारतीय संस्कृति या सनातन धर्म कह सकते हैं। इसके अनुसार हिन्दुत्व जीवन का एक मार्ग है (देखें इसैन्सियल टीचिंग्स ऑफ हिन्दुइज्म)। मोरक्को के यात्री इब्नबतूता को हिन्दू सहिष्णुता को देखकर महान आश्चर्य हुआ था। विश्व प्रसिद्ध समाजशास्त्री मैक्स वेबर ने कहा- हिन्दू में अथाह सहिष्णुता है (द रिलीजन ऑफ इंडिया, पृ. 21) ब्रिटेन के प्रमुख विद्वान बर्नाड शॉ ने इसे विश्व का सर्वाधिक उदार धर्म बतलाया है।
हिन्दुत्व एक श्रेष्ठ जीवन प्रणाली है। यह जीवन निर्धारण की एक दृष्टि है। उल्लेखनीय है कि 1977 में पांच न्यायाधीशों की एक खण्डपीठ ने जिसमें एमएच बेग तथा आरएस सरकारिया शामिल थे- हिन्दुत्व को परिभाषित किया जिसमें एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका को उद्धरित करते हुए खण्डपीठ ने कहा, हिन्दुत्व किसी भी पूजा पद्धति को स्वीकारने या नकारने की बजाय सभी मान्यताओं व पूजा पद्धतियों को अंगीकार करता है। आगे कहा- हिन्दुत्व एक सभ्यता और विभिन्न पंथों का समुच्चय है, जहां कोई एक संस्थापक या पैगम्बर नहीं है। इसी भांति 11 दिसम्बर 1995 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों सर्वश्री जेएस वर्मा, एनपी सिंह तथा वेंकट स्वामी ने एक निर्णय में कहा कि हिन्दुत्व शब्द का धार्मिक विश्वास के प्रति असहिष्णुता या कथित साम्प्रदायिकता से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने हिन्दुत्व की परिभाषा देते हुए कहा कि हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति को इंगित करता है। यह भी कहा कि यदि वे (हिन्दू) हिन्दू और हिन्दुत्व की बात अपने देश में नहीं कर सकते तो क्या अन्यत्र कर पाएंगे। अत: हिन्दुत्व न किसी दुराग्रह, न आतंकवाद न साम्प्रदायिक का किंचित भी पोषक हो सकता है। गांधीजी का कथन है कि हिन्दू मूर्खता की हद तक असाम्प्रदायिक है। वस्तुत: हिन्दुत्व के प्रति दोषारोपण नेहरूवाद, पाश्चात्य उन्मुक्तता, इस्लामिक कट्टरवादी के लिए सहिष्णुता और हिन्दू पहचान के प्रति वैमनस्य का नाम है जिसका एकमात्र उद्देश्य अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण तथा राजनीतिक स्वार्थवश वोट बैंक बढ़ाना है। इस संकीर्ण सोच ने देश में अलगाववादी तथा विघटनकारी शक्तियों को प्रोत्साहन दिया है।
हिन्दू राष्ट्र
भारतीय चिंतन में राष्ट्र की संकल्पना प्राचीनतम है, जबकि पाश्चात्य जगत में इसका चिंतन 18वीं तथा 19वीं शताब्दी की देन है। हिन्दू राष्ट्र कोई राजनीतिक या आर्थिक अधिकारों का पुलिंदा नहीं है। इसका आधार मूलत: सांस्कृतिक है। श्री दतोपंत ठेंगड़ी ने कहा है कि इसको समझने के लिए मैकाले तथा उसके मानसपुत्रों को भुलाना होगा (देखें- संकेत रेखा में हिन्दू राष्ट्र की हमारी संकल्पना पृ. 139-152) वस्तुत: इसका वर्णन विश्व के प्रथम ग्रंथों-वेदों में वर्णित है (देखें सतीशचन्द मित्तल वेदों में राष्ट्र चिंतन, पाञ्चजन्य, 19 फरवरी 2012) इसमें भूमि के साथ सर्वोच्च तथा भावात्मक संबंध बताया गया है। वीर सावरकर ने 1923 में हिन्दुत्व में इसका वर्णन किया है। राष्ट्रीयता एक मनोदेशा है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने राष्ट्र के प्रति उच्चतम भक्ति अनुभव करता है। राष्ट्रीयता की भावना में मातृभूमि, पितृभूमि, जन्मभूमि का महत्वपूर्ण स्थान है। राष्ट्र कल्पना की यह एक महत्वपूर्ण कड़ी है, साथ ही कसौटी भी। भारत में मुस्लिम काल तक यह भावना निरंतर बनी रही है। सर्वोच्च न्यायालय के 1984 के प्रदीप जैन विरुद्ध यूनियन ऑफ इंडिया निर्णय में कहा गया है। यह इतिहास का एक रोचक तथ्य है कि भारत एक राष्ट्र था जो न भाषा के आधार पर और न ही किसी एक राजनीतिक शासन के अस्तित्व के कारण बल्कि एक समान संस्कृति के आधार पर था जो अनेक शताब्दियों में विकसित हुई थी। ब्रिटिश इतिहासकारों-जेम्स मिल, मैकाले, एलीफिंस्टन, माल्कम ने अपने शासन को स्थापित करने तथा दृढ़ करने को भ्रम फैलाया कि भारत एक राष्ट्र नहीं है। कभी कहा यहां 10 राष्ट्र हैं तो कभी 20 राष्ट्रों का समूह बताया। जेम्स मिल ने पहली बार इसे महाद्वीप कहा। मुसलमानों में सर सैयद अहमद ने भी पहली बार इसे महाद्वीप कहा। सीधे अंग्रेज राज स्थापित होने पर प्रचारित किया कि यह एक बनता हुआ राष्ट्र है। भ्रमित कांग्रेस नेताओं ने भी इसे स्वीकार किया। कांग्रेस अध्यक्ष हेनरी काटन ने कहा- भारत में एक नये राष्ट्र का उदय हो रहा है (न्यू इंडिया इन ट्रांजिसन, पृृ. 53) सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने अपनी आत्मकथा का नाम 'ए नेशन इन मेकिंग' रखा यहां तक कि पंडित नेहरू ने एक पुस्तक का नाम रखा- द डिस्कवरी ऑफ इंडिया। और इस असत्य तथा भ्रामक तथ्य की समाप्ति भारत विभाजन के रूप में हुई।
रा.स्व.संघ के प्रणेता डा. हेडगेवार ने भारतीय इतिहास की राष्ट्र आत्मविस्मृति को समूचे राष्ट्र के सम्मुख रख भारतीय इतिहास के एक महान तथा कटु सत्य का उद्घाटन किया था। उनके पहले भाषण का विषय था, हिन्दुस्थान हिन्दुओं का है। इस संदर्भ में यह कहना अनुचित होगा कि वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत कोई नवीन बात कह रहे हैं, वस्तुत: वह इतिहास के उसी सत्य को दोहरा रहे हैं जिसका प्रारंभ स्वतंत्रता के पश्चात होना चाहिए था। अत: यह प्राचीन काल से चला आ रहा हिन्दू राष्ट्र है, हिन्दू देश है तथा यहां के सभी नागरिक इसके अंगभूत है। विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार आरसी मजूमदार ने कहा है कि हमें बहादुरी से इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए कि जब लोग भारत के महज अतीत व प्राचीन सभ्यता की बातें करते हैं तो उनका आशय हिन्दू इतिहास, हिन्दू संस्कृति तथा हिन्दू समाज से ही होगा।
अत: उपरोक्त संक्षिप्त विवेचन से यह सत्य सिद्ध है कि हिन्दू इस देश के भौगोलिक रूप, हिन्दू धर्म इसके विश्वव्यापी स्वरूप, हिन्दुत्व इसकी सांस्कृतिक पहचान तथा हिन्दू राष्ट्र इसकी राष्ट्रीय अभिव्यक्ति है। पंथनिरपेक्षता, अतीत से इसका मुख्य बिन्दु रहा है। यह अल्पसंख्यकों के कट्टरपंथी तत्व को अस्वीकार करता है। हिन्दुत्व के दर्शन का उद्देश्य ही इस देश की सार्वभौमिकता, अखण्डता तथा एकता को बनाये रखना है, इसी कटु सत्य को हम पहचानें। ल्ल

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