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Dec 27, 2014, 12:00 am IST
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फादर, ये क्या किया !

दिंनाक: 27 Dec 2014 13:48:44

फादर बुलवाया और बन बैठे बाप !
राजधानी में शिक्षा की आड़ में मतांतरण

के गोरखधंधे का चौंकाने वाला खुलासा

राहुल शर्मा

शिक्षा दान है, लेकिन ज्ञान के नाम पर अगर कोई आपकी पहचान ही छीन ले तो! दसवीं की अंकतालिका और प्रमाणपत्र यानी जिंदगी भर की पहचान। लेकिन, दिल्ली के नजफगढ़ स्थित दिचाऊं रोड प्रेमधाम आश्रम नामक बालगृह में ईसाई संचालक बिना लिखत-पढ़त बच्चों का अभिभावक ही नहीं बना बल्कि भविष्य के लिए उनकी धार्मिक पहचान तक बदल डाली। पीडि़त परिवारों के अनुसार बच्चों और उनके माता-पिता को इस बारे में पूरी तरह अंधेरे में रखा गया। गुडविल पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की सीबीएसई की अंकतालिका हाथ में आने के बाद जब इस गोरखधंधे का खुलासा हुआ, तो बच्चों को एक कागज थमा दिया गया जिसके अनुसार नाम बदलने के पीछे मतांतरण की मंशा न होने की बात कही गई। कुल मिलाकर पादरी ने अनपढ़, गरीब व कुष्ठ रोगी के बच्चों को उस स्थिति में धकेल दिया, जहां वह कानूनी पेचीदगियों में पड़े बगैर इस थोपी गई ईसाई पहचान से पीछा नहीं छुड़ा सकते। यह एक मामला देश भर में ईसाई फंदे के शातिर हथकंडों की कई कडि़यां खोल सकता है।

साई मिशनरी दिल्ली सहित देश के विभिन्न राज्यों में बालगृह की आड़ में बच्चों का मतांतरण बड़े ही सुनियोजित तरीके से करने का एक दूरगामी प्रयास कर रहे हैं। पाञ्चजन्य को पड़ताल के दौरान दक्षिण पश्चिम दिल्ली के एक ऐसे ही बालगृह की जानकारी प्राप्त हुई है, जहां रहने वाले बच्चों के स्कूल प्रमाणपत्र में माता-पिता के नाम की जगह ईसाई संचालक ने अपना और पत्नी का नाम दर्ज कराया हुआ है। हैरानी की बात यह है कि ये सभी बच्चे संचालक को 'फादर' ही बोलते हैं।
देश के विभिन्न हिस्सों में इसी तरह न केवल ईसाई पंथ के अनुसार बच्चों से प्रार्थना कराई जाती है, बल्कि बच्चों के गले में क्रास का लॉकेट तक पहनाया जाता है। ये सभी बच्चे दिल्ली बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, मणिपुर, ओडिशा और बिहार से लाए जाते हैं। दरअसल ऐसा इसलिए किया जा रहा है जिससे भविष्य में बड़े होने पर बच्चों को उनके ईसाई माता-पिता का नाम मिलने पर ईसाई ही समझा जाएगा।
बेशक आज उनका मतांतरण नहीं कराया जा रहा है, लेकिन ईसाई पंथ से जुड़ने पर बच्चे भविष्य में उस पंथ को अपनी इच्छा से स्वीकार कर लेंगे, इस बात में दो मत नहीं है। इस तरह गरीब बच्चों की मदद के नाम पर उन्हें मतांतरण की राह पर चलाया जा रहा है। गरीब वर्ग के लोगों के बच्चों को पढ़ाने के नाम पर कुछ गैर सरकारी संगठन या बालगृह वाले प्रत्येक बच्चे को शिक्षा व उसकी देखरेख के नाम पर विदेशों से 'फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट 2010' (एफसीआरए 2010) के माध्यम से आर्थिक मदद भी लेते हैं। इसी क्रम में बच्चों को पढ़ाने की आस में उनके माता-पिता भी निश्चिंत होकर उन्हें देखरेख के लिए सौंप देते हैं, लेकिन ये लोग बड़ी चालाकी से उनकी जगह स्वयं बच्चों के माता-पिता बन जाते हैं।
बालगृह में प्रार्थना करते-करते बच्चे एक दिन स्वयं ईसाई बन जाते हैं क्योंकि रिकार्ड में उनके हिन्दू यानी असली माता-पिता का नाम नहीं, बल्कि ईसाई माता-पिता का नाम रहता है। यही कारण है कि कई बार बच्चों को नाबालिग से बालिग होने पर हिन्दू धर्म से ईसाई बनने का पता ही नहीं चलता है। इनके द्वारा कुछ बच्चों को विदेश भेजे जाने की आशंका भी बनी रहती है।
पिछले दिनों गैर सरकारी संगठन 'बचपन बचाओ आंदोलन' द्वारा दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के छावला स्थित ताजपुर गांव में अवैध रूप से चल रहे 'इमेन्युअल ऑरफेनेज चिल्ड्रन होम' में छापेमारी के दौरान 54 बच्चों को मुक्त कराया गया था। इनमें से 43 लड़के, तथा 11 लड़कियां थीं। इन्हें जब माता-पिता के सुपुर्द किया गया तो खुलासा हुआ कि कुछ बच्चों के माता-पिता हिन्दू थे, जबकि उनके बच्चे ईसाई बन चुके थे। 3 से 17 वर्ष की आयु वाले ये सभी बच्चे उत्तर प्रदेश, मणिपुर, बिहार और झारखंड से लाए गए थे। यह बाल गृह वर्ष 2000 से चलाया जा रहा था। बच्चों के लिए यहां भोजन और रहने की व्यवस्था भी नहीं थी और छापेमारी के दौरान जेजे एक्ट का उल्लंघन पाया गया था। यहां लड़के-लड़की साथ ही रखे गए थे। पिछले कुछ समय में दक्षिण-पश्चिम जिले में इमेन्युअल, उम्मीद, आशा मिशन, प्रेम का जीवन 'होम फॉर फिजिकल एंड मेंटली चैलेंज्ड' और 'हाउस ऑफ होप' नामक बालगृह को निरीक्षण के दौरान अवैध रूप से चलने पर बंद किया जा चुका है। ये सभी बिना पंजीकरण के चलाए जा रहे थे। इनमें से 'हाउस ऑफ होप' का संचालक निरीक्षण की पूर्व सूचना मिलते ही बालगृह बंद कर फरार हो गया था। आशा मिशन होम से 4 और उम्मीद से 17 लड़कियों को मुक्त कराया गया था। यहां पर मात्र दो कमरों में 6 से 14 वर्ष की आयु वाली लड़कियों को रखा गया था। ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित बालगृह में रहने वाले बच्चों से तीन-तीन घंटे प्रार्थना कराई जाती है, गले में क्रास का लॉकेट पहनाया जाता है और उन्हें चर्च भी ले जाया जाता है।
जानकारी के अनुसार बाहरी राज्यों में गरीब वर्ग के लोगों या विधवाओं पर निगरानी रखकर ईसाई लोग सुनियोजित तरीके से उन्हें बच्चे को शिक्षा मुहैया कराने का प्रलोभन देते हैं और उसके बाद बच्चों को दिल्ली ले आते हैं। यहां पर बच्चों से चिल्ड्रन होम में साफ-सफाई से लेकर अन्य दूसरे काम कराए जाते हैं।
बालगृह में जेजे एक्ट के नियमों का पालन नहीं कराया जाता है और धड़ल्ले से बच्चों को मतांतरण की ओर धीरे-धीरे बढ़ाया जाता है। राज्यों में जब पादरी या पास्टर को भरोसा हो जाता है कि आर्थिक रूप से कमजोर हिन्दू माता-पिता उनके चर्च में आने शुरू हो गए हैं तो वे दिल्ली फोन कर संचालक को उनके बच्चे लेकर जाने के लिए संकेत दे देते हैं। फिर इन बच्चों को बालगृह में भेज दिया जाता है और वर्ष में काफी कम दिनों के लिए ही उनके माता-पिता से मिलने दिया जाता है।
जेजे एक्ट के अनुसार जिन बच्चों के माता-पिता जीवित होते हैं, उन्हें बालगृह में रखने की आवश्यकता नहीं रहती है, लेकिन नियमों का उल्लंघन कर बच्चों को बालगृह में रखा जा रहा है। यही नहीं दिल्ली और देश के विभिन्न हिस्सों में अवैध रूप से बालगृह चल रहे हैं, जबकि इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार चिंता जता चुका है।
मतांतरण रोकने के लिए बने सख्त कानून
गत 17 दिसम्बर को विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक श्री अशोक सिंहल ने प्रेस वार्ता में कहा कि इतिहास साक्षी है कि पिछले कई सौ वर्षों से ईसाई मिशनरियों ने लाखों लोगों को प्रलोभन या हत्या के डर के दम पर आधे से अधिक विश्व को धोखे से ईसाई बनाया है। आज एक लाख पूर्णकालिक मिशनरी गांव-गांव जाकर वंचित समूह व अशिक्षित समूह को सामूहिक रूप से ईसाई बनाने का कार्य बड़े स्तर पर कर रही हैं।
इन्हें ईसाई देशों से मदद के रूप में करोड़ों-अरबों रुपये प्रतिवर्ष मिल रहे हैं। देश में इस प्रकार की गतिविधियों को रोकने के लिए कठोर कानून का निर्माण वर्तमान की परिस्थिति को देखते हुए अति आवश्यक है।
उन्होंने स्वामी विवेकानंद का सुप्रचलित एवं वर्तमान में अति महत्वपूर्ण उदाहरण देते हुए कहा कि स्वामी जी कहा करते थे कि एक हिन्दू जब ईसाई बन जाता है तो हिन्दू समाज का एक और शत्रु बढ़ जाता है।
गुपचुप चल रहा है मतांतरण का बड़ा खेल
इन दिनों दिल्ली से लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में प्रशासन की नाक तले ईसाई मिशनरी दीन-हीन बच्चों की मदद करने के नाम पर उन्हें ईसाई बनाने की कवायद में जुटे हुए हैं, लेकिन सबकुछ बड़े ही गुपचुप तरीके से किया जा रहा है। बच्चों के प्रमाणपत्र में एक बार ईसाई अभिभावक का नाम जुड़ने पर बच्चा दोराहे पर होता है। अनाथालय में रहने के दौरान वैसे भी ये बच्चे ईसाई प्रार्थना और दूसरे तौर-तरीकों से बखूबी परिचित हो जाते हैं। गरीब या कुष्ठ रोगी माता-पिता को धन और उनके बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने का लालच देकर ईसाई मिशनरी मतांतरण में जुटे हैं। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि आखिर अनाथालय चलाने वाले बच्चों का भला करने के नाम पर उनके माता-पिता का नाम बदलने में क्यों लगे हुए हैं? मदद के नाम पर स्कूल प्रमाणपत्र में हो रही हेराफेरी बड़े षड्यंत्र का संकेत देती है।
(नाबालिग बच्चों के नाम न सार्वजनिक करते हुए पाञ्चजन्य ने केवल तथ्य आधारित कथ्य उद्ध़ृत किए हैं इस सम्बंध में साक्ष्य पाञ्चजन्य के पास उपलब्ध हैं)

'मैं हिन्दू हूं, स्कूल रिकार्ड ने ईसाई बना दिया'
चिल्ड्रन होम में किस तरह से गरीब व अनाथ बच्चों को रखकर ईसाई मिशनरी के संचालक उनके माता-पिता की जगह स्कूल प्रमाणपत्र में अपना नाम दे रहे हैं, इस पर पाञ्चजन्य ने अपनी पड़ताल के दौरान बात की 'चिल्ड्रन होम' में रह चुके एक छात्र से। पेश हैं उससे बातचीत के प्रमुख अंश :
ल्ल क्या आपके परिवार ने ईसाई पंथ अपना लिया है?
नहीं हम लोग हिन्दू हैं और हमने अपना धर्म नहीं बदला है।
ल्ल स्कूल प्रणामपत्र में आपके माता-पिता का नाम कैसे बदल गया?
हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन जब दसवीं कक्षा पास करने के बाद स्कूल प्रमाणपत्र मिला तो उसमें मेरे माता-पिता की जगह संचालक और उनकी पत्नी का नाम लिखा हुआ था। इससे पहले हमें या घरवालों को कभी नहीं बताया गया कि स्कूल प्रमाणपत्र में असली माता-पिता का नाम बदला जाएगा।
ल्ल स्कूल प्रमाणपत्र में माता-पिता का नाम बदलने से आपको किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है?
हमारे राशन कार्ड और आधार कार्ड में मेरे माता-पिता का नाम लिखा है, लेकिन स्कूल प्रमाणपत्र में ईसाई माता-पिता का नाम लिखा होने से अब परेशानी आ रही है। जरूरी कागजांे में नाम अलग-अलग होने से नौकरी संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मुझे स्कूल से पत्र दे दिया गया जिसमें लिखा था कि मैं भविष्य में अपना नाम बदल सकता हूं, लेकिन यह सब आसान काम नहीं रह गया है।

बच्चों के माता-पिता को अपना नाम देने के पीछे गलत मंशा नहीं
हमारी संस्था का उद्देश्य गरीब व बेसहारा बच्चों को शिक्षा देकर उन्हें उनके पांव पर खड़ा करना है। स्कूल प्रमाणपत्र में उनके माता-पिता की जगह अपना नाम देने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि गरीब व कुष्ठ रोगियों का नाम रिकार्ड में आने पर समाज में उन बच्चों को हीन दृष्टि से देखा जाता है। बच्चों और उनके अभिभावकों को ऐसा करने से पूर्व उनके माता-पिता की जगह अपना नाम प्रयोग करने की जानकारी मैंने दी थी। हमें दिल्ली सरकार द्वारा निरीक्षण करने पर मालूम हुआ कि बच्चों के माता-पिता का नाम न लिखना गलत है। इसे गंभीरता से लेते हुए हम स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के असली माता-पिता का नाम ही भविष्य में दर्ज करवाएंगे। साथ ही उनके आधार कार्ड में भी असल माता-पिता का नाम दर्ज कराया जाएगा। इस संबंध में दक्षिण-पश्चिम जिले के उप शिक्षा निदेशक व शिक्षा अधिकारियों की मदद ली जा रही है। पूर्व में स्कूल प्रमाणपत्र में दर्ज बच्चों के माता-पिता का नाम भी बदलवाया जाएगा।
—आर. के. मैसी संस्थापक अध्यक्ष, ह्यूमन केयर

इंटरनेशनल, प्रेमधाम आश्रम, नजफगढ़
माता-पिता का नाम बदलना गैर कानूनी है

जो लोग अनाथालय चलाते हैं, यदि वे गरीब बच्चों को मदद करने के नाम पर उनके माता-पिता की जगह अपना नाम स्कूल प्रमाणपत्र में देते हैं तो यह वाकई गैर कानूनी है। यदि मदद ही उद्देश्य है तो वह बच्चे के असली माता-पिता का नाम देकर भी की जा सकती है। एक बार को अनाथ बच्चे जिनके माता-पिता या पारिवारिक पृष्ठभूमि की जानकारी नहीं रहती है, उन्हें अपना नाम देना तो फिर भी ठीक है। लेकिन अन्य किसी सूरत में बच्चों के माता-पिता का नाम नहीं बदला जाना चाहिए। मेरी जानकारी में यह भी आया है कि गरीब या अनाथ बच्चे को शिक्षा मुहैया कराने वाले संचालक बच्चों को यहां तक कहते हैं कि वे अपना पुराना जीवन भूल जाएं और भविष्य में उन्हें अपना असली माता-पिता स्वीकार करें, वरना उन्हें समाज कुष्ठ रोगी या गरीब बच्चे की संतान के रूप में हीनता से देखेगा। इस धारणा से भी बच्चों की मानसिक दशा पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
-डॉ. ब्रह्मदत्त, अधिवक्ता एवं फेडरेशन ऑफ लेप्रसी आर्गनाइजर के अध्यक्ष

विषय गंभीर है
जिस तरह से 'बाल गृह' के संचालक बच्चों के माता-पिता की जगह अपना नाम दे रहे हैं, यह बेहद गंभीर मामला है। ऐसे में पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए। साथ ही इसकी रोकथाम के लिए केन्द्र सरकार को भी सख्त कदम उठाने चाहिए।

—राम कुमार ओहरी, पूर्व पुलिस महानिदेशक, अरुणाचल प्रदेश

'बाल गृह' में मिलती हैं अनियमितताएं
दिल्ली या दूसरे शहरों में अवैध रूप से चल रहे 'बाल गृह ' में जेजे एक्ट के नियमों की अनदेखी मिलती है। वहां पर एक साथ लड़के- लड़कियों को रखा जाता है। कई जगह तो नेत्रहीन बच्चे भी एक साथ पाए गए। दरअसल जब 'बाल गृह' अवैध रूप से चल रहा होता है तो वहां काफी अव्यवस्थाएं रहती हैं। ऐसे 'बाल गृह' पर किसी का नियंत्रण भी नहीं रहता है और मानदंड पूरे नहीं होते हैं।
—राकेश सेंगर, डायरेक्टर विक्टिम असिस्टेंस, बचपन बचाओ आंदोलन

'एंटी कन्वर्जन लॉ' जरूरी

वोट बैंक की राजनीति के चलते सांसद भी 'एंटी कन्वर्जन लॉ' को लाना नहीं चाहते हैं, यही कारण है कि वर्तमान केन्द्र सरकार के आग्रह पर भी विपक्ष इस कानून को लाने को तैयार नहीं हुआ। यदि हम उत्तर-पूर्व की ओर ध्यान दें तो नागालैंड, मिजोरम और मेघालय में 70 से 80 फीसद तक हिन्दुओं को ईसाई बनाया जा चुका है और ये काम अब भी जारी है।
—मोनिका अरोड़ा, वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय

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