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अमीष त्रिपाठी
भारत में एक बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। जिन लोगों के पास पहले आत्मविश्वास नहीं था, अब वे आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। यह हमारे देश का सबसे बड़ा वसंत है।
इसी वसंत को देखने को तो हम तरसते रहे हैं सैकड़ों वर्षों से। आप देखेंगे कि पश्चिम में कितने देशों में लोग हमारे योग के बारे में सीखने लगे हैं, हमारी संस्कृति के बारे में सीखने लगे हैं। ये लोग भारतीय नहीं हैं, ये पश्चिमी देशों के नागरिक हैं। क्यों… ये अभी ऐसा क्यों कर रहे हैं।
हमारी सभ्यता तो वही है जो सैकड़ों-हजारों वर्षों से रही है। अब संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की बात दुनिया के देशों के सामने रखी और दुनिया उस पर राजी हो गई। ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि दुनिया में भारत की इज्जत, उसका मान बढ़ रहा है। यह इज्जत क्यों बढ़ रही है? क्योंकि भारत अमीर देश बन रहा है धीरे-धीरे। इसीलिए मैं तो बार-बार यही कहता हूं कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर हमें दृढ़संकल्प रहना पड़ेगा। हमें भारत को अमीर देश बनाना है। यह सबसे पहला काम है।
लोग हमारी सभ्यता की इज्जत तभी करेंगे, जब हम शक्तिशाली देश होंगे। और शक्तिशाली हम तभी होंगे जब हमारी अर्थव्यवस्था (इकनोमी) बड़ी होगी। यह साधारण सी बात है। मैंने कहा कि पैसे आते हैं तो आत्मविश्वास भी आ जाता है। उसका गणित सीधा सा है- पेट भूखा है तो सिर कैसे उठेगा। सिर उठाने के लिए पहले पेट भरना पड़ता है।
मैंने यह कई बार कहा और लिखा भी है हमारा जो इलीट (आभिजात्य वर्ग) देश को चलाता था, वह काफी हद तक देश की जड़ों से जुड़े हुए लोग नहीं थे। समझिए वे ऐसे लोग थे जिन्हें लंदन में ज्यादा सुविधापूर्ण लगता था, बजाय जबलपुर के। हालांकि थे वे भारतीय ही लेकिन भीतर से, सांस्कृतिक रूप में वे पूरी तरह से पाश्चात्य बन गए थे। मैं इसे कोई बुरी बात नहीं कह रहा। हर इंसान अपना जीवन कैसे व्यतीत करे इसकी उसे पूरी आजादी है। लेकिन यहां देश की प्रणाली इनके हाथ में थी। मेरा सवाल है कि क्यों इनके हाथ में थी? पूरी सत्ता इनके हाथ में थी। यहां मैं केवल राजनीति की बात नहीं कर रहा हूं। दूसरी जगहों कॉरपोरेट क्षेत्र, मीडिया जगत, शिक्षा सभी जगहों पर ऐसा ही था।
और ऐसा क्यों था? क्योंकि जो लोग देश की जड़ों से जुड़े हुए थे, उनके भीतर आत्मविश्वास नहीं था। वे या तो डरे-सहमे रह रहे होते थे, या फिर जबरदस्ती का गुस्सा करते थे। ये असुरक्षा के लक्षण हैं। अगर आप हर किसी से गुस्सा कर रहे हैं तो इसका मतलब आपमें आत्मविश्वास नहीं है। जिसके पास आत्मविश्वास है वह संयम रखता है, शांत रहता है।
लेकिन पिछले कुछेक वर्षों में यह हुआ कि ये जो जड़ों से जुड़े लोग हैं, जो सोचते हिन्दी में हैं और अंग्रेजी में अनुवाद करके बात करते हैं, जैसे हम लोग भारतीय अंग्रेजी भाषा बोलते हैं। अब आप कहेंगे कि ये इंडियन इंग्लिश क्या है, तो हमने अंग्रेजी को भारतीय बाना पहना दिया है। अब इनमें आत्मविश्वास आ गया है।
पहले अगर मैं भारतीय अंग्रेजी के तरीके से कुछ बोलता था जैसे- 'वी आर लाइक दिस ओनली।' यह तो भारतीय अंग्रेजी हो गई, यह ब्रिटिश इंग्लिश नहीं है। अगर 15 साल पहले कोई ऐसी अंग्रेजी में बात करता था तो लोग उस पर हंसते थे। मुझे अपने परिवार के बारे में बताने में कोई शर्म नहीं है कि हम कोई बहुत अमीर परिवार के नहीं हंै। संघर्ष करते उठके यहां तक आए हैं। काफी गरीबी भी देखी है हम ने।
हम घर में हिन्दी में ही बात करते हैं। पत्नी गुजराती हैं तो वह बच्चे से गुजराती में बात करती हैं। मैं हिन्दी में बात करता हूं। मेरे माता-पिता, हां वे अंग्रेजी बोल लेते हैं लेकिन उनकी अंग्रेजी इतनी अच्छी नहीं है। तो ऐसी स्थिति से जो लोग आते थे, कुछ साल पहले तक वे दूसरों के सामने अंग्रेजी बोलने में, खुद को अभिव्यक्त करने में काफी हिचकिचाते थे कि किसी ने हमारी अंग्रेजी पर हंस दिया तो हम क्या करेंगे। लेकिन आज की तारीख में आप देखेंगे तो हम बोलते हैं कि यह मेरी अंगे्रजी है, आपको पसंद नहीं है तो आप मत सुनो न! आप ब्रिटिश लोगों की अंग्रेजी सुनिए, मेरी क्यों सुन रहे हैं?
साफ है कि मैं आपकी तरह अंग्रेजी नहीं बोलने वाला हूं। मैं अपनी तरह अंग्रेजी बोलूंगा। अगर मैं अपनी बात आप तक पहुंचा पा रहा हूं तो आपका क्या जा रहा है? यह हमारे अंदर आत्मविश्वास आ गया है कि मैं जो हूं वही हूं। आपको खुश करने के लिए मैं नहीं बदलूंगा। आपको मेरी भाषा और संस्कृति पसंद नहीं आ रही है तो कोई बात नहीं।
आप अपनी राह पर चलिए, मैं अपनी राह पर चल रहा हूं। और इसकी वजह यह है कि हमने मेहनत करना सीखा और सफलता का स्वाद चखना शुरू कर दिया है। हम धीरे-धीरे अमीर हो रहे हैं, हमारे पास पैसा आ रहा है। आज की तारीख में जो भी सत्ता है (मेरा मतलब दुनिया में आपकी पूछ है) वह पैसे के ऊपर बनती है। लोग अभी चीन की इतनी इज्जत क्यों करते हैं? चालीस साल पहले कोई नहीं करता था। क्योंकि आज चीन के पास पैसा है। अमरीका की लोग इज्जत क्यों करते हैं, क्योंकि उनके पास पैसा है, यह सीधी-सादी बात है।
देश के लोगों की जिजीविषा, उनके हौसलों और उनके फैसलों की बदौलत आज दुनिया में वातावरण बदला है और हमारे पक्ष में है। मेरे लिहाज से तो यह बड़ा अच्छा समय है। हमारे दुनिया में समर्थ और महारथी होने के लिए। मैं बहुत रोमांचित हूं। इतनी अच्छी-अच्छी चीजें हो रही हैं, हम आगे बढ़ रहे हैं। भगवान की कृपा रही तो अगले 20 वर्षों में हम पूरी दुनिया में भारत के उस दर्जे को कायम कर लेंगे, जो होना चाहिए।
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