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नई दिल्ली स्थित भारतीय लोक प्रशासन संस्थान में 30 दिसम्बर को डॉ.भीमराव अंबेडकर स्मृति व्याख्यान संपन्न हुआ। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ.कृष्णगोपाल ने डॉ. अंबेडकर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देश का दुर्भाग्य है कि डॉ.अंबेडकर जैसे बहुआयामी व्यक्तित्व का समग्रता से अध्ययन नहीं हुआ। अलग-अलग लोगों ने अपने हितों को साधते हुए अपने हिसाब से उनके व्यक्तित्व को समाज के सामने प्रस्तुत किया। किसी ने उन्हें हिन्दू विरोधी, किसी ने उन्हें ब्राह्मण विरोधी और न जानें कितनी तरह की बातें कही गईं। लेकिन वास्तविक रूप में उनके समग्र व्यक्तित्व को देखें तो वे किसी के भी विरोधी नहीं थे। वे कहते थे कि मैं धर्म में विश्वास रखता हूं और मौलिक व्यवस्था को मानता हूं। असल में वे समाज में फैली कुरीतियों और रूढि़वादी व्यवस्था के विरोधी थे और इसे समाज से समाप्त करने के लिए संघर्षरत थे। इसलिए जब तक डॉ. अंबेडकर के जीवन का समग्रतापूर्वक अध्ययन नहीं होगा तब तक उनके बारे में कोई धारणा बनाना गलत है। कार्यक्रम में यू.सी.अग्रवाल ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने सामाजिक कुरीतियों और अभावों को झेलते हुए अपने को साबित किया। उन्होंने सदैव सामाजिक न्याय की बात की और इसके लिए जीवन भर संघर्षरत रहे। संस्थान के चेयरमैन एवं पूर्व राज्यपाल टी.एन.चतुर्वेदी ने कहा कि डॉ.अंबेडकर ने समाज में जागरूकता लाने और रूढि़वादी व्यवस्था को समाप्त करने के लिए संघर्ष किया। उनके अंदर वंचित समाज के प्रति संवेदना थी। इसके लिए उन्होंने दृढ़ निश्चय किया और सफल भी हुए। कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि हमारे मंत्रालय ने डॉ.अंबेडकर के जीवन व सिंद्धातों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए एक प्रयास किया है। दु:ख इस बात का है कि इस देश के एक वर्ग ने उन्हें अपना समझ लिया तो किसी न उन्हेंे पराया, लेकिन वास्तविक रूप में वह सभी के थे और सभी के लिए कार्य करते थे। सिर्फ उन्हें समझने की जरूरत है। कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से लोग उपस्थित थे। -प्रतिनिधि
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