परिचर्चा - सागर किनारे विचार मंथन
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परिचर्चा – सागर किनारे विचार मंथन

by
Dec 29, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 29 Dec 2014 14:53:25

इंडिया फाउंडेशन की पहल पर पं. दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय दर्शन को केंद्र में रखकर गोवा के पार्क हयात होटल में तीन दिवसीय इंडिया आइडियाज कॉन्क्लेव आयोजित किया गया। 19 से 21 दिसंबर तक हुए इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय आयोजन में शिक्षा, संस्कृति, व्यापार, राजनीति , न्याय, समानता, धर्म व मीडिया सहित 17 विभिन्न विषयों पर सम्पन्न सत्रों में विशेषज्ञ मंडल की अगुवाई में विचार-विमर्श हुआ। कार्यक्रम में विविध क्षेत्रों के 250 विशेषज्ञों सहित लगभग 400 प्रतिभागी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का उद्घाटन कार्यक्रम के समापन सत्र में केन्द्रीय विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज और गोवा की राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा मौजूद थीं। नेतृत्व पर आयोजित सत्र में अमरीका के हवाई से प्रतिनिधि तुलसी गबार्ड ने कहा कि गीता को आधार मानकर, कर्म सिद्धांत और भक्ति योग के आधार पर नेतृत्व हो तो यह बेहतर हो सकता है। नेतृत्व की क्षमता रखने वाले अब दुर्लभ हो गए हैं। वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा कि त्याग, आत्मशक्ति और अन्यों के लिए उदाहरण सामने रखने की क्षमता रखने वाला नेतृत्व ही अंत्योदय के सपने को पूरा कर सकता है।
भारतीय आर्थिक सुधार विषय पर हुए सत्र में भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि ध्यान रोजगार सृजन पर होना जरूरी है। भारत में यह तभी हो सकता है जब कुछ ऐसे परंपरागत निर्माण क्षेत्रों में फिर से जान फूंकी जाए जहां रोजगार सृजन की भारी क्षमता है। ज्यादा पूंजी, ज्यादा रोजगार और नवोन्मेष के जरिए अंत्योदय के लक्ष्यों को पाया जा सकता है। भारतीय कृषि उत्पाद दुनिया में सबसे सस्ते हैं। हमें विश्व बाजार तक प्रभावी पहुंच बनानी चाहिए। सबसे युवा देश, को नवोन्मेष की धुरी बनाना चाहिए, जोखिम लेकर उद्यमिता की मिसाल खड़ी कर सकने वाला सबसे बड़ा वर्ग हमारे यहां है। अर्थशास्त्री और ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड के सदस्य लॉर्ड मेघनाद देसाई ने कहा कि मैं कचरे और शौचालयों की बात करना चाहूंगा। गंदगी में रहकर आध्यात्मिकता की बात करने का कोई मतलब नहीं। हमारी विकास योजनाओं का स्वच्छता से सीधा संबंध है। भयमुक्त, स्वच्छ स्थितियां लक्ष्य प्राप्ति में असरकारक हो सकती हैं। अमरीका के एशियन डेवलपमेंट बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री अनिल पनगढि़या ने कहा कि पूंजी की कमी हो तो गरीबों के लिए आशा खत्म हो जाती है। भारत के लिए चीन और अमरीका जैसी स्थितियां नहीं हैं। अच्छी नौकरियों के लिए कुशल कामगारों की उपलब्धता यहां नहीं दिखती, श्रम आधारित उत्पादन में हमें अपना स्थान बनाना चाहिए। भूमि अधिग्रहण कानून, श्रम कानून, उच्च शिक्षा इन सभी क्षेत्रों में हमें अभी काफी काम करने की आवश्यकता है। इस सत्र के संचालक केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा कि मेक इन इंडिया, जन-धन, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत जैसे अभियानों की घोषणा की गई है, उसका दीर्घकालिक परिणाम होगा और अंतिम व्यक्ति तक विकास का लाभ पहुंचेगा। भारत को प्राकृतिक संसाधनों के लिए ऐसी समग्र नीति बनानी चाहिए कि विकास का लाभ सभी को समान रूप से मिले। भारत के सामने चुनौती यह है कि उद्यमिता का विकास कैसे हो।
'भविष्य के झंझावात-हमने क्या सीखा' विषय पर हुए सत्र में नीदरलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री प्रो. रड लुबर्स ने कहा कि मैं ऊर्जा क्षेत्र का व्यक्ति हूं और इसीलिए इसकी बात करते हुए इसे पर्यावरण में आ रहे बदलाव जैसी समस्या से जोड़ रहा हूं। ऊर्जा संघ (एनर्जी यूनियन) बनाया जाना चाहिए ताकि वैश्विक समस्या से निपटा जा सके। मुझे लगता है कि यहीं भारत की भूमिका शुरू होती है। यह हाथ मिलाकर आगे बढ़ने का समय है।
यूएनआईडीओ, अर्जेटीना के पूर्व महानिदेशक कार्लोस मेगारिनोस ने कहा कि विकसित देश मंदी से जूझ रहे हैं। अर्थव्यवस्थाएं थमी हुई हैं। जबकि विकासशील देशों के लिए यह स्थिति इसके उलट है। धीमे-धीमे बढ़ते हुए विकासशील देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में दो तिहाई का योगदान करने लगेंगे। इसमें भी एशिया की भागीदारी सबसे ज्यादा रहने वाली है। वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ आदि वैश्विक संस्थाओं का प्रभाव हमने देख लिया। यह पिछली सदी की बातें हैं। पूर्व महासचिव ओआईसी और तुर्की के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रहे प्रो. एक्मेलेद्दीन इहसानोग्लू ने कहा कि कट्टरवाद, जिहाद और जन्नत की कहानियां युवाओं को भटका रही हैं। हमें राजनीति और मजहब के बीच की रेखा को परिभाषित करने की जरूरत है। यदि शांत, सभ्य और विकसित समाज चाहिए तो कट्टरवाद से पीछा छुड़ाना होगा।
'संस्कृति और राष्ट्र' विषय पर हुए सत्र की शुरुआत में डेविड फ्रॉली उपाख्य वामदेव शास्त्री ने कहा कि महर्षि रमण, महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद भारतीय ऋषि परंपरा के नाम हैं। ऋषि वह होता है जो व्यक्ति की चेतना को पारलौकिक चेतना से जोड़ता है। ऋषि पारलौकिक चेतना का सीधा स्रोत होता है। ऋषि का मानस मानवीय समस्याओं का हल दे सकता है, वह मानव में भेद नहीं करता। ऋषि आत्मा जिसका उपनिषद में उल्लेख है, मानवता के कल्याण की पोषक है। इसी ऋषि आत्मा का आह्वान एक व्यक्ति और राष्ट्र के रूप में भारत की चेतना को जगा सकता है। शिवत्रयी के प्रसिद्ध लेखक अमीष त्रिपाठी ने इस सत्र में कहा कि बच्चों को बताया जाता है कि आर्य बाहर से आए जबकि आर्य यहीं के हैं, इस बात को सत्य साबित करने के वैज्ञानिक प्रमाण हैं।
'नेतृत्व के लिए सीखना' विषय पर हुए सत्र में नीदरलैंड के लीडन विश्वविद्यालय से आईं एलिजाबेथ डेन बोअर ने कहा कि शैक्षिक के अतिरिक्त आध्यात्मिक इतिहास का ज्ञान भी आवश्यक है। हमें भविष्य के लिए ऐसा ही नेतृत्व चाहिए जिनकी चेतना जाग्रत हो। स्वामी मित्रानंद जी ने कहा कि नेता वह है जो ज्ञान के लिए, कुछ नया सीखने के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है। भारत में यह परंपरा रही है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की। भारत में स्वीकार्यता नहीं मिली तो उन भारतीयों को साथ लिया जो देश के बाहर रहते थे और अपनी मातृभूमि के लिए कुछ करना चाहते थे। उनमें भारत के लिए लड़ने का जज्बा जगाया। भूटान से आए डॉ. सामदू छेत्री ने कहा कि भारत विभिन्न मत पंथों को जगह देने वाला पालना रहा है। मानव के अस्तित्व का सवाल शेष जगत के साथ सहयोग, समन्वय और सामंजस्य से जुड़ा है, अकेले अपने लिए चीजों को परिभाषित करने वाले हम कौन होते हैं? नेता वह है जो वैचारिक दृष्टि से नेतृत्व कर सके। मैत्री, न्याय, संसाधनों का सही बंटवारा जो कर सके वही नेता है। चीन से आए प्रो. एच.के. चांग ने कहा कि चीन में अधिकतर लोग कन्फ्यूशियस वाद को मानते हैं लेकिन ताओ और बौद्ध मत भी हैं। चीनी परंपरा में नेता का मतलब खुद से पहले जन कल्याण का भाव होना होता है। नेता को आलोचना सहने की योग्यता और हर परिस्थिति में जनकल्याण का भाव रखने वाला होना चाहिए। हम पड़ोसी हैं इससे इनकार नहीं किया जा सकता, हम दोस्त बने रहें, यह मानवता के लिए जरूरी है।
धर्म-सहिष्णुता और आतंक विषय पर हुए सत्र में 'न्यू ऐज इस्लाम इंडिया' के संस्थापक और संपादक सुल्तान शाहीन ने कहा कि उदारवादी मुस्लिमों के जिम्मे बड़ी भारी जिम्मेदारी है। इस्लाम के सकारात्मक पक्ष को स्वीकारने को कोई तैयार नहीं। वहाबियों की मुहिम जितनी तेजी से बढ़ी, यह चुनौती उतनी ही बड़ी हो गई है। कुरान को आसमानी किताब मानने और स्थापित करने वालों के साथ दिक्कत यह है कि वे यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि इस्लाम के साथ कहीं कोई बुनियादी गड़बड़ है। कुरान रची हुई पुस्तक है। हदीस की प्रामाणिकता अंतिम नहीं है। बेल्जियम के डॉ. कोनराड एल्स्ट ने कहा कि बोको हराम, तालिबान और आईएसआईएस की हरकतों के बाद इस स्पष्टीकरण का कोई मतलब नहीं रह गया कि इन बातों का इस्लाम से लेना- देना नहीं। निर्ममता और अत्याचार इस्लाम का आधार रहेे हैं। मोहम्मद ने यही सब किया था। इस्लाम के आलोचकों ने किसी मुस्लिम को नहीं मारा जबकि खुद मुसलमानों ने हजारों मुसलमानों की हत्या की थी। 'संस्कृति और राष्ट्र' विषय पर महाबोधी सोसाइटी श्रीलंका के अध्यक्ष पूज्य बानागला उपातिस्सा ने कहा कि मैं 12 वर्ष की आयु में वाराणसी आया। भगवान बुद्ध ने यहीं से पहला उपदेश दिया था यहां मेरे आसपास हिन्दू और मुसलमान थे, किंतु कभी मुझे यह अनुभव नहीं हुआ कि कोई फर्क है। यही भारत है।
इस्रायल स्थित रोमा वर्चुअल नेटवर्क के कार्यकारी संपादक वालेरी नोवोसेलेस्की ने कहा कि 'मैं रोमा लोगों में से हूं। ऐसे लोग जिनकी पहचान भटक गई है लेकिन हम लोग ऐतिहासिक रूप से भारत के लोग हैं। ऐसे में कह सकता हूं कि मैं अपनी ऐतिहासिक मातृभूमि की यात्रा पर आया हूं।'
'दक्षिण एशिया में स्थायी शांति' विषय पर हुए सत्र में पूर्व राजनयिक जी. पार्थसारथी ने कहा कि भारत दक्षिण एशिया का केन्द्र रहा है। इस क्षेत्र में आक्रमण सदा पश्चिम से हुए, पूर्व से नहीं। सिकंदर से लेकर आगे तक के उदाहरण देखे जा सकते हैं। भूटान के पूर्व प्रधानमंत्री जिग्मे वाई. थिनले ने कहा कि भारत दक्षिण एशिया का केन्द्र ही नहीं, इसकी समृद्धि और सौहार्द का भी केन्द्र है। यह इस क्षेत्र का नेतृत्व कर सकता है। धर्मशाला स्थित तिब्बत प्रशासन के मुखिया श्री लोबसांग सांग्ये ने कहा, 'मैं तिब्बत से हूं, भारत में शरणार्थी हूं, लेकिन अपनी बात शिवजी का नाम लेकर शुरू करूंगा। दक्षिण एशिया में शांति तिब्बत में शांति के बगैर संभव नहीं।' कार्यक्रम के अंतिम सत्र में भारत के लिए विकास मंत्र विषय पर चर्चा हुई। कार्यक्रम के समापन पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि अंत्योदय ने मुझे गहराई से प्रभावित किया है। हम ऐसे समय में विचार मंथन के लिए जुटे हैं जब विश्व में अशांति और उथल-पुथल मची है। हम अहिंसा परम धर्म पर चलने के हामी हैं। -पाञ्चजन्य ब्यूरो

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