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गणतंत्र दिवस विशेष- अंजली
अंजली का परिवार सो चुका था। बाहर बारिश हो रही थी। बिजली कड़क रही थी। सारा वातावरण किसी अज्ञात आशंका से ग्रस्त था। इस बीच, अंजली के घरवालों की नींद ताबड़तोड़ गोलियों के चलने के कारण टूट गई। गोलियां अंजली के घर के ठीक बाहर चल रही थीं। गोली चलाने वाले अंजली के पिता को घर से बाहर निकलने के लिए कह रहे थे। अंजली ने बताया कि 'गोलीबारी करने वाले माओवादी थे। वे दो दर्जन से ज्यादा थे। वे मेरे पिता को मारने के इरादे से आए थे। मेरे पिता दंतेवाड़ा में माओवादियों से लोहा ले रहे थे। हाथों में अत्याधुनिक असलहे लेकर वे घर में घुस गए और मेरे सामने ही मेरे मामा को गोलियों से भून डाला। पिता घर में नहीं थे। उन्होंने मेरे 8 साल के भाई की जांघ में भी गोली मारी। वह खून से लथपथ था। वह तड़प रहा था। उन्होंने मेरे पिता को ढूंढा पर वे नहीं मिले। इसके बाद वे चले गए। उनके जाते ही मैं अपने भाई को पीठ पर लादकर पास के डॉक्टर के घर गई। घर करीब 500 फर्लांग पर था। मैं वक्त रहते वहां पहुंच गई। वहां पर पहुंचते ही भाई का इलाज शुरू हो गया। उसकी जान बच गई। मुझे खुद अब यकीन नहीं होता कि मैं कैसे भाई को वहां पर उठाकर ले गई।' अंजली को 2011 में राष्ट्रीय बालवीर पुरस्कार मिला। अंजली अब 12 वीं कक्षा में है। पढ़ने में ठीक है। उसका आगे आईपीएस बनने का सपना है, पर उसे इस बात का अफसोस है कि स्थानीय स्तर पर उन्हें किसी तरह का कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता। स्कूल की पढ़ाई तो सब जगह मुफ्त है। वह चाहती है कि इंडियन काउंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर बालवीरों से संपर्क बनाकर रखे ताकि वे जरूरत पड़ने पर उससे संपर्क कर लें। ल्ल
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