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सतीश पेडणेकर
मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की- कुछ ऐसा ही हुआ है आतंकवाद के साथ। भारत जैसे देश तो लंबे समय से आतंकवाद को झेलते आ रहे थे, पर विकसित देशों ने कभी इस समस्या की सुध नहीं ली थी। लेकिन 11 सितंबर, 2001 को न्यूयार्क हमले के बाद पश्चिमी देश आतंकवाद के खतरे के प्रति सचेत हुए। अमरीका और यूरोपीय देशों ने आतंक के खिलाफ जंग का ऐलान किया, इराक और अफगानिस्तान पर सैनिक आक्रमण किए, पाकिस्तान और कुछ अन्य देशों पर ड्रोन विमानों से बमबारी हुई, 4़3 ट्रिलियन डालर फूंक दिए लेकिन आतंकवाद खत्म होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। अब तो उसने वैश्विक रूप ले लिया है। शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता है जब दुनिया के किसी न किसी हिस्से में किसी न किसी आतंकी वारदात में लोगों की बलि न चढ़ती हो। कुछ देशों के अस्तित्व और शांति-व्यवस्था के लिए आज आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा बन गया है। उसका शिकार बनने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। विश्व के प्रतिष्ठित थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ इकॉनोमिक्स एंड पीस ने अपनी 2014 की रपट में लिखा है कि वर्ष 2000 के बाद आतंकवाद से हुई मौतों में 5 गुना वृद्घि हुई है। वर्ष 2000 में 3361 मौतें हुई थीं जबकि 2013 में यह आंकड़ा बढ़कर 17,958 हो गया। यह इस बात का संकेत है कि मर्ज पर दवा काम नहीं कर रही। घाव अब नासूर बनता जा रहा है।
इसी रपट के मुताबिक आतंकवाद एक तरफ कुछ देशों में केंद्रित है, दूसरी तरफ दुनियाभर के कई मुल्कों तक फैला हुआ है। एक चुभने वाली सच्चाई यह है कि 2013 में 80 फीसदी आतंकवादी घटनाएं केवल पांच देशों, इराक, सीरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाइजीरिया में हुई हैं। दूसरी तरफ 55 देश ऐसे हैं जहां आतंकवाद से एक या दो मौतें हुई हैं। 2013 में हुई मौतों में से 66 प्रतिशत चार आतंकवादी संगठनों-आईएसआईएस, बोको हराम, तालिबान और अल कायदा-के हाथों हुईं। ये सभी संगठन वहाबी इस्लाम के कट्टर समर्थक हैं। लेकिन इस्लामी आतंकवादी संगठन केवल ये चार ही नहीं हैं। इन आतंकवादी संगठनों की तो जैसे बाढ़ आ गई है। ऐसे सौ के आसपास आतंकवादी संगठन हो सकते हंै दुनियाभर में। यदि उनकी वारदातों को भी जोड़ लिया जाए तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि लगभग 80 से 85 प्रतिशत वारदातें इस्लामी संगठनों की तरफ से हो रही हैं। लोग भले ही कहते हांे कि मजहब और आतंकवाद का कोई रिश्ता नहीं होता लेकिन इन दिनों आतंक पर इस्लाम का ही एकाधिकार दिख रहा है।
रपट के मुताबिक आतंकवाद केवल तेजी से बढ़ा ही नहीं है वरन् उसमें गुणात्मक परिवर्तन भी आया है। वर्ष 2000 से पहले मुख्य रूप से 'एथनिक'और उपराष्ट्रीयताओं से प्रेरित आतंकवाद था, लेकिन अल कायदा द्वारा न्यूयार्क पर किए 11 सितंबर के हमले के बाद से मजहब-प्रेरित आतंकवाद में नाटकीय तरीके से वृद्धि हुई। यह परिवर्तन इस्लामी आतंकवाद के उभरने से हुआ है।
इस रपट में आतंकवाद सूचकांक तैयार करने की कोशिश की गई है। इसके मुताबिक विश्व के आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित पहले दस देश हैं-इराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नाइजीरिया, सीरिया, भारत, सोमालिया, यमन, फिलीपीन्स और थाईलैंड। इनमें से सीरिया को छोड़कर बाकी सभी देश पिछले पंद्रह वर्ष से आतंकवादी हमलों का शिकार होते आ रहे हैं। इनमें पहले पांच देशों में 2013 में कुल मौतों में से 80 प्रतिशत मौतें आतंकवाद की वजह से हुई हैं। सबसे ज्यादा यानी 35 प्रतिशत मौतें हुई हैं इराक में। पिछले दस वर्ष में से नौ वषोंर् में सबसे ज्यादा मौतें भी वहीं हुई हैं। केवल अपवाद रहा 2012, जब अफगानिस्तान में 300 से ज्यादा मौतें हुईं। आतंकवाद से हुई मौतों में सबसे ज्यादा इजाफा सीरिया में हुआ है। 1998 से 2010 तक सीरिया में आतंकवाद से कुल 27 मौतें हुई थीं, लेकिन 2013 में वहां 1000 मौतें हुईं।
वर्ष 2013 के सबसे दुदांर्त चार आतंकवादी संगठनों-अलकायदा, आईएसआईएस, तालिबान और बोको हराम में सबसे खतरनाक संगठन रहा तालिबान, जो पिछले 25 वषोंर् से सक्रिय है और पिछले एक दशक में 25000 लोगों की हत्या कर चुका है। तालिबान एक सुन्नी इस्लामिक कट्टरतावादी आन्दोलन है जो अफगानिस्तान को पाषाणयुग में पहुंचाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इन दिनों इसे पिछड़ेपन और क्रूरता का पर्याय माना जाता है। लोग भले ही उसकी आलोचना करें, लेकिन उसके नेताओं का कहना है कि वह इस्लाम को उसके मूलरूप में अथवा पहली पीढ़ी के इस्लाम को स्थापित करना चाहते हैं। इसके बाद अल कायदा का नंबर है, जो सबसे चर्चित और वैश्विक आतंकवादी संगठन है। बाकी दो संगठन बोको हराम और आईएसआईएस नए हैं और 2009 से ही सक्रिय हुए हैं। आईएसआईएस इन दिनों सारी दुनिया में पहला ऐसा आतंकवादी संगठन है जो अपने लिए अलग राष्ट्र स्थापित करने का जिहाद छेड़े है। इस कारण दुनिया के इस्लामी आतंकवादी संगठनों में उसका दबदबा बढ़ता जा रहा है और वह अल कायदा से होड़ करने लगा है।
इनके अलावा भी कई इस्लामी आतंकवादी संगठन कार्यरत हैं। आतंकवाद के शिकार देशों में सातवें नंबर पर सोमालिया है जहां अल शबाब नामक आतंकी संगठन आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे रहा है। उसने 2013 में 405 हत्याओं को अंजाम दिया। यह संगठन केन्या में भी सक्रिय है। आठवें नंबर पर आता है यमन। यहां शिया आतंकी नेता हौथी के समर्थक आतंकवादी सक्रिय थे, अब उन्होंने तख्ता पलटकर सत्ता पर कब्जा कर लिया है। इसके बाद फिलीपीन्स और थाईलैंड का नंबर आता है।
पिछले 14 वर्र्ष में ऐसे देशों की संख्या 24 हो गई है जहां पचास से ज्यादा लोग आतंकवाद का शिकार बने हैं। एक गौर करने लायक बदलाव यह है कि ऐसे देशों की संख्या घट रही है जहां 50 से ज्यादा लोग मरे हों। आतंकवाद एक वैश्विक जिहाद जैसा बन गया है। 2013 में कुल 87 देशों में आतंकवादी हमले हुए जिनमें से 60 देशों में बड़े पैमाने पर लोग मारे गए हैं।
जो 10 देश आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं उनमें से छह देश इस्लामी हैं और जो चार गैर इस्लामी देश हैं वे हैं नाइजीरिया, भारत, फिलीपीन्स, थाईलैंड। इनमें से नाइजीरिया, भारत और फिलीपीन्स में इस्लामी आतंकवाद काफी ताकतवर है। नाइजीरिया में तो बोको हराम जैसा खूंखार इस्लामी आतंकवादी संगठन सक्रिय है जो अब तक हजारों लोगों की हत्या कर चुका है। इस्लामी आतंकवाद में शिया, सुन्नी और वहाबी सुन्नी, हर तरह का आतंकवाद शामिल है। इराक में तो एक सूफी आतंकवादी संगठन भी सक्रिय है जिसका नाम 'नक्शबंदी आर्मी' है जिसे सद्दाम के समर्थकों ने खड़ा किया है। पाकिस्तान और इराक में शिया और सुन्नी, दोनों ही प्रकार के आतंकी संगठन हैं।
आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में भारत छठे नंबर पर है, लेकिन भारत में केवल इस्लामी आतंकवाद ही सक्रिय नहीं है, यहां माओवादी या वामपंथी आतंकवाद और उपराष्ट्रीयताओं के अलगाववादी आंदोलनों की हिंसा भी जारी है। आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान का रवैया हमेशा दोगला रहा है। आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित होने के बावजूद वह एक तरफ आतंकवाद के सफाये का अभियान भी चलाए हुए है तो दूसरी तरफ आतंकवाद को उसने आतंकवाद को भारत के खिलाफ अपनी रणनीति बनाया हुआ है। एक तरफ वह पाकिस्तान से तालिबान के सफाये का अभियान चलाए हुए है, दूसरी तरफ हाफिज सईद के आतंकवादी संगठन को भारत के खिलाफ इस्तेमाल भी कर रहा है। वैसे पाकिस्तान मिसाल है इस बात की कि आतंकवाद रूपी शेर की सवारी करने का क्या हश्र होता है।
आतंकवाद के जानकारों का मत है कि इस सदी में मजहब पर आधारित आतंकवाद के तेजी से उभरने की सबसे बड़ी वजह यह है कि इस्लामी आतंकवाद एशिया और अफ्रीका में बेहद ताकतवर बनकर उभरा है । 80 प्रतिशत से ज्यादा आतंकवाद इस्लामी संगठनों के कारण है इसलिए कई राजनीतिक चिंतक यह कहते हैं कि इस्लाम के सिद्धांत आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले हैं। इस्लाम और आतंकवाद का चोली दामन का साथ है। इस्लाम के मजहबी ग्रंथ में 'काफिरों से संघर्ष' करने की बात 100 से ज्यादा जगह कही गई है जो आतंकवाद को प्रेरित करती है। इसके अलावा इस्लाम का वर्चस्व कायम कर दारुल-इस्लाम बनाने की बात कही गई है। बहुत से राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यही सोच इस्लामी आतंकवाद का कारण बनती है। वे मदरसे भी आतंकवादियों का पालना बनते हैं जहां असहिष्णुता की शिक्षा देने वाली मजहबी सबक पढ़ाए जाते हैं। इस्लाम का वर्चस्व कायम करने की बात करने वाले विश्व के सबसे ताकतवर इस्लामी आतंकवाद की दारुण त्रासदी यह है कि आतंकवादी वारदात करने वाले भी मुस्लिम होते हैं और उसके सबसे ज्यादा शिकार भी मुस्लिम ही होते हैं।
तालिबान द्वारा अफगानिस्तान और पाकिस्तान में जो आतंकवादी वारदातें होती हैं उनमें ज्यादातर मुस्लिम ही मरते हैं। इराक में अल कायदा सुन्नी आतंकवाद का पर्याय बन गया है और उसने शियाओं का ही बड़े पैमाने पर कत्लेआम किया है। इराक में शिया और सुन्नी आतंकवादी संगठन एक दूसरे को अपनी आतंकी वारदातों का निशाना बनाते रहे हैं। इराक,लेबनान और पाकिस्तान जैसे देशों में शिया आतंकवादी संगठन भी हैं। ये सुन्नी मुसलमानों को निशाना बनाने की कोशिश करते हैं लेकिन इसमें मरते तो मुसलमान ही हैं। इसके अलावा ज्यादातर इस्लामी आतंकी संगठन उन मुसलमानों को भी निशाना बनाते हैं जिनके बारे में उनको लगता है कि वे 'इस्लाम के रास्ते' पर नहीं चल रहे। इसलिए तालिबान और बोको हराम का निशाना वे मुस्लिम बन रहे हैं जिन्हें वे पथभ्रष्ट मानते हैं। नाइजीरिया का इस्लामी आतंकवादी संगठन बोको हराम देश में सत्तारूढ़ सरकार का तख्तापलट करना चाहता है और उसे पूरी तरह से एक इस्लामिक देश में तब्दील करना चाहता है। कहा जाता है कि बोको हराम के समर्थक कुरान की शब्दावली से प्रभावित हैं कि 'जो भी अल्लाह की कही गई बातों पर अमल नहीं करता है वह पापी है'।
बोको हराम इस्लाम के उस संस्करण को प्रचलित करता है जिसमें मुसलमानों को पश्चिमी समाज से संबंध रखने वाली किसी भी राजनीतिक या सामाजिक गतिविधि में भाग लेने से वर्जित किया जाता है। इसमें चुनाव के दौरान मतदान में शामिल होना, टी शर्ट, पैंट पहनना और अंग्रेजी शिक्षा लेना शामिल है। इस संगठन के नाम का अरबी में मतलब है-'वे लोग, जो पैगंबर मोहम्मद की शिक्षा और जिहाद को फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं'। अगर स्थानीय होसा भाषा में इसका उच्चारण किया जाए तो इसका मतलब हुआ 'पश्चिमी शिक्षा लेना वर्जित है'। अपनी सनसनीखेज आतंकवादी गतिविधियों के कारण आजकल यह संगठन चर्चा में है। कुछ समय पहले उसने दो सौ स्कूली छात्राओं का अपहरण कर लिया था जिन्हें आज तक रिहा नहीं किया है। दरअसल पिछले कुछ वषोंर् में ही सौ के आसपास इस्लामी आतंकी संगठन खड़े हो गए है। पिछले दिनों संयुक्त अरब अमीरात ने 83 इस्लामी संगठनों की सूची जारी की थी। इसके अलावा अमरीका ने भी इस्लामी आतंकी संगठनों की एक सूची जारी की है, जिसमें 27 नाम हैं। (देखें बॉक्स)।
इस्लामी संगठन कितनी तादाद में उठ खड़े हुए हैं इसका अंदाजा पाकिस्तान के 20 सुन्नी आतंकवादी संगठनों की इस सूची से लगाया जा सकता है। इसके अलावा शिया आतंकवादी संगठन अलग हैं। इस तरह पच्चीस के आस-पास आतंकी संगठन केवल पाकिस्तान में ही हैं। (देखें, बॉक्स)
इंस्टीट्यूट ऑफ इकॉनोमिक्स एंड पीस की रपट के कुछ निष्कर्ष काफी चौकाने वाले हैं। इसमें लिखा है कि पिछले 45 वर्ष के दौरान कई आतंकवादी संगठन खत्म हो गए। उनमें से केवल 10 प्रतिशत को ही जीत हासिल हुई, सत्ता हासिल हुई और फिर उन्होंने अपनी आतंकवादी इकाइयों को खत्म कर दिया। केवल सात प्रतिशत ही ऐसे रहे जिन्हें सीधे सैनिक कार्यवाही से खत्म किया जा सका। उनमें से 80 प्रतिशत आतंकवाद को बेहतर पुलिस चौकसी और जिन मांगों को लेकर ये संगठन उभरे थे उन मांगों का राजनीतिक प्रक्रिया द्वारा समाधान निकालकर खत्म कर दिया गया। रपट का निष्कर्ष है कि आप गरीबी खत्म करके और शिक्षा को बढ़ावा देकर आतंकवाद को खत्म नहीं कर सकते। इनका आतंकवाद से कोई लेना-देना ही नहीं है। दरअसल आतंकवाद का खात्मा तभी हो सकता है जब उस सोच पर चोट की जाए जिसके जहर से आतंकी संचाालित होते हैं।
अमरीका द्वारा जारी इस्लामी संगठनों की सूची
1. अबू सय्याफ, फिलीपीन्स, 2. अल गामा अल इस्लामिया, मिस्र, 3़ अल अक्सा मार्टर्सि ब्रिगेड, गाजा, 4़ अल शबाब, सोमालिया 5़ अलकायदा, 6़ अंसार अल इस्लाम, इराक, 7़ आर्मड इस्लामिक ग्रुप, अल्जीरिया, 8़ बोको हराम, नाइजीरिया, 9़ काकासस अमीरात, रूस, 10़. ईस्ट तुर्कमेनिस्तान इस्लामिक मूवमेंट, चीन, 11़ इजिप्ट इस्लामिक जिहाद, 12. ग्रेट ईस्टर्न इस्लामिक रेडर्स फ्रंट, तुर्की, 13. हमास, गाजा पट्टी, 14. हरकत उल मुजाहीदीन, पाकिस्तान, 15़ हिज्बुल्लाह, लेबनान, 16़ इस्लामिक मूवमेंट आफ सेंट्रल एशिया, 17़ इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान, 18. इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड द लेवांत, 19. जैशे मोहम्मद, पकिस्तान, 20. जमाते अंसार अल सुन्नी, इराक, 21. जेेमाह इस्लामिया, इंडोनेशिया, 22़ लश्करे तोइबा, पाकिस्तान, 23़ लश्करे झंगवी, पाकिस्तान, 24़ मोरो इस्लामिक फ्रंट, फिलीपीन्स, 25़ मोरक्को इस्लामिक कॉम्बेटेंट ग्रुप, 26. पैलेस्टीनियन इस्लामिक जिहाद, गाजा पट्टी और 27़ तौहीदे जिहाद।
…सक्रिय आतंकी गुट
लश्कर ए झंगवी, तहरीके तालिबान, अहले सन्ुनत अल जमात, जुंनदलहा, अल कायदा, सिपहे साहिबा, लश्करे फारुखी, लश्करे उमर, तहरीके नजफ ए शरियते मोहम्मद, लश्करे तौइबा, हिज्बुल मुजाहिदीन, हरकत उल अंसार, जैशे मोहम्मद, मुजाहिदीन तंजिम, इस्लामी जमीयत तलाबा, अल बद्र, जमाते इस्लामी, जमीयतुल मुजाहिदीन, मुत्तहिदा दीनी
महाज, हरकतुल जिहाद अल इस्लाम और तहरीके जिहाद।
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