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वेंकटेश्वर उस दिन क्रिकेट खेलने के मूड में था। स्कूल में छुट्टी थी। वह सुबह ही अपने पड़ोस के दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने के लिए निकल गया। बच्चों के हाथों में क्रिकेट किट थी। उसे क्या मालूम था कि वह मैदान में पहुंचने से पहले एक बड़े रेल हादसे को टाल देगा। बस तब ही उसकी निगाह रेल पटरी के बीच पड़ी खाली जगह पर पड़ी जहां पर करीब 10 इंच का पटरी का टुकड़ा गायब था। वेंकटेश्वर घबरा गया। वह वहीं रुक गया और अपने दोस्तों को उस जगह को दिखाया। उसके साथी उसे वहां से चलने के लिए कह रहे थे पर वह नहीं माना। भागने लगा पेड़ना रेलवे स्टेशन की तरफ। पेड़ना स्टेशन करीब एक किलोमीटर दूर था। वेंकटेश्वर भागता हुआ रेलवे स्टेशन पहुंचा। वहां उसने रेल मास्टर को सारी बात बताई, वेंकटेेश्वर की बात पर विश्वास करते हुए स्टेशन मास्टर कुछ साथियों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे। बात सच निकली। अगली ट्रेन आने में 20 मिनट शेष थे। उसे रोका गया। पटरी को सही किया गया। बड़ा हादसा टल गया। इस बात के लिए वर्ष 2006 में वेंकटेश्वर को बालवीर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उसने स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद कॉलेज की शिक्षा भी पूरी कर ली है। अब वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है। घर की माली हालत कोई बहुत अच्छी नहीं है। उसे जल्द ही एक अच्छी नौकरी की जरूरत है। फिलहाल उसे कोई नौकरी नहीं मिल रही है। उसे कायदे की नौकरी का इंतजार है। उसे कहीं न कहीं महसूस हो चुका है कि बालवीर पुरस्कार से उसे नौकरी मिलने वाली नहीं है। ल्ल
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