जल संचयन - पानी की वैश्विक राजनीति
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जल संचयन – पानी की वैश्विक राजनीति

by
Feb 16, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 16 Feb 2015 14:34:57

इस्लामिक स्टेट द्वारा टिगरिस तथा यूफरेटिस नदियों पर कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है। ये नदियां इराक की जीवनधारा हैं। मोसुल बांध पर इस्लामिक स्टेट ने कुछ समय के लिए कब्जा भी कर लिया था। साठ के दशक में इस्रायल ने 6 दिन का युद्ध छेड़ा था जिसका उद्देश्य जॉर्डन नदी के पानी पर अधिकार जमाना था। हम भी पीछे नही हैं। इन विषयोंं के जानकार ब्रह्म चेलानी के अनुसार पाकिस्तान द्वारा कश्मीर के मुद्दे को लगातार उठाने का उद्देश्य उस राज्य से बहने वाली नदियों पर वर्चस्व स्थापित करना है। बंगलादेश के साथ तीस्ता के पानी के बंटवारे का विवाद सुलझ नहीं सका है। अधिकतर बंगलादेशी मानते हैं कि भारत ने फरक्का बराज के द्वारा पानी को हुगली में मोड़कर दादागिरी दिखाई है। चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने से भारत चिंतित हैं। अरुणाचल पर चीन की पैनी नजर रहने का एक कारण उस राज्य के प्रचुर जल संसाधन हैं। नेपाल द्वारा बांधों से पानी छोड़े जाने को बिहार की बाढ़ का कारण माना जाता है। इन विवादों को शीघ्र निपटाने में ही हमारी जीत है।
सर्वप्रथम ऐसे तकनीकी हल खोजने चाहिए कि दोनोें देशोें के लिए लाभदायक हों। फरक्का बराज की वर्तमान समस्या तलछट की है। फरक्का के तालाब मंे तलछट जम जाती है। ऊपरी सतह से पानी निकालकर हुगली में मोड़ दिया जाता है। नीचे बैठी तलछट को निथारकर पदमा में बहा दिया जाता है जो कि बंगलादेश को चली जाती है। परिणाम है कि पानी का बंटवारा तो आधा-आधा होता है परन्तु अनुमानित 90 प्रतिशत तलछट बंगलादेश को जाती है। तलछट के इस अप्राकृतिक बंटवारे से दोनों देश त्रस्त हैं। बंगलादेश में अधिक मात्रा में तलछट पहुंचने से पद्मा का पाट ऊंचा होता जा रहा है और बाढ़ का प्रकोप बढ़ रहा है। हुगली में तलछट कम पहुंचने से समुद्र की तलछट की भूख शांत नहीं हो रही है और वह हमारे तट को खा रहा है। गंगासागर द्वीप छोटा होता जा रहा है। लोहाचारा और गोडामारा द्वीपों से लगभग एक लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। इस दोहरी समस्या का हल है कि फरक्का के आकार में बदलाव किया जाए जिससे पानी के साथ-साथ तलछट का भी बराबर बंटवारा हो।
नेपाल द्वारा नदियों पर बड़े बांध बना कर पानी को रोकने का प्रयास किया जा रहा है। इनसे ज्यादा मात्रा मंे पानी छोड़ दिया जाता है जिससे बिहार मंे बाढ़ का प्रकोप बढ़ जाता है। इस समस्या का समाधान भूमि के गर्भ में उपलब्ध जलसंचयन की क्षमता के माध्यम से निकल सकता है। धरती के नीचे तालाब एवं नदियां होती है। सेन्ट्रल ग्राउन्ड वाटर बोर्ड के अनुसार उत्तर प्रदेश की भूमि के भूगर्भ में जलसंचयन भंडारण क्षमता 76 बिलियन क्यूबिक मीटर है जोकि टिहरी बांध से 25 गुना ज्यादा है। इसी प्रकार के जल संचयन की क्षमता नेपाल में भी है। हमें साझा नीति बनाकर नेपाल को प्रेरित करना चाहिए कि पानी का भंडारण भूमि के गर्भ में करे। इस्रायल ने इस तकनीक का बखूबी विकास किया है। बांधों के तालाबों से वाष्पीकरण के कारण 10-20 प्रतिशत पानी का नुकसान हो जाता है। यह पानी बच जाएगा। बड़े बांधों मंे निहित विस्थापन तथा भूकम्प जैसी समस्याओं से भी छुटकारा मिल जाएगा। सिंधु, ब्रह्मपुत्र, तीस्ता तथा गंगा के पानी के बंटवारे को लेकर चीन, पाकिस्तान, नेपाल तथा बंगलादेश के साथ हमारा तनाव बना रहता है। इन नदियों के ऊपरी हिस्से में स्थित देश का प्रयास रहता है कि अधिक से अधिक पानी को रोक ले जबकि निचला देश चाहता है कि अधिक से अधिक पानी को बहने दिया जाए। चीन तथा नेपाल के संदर्भ में हम निचले देश हैं जबकि पाकिस्तान तथा बंगलादेश के संदर्भ में ऊपरी देश है। यहां एक देश की हानि दूसरे देश का लाभ है जैसे तीस्ता मंे अधिक पानी छोड़ने से भारत को हानि और बंगलादेश को लाभ है। इसका हल है कि लाभ पाने वाला निचला देश हानि झेलने वाले ऊपरी देश को मुआवजा दे। जैसे मान लीजिए तीस्ता के एक क्यूबिक लीटर पानी को छोड़ने से भारत को 10 रुपए की हानि होती है जबकि बंगलादेश को 20 रुपए का लाभ होता है। ऐसे मे बंगलादेश को चाहिए कि भारत को 15 रुपए का मुआवजा दे। तब पानी छोड़ना दोनों देशों के लिए लाभकारी हो जाएगा। भारत को 10 रुपए की हानि के सामने 15 रुपए का मुआवजा मिलेगा। बंगलादेश को 20 रुपए के लाभ मे 15 रुपए का मुआवजा देना होगा – 5 रुपए का फिर भी लाभ होगा। यह फार्मूला हमें ऊपरी तथा निचले दोनों देशों के साथ लागू करना चाहिए।
जनसंख्या के साथ-साथ पानी की मांग भी बढ़ेगी। इसे पूरा करने के लिए पानी की बचत करनी होगी। भारत में लगभग 88 प्रतिशत पानी का उपयोग खेती के लिए किया जाता है। कर्नाटक के गुलबर्गा मे अंगूर, राजस्थान के जोधपुर मे लाल मिर्च तथा उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल के लिए भारी मात्रा में पानी का उपयोग किया जा रहा है जिससे भूमिगत पानी का जलस्तर गिरता जा रहा है। विलासिता की इन फसलों को उगाने के लिए हम अपने भूमिगत पानी के भंडार को समाप्त कर रहे हैं। सरकार को चाहिए कि हर जिले की 'फसल ऑडिट' कराए। जिले में उपलब्ध पानी को देखते हुए पानी की अधिक खपत करने वाली फसलों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। गुलबर्गा मंे रागी, जोधपुर मे बाजरा और उत्तर प्रदेश में चावल ओर गेहूं की खेती करने से हमारे जल संसाधन सुरक्षित रहेंगे और देश की खाद्य सुरक्षा स्थापित होगी। रागी और बाजरा खाने से जनता का स्वास्थ भी अच्छा होगा। ल्ल

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