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एक मोर्चा हारने से जंग नहीं हारी जाती। जंग जान हारने से, जीतने का संकल्प हारने से हारी जाती है। अभी तो राष्ट्र के विकास के पथ पर अनेकों बाधाएं आएंगी। दिल्ली कुल देश नहीं, देश का एक छोटा सा हिस्सा है। निराशा का कोई कारण नहीं।
तुफैल चतुर्वेदी
ध्वस्त विरोधी शिविर, खंडित छत्र, धरती पर लोटते हुए महारथी, भग्न रथ, दुम दबाकर भाग चुकी शत्रु सेना, लहराती विजय पताकाएं, दमादम गूंजते हुए नगाड़े, बजती हुई विजय दुंदुभी, पाञ्चजन्य का गौरव-घोष, अपने ही रक्त-स्वेद में सने कराहते हुए सेकुलर अघोरी दल'़…ये पाञ्चजन्य में ही छपे मेरे एक पुराने लेख की पंक्तियां हैं।
इन घटनाओं को उपजाने, कार्य रूप में परिणित करने वाले मतदाताओं, समर्थकों, कार्यकर्ताओं को उल्लसित हुए देखे अभी एक वर्ष भी नहीं बीता कि वही समूह उच्छ्वासें छोड़ता दिखाई दे रहा है। उसी सैन्य दल को धक्का लगा है। उसमें निराशा का वातावरण दिखाई दे रहा है और इसका कारण दिल्ली विधान सभा के चुनाव का मोर्चा हारना है। देश के सवा सौ करोड़ लोगों के मध्य 543 चुनाव क्षेत्रों में जिन लोगों ने जबरदस्त ढंग से महाभारत लड़ा। एक-एक वोट के लिए जूझे। विकास के साथ राष्ट्रवाद की विजय-पताका को चतुर्दिक लहराया। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व को गौरवमय बनाया। 282 क्षेत्रों में विजय पायी। वे 7 लोकसभा सीटों के क्षेत्र वाली विधानसभा के चुनाव हार जाने पर निराश हो रहे हैं तो ये समय संगठन की अंदरूनी छान-फटक, उसके चिन्तकों, नेतृत्व के लिए गहन विचार करने का है।
पुरानी कहावत है-'जीत के ढेरों रिश्तेदार होते हैं और हार अनाथ होती है'। इसलिए सच वही है जो सामने है, मगर भाजपा के कार्यकर्ताओ! समर्थको! मतदाताओ! मार्गदर्शको! आपको भी ये बात याद रखने और समझने की है कि इस चुनाव में 39 सीटें केवल .09 प्रतिशत वोट कम होने के कारण हारी गयी हैं। लोकसभा के चुनावों की लहर में भी भाजपा को देश भर में पड़े कुल मतों के 31 प्रतिशत मत मिले थे और उस समय दिल्ली की भाजपा की जीती गयी 7 सीटों पर 33.7 प्रतिशत मत मिले थे और इसी आआपा का बाजा बज गया था। इस विधानसभा के चुनाव में भाजपा को कुल मतों के 32.2 प्रतिशत मत मिले हैं अर्थात भाजपा का वोट बैंक कम नहीं हुआ है। भाजपा को मतदाताओं, समर्थकों, कार्यकर्ताओं का भरपूर सहयोग मिला। किसी भी प्रकार की कमी नहीं रही। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि अरविन्द केजरीवाल 57,213 मत पा कर विजयी रहे हैं और किरण बेदी 63,642 मत पा कर भी हार गयी हैं। भाजपा की हार आपके विरोधियों के नमक-लोटा एक हो जाने के कारण हुई है।
जिस धूर्त-वाचाल शैली की राजनीति करने के कारण आआपा पार्टी की विजय हुई है उस शैली का प्रयोग कई देशों में सफलतापूर्वक किया जा चुका है और उस शैली का प्रयोग करने वाले नेतृत्व की ऊटपटांग हरकतों के कारण देश संकट के गर्त में गिर चुके हैं। स्पेन, जिसके कारण आज सम्पूर्ण यूरोप की अर्थव्यवस्था डूबने का खतरा आसन्न है, ऐसे ही धूर्त-वाचाल नेताओं के किये लोक-लुभावन वादों, उनके पालन का परिणाम भोग रहा है। इसकी शुरुआत लगातार आरोप लगाने से होती है। किसी छोटे से निष्कंटक दिखने वाले मुद्दे को छात्रों, युवाओं, प्रेस के बीच ले जाया जाता है। उसमें गुब्बारे की तरह हवा भरी जाती है। तरुणाई का इसमें भरपूर प्रयोग होता है। आक्षेपों, आरोपों को सत्य की तरह लगाया जाता है़ यहां से खामखा के आंदोलन की भूमिका बनायी जाती है। लोक-लुभावन वादे किये जाते हैं। कभी ये शैली पिट जाती है, कभी कामयाब होती है मगर दूर तक नहीं जाती। इसका भविष्य नहीं होता चूंकि उन वादों का पूरा होना सम्भव नहीं होता। वादों का ठीकरा दूसरे के सर पर फोड़ दिया जाता है। धीरे-धीरे जनता समझ जाती है। बस तब तक संस्थानों का, देश का बड़ा नुकसान हो जाता है। आंदोलन में भाग लेने वाले कुछ लोग राजनीति में चले जाते हैं, शेष की शिक्षा के एक-दो साल खराब हो जाते हैं।
मोदी के नेतृत्व में भाजपा राष्ट्र को जिस परम वैभव के शिखर पर ले जाने का प्रयास कर रही है, उसमें तो मेहनत लगेगी। आत्मनिर्भर देश का सपना बहुत परिश्रम चाहता है। उस के रास्ते पर फ्री के माल का, कामचोरी का, मुफ्तखोरी का कोई मोड़ या पड़ाव है ही नहीं। अब इस तरह के पड़ाव का वादा करने वाले लोग मतदाताओं की आंखों में लालच की चमक तो भर सकते हैं मगर उस चमक को उजाले में नहीं बदल सकते। अगला कदम आरोप लगाने का आएगा। 'हम तो करना चाहते हैं मगर केंद्र सरकार हमें बांटने के लिए मुफ्त की बिजली, मुफ्त का पानी नहीं दे रही। विपक्षी पार्टी के लोग भ्रष्ट हैं। उनके हित आम जनता के विरोधी हैं। वह पार्टी पूंजीपतियों से मिली हुई है', जैसे आरोप 4-5 महीनों में सुनाई देने लगेंगे। मनुष्य के स्वभाव के मूल में सुख की खोज है। सुख मुफ्त में मिल जाये तो क्या कहने। स्पेन की दुर्दशा होने को इस तरह समझा जा सकता है। यूरोप के बड़े बैंकों ने स्पेन में पैसा लगा रखा है और स्पेन डूबा तो यूरोप के अन्य देशों के बैंक इस बुरी तरह डूबेंगे कि साथ में सम्बंधित देशों की खाट खड़ी हो जाएगी। धूर्त-वाचाल शैली की राजनीति ने छोटे से बजट के दिल्ली प्रदेश को डूबने की दिशा में धकेल दिया है। आप यदि हताश-निराश रहेंगे तो कैसे काम चलेगा?
आप भारत की सबसे बड़ी सदस्य संख्या की पार्टी हैं। आपके, केवल आपके पास स्पष्ट और तार्किक वैचारिक आधार है। आप और केवल आप राष्ट्र की आशा की किरण हैं। सारे संसार के देश भारत को दुर्बल, समस्याओं से घिरा, चिंतित देखना चाहते हैं तभी तो उनकी दाल गलेगी। सबल भारत किसी के दबाव में क्यों और कैसे आएगा। सारे संसार में इसका सन्देश दोपहर के सूरज की तरह अंधी आंखों को भी दिखाई नहीं दे जायेगा? सेनायें रण जीततीं-हारतीं सेना नायकों के कारण हैं। एक मोर्चा हारने से जंग नहीं हारी जाती। जंग जान हारने से, जीतने का संकल्प हारने से हारी जाती है। अभी तो राष्ट्र के विकास के पथ पर अनेकों बाधाएं आएंगी। दिल्ली कुल देश नहीं, देश का एक छोटा सा हिस्सा है। निराशा का कोई कारण नहीं।
आप सबल हैं और सबल का म्लान होना सूरज के कुम्हलाने की तरह है। सूरज के प्रकाश को बदली रोक सकती है मगर ये क्षणिक ही होता है, होना चाहिए। अपने समर्थकों पर भरोसा कीजिये और उनकी संख्या में बढ़ोतरी का प्रयास कीजिये। अराष्ट्रीय लोग अगर आपके विरोध में हैं तो राष्ट्र आपके साथ है। इनके बारे में हस्ती मल हस्ती का एक शेर है-
हम बदलते नहीं हवा के साथ
हम पे मौसम असर नहीं करते
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