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महाराष्ट्र के आलंदी स्थित संत ज्ञानेश्वर महाराज का मंदिर आज जीर्ण-शीर्ण हालत में पहंुच चुका है। मंदिर की दीवारों में दरार पड़ चुकी है, लेकिन प्रशासन इसकी देखरेख को लेकर उदासीन बना हुआ है। प्रशासन के इस रवैये से मंदिर जाने वाले श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहंुच रही है। दरअसल मंदिर की दीवारों में आई दरारों को तकनीकी मदद न लेकर मरम्मत करने से स्थिति और भी बिगड़ गई। मंदिर में दरार बढ़ने पर नगर निगम ने परिक्रमा क्षेत्र में जारी मशीनों द्वारा खुदाई का काम बंद कर दिया। श्रद्धालुओं को इससे पहंुची ठेस और उनका आग्रह देखते हुए पुणे स्थित कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के विशेषज्ञों की राय भी ली गई। उनकी जांच में पाया गया है कि परिक्रमा मार्ग में नगर निगम अधिकारियों ने विशेषज्ञों की राय लेने के बजाय मंदिर परिक्रमा क्षेत्र में जेसीबी जैसी मशीनें चलाने और गड्ढे खुदवाने के कारण स्थिति बिगड़ गई, वरना तकनीकी मदद लेकर मंदिर के परिक्रमा मार्ग में आई दरारों को ठीक किया जा सकता था। इन तथ्यों की जानकारी सार्वजनिक होने पर संत ज्ञानेश्वर महाराज देवस्थान ट्रस्ट भी हरकत में आ गया। ट्रस्ट द्वारा मांग की गई कि संत ज्ञानेश्वर महाराज के समाधी मंदिर एवं परिक्रमा क्षेत्र की पवित्रता बनाए रखने के लिए सार्वजनिक निर्माण विभाग एवं पुरातत्व विभाग की मदद लेकर अविलंब कार्रवाई की जाए।
700 वर्ष पहले हुआ था मंदिर का निर्माण
आलंदी वह स्थल है, जहां संत ज्ञानेश्वर ने मात्र 18 वर्ष की आयु में श्रीमद्भगवद्गीता का मराठी में 'ज्ञानेश्वरी' के नाम से अनुवाद किया था। इसी स्थान पर संत ज्ञानेश्वर की समाधी है।
यहां स्थित मंदिर का निर्माण 700 वर्ष पहले हुआ था, यह स्थल सदियों से हिन्दुओं की श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। यहां पर हर वर्ष संत ज्ञानेश्वर की चरण-पादुका के साथ पालकी निकाली जाती है। पालकी को महाराष्ट्र ही नहीं,बल्कि गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कनार्टक और गोवा आदि राज्यों से आए श्रद्धालु 21 दिनों तक पैदल यात्रा कर एकादशी के दिन पंढरपुर स्थित विट्ठल मंदिर तक लेकर जाते हैं। यहां पर ज्ञानेश्वरी का पाठ भी किया जाता है।
ल्ल प्रतिनिधि
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