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चीन आजकल पड़ोसी देश नेपाल और भूटान से सटी सीमाओं पर अपने नए सांस्कृतिक केन्द्र खोलकर फिर से वहां भारत विरोधी माहौल बनाने की योजना पर काम कर रहा है। हाल ही में उत्तराखण्ड-नेपाल-चीन (तिब्बत) सीमा स्थित रेशम मार्ग पर नेपाल के गांव तिकुंर-छंगस में गांव वालों को उपहार स्वरूप टीन, राशन आदि भी दिए जाने के समाचार सामने आए हैं।
चीन के साथ कई मैत्री वायदों के बावजूद वहां की सरकार के भारत विरोधी दुष्प्रचार में कोई कमी नहीं आयी है। चीन की नीयत अभी तक साफ नहीं है, नेपाल और भूटान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्राओं को लेकर चीन को भय है कि इन देशों के नागरिकों का भारत के प्रति झुकाव बढ़ रहा है। चीन बीते कई वर्षों से नेपाल-भूटान के युवा वर्ग में भारत विरोधी बनाने के अभियान में जुटा हुआ है। नेपाल का माओवादी आंदोलन इसी अभियान का हिस्सा रहा है। माओवादी आंदोलन के जरिए चीन ने कई बार भारत-नेपाल की खुली सीमा पर तनाव पैदा करने का ताना-बाना बुना था। महाकाली संधि, पंचेश्वर बांध, बनबसा सीमा विवाद, उत्तराखण्ड की सीमा पर पांच वर्ष पूर्व, नेपाल के माओवादी संगठनों ने खास तनाव पैदा किया था। अब केन्द्र में मोदी सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद भारत की पड़ोसी देशों के प्रति बदली नीति से नेपाल-भूटान में हालात बदले हैं जिससे चीन बेचैन है।
नेपाल-भूटान सीमा पर सीमा सशस्त्र बल व खुफिया विभाग की रपट के आधार पर प्रेस ट्रस्ट की एक खबर में बताया गया है कि चीन नेपाल में भारतीय सीमा से जुड़े क्षेत्रों में अपने 22 अध्ययन केन्द्र चला रहा है जिसमें चीन की संस्कृति, परम्परा, शिक्षा, अर्थव्यवस्था के बारे में प्रचार किया जा रहा है। भारत और नेपाल सीमा जिस तरह से खुली है वैसे ही नेपाल-चीन सीमा पर आवाजाही पर कोई रोकटोक नहीं है। नेपाल के माओवाद प्रभावित तराई जिले झापा-इलाम में चीनी केन्द्रों का खासा जोर है। चीन ने नेपाल-भूटान सीमा पर दो दर्जन से ज्यादा बौद्ध मठों की भी स्थापना कराने में भूमिका निभायी है। इसका मकसद सीमान्त क्षेत्रों में निर्वासित जीवन बसर कर रहे तिब्बती मूल के युवाओं में चीन के प्रति घृणा के भाव को कम करना है। जानकार बताते हैं कि युवा तिब्बती पीढ़ी अहिंसा के मार्ग से हट रही है। पूर्वी सिक्किम जिले के उन इलाकों में, जहां से भूटान को जाने के मार्ग हैं, मठ बन गए हैं। साथ ही जलपाईगुड़ी, कलीमपोंग सीमान्त क्षेत्रों में भी ऐसे मठ देखे जा सकते हैं। इन मठों में चीनी सैनिकों की गतिविधियां भी देखी जा सकती हैं। भारत-नेपाल सीमा खुली है, इस सीमा को कई बार तार से बांधा गया, लेकिन कुछ मार्गों को खुला रखने की आवश्यकता बताई जा रही है, लेकिन स्पष्ट है कि खुली सीमा का दुरुपयोग राष्ट्र विरोधी तत्व उठाते रहते हैं, ऐसे मामले हर रोज अब सामने आ रहे हैं।
उत्तराखण्ड वन विभाग के एक उच्च अधिकारी ने केन्द्र व राज्य सरकार को पत्र लिखकर ये जानकारी दी है कि चीनी सैनिक हमारी सीमाओं में घुसपैठ करते रहते हैं। वन अधिकारी के इस पत्र के बाद केन्द्र की पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार ने इस खतरे को गंभीरता से लेने के बजाए, इस खतरे की आशंका जताने वाले अधिकारी को ही वहां से हटवा दिया। चीन ने भारतीय सीमा तक 'ऑल वेयर रोड' बना दी है, जबकि हमारी सड़क इसलिए नहीं बन पा रही है कि सीमा सड़क संगठन के पास पहाड़ काटने की तकनीक पुरानी है। सरकार की मंशा जल विद्युत परियोजनाओं में तो सुरंग बनाने की होती है, लेकिन सड़कों के लिए 'टनल' बनाने में कोई रुचि नहीं दिखाई जाती है। ऐसे में कभी वन अधिनियम की आड़ में सड़क नहीं बनती तो कभी बजट का रोना रोया जाता है। हिमाचल, उत्तराखण्ड के सांसद कई बार इस विषय को केन्द्र सरकार के समक्ष उठा चुके हैं। बहरहाल चीन की भारतीय सीमा के निकट गतिविधियों को नये सिरे से तेज करना न सिर्फ भारत के लिए चिंताजनक है, बल्कि पड़ोसी देश नेपाल-भूटान के लिए भी परेशानी का सबब बन रहा है।
नेपाल-भूटान और भारतीय सीमान्त क्षेत्र के युवा चीन के जाल में न फंसें, इस दिशा में भारत की कूटनीति जरूरी समझी जा रही है, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है सीमान्त क्षेत्रों की सुरक्षा, जिससे राष्ट्र विरोधी तत्व, माफिया, अपराधी नेपाल-भूटान की खुली सीमा का दुरुपयोग न कर सकें। पिछले दिनों तीन दिवसीय यात्रा पर नेपाल गए चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा था कि चीनी-नेपाल के साथ संबंधों को और मजबूती देना चाहता है। इसके लिए दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय मेलजोल बढ़ना आवश्यक है। वांग ने नेपाल को विश्वास दिलाते हुए यह भी कहा कि चीन नेपाल को 2022 तक कम विकसित देशों की सूची से बाहर करने में भी उनकी पूरी मदद करेगा। -दिनेश
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