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केदारनाथ : यह अकल्पनीय है कि इतना विशालकाय वायुसेना का एम. एस. 26 हेलीकॉप्टर केदारपुरी के हैलीपैड पर उतर आयेगा, इस विमान के जरिए विशाल मशीनें, स्नोकॉप्टर (बर्फ काटने वाली मशीन) जेसीबी, डम्बर, ट्रैक्टर आदि उतारे गए हैं। इन सभी यंत्रों, उपकरणों, वाहनों का उपयोग, केदारनाथ आपदा के दौरान क्षतिग्रस्त भवनों की सफाई, मलबा हटाने और केदारपुरी को दोबारा से आबाद करने में किया जा रहा है। यह कार्य कर रहा है नेहरू पवतारोहण संस्थान।
याद होगा कि जून, 2013 के मध्य केदारनाथ में आपदा आयी थी जिसमें हजारों लोगों की जानें चली गई थीं, सैकड़ों भवन, होटल, धर्मशालाएं, शंकराचार्य समाधि तक मलबे में तब्दील हो गए थे। नतीजा यह हुआ कि श्रद्धालु अब केदारनाथ जाने के नाम से डरने लगे। उत्तराखण्ड की बहुगुणा सरकार, राहत-जीर्णोद्धार का कार्य नहीं करवा पाई, बाद में हरीश रावत मुख्यमंत्री बने तब भी उत्तराखण्ड के नौकरशाहों ने यहां कार्य न करवा कर, रावत सरकार की किरकिरी करवाई थी।
आखिरकार, केन्द्र की मोदी सरकार व राज्य सरकार की सूझबूझ से केदारनाथ जीर्णोद्धार का कार्य एक मिशन के रूप में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान, उत्तरकाशी के हवाले किया गया है। नेहरू पर्वतारोहण संस्थान, रक्षा मंत्रालय के अधीन कार्य करने वाली वह संस्था है, जो कि सैनिकों को, युवाओं को पर्वतारोहण का प्रशिक्षण देती है। इस संस्थान के प्राचार्य, सेना के विशिष्ठ मेडल प्राप्त कर्नल अजय कोटियाल हैं, जो आपदा के अगले दिन से ही अपनी प्रशिक्षित टीम के साथ केदारपुरी रवाना हो गए थे। पहाड़ हिमालय की विषम परिस्थितियों का अनुभव रखने वाले कर्नल कोटियाल, इस समय अपने 300 लोगों के साथ केदारनाथ नगरी में मलबा हटाने के काम में दिन-रात, कड़ाके की सर्दी में भी काम कर रहे हैं।
पहले चरण में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के जवानों ने गौरीकुंड से केदारनाथ तक का पैदल रास्ता दुरुस्त किया, सारा मार्ग सीमेंटेड करके यात्रियों के लिए जगह-जगह शेल्टर बनाए गए हैं। उसके बाद गत अक्तूबर में काम शुरू हुआ डेढ़ सौ गुणा तीन सौ मीटर का हेलीपैड बनाने का। करीब तीन माह इस हेलीपैड को बनाने, उसे सीमेंट, कोलतार के घोल से बनाकर तैयार करने में लगे। इसमें किसी भी मशीन का उपयोग नहीं हुआ, सब कुछ जवानों, मजदूरों की मेहनत से संभव हुआ। लक्ष्य था यहां वायुसेना के एम.एस. 26 हेलीकॉप्टर को उतारना, क्योंकि वजह साफ थी कि बिना मशीनों के केदारपुरी की सफाई पुनर्निर्माण संभव नहीं था और यह तभी संभव था जब वायुसेना सहयोग करती।
कर्नल अजय कोटियाल की सलाह पर उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रधानमंत्री कार्यालय, रक्षा मंत्रालय से इस बारे में बात की। आखिरकार केन्द्र ने इन परिस्थितियों को समझा और वायुसेना को इस बारे में राज्य सरकार और नेहरू पर्वतारोहण की टीम के साथ योजना पर काम शुरू करने को कहा। केदारनाथ धाम की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वहां हेलीकॉप्टर जाने का एक मात्र पहाड़ी संकरा रास्ता है और मौसम इस रास्ते का सबसे बड़ा अवरोधक। घना कोहरा अक्सर पहाड़ी के बीच इस रास्ते में छाया रहता है। एम. एस. 26 हेेलीकॉप्टर की उड़ान भरने से पहले, दो घंटे तैयारियों में लग जाते हैं, इन तमाम विषयों को दृष्टिगत रखते हुए वायुसेना के इस हेलीकॉप्टर ने सबसे पहले नौ जनवरी, फिर दस जनवरी को लैंडिंग की। उसके बाद स्नोमशीन कटर, जेसीबी मशीन आदि लेकर गत 12 जनवरी को लैंडिंग की। एक लक्ष्य था जो कि पूरा हुआ। खुशी और हर्ष के बीच नए सिरे से उन 48 सरकारी भवनों को गिराने, उनका मलबा साफ करने का काम, युद्ध गति से शुरू हो गया, जो कि 16 जून 2013 को क्षतिग्रस्त हो गई थीं। यहां यह एक जानकारी और भी महत्वपूर्ण है कि नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के जवान और मजदूर एक छोटी जेसीबी मशीन खोलकर अपने कंधों पर लादकर बर्फीले पैदल मार्ग से केदारनाथ लाने में भी सफल हो गए जिससे लगातार गिरने वाली बर्फ को हटाया जा सका।
जब पाञ्चजन्य ने यहां पहुंचकर नेहरू पर्वतारोहण संस्थान का कामकाज देखा तो पाया कि केदारनाथ मंदिर के पीछे हिमालय से आने वाली मन्दाकनी का रुख भी पहले की तरह अपने स्थान पर पहुंचा दिया गया है। चरणबद्ध सुरक्षा दीवारों के जरिए केदारनाथ मंदिर को सुरक्षित करने का काम पूरा करवा दिया गया है। ऐसा इसलिए भी जरूरी था कि गांधी सरोवर या जिसे चौराबाड़ी ग्लेशियर भी कहते हैं वहां से मंदिर भवन को कोई खतरा न रहे। मंदिर को आपदा से बचाने वाली दिव्य शिला को भी सीढ़ीदार पत्थरों से सुरक्षित किया गया है। कहते हैं इसी कुदरती शिला से ही मंदिर को पीछे से आने वाले मलबे से सुरक्षा मिली थी।
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्राचार्य और ऑपरेशन केदार के प्रमुख कर्नल अजय कोटियाल बताते हैं कि जब 'हम सियाचीन पोस्ट पर रात-दिन काम करते रहे हैं तो केदारनाथ धाम परिसर तो कुछ भी नहीं, बस सरकार और हमारा लक्ष्य साफ होना चाहिए कि हमें काम पूरा करना है।' कर्नल कोटियाल कहते हैं कि हमारा अगला लक्ष्य अप्रैल, 2015 में यात्रा प्रारंभ होने से पूर्व पांच हजार तीर्थ यात्रियों के रहने के लिए टैंट कॉलोनी का निर्माण पूरा कर देना है, जिस स्थान पर विशाल हेलीपैड बना है वहां टैंट कॉलोनी बनाई जाएगी। साथ ही सरकारी भवनों को गिराकर, उन्हें नए फाइबर हट्स में शिफ्ट कर दिया जाएगा। कर्नल कोटियाल कहते हैं कि पहले इस पूरे काम में तीन साल लगते, अब मशीनें आने से डेढ़ साल में ही काम हो सकेगा। संस्थान के संयोजक रणजीत नेगी बताते हैं कि इस समय डीजल, पेट्रोल, राशन आदि की आपूर्ति निजी हेलीकॉप्टरों के जरिए ही हो रही है क्योंकि पैदल मार्ग बर्फ से ढका हैै सरकार इसमें मदद कर रही है। एम. एस. 26 हेलीकॉप्टर के साथ काम करने वाले संस्थान के योगेंद्र राणा बताते हैं कि गोचर हवाई पट्टी से विमान में ट्रकों, ट्रालियों और बड़ी मश्ीनों को लादा जाता है और वहां से उड़ान भर कर केदारनाथ धाम हवाईपट्टी पर उतारा जाता है। रोजाना, मौसम निर्भरता पर एक ही उड़ान संभव है। यह दुनिया का सबसे विशालकाय हेलीकॉप्टर है, अभी कम से कम तीस उड़ानों की हमें और जरूरत है।
बर्फ से ढकी इस केदारपुरी में काम करने वाले मजदूरों को एक हजार रुपए प्रतिदिन की मजदूरी दी जा रही है यानी दो गुनी। केदारपुरी में सबसे बड़ी परेशानी उन निजी भवनों, धर्मशालाओं, होटलों को गिराने की है, जो कि मलबे के ढेर में तब्दील हैं, लेकिन इन भवनों के मालिक उन्हें हटाने या गिराने को तैयार नहीं। उत्तराखण्ड सरकार और नैनीताल उच्च न्यायालय, केदारनाथ मंदिर के आसपास 500 मीटर तक किसी भी प्रकार के नवनिर्माण पर पाबंदी पहले ही लगा चुके हैं। केदारनाथ मंदिर के आसपास मलबा भरा होने से मंदिर परिसर करीब 15 फुट ऊंचा हो गया है, यानी जिस मंदिर तक चढ़ने के लिए करीब बीस सीढि़यां चढ़नी होती थीं वहां अब मात्र तीन सीढि़यां बची हैं, मंदिर परिसर को चारों तरफ से भवनों से ऐसा घेरा हुआ था कि दूर से मंदिर दिखलाई ही नहीं देता। कर्नल अजय कोटियाल इस संभावना से भी इंकार नहीं कर रहे कि क्षतिग्रस्त भवनों के मलबे में अभी शव दबे हो सकते हैं।
केदारनाथ मंदिर के कपाट 21अप्रैल के आसपास खोले जाने की संभावना है। पैदल यात्रा मार्ग दुरुस्त हो चुका है। ऋषिकेश से उखीमठ तक सड़क मार्ग भी दोबारा बन गया है, हालांकि बांसवाड़ा-अगस्तमुनि- रुद्रप्रयाग मार्ग में अभी भी बरसात का जोखिम कहा जा सकता है। संपूर्ण केदार घाटी, केदारनाथ चार धाम यात्रा की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ी है। संस्थान के कार्य का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आपदा उपरान्त जिस लकड़ी के पुल पर एक प्रशासनिक अधिकारी पांव फिसल जाने से बह गए थे, उसे लोक निर्माण विभाग एक साल तक नहीं बना पाया, संस्थान ने वहीं एक लोहे का पुल तीन दिन में तैयार कर दिया। ल्ल
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान का कार्य सराहनीय : हरीश रावत
केदारनाथ धाम नगरी का जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाने वाले नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्राचार्य कर्नल अजय कोटियाल को सेना में काम करते हुए कीर्ति चक्र, शौर्य चक्र, विशिष्ट सेवा मैडल मिल चुका है। गढ़वाल राइफल्स के कर्नल कोटियाल ने दो बार एवरेस्ट चोटी पर फतह हासिल की है और सेना की महिला एवरेस्ट विजयी दल के वे प्रशिक्षक भी रहे हैं। कर्नल कोटियाल ने केदार आपदा के दौरान अनाथ हुए नवयुवकों को अपने खर्चे पर पर्वतारोहण व अन्य आवश्यक प्रशिक्षण देकर, सेना में भर्ती कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का अहसास करवाया, आज भी ऐसे कई युवा, उनके निवास पर रहकर सेना में भर्ती होने की तैयारी, उत्तरकाशी में कर रहे हैं। (नेहरू पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी भारतीय सेना के लिए पर्वतारोही भी तैयार करता है, संस्थान के प्राचार्य की नियुक्ति रक्षा मंत्रालय द्वारा की जाती है)
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है कि केन्द्र की मदद व सहयोग से केदारनाथ नगर को फिर से बसाने का काम तेजी से चल रहा है, वे स्वयं इस काम की प्रगति का प्रतिदिन दो बार जायजा ले रहे हैं। नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रमुख कर्नल अजय कोटियाल सीधे उनसे संपर्क में रहते हैं। मुख्यमंत्री का कहना है कि कर्नल की टीम का कार्य सराहनीय और ईमानदारी भरा है। इसलिए उन्हें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जीर्णोद्धार का काम पहले ही नेहरू पर्वतारोहण संस्थान को दे दिया होता तो यहां की तस्वीर बदल चुकी होती। केदारनाथ से लौटकर दिनेश मानसेरा
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