साक्षात्कार - 'प्र्रेम की आड़ में छिपे हैं निजी हित'
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साक्षात्कार – 'प्र्रेम की आड़ में छिपे हैं निजी हित'

by
Feb 16, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 16 Feb 2015 14:53:17

रांची में निशानेबाज तारा शाहदेव का मामला सामने आए अभी ज्यादा समय नहीं बीता था कि झारखंड की भोली-भाली वनवासी महिलाओं को अल्पसंख्यकों द्वारा दूसरी-तीसरी पत्नी बनाकर उनका दोहन करने और ईसाई पंथ के व्यक्ति के प्रेमजाल में फंसकर हिन्दू से ईसाई बनी बरखा की आपबीती ने एक बार फिर से अल्पसंख्यकों द्वारा सुनियोजित तरीके से हिन्दू युवतियों को फंसाने के विषय ने गंभीरता से सोचने को मजबूर किया है। इस विषय पर केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री सुदर्शन भगत से पाञ्चजन्य संवाददाता राहुल शर्मा की बातचीत के प्रमुख अंश प्रस्तुत हैं :
ईसाई पंथ के ग्लैडसन से प्रेम विवाह करने वाली बरखा ईसाई पंथ अपनाने के बाद भी आज पति द्वारा प्रताडि़त हो रही है। उनका पति ग्लैडसन बरखा को छोड़ना चाहता है। ऐसे अनेक मामले गुपचुप तरीके से चल रहे हैं। इस पर आपकी क्या राय है?
यह घटना काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। झारखंड में वनवासी परिवार की लड़कियां आए दिन इस तरह से शिकार बन रही हैं। प्रेम-प्रसंग के नाम पर एक सुनियोजित तरीके से ऐसा किया जा रहा है। वनवासी समाज में फैली गरीबी और बेरोजगारी का ये लोग फायदा उठाते हैं। इन लड़कियों को अपने चंगुल में फंसाने के लिए अल्पसंख्यकों का निजी स्वार्थ भी रहता है। उसी को ध्यान में रखकर लड़कियों को प्रलोभन दिए जाते हैं। इनके प्रलोभन का शिकार बनने वालों मे पढ़ी-लिखी लड़कियों की संख्या अधिक रहती है। इसकी रोकथाम के लिए समाज और प्रशासन को कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ना होगा।
देखने में आया है कि वनवासी समाज की लड़कियों को अल्पसंख्यक दूसरी-तीसरी पत्नी बनाकर रखते हैं और उन्हें वास्तव में पत्नी का दर्जा नहीं देते हैं। इसके पीछे उनके क्या उद्देश्य हैं?
अल्पसंख्यक वनवासी लड़कियों को भोग-विलास का साधन मानते हैं।  विशेषतौर पर वनवासी समाज की शिक्षित लड़कियां नर्स या शिक्षिका रहती हैं। ऐसी लड़कियों पर इनकी खास नजर रहती है। इसके पीछे उनके आर्थिक व राजनैतिक उद्देश्य जुड़े होते हैं। एक बार वनवासी समाज की लड़की से शादी करने पर उनके लिए झारखंड में भूमि खरीदना आसान हो जाता है। झारखंड में कुछ कानून हैं जिस कारण गैर वनवासी यहां भूमि नहीं खरीद सकते हैं। वनवासी महिला से विवाह करने के पीछे भूमि अर्जन करने का विशेष उद्देश्य रहता है। इस आधार पर ये पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदते हैं और गैर कानूनी कार्यों को अंजाम देते हैं। अल्पसंख्यक परिवार में जाने वाली वनवासी महिला को पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है और वह एक प्रकार की दासी बनकर रहती है। ऐसी महिला जीवन भर पत्नी का सम्मान पाने से वंचित रहती है और घुटन का जीवन जीती है। इसके बुरे परिणामों के बारे में समाज को गंभीरता से जागृत करना होगा।
देखने में आया है कि अल्पसंख्यक बेशक वनवासी महिलाओं को पत्नी का दर्जा न दें, लेकिन राजनीति में सक्रिय होने के लिए उनका पूरा इस्तेमाल करते हैं। क्या आप इससे सहमत हैं?
इसमें दो मत नहीं हैं कि अल्पसंख्यक राजनीति में सक्रिय होने के लिए वनवासी समाज की महिलाओं का इस्तेमाल करते हैं, चाहे घर में उन्हें दासी बनाकर ही क्यों न रखते हों। असल में ये लोग झारखंड में सीधे चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। ये लोग चुनाव के समय महिला के पति की जगह अपना नहीं, बल्कि उसके पिता का नाम ही लिखते हैं जिससे कि वनवासी समाज का उस महिला को पूरा समर्थन मिलता है। इसका लाभ उठाकर वे स्वयं धीरे-धीरे राजनीति में सक्रिय हो जाते हैं। हाल ही के पंचायती चुनावों में ऐसे अनेक मामले प्रकाश में आए हैं कि अल्पसंख्यकों ने वनवासी महिलाओं को चुनाव में उतारा था, लेकिन रिकॉर्ड में पिता का नाम ही दिखाया गया। झारखंड में आज भी वनवासी समाज के पास पर्याप्त भूमि है, यही कारण है कि उनकी संपत्ति के लालच से पहले उन्हें फंसाया जाता है और बाद में जीवन भर उनका शोषण किया जाता है। 
बंगलादेशी भी झारखंड में चोरी-छिपे घुस रहे हैं और वनवासी महिलाओं से शादी कर यहीं के बन जाते हैं। इसे आप किस दृष्टि से देखते हैं?
केन्द्र व राज्य सरकार दोनों के लिए यह बेहद चिंता का विषय है। खासकर बंगलादेश से सटे झारखंड के पाकुर, साहबगंज आदि जिलों में ऐसा चलन बढ़ रहा है। पिछले कुछ समय में ऐसे अनेक मामले प्रकाश में आ चुके हैं। इसके लिए राज्य सरकार और पुलिस को अपना खुफिया तंत्र और मजबूत करना होगा जिससे बंगलादेशी घुसपैठियों को रोककर उनकी मंशा पर विराम लगाया जा सके।
क्या झारखंड राज्य बनने के बाद से यहां सत्ता में रही सरकारों ने जनता की अपेक्षानुसार कार्य किया है, क्या वे अपने वायदों पर खरे उतरे हैं?
झारखंड में अभी काफी प्रगति होनी बाकी है। राज्य में भाजपा की सरकार को जब-जब अवसर मिला उसने वनवासियों के हित में अनेक कार्य किए हैं। वनवासियों के विकास के लिए, उनका पलायन रोकने, स्वरोजगार से जोड़ने और छात्र-छात्राआंे को निशुल्क पाठ्यपुस्तकें देने संबंधी आदि अनेक विशेष कार्य किए गए हैं।
आप झारखंड से हैं और केन्द्र की सरकार में प्रतिनिधित्व भी कर रहे हैं। आप इसकी रोकथाम के लिए क्या कदम उठाएंगे?
ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए राज्य सरकार को सख्त कदम उठाने हांेगे।  यह एक राज्य नहीं, बल्कि पूरे देश में रहने वाले वनवासियों की समस्या बन चुकी है। केन्द्र की ओर से राज्य सरकार को हर संभव मदद की जाएगी ताकि ऐसे मामलों को रोका जा सके।

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