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.उपलब्धि-400 धनी अमरीकियों की फोर्ब्स सूची में नाम
भारत से नाता-कई कंपनियों को दिखाई सफलता की राह
भविष्य का सपना-अमरीका के सबसे सफल वैन्चर निवेशक के नाते नाम करना
इंटरनेट और तकनीकी के बादशाह
नई दिल्ली में पैदा हुए 59 वर्षीय विनोद खोसला ने हमेशा ऊंची उड़ान भरने का सपना पाला था और आज अमरीका के सबसे सफल उद्योगपतियों में उनका नाम है। सन माइक्रोसिस्टम्स के सह संस्थापक खोसला सिलिकन वैली में आज श्खिर पर हैं। वैश्विक बाजार पर उनकी पैनी दृष्टि उन्हें बाकियों से अलग करती है।
2004 में उनकी स्थापित की अपनी कंपनी खोसला वेन्चर्स ने अपने रणनीतिक कायदों और गजब के कामकाज से अपना अलग मुकाम बनाया है। खोसला उन चंद वेन्चर्स कैपिटलिस्ट्स में से हैं जिन्होंने काफी पहले ये भांप लिया था कि इंटरनेट तकनीक और फाइबर ऑप्टिक्स का मेल संचार को बेहद तेज, सस्ता और आसान बना सकता है।
बात कम्प्यूटर नेटवर्किंग की हो, वीडियो गेम्स, इंटरनेट सॉफ्टवेयर या सेमीकन्डक्टर की, खोसला इन क्षेत्रों की तमाम कंपनियों की बुनियाद डलवाने में अहम रहे हैं। आईआईटी, दिल्ली से बी.टेक. करने के बाद अपने 15 साल की उम्र से पल रहे सपने को साकार करने के लिए अपनी ही एक कंपनी शुरू की। लेकिन उनकी वह कोशिश नाकाम हो गई। इसके बाद वह अमरीका चले गए और वहां कारनेगी मेलन से बायोमेडिकल साइंसिज में एम.एस. की डिग्री ली। इतना ही नहीं, 1979 में उन्होंने स्टानफोर्ड विश्वविद्याालय से एमबीए भी किया। विनोद खोसला ने स्टानफोर्ड के अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर कम्प्यूटर की मदद से डिजायन तैयार करने वाली कंपनी -डेजी सिस्टम्स-खड़ी की। लेकिन पैसे की कमी आड़े आ गई और कंपनी बैठ गई। उन्होंने भारत की एसकेएस माइक्रोफाइनेन्स कंपनी में भी पैसा लगाया जो भारत के गांवों की गरीब महिलाओं को छोटे मोटे कर्ज दिया करती है। आज खोसला का नाम फोर्ब्स की 400 धनी अमरीकियों की सूची में नाम है। यही वजह है कि उन्होंने कम्प्यूटर नेटवर्किंग, वीडियो गेम्स, इंटरनेट सॉफ्टवेयर और सेमीकन्डक्टर के क्षेत्र में एक मुकाम पाया है और इस क्षेत्र की कितनी ही कंपनियों को सफलता की राह दिखाई है।
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