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उपलब्धि-हांगकांग सरकार के व्यापार सलाहकार रहे
भारत से नाता-भारत-चीन-हांगकांग के बीच व्यापार के लिए सतत् प्रयत्नरत
भविष्य का सपना-विभिन्न क्षेत्रों में भारत के व्यापार को नई ऊंचाइयों पर ले जाना
दुनिया के बाजार में जमी धाक
भारत में जन्मे, पले-बढ़े एम. अरुणाचलम का नाम हांगकांग के उद्याोग जगत में बड़े सम्मान से लिया जाता है। 2005 में प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित अरुणाचलम का भारत-चीन व्यापार में काफी योगदान रहा है। चीन और भारत में उनकी चमड़ा उद्योग में धाक है, उनकी कितनी ही इकाइयां चलती हैं, उनका बनाया माल अमरीका, दक्षिण अमरीका और यूरोप के बाजारों में जाता है।
तमाम उद्योग परिसंघों के अध्यक्ष, सदस्य रहे अरुणाचलम को उद्योग और व्यापार जगत के लगभग सभी जाने माने पुरस्कार मिले हैं। 1977 तक इंडियन ओवरसीज बैंक में एक मामूली कर्मचारी के रूप में काम करते हुए एक समय ऐसा आया जब वे उससे ऊब गए और कुछ बेहतर करने की ललक जगी। देश में उन्हें उस वक्त कुछ खास नहीं दिखा तो विदेश और वह भी हांगकांग का रुख किया। लेकिन कामयाबी मिलना आसान नहीं था। खूब मेहनत की, कई तरह के काम किए पर सफलता 80 के दशक की शुरुआत में मिली जब उन्होंने भारत और इंडोनेशिया के बीच व्यापार का काम शुरु किया। उनकी दुनिया भर में कपड़ा, चमड़े के कपड़े, अनाज, स्टील, न्यूजप्रिंट और प्लास्टिक के सामान बनाने की अनेक व्यापारिक और उत्पादन इकाइयां स्थापित हुईं और काम बढ़ता गया। भारत में भी उन्होंने अमदाबाद में इंजीनियरिंग इकाइयां और तमिलनाडु में कपड़ा मिलें खोलें। अरुणाचलम ने चीन, यूरोप, अमरीका और मध्य पूर्व तक अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। सालाना 129 मिलियन डॉलर का मुनाफा कमाना कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं थी। इस बीच कई व्यापार संघों और अंतरराष्ट्रीय समितियों के सदस्य के नाते उन्होंने कारोबार के क्षेत्र में काफी नाम कमाया। एशिया प्रशांत देशों के बीच व्यापार बढ़ाने में उनकी बड़ी भूमिका है। वे हांगकांग में इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष बनाए गए, जिस पद पर वे 4 साल रहे। वे एशिया पेसेफिक चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष भी रहे। भारत-हांगकांग-चीन व्यापार में गति आने के पीछे अरुणाचलम के अथक प्रयास ही हैं।
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