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पाञ्चजन्य के पन्नों से
वर्ष: 9 अंक: 33
27 फरवरी,1956
तृतीय गोहत्या निरोध सम्मेलन
झूसी। 'हम पूछते हैं,सरकार की धर्म-निरपेक्षता हिन्दुओं के लिए है या और लोगों के लिए भी। वह दिल्ली की जुमामस्जिद के जीर्णोद्धार में लाखों रुपए व्यय कर सकती है,ताजमहल की चिंता कर सकती है,बौद्धों की पुरानी अस्थियों के प्रति सम्मान प्रदर्शित कर सकती है,बुद्ध मदिंरों को बनवा सकती है,किन्तु हिंदुओं का प्रत्यक्ष जीवित देव, जो गो है, उसके प्रति उसके मन में कोई सम्मान नहीं।'ये शब्द अ.भा. गोहत्या निरोध समिति के अध्यक्ष संत प्रभुदत्त जी ब्रह्मचारी ने तृतीय गोहत्या निरोध सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए कहे।
सम्मेलन का उद्घाटन प्रयाग विश्वविद्यालय के आचार्य श्री क्षेत्रचन्द्र जी चट्टोपाध्याय ने किया। … श्री ब्रह्मचारी जी ने अपने भाषण में कहा: 'गोरक्षा का आन्दोलन सनातन है। वेद की आज्ञा है,जो तुम्हारी गो की, अश्व की और युवा पुरुष की हत्या कर दे उसे तुम सीसे की गोली से मार डालो।'इससे बड़ा आन्दोलन और क्या होगा? मुसलमानों ने गो सम्बन्धी हमारी मान्यता को आघात किया। उन्होंने जैसे हमारे मन्दिर तोड़े,मूर्तियां खण्डित कीं,धार्मिक पुस्तकें जलाईं वैसी ही हमारी परम्परा को मिटाने को गो-हत्या भी आरम्भ की,किन्तु हमने उनके सम्मुख कभी सिर नहीं झुकाया। हम प्रजा होकर,पराधीन रह कर राजधर्म से भिन्न धर्म मानते हुए भी अपनी गोरक्षा की मांग पर अड़े रहे। और मुसलमान बादशाहों से गोरक्षा कराके ही रहे। सन् 1857 का गदर भी गो के प्रश्न पर ही हुआ। सन् 57 के पश्चात् तो गांव-गांव नगर-नगर में गो के प्रश्न को लेकर दंगे हुए। 'गो के महत्व की पुराणों में अनेक कथाएं हैं। अर्जुन ने गो की रक्षा के लिए 14 वर्ष का वनवास स्वेच्छा से स्वीकार किया,गो की रक्षा के लिए कितने ही राजाओं ने प्राणांे की आहुतियां दीं,परशुराम जी ने जो मार-धाड़ की,वह गो के कारण ही की। ऐसी गो का ऐसा महत्व हम इस युग के अल्पबुद्धि पुरुष कह ही क्या सकते हैं।' इस प्रकार गोरक्षा का समर्थन,गोरक्षा का आन्दोलन,गोरक्षा के निमित्त बलिदान होने की परम्परा सनातन है। उसी को हमने दुहराया है। कोई न तो नया आन्दोलन उठाया है,न किसी को चिढ़ाने को,दुख देने को, राज्य लेने को या किसी का अपमान करने को यह आन्दोलन आरम्भ किया है,यह हमारी प्राचीन संस्कृति है।
अब तक इस आन्दोलन से क्या हुआ, यह बात सर्वविदित है,उसे मैं यहा दुहराना नहीं चाहता। कुछ प्रान्तों में पहले से ही गोवध बन्दी के नियम थे,कुछ प्रान्तों में बन गये हैं,कुछ प्रान्तों मे बनवाने के प्रयत्न चालू हैं। मेरी आपसे अन्त में यही प्रार्थना है कि उनके अनुसार कुछ न कुछ अवश्य करें।
दुख इस बात का है आज स्वदेशी सरकार कही जाती है,किन्तु गोरक्षा के सम्बन्ध में इसका दृष्टिकोण पाश्चात्य ढंग का है। वे गो का महत्व केवल दूध के लिए मानते हैं। बैलों को अपंग,दूध न देनी वाली गायों को काटकर, जैसे विदेशों में खा जाते हैं ऐसे खाने के पक्ष में हैं। हम गो को माता मानते हैं,उसको तथा उसकी संतानों को किसी भी कारण से मारने को हम पाप समझते हैं। आप कहेंगे हमारी सरकार तो धर्मनिरपेक्ष है,वह गौ की पूजा को महत्व नहीं दे सकती। हम पूछते हैं सरकार की धर्मनिरपेक्षता केवल हिन्दुओं के ही लिए है या और लोगों के लिए भी?… ये जो गोरक्षा के कानून बने हैं ये भी सब बेमन से,जनता के आन्दोलन को दबाने के लिए अपूर्ण रूप से बने हैं। उनमंे भी रेल, हवाई जहाजों के स्थानों में गोमांस बेचने की छूट है,औषधियों और अनुसंधानों में गोवध कर सकते हैं। छूत की बिमारी वाली गो को मार सकते हैं। यह क्या गोवध बन्द हुआ? हम तो चाहते हैं भारत में गो की पुन: वही प्रतिष्ठा हो जो पहले थी। फिर भारत में दूध-दही की नदियां बहें जिससे हमारी संतानें निरोग तथा पहले की भांति हृष्ट-पुष्ट तथा विशुद्ध विचार वाली बनें। उन गो ब्राह्मण प्रतिपालक गोपाल के पादपद्म में पुन: पुन: प्रार्थना है कि भारत में गो का पुन: पूर्व की भांति ही गौरव हो। यही मेरी अन्तिम विनय है। …
दिशाबोध – आह्वान स्वीकार करें -श्रीगुरुजी
19 सितंम्बर 1965 को आकाशवाणी के बड़ौदा केन्द्र द्वारा प्रसारित श्रीगुरुजी के संदेश का
मुख्य अंश
राष्ट्र के लिए युद्ध का प्रसंग आया है। गत अनेक वषोंर् से लग रहा है कि ऐसा होगा। इस युद्ध के निर्णय से भारत व पाकिस्तान के बीच के संबंध सदा के लिए एक निश्चित स्वरूप धारण करेंगे और आए दिन होने वाली अनेक घटनाओं का अंत होगा। युद्ध के अभी तक के परिणाम अपनी सेना के लिए शोभादायक हैं। उसकी कीर्ति अधिकाधिक उज्ज्वल हुई है। …
आज का युद्ध केवल सेना का ही युद्ध नहीं है। देश के प्रत्येक व्यक्ति को इसमें सहायता करनी होती है।
देश में अन्न-स्वावलंबन,औद्योगिक क्षेत्र में प्रगति,अधिक उत्पादन द्वारा विश्व के साथ संबंधों में घनिष्ठता प्रदान करना सामान्य हेतु तो हैं ही,किंतु देश की सभी जातियों,संप्रदायों,पंथों इत्यादि के बीच सच्ची एकता रहना बहुत ही आवश्यक है। यह याद रखना चाहिए कि यह युद्ध हिंदू धर्म व इस्लाम को लेकर नहीं हुआ है। किंतु युद्ध खुद के ही धर्म-बंधुओं (पठान) का क्रूरता से दमन करने वाले,पूर्व बंगाल में खुद के ही मुसलमान बंधु और पाकिस्तान के नागरिकों पर अन्याय करने वाली एक विकृत मनोवृति वाले मानव-संस्कृति-भक्षक के रूप में दिखाई देने वाले एक पक्ष की हानिकारक प्रवृति का पूर्णरूप से विनाश करने के पवित्र हेतु से चल रहा है। इस पवित्र ध्येय को प्रत्येक भारतवासी अति प्रिय मान रहा है। अत: सभी भारतीय भाइयों को युद्ध सफल करने के प्रयासों में सहभागी
होना आवश्यक है।
युद्ध के संकटकाल के इस आह्वान को बुद्धिजीवी भी स्वीकार करें। वैज्ञानिक क्षेत्र नए-नए शोध करे। वर्तमान समय में युद्ध की सामग्री के रूप में और बाद में शांतिमय उत्कर्ष के लिए विश्व के विज्ञान को अपनी श्रेष्ठ भेंट दे सके, ऐसी प्रतिभा का आह्वान करें। सभी जानकार बंंधुओं को समाज का नैतिक धैर्य बनाए रखना चाहिए।
-श्रीगुरुजी समग्र: खण्ड 10 पृष्ठ 186
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