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अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की तीन दिवसीय दूसरी भारत यात्रा बेहद सफल मानी जा सकती है। उनकी इस यात्रा का प्रतीकात्मक महत्व भी उतना ही था जितना कि सितम्बर, 2014 में हुई भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमरीका यात्रा का था। हालांकि अमरीका और भारत पहले से ही कई क्षेत्रों में आपस में जुड़ाव रखते हैं। पर ओबामा की इस यात्रा के दौरान उनकी और नरेन्द्र मोदी के बीच जिस तरह की गर्मजोशी दिखी उससे साफ है कि भारत और अमरीका के सम्बंध अब नए स्तर पर पहुंच चुके हैं। दोनों देशों के बीच एक-दूसरे के लिए आदर-सम्मान का भाव है। बेशक, नरेन्द्र मोदी और बराक ओबामा के बीच रिश्तों की गर्माहट को संकेत मानें तो निश्चित तौर पर आर्थिक और राजनीतिक, दोनों मोचोंर् पर भारत-अमरीकी रिश्ते नए दौर में जाने को तैयार हैं। दुनिया के दो बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच रिश्तों में आई बेहतरी को देखना वाकई मे
ं सुखद है।
कारोबार की प्रक्रिया सरल
भारत में कारोबार की प्रक्रिया सरल करने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल का स्वागत करते हुए अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार को अमरीका 100 अरब डॉलर के पार पहुंचाना चाहता है। ओबामा ने मोदी के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दोनों देशों ने व्यापारिक सम्बंधों को आगे बढ़ाने के लिए द्विपक्षीय निवेश संधियां की हैं जिससे निवेशकों को आसानी होगी। ओबामा ने कहा कि दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार में लगभग 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और यह 100 अरब डॉलर के आस पास पहुंच चुका है। हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सुधारों का स्वागत करते हैं जिससे कारोबार की प्रक्रिया सरल हुई है। मोदी ने भारत और अमरीका को स्वाभाविक वैश्विक भागीदार बताते हुए कहा कि दोनों देशों ने एक-दूसरे के क्षेत्र में संभावनाएं तलाशने के लिए प्रभावी प्रणाली स्थापित की है।
रक्षा क्षेत्र में सहयोग
कहने की जरूरत नहीं है कि भारत-अमरीका के बीच व्यापारिक सम्बंधों का प्रगाढ़ होना नरेन्द्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम को साकार करने की दिशा में अहम रहेगा। इसके साथ ही उम्मीद है कि रक्षा क्षेत्र में दोनों देशों के रिश्ते और अधिक प्रगाढ़ होंगे। लेकिन ऐसा करने के लिए आवश्यक है कि दोनों देश 'उदार लोकतंत्र' और 'स्वतंत्रता पसंद करने वाले लोगों' जैसे जुमले उछालने के बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर विचार, योजना और क्रियान्वयन के स्तर पर सर्वथा अलग तरह से काम करें।
भारत और अमरीका के बीच का सुरक्षा सम्बंधी रिश्ता अमरीका की इस सोच पर आधारित है कि भूराजनीतिक जरूरतों के वक्त और अपनी सभ्य प्रकृति के चलते जरूरत पड़ने पर भारत अमरीका का साथ देगा।
'स्मार्ट सिटी' बनाने में सहयोग
ओबामा की यात्रा के दौरान अजमेर, इलाहाबाद और विशाखापत्तनम में तीन 'स्मार्ट सिटी' के विकास के लिए अमरीका के साथ तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। सरकार का कहना है कि समझौतों से देश में इस तरह के शहरों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा। अमरीकी व्यापार एवं विकास एजेंसी (यू़ एस़ टी़ डी़ ए़) और उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं आंध्र प्रदेश की सरकारों ने केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू की उपस्थिति में इन समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
इस अवसर पर वेंकैया नायडू ने कहा कि सहमति ज्ञापनों पर हस्ताक्षर से भारत और अमरीका के बीच सहयोग ने एक नया आयाम हासिल किया है और इससे 'स्मार्ट सिटी' के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा। यू़ एस़ टी़ डी़ ए़ से आवश्यक व्यावहारिक अध्ययन एवं प्रारंभिक चीजों, अध्ययन दौरे, कार्यशाला या प्रशिक्षण एवं परस्पर निर्धारित की जाने वाली परियोजनाओं के लिए धन सम्बंधी योगदान मिलेगा। इससे 'स्मार्ट सिटी' के लिए साधन मिलने में मदद मिलेगी और 'स्मार्ट सिटी' के विकास में मदद के लिए सलाह, सेवाओं के लिए धन मिलेगा।
इसके लिए अमरीकी वाणिज्य विभाग, यू.एस. एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक जैसी दूसरी एजेंसियों और अन्य व्यापार एवं आर्थिक एजेंसियों के साथ सहयोग किया जाएगा। साथ ही भारत-अमरीका के बीच बुनियादी संरचना विकास सहयोग को बढ़ावा मिलेगा एवं 'स्मार्ट सिटी' के विकास में मदद मिलेगी।
चीन से दुश्मनी नहीं
भारत क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों से निपटने के क्रम में बहुपक्षीय, आम सहमति वाली ऐसी व्यवस्था चाहता है जिसमें संयुक्त राष्ट्र की भागीदारी हो। भारत, चीन से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता है। हालांकि अमरीकी नेताओं, उसके सैन्य और रक्षा विभाग का दृष्टिकोण आदि हथियारों और प्रौद्योगिकी को भारत के साथ साझा करने सम्बंधी फैसलों में अहम भूमिका निभाएंगे। उनके लिए अहम सवाल यही होगा कि क्या भारत लड़ाई में हमारा साथ देगा?
आयात पर निर्भरता होगी कम
अब भारत को हथियारों के आयात पर निर्भरता कम करनी होगी। अगर भारत हथियारों का अमरीका के साथ मिलकर विकास और निर्माण करना चाहता है तो उसे लाइसेंसिंग, तकनीकी नियंत्रण और साइबर सुरक्षा जैसी चीजों को गहराई से समझना होगा। कहने की जरूरत नहीं है कि बिना उस समझ के भारत केवल अमरीकी हथियारों का खरीददार बनकर रह जाएगा। पिछले एक दशक में हमने 9 अरब डॉलर मूल्य के हथियार खरीदे, जबकि 7 अरब डॉलर की खरीद की चर्चा चल रही है।
भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत और एशिया के बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य भारत को अमरीका का स्वाभाविक साथी बनाते हैं। दक्षिण एशिया में सुरक्षा के लिए भारत अहम भूमिका निभा सकता है। इससे भी मुख्य बात यह है कि हमारा देश बड़ा उपभोक्ता बाजार है और आने वाले दशकों में यहां कारोबार करने के बड़े अवसर प्राप्त होंगे।
सुधार की प्रक्रिया
मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था की प्रक्रिया में सुधार शुरू कर और भारत में कारोबार करने की सुविधाएं बढ़ा कर वैश्विक निवेशकों को काफी सकारात्मक सन्देश दिया है। सूचना प्रौद्योगिकी और उत्पादन क्षेत्र में अमरीकी कम्पनियों का पहले से भारत में बड़ा व्यापार चल रहा है।
भारत का व्यापार जगत अमरीका को सबसे बड़े निर्यात बाजार के तौर पर देखता है। इस माहौल में दोनों देश लम्बी अवधि की रणनीति से सहयोग की दिशा में बढ़ेंगे तो रिश्तों में और गहराई आएगी।
जहां तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' अभियान की बात है, तो हमारे उत्पादन क्षेत्र को मजबूती देनेे में अमरीकी कम्पनियां बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। खासतौर पर सुरक्षा और तकनीकी क्षेत्र में काफी फायदा हो सकता है। चूंकि भारत 'डिजीटल' युग में प्रवेश करने की तैयारी मंे है, लिहाजा इलेक्ट्रॉनिक्स और 'टेलिकम इक्विपमेंट' में भी कारोबार का बड़ा मौका है। दोनों देशों के लिए परमाणु, फिर से उपयोग करने लायक ऊर्जा और वित्तीय सेवाओं में भी काफी मौके हैं।
परमाणु समझौते को आगे बढ़ाएंगे
अब माना जा सकता है कि भारत-अमरीका उस ऐतिहासिक परमाणु समझौते को आगे बढ़ाएंगे, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने शुरू किया था। सिलिकन वैली, आई.टी. और तकनीकी खोज का गढ़ है और अपने 'डिजिटल इंडिया विजन' को आगे बढ़ाने की खातिर भारत नई अमरीकी कंपनियों की मदद ले सकता है। हालांकि, भारतीय आईटी कंपनियों की तरफ से ज्यादा वीजा की मांग, व्यापार और पेटेंट जैसे मुद्दे हैं, जिन पर दोनों देशों को मतभेद दूर करने की जरूरत है। कुल मिलाकर आप कह सकते हैं कि बराक ओबामा की भारत यात्रा से दोनों देशों के लिए बेहद सुखद परिणाम निकल सकते हैं।
– विवेक शुक्ला
कई आयाम जुड़े द्विपक्षीय संबंधों में
-ललित मानसिंह
राष्ट्रपति ओबामा की भारत यात्रा में दोस्ती झलकाने वाले हाव-भाव के साथ ही जमीनी स्तर पर ठोस कदम बढ़ाए गए। मोटे तौर पर चार प्रमुख क्षेत्रों में दोनों ने आगे बढ़ने के करार किए हैं। भारत में अमरीकी निवेश के मामले में प्रधानमंत्री मोदी अमरीकियों को यह बताने में सफल रहे कि भारत में और अधिक निवेश करके भारत की प्रगति में सहायक बनें। दूसरा है प्र्रतिरक्षा और सुरक्षा का क्षेत्र। हमने इसमें 10 साल का करार करके भारत में अमरीकी प्रौद्योगिकी हासिल करने का प्रावधान किया है। इससे हमें आधुनिकतम सैन्य तकनीक मिलेगी जो अमरीका में तैयार होगी और फिर भारत को सौंपी जाएगी। यह एक नया आयाम है इस क्षेत्र में। प्रतिरक्षा के क्षेत्र में हमने साइबर सुरक्षा, आतंकवाद से सुरक्षा और हिन्द महासागर में सागर मार्गों की सुरक्षा के करार किए हैं। तीसरा क्षेत्र है ऊर्जा और पर्यावरण। परमाणु संधि में जो चुभने वाली बातें थीं उनका समाधान कर लिया गया है, दोनों नेताओं ने इसका रास्ता निकाला और दुर्घटना की स्थिति में बीमा की चिंता करने वाले समूह का निर्धारण कर लिया गया। और आखिर में वैश्विक मुद्दों में हमने कई साझे हित के आयाम तलाशे। साल के अंत तक दुनिया में पर्यावरण बदलाव के करार को पारित कराने के प्रयास किए जाएंगे। ओबामा ने एक बार फिर कहा कि अमरीका सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए मदद करेगा। हम परमाणु आपूर्ति समूह (एपेक) के सदस्य बनेंगे। एशिया प्रशांत और हिन्द महासागर पर एक विजन स्टेटमेंट पास हुआ है जो उस क्षेत्र में भारत को कहीं बड़ी भूमिका देगा जिसमें भारत तकरीबन था ही नहीं। मेरे हिसाब से राष्ट्रपति ओबामा की यह यात्रा कई मायनों में फलदायी रही। (लेखक भारत के विदेश सचिव रहे हैं)
हर मायने में महत्वपूर्ण थी यह यात्रा
-वीना सीकरी
राष्ट्रपति बराक ओबामा का भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के नाते आना भारत-अमरीका संबंधों में एक महत्वपूर्ण आयाम जोड़ गया। उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के आमंत्रण को स्वीकार करके यह संकेत दिया था कि वह भी भारत से संबंध बढ़ाने के इच्छुक हैं। वैसे प्रधानमंत्री मोदी की सितंबर, 2014 में अमरीका यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों की दिशा का एक खाका बनाने वाली यात्रा रही थी तो राष्ट्रपति ओबामा की जनवरी, 2015 की भारत यात्रा उस खाके को कार्यरूप देने का प्रण करने वाली यात्रा कही जा सकती है। आपसी संबंधों को प्रगाढ़ करने वाले आदान-प्रदान के अलावा दोनों के बीच रक्षा, ऊर्जा, तकनीकी सहयोग, व्यापार और कारोबार बढ़ाने संबंधी करार होना कई अर्थों में महत्वपूर्ण है। राष्ट्रपति ओबामा ने भारत की चिंताओं को गहराई से समझा और भारत ने अमरीका के साथ साझे हित के आयामों पर जोर दिया, मेरी नजर में ये दोनों देशों के बीच रिश्तों को और मजबूत बनाने वाली बातें हैं। दोनों देश एक-दूसरे के साझा हितों के बिन्दुओं पर सहमत हुए हैं। अमरीका ने सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्य बनाने की पैरवी करके एक अच्छा संकेत दिया है, जो इस क्षेत्र की भू राजनीति के लिहाज से बहुत मायने रखता है। दोनों देशों के बीच पहले से ही अच्छे परिमाण में व्यापार हो रहा है, पर अब उसे और आगे बढ़ाने की बातचीत से दोनों देशों के उद्यमियों में एक नया जोश पैदा हुआ है। साझे वक्तव्य में साझा विकास का खास तौर पर उल्लेख किया गया है जो अपने में अनूठी बात है। कुल मिलाकर राष्ट्रपति ओबामा की यह यात्रा एक बेहद सफल और महत्वपूर्ण यात्रा रही। (लेखिका बंगलादेश में भारत की उच्चायुक्त रही हैं)
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