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उपलब्धि-2003 में रॉयल सोसाइटी ऑफ लिटरेचर
का बेन्सन पदक
भारत से नाता-भारत-भारत के समाज जीवन को उपन्यासों
में झलकाना
भविष्य का सपना-नए लेखकों को जीवन से जुडे़ विषयों की प्रेरणा
शब्दों में पिरोए जीवन के पल
मसूरी, भारत में 1937 में जन्मीं अनीता देसाई की मां जर्मन थीं और पिता बंगाली। अमरीका में जानी-मानी अंगे्रजी लेखिका के नाते कई पुरस्कारों से सम्मानित अनीता की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में हुई। युवावस्था में ही उन्होंने कई भाषाओं की बारीकियां सीख ली थीं। उन्हें जर्मन, बंगाली के अलावा अंग्रेजी, उर्दू और हिन्दी भाषा में प्रवीणता हसिल हो गई थी। इसी से उनमें साहित्य के प्रति दिलचस्पी बढ़ी। 1957 में दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में बी.ए. करने के बाद 60 के दशक में उनका पहला उपन्यास प्रकाशित हुआ 'क्राई द पीकॉक'। उसके बाद तो एक के बाद एक उपन्यास आते गए-'बाय बाय ब्लैक बर्ड', 'फायर ऑन द माउंनटेन', 'गेम्स एट ट्विलाइट', 'क्लियर लाइट ऑफ डे', 'इन कस्टडी' और 'विलेज बाय सी'। करीब 16 'फिक्शन' लिखने के अलाव उन्होंने ढेरों लघु कथाएं भी लिखीं और ईनाम बटोरे।
अपनी जिंदगी के अनुभवों के गिर्द रची कहानियों को लोगों ने खूब पसंद किया। उनकी कहानियों पर कई फिल्म निर्माताओं की नजर गई और उन पर फिल्में बनीं। खासकर भारत के मध्य वर्ग की महिलाओं की जद्दोजहद को उन्होंने जीवंतता से उकेरा। उनके उपन्यास कस्टडी पर मशहूर फिल्म निर्माता इस्माइल मर्चेंट ने एक फिल्म बनाई थी, जिसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म के तौर पर भारत के राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक हासिल हुआ था। सलमान रुश्दी, अमिताव घोष और अरुंधती राय के अंग्रेजी लेखक के नाते अपनी पहचान बनाने से बहुत पहले अनीता इस क्षेत्र में खासा नाम कमा चुकी थीं। खुद को लिखने की सीमाओं में ने बांधने वाली लेखिका ने नई पीढ़ी के मन को एक खास दिशा देने में दिलचस्पी ली और यही वजह थी कि अमरीका के कई मशहूर कालेजों और विश्वविद्यालयों में उन्होंने छात्रों को साहित्य के अलावा नई तरह की सोच की बारीकियां समझाईं। अनीता ने साहित्य जगत में साहित्य अकादमी से लेकर बूकर के लिए नामित होने तक, कितने ही पुरस्कार प्राप्त किए हैं।
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