अनूठी संस्कृति से परिपूर्ण उत्तर पूर्व भारत में पर्यटन के नाम पर वह सबकुछ है जो शायद देश के अन्यत्र हिस्से में न हो। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम तो है ही साथ ही साथ यहां की जनजातियों की अलग अलग लोक संस्कृति, वेशभूषा, खानपान अद्वितीय है यहां के तीर्थस्थलों का पौराणिक महत्व यहां आकर ही साक्षात अनुभव जा सकता है।
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अनूठी संस्कृति से परिपूर्ण उत्तर पूर्व भारत में पर्यटन के नाम पर वह सबकुछ है जो शायद देश के अन्यत्र हिस्से में न हो। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम तो है ही साथ ही साथ यहां की जनजातियों की अलग अलग लोक संस्कृति, वेशभूषा, खानपान अद्वितीय है यहां के तीर्थस्थलों का पौराणिक महत्व यहां आकर ही साक्षात अनुभव जा सकता है।

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Dec 22, 2014, 12:00 am IST
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पूर्वोत्तर का सौंदर्य कर दे निरुत्तर

दिंनाक: 22 Dec 2014 12:44:02

 

 

आदित्य भारद्वाज / निधि सिंह

भारत का उत्तर पूर्व का क्षेत्र, प्राकृतिक संपदा और सांस्कृतिक वैभव का असीम भंडार यहां बिखरा पड़ा है। 184 जनजातियां, इतनी ही भाषाएं और इतनी ही वेशभूषाएं अलग-अलग होने के बाद भी ऐसा बहुरंगी वितान रचती हैं कि देखने वाला मोहित होकर रह जाए। भारत के इस क्षेत्र में कितने ही प्रकार के वन और अनगिनत प्रकार की पौधों और वनस्पतियों की प्रजातियां हैं। नदियों, पहाड़ों और झरनों से भरा यह प्रदेश प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक की नवीनतम संस्कृतियों को अपने में समेटे है। यदि यहां की जनजातियों की बात करें तो असमी, नोआतिया, जमातिया, मिजो, रियांग, नगा, लुसाई, चकमा, भूटिया, बोडो, ढिमसा, गारो, गुरुंग, हजार, बियाटे, हाजोंग, खम्प्ती, करबी, खासी, गारो, कोच राजबोंग्सी (राजबंशी), कुकी, लेप्चा, मेइतेई, मिशिंग, चेत्री, नेपाली, पाइती, प्नार, पूर्वोत्तर मैथिली, रमा, सिग्फो, तमांग, तिवा त्रिपुरी तथा जेमे नगा आदि इनमें आती हैं।
अनूठी संस्कृतियों से परिपूर्ण उत्तर पूर्व भारत में यदि सांस्कृतिक पर्यटन करना अपने आप में एक अनूठा अनुभव है। असम में ब्रह्मपुत्र नद का विशाल रूप देखते ही बनता है। उत्तर गोहाटी में ब्रह्मपुत्र के दूसरी तरफ पांडव कालीन प्राचीन दल गोविंद मंदिर है। यहां जाने के लिए सराई घाट का पुल पार करना होता है जो अपने आप में बेहद खूबसूरत है। यहां पर ब्रह्मपुत्र की चौड़ाई सबसे कम करीब डेढ़ किलोमीटर है। पर्यटन यहां मुख्य तौर पर धार्मिक और प्रकृति के समक्ष जाने से ही जुड़ा है। यदि उत्तर पूर्व के ग्रामीण पर्यटन को ही ले लें तो पर्यावरण पर्यटन इसका महत्वपूर्ण हिस्सा है। यही वजह है कि वन्य प्राणी अभ्यारण्य, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एवं दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, विश्व की सांस्कृतिक धरोहरों में इनका गणना है। जबकि अरुणाचल प्रदेश स्थित नामदाफा राष्ट्रीय उद्यान को अगली सूची में शामिल करने का प्रस्ताव है। कोई अटपटी बात नहीं कि उत्तर पूर्व में आने वाली संख्या का एक बड़ा प्रतिशत उन पर्यटकों का होता है जो गुवाहाटी में कामाख्या देवी शक्ति पीठ, ब्रह्मपुत्र स्थित नदी के सबसे बड़े द्वीप माजुली में 15वीं सदी में वैष्णव धर्म के एक बड़े संत श्रीमंत शंकरदेव के मठ और अरुणाचल प्रदेश की लोहित नदी के किनारे परशुराम कुण्ड के दर्शन के लिए आते हैं।
असम
यदि उत्तर पूर्व भारत में पर्यटन की बात हो और मां कामाख्या की बात न हो ऐसा संभव नहीं है। असम में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित कामाख्या देवी प्राचीन मंदिर है। कामाख्या देवी शक्ति पीठ देवी के 51 शक्ति पीठों में से एक है। इस मंदिर का जीर्णोद्वार 7 वीं शताब्दी से लेकर 17 शताब्दी वीं तक कई बार किया गया। असम की राजधानी गुवाहाटी के पश्चिम में नीलांचल पहाड़ी पर बने इस मंदिर की निर्माण शैली भी नीलांचली है। मगर इस मंदिर में कई निर्माण शैलियों का मिश्रण दिखाई देता है। ऐसा मान्यता है कि सती माता के शरीर को कंधे पर लिए भगवान शिव ने जब तांडव किया तो मां के शरीर का एक अंग यहां भी गिरा। मंदिर के गर्भगृह में भी कोई मूर्ति नही है। भूमि के गर्भ से बहता पानी यहां का आकर्षण है,जो शक्ति का स्वरूप है। हिन्दू धर्म और बौद्घ धर्म में तांत्रिक कर्मकांडांे के लिए कामाख्या देवी की महत्ता असीम है। हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह में यहां अम्बुबाची वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है। जून के महीने में जब मानसून उफान पर होता है तो कामख्या देवी के साधकों के लिए मंदिर के पट तीन दिन के लिए बंद हो जाते हैं, लेकिन मेला जारी रहता है और तांत्रिक कर्म कांड भी। असम की जीवनशैली समझने के लिए शायद माजुली द्वीप से बेहतर कुछ नहीं। प्राय: माजुली का उल्लेख दुनिया के सबसे बड़े नदी के द्वीप में होता है। माजुली जोरहाट से 20 किलोमीटर की दूरी पर एक ओर ब्रह्मपुत्र नदी और अन्य दो ओर सुबनसिरी और खेरकुटिआ नदियों से घिरा द्वीप है जो1250 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यह वही स्थान है जहां 15वीं सदी में संत श्रीमंत शंकरदेव ने वैष्णव धर्म को संजोये रखने के लिए 'मणिकांचन संजोग' मठ की स्थापना की थी। पूरे विश्व में यदि सबसे प्राचीन नवग्रह का मंदिर कहीं है तो वह सिर्फ गुवाहाटी में ही है। तिरुपति बालाजी जैसा एक मंदिर भी यहां पर बनाया गया है। शाम के समय जब मंदिर प्रकाशमान होता है तो वह अत्यंत भव्य लगता है। गुवाहाटी से करीब डेढ़ घंटे की दूरी पर असम का एक गांव है 'स्वाल कुची '। यहां की सिल्क पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। पांच हजार से लेकर दो लाख तक की सिल्क की साडि़यां यहां मिलती हैं गांव के हर घर में सिल्क का काम होता है।
अरुणाचल प्रदेश
भारतवर्ष में सबसे पहले कहीं सूर्योदय होता है तो वह अरुणाचल में होता है। यहां पर डोंग नाम का एक गांव है। यहां तक जाने के लिए आपको बस या टैक्सी नहीं मिलेगी। पहले किबीटो काहू नाम के गांव तक गाड़ी से जा सकते हैं। वहां से आगे का रास्ता पैदल तय करना होगा। इसके बाद आप डोंग पहुंचते हैं जहां सुबह तीन बजकर 45 से 46 मिनट के बीच सूर्य नारायण सबसे पहले दर्शन देते हैं। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि अरुणाचल में पर्यटन के लिए 'इनर लाइन परमिट' लेना पड़ता है। यदि दिल्ली से जाते हैं तो अरुणाचल भवन में पहचान पत्र व अन्य जरूरी कागजात जमा करके परमिट लिया जा सकता है। अरुणाचल के लोहित जिले में परशुराम कुंड हैं। कहते हैं अपने पिता ऋषि जगदग्नि की आज्ञा अनुसार जब भगवान परशुराम ने अपनी माता रेणुका का सिर काट दिया तो परशु उनके हाथ से छूट नहीं रहा था। न ही हाथों से रक्त साफ हो रहा था। संसार की सभी नदियों के जल से उन्होंने हाथ धोकर परशु हाथ से अलग करने का प्रयास किया लेकिन मातृहंता जैसे पाप के कारण हर जल ने उसे अस्वीकार कर दिया। इसके बाद भगवान परशुराम ने एक पत्थर पर परशु से प्रहार किया तो वहां जल की धारा बह निकली। उससे उनका हाथ साफ हो गया और रक्त भी साफ हो गया। उत्तरायण में मकर संक्रांति के दिन यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से सभी तरह के पाप धुल जाते हैं। हाल ही में अरुणाचल के जीरो नामक स्थान में बहुत बड़ा शिवलिंग मिला है। जीरो बड़ा सुंदर स्थान है। पहाड़ के ऊपर एक बहुत बड़ा मैदानी क्षेत्र है जहां यह शिवलिंग मिला है। यहां तवांग और बोमडिला को बौद्धपंथ के अनुयायियों का तीर्थस्थल कह सकते हैं। बोमडिला की मोनेस्ट्री बहुत सुंदर है। यहां की बर्फीली चोटियों का सौंदर्य अद्वितीय है। बोमडिला से आगे तवांग के रास्ते में बहुत सुंदर झरना आता है। रास्ते में जसवंतगढ़ स्मारक भी है। 1962 की लड़ाई में जब तवांग को जीतने के बाद चीनी सेना बोमडिला की तरफ आगे बढ़ी तो रास्ते में भारतीय सेना की एक टुकड़ी ने उसे रोका। भारत के सारे सिपाही इस युद्ध में बलिदान हो गए। सभी ने असीम शौर्य का प्रदर्शन किया। एक टुकड़ी की कमान सूबेदार जसवंत सिंह के हाथ में थी। उन्होंने असीम पराक्रम का प्रदर्शन किया और अकेले ही दुश्मन के 300 से ज्यादा सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। बाद में चीनी सेना उनके सिर को धड़ से अलग करके अपने साथ लेकर गई थी। उनकी याद में यहां एक मंदिर बना हुआ है। यहां पर 'युद्ध स्मारक' है। यह हमारे लिए एक तीर्थ स्थल ही है। रोज रात को वहां भोजन की थाली रखी जाती है तो सुबह वह खाली मिलती है। मान्यता है कि जसवंत सिंह स्वयं आकर भोजन करते हैं।

सिक्किम दार्जिलिंग क्षेत्र

दार्जिलिंग का आकर्षण लोगों को अपनी ओर खींचने को बाध्य करता है। यह पर्यटन स्थल इस क्षेत्र में आए पर्यटकों का प्रमुख केन्द्र होता है, जबकि आज सिक्किम और दार्जिलिंग में आने वाले 80 प्रतिशत पर्यटक कंचनजंघा की खूबसूरती के दीवाने होते हैं। आते-जाते नामची और पेल्लिंग भी हो लेते हैं। नि:संदेह उत्तरी सिक्किम की खूबसूरती कुछ लद्दाख का भी आभास दे जाती है। उत्तर पूर्व आने वाले पर्यटकों के लिए यहां के स्थानीय शासकों के स्मारक और अवशेषों के अलावा बौद्ध मत के मठों, जिन्हंे स्थानीय तौर पर 'गोम्पा' के नाम से पुकारा जाता है में भी जाना अच्छा लगता है। ये मठ भी बौद्ध धरोहरों और अपनी संस्कृति की महत्ता को बताते हैं। इससे जुड़े और इस प्रकार की चीजों में रुचि रखने वाले लोगों के लिए भी ये किसी पर्यटन स्थल से कम नहीं होते हैं।

रिवर टूरिज्म
आज के दौर में उत्तर पूर्व में पर्यटन की
लोकप्रियता की वजह यहां की सख्त और जीवट जीवन शैली है। यात्रा में समय लगता है,लेकिन उत्तर पूर्व में यात्राएं मंजिलों से कहीं अधिक दिलचस्प होती हैं। यहां हर किलोमीटर पर संस्कृति में बदलाव नजर आने लगता है। पश्चिम में नेपाली प्रभाव से शुरू हो गुरुंग, छेत्री, लेपचा, तवांग, वनवासी,असमिया विष्णुप्रिया, मणिपुरी, बोडो, चकमा, कारबी, खासी, राजवंशी, भूटानी ,अहोम, नागा, मिजो, पूर्वी छोर तक आते-आते अरुणाचली प्रभाव दिखाई देने लगता है। हर इलाके के अपने रंग,ढंग,चाल-चलन सभी कुछ अलग हैं,लेकिन पर्यटन में कुछ समानताएं हैं। पश्चिम में उत्तर बंगाल की तीस्ता अरुणाचल-असम में ब्रह्मपुत्र नद, लोहित, भोरेल एवं नमेरी नदियां आती हैं,पर्यटन व आकर्षण की दृष्टि से यहां का यह मुख्य आधार है। इन नदियों में राफ्टिंग और एंग्लिंग खेल के तौर पर लोकप्रिय हैं। जहां 'रिवर रॉफ्टिंग' रोमांच से भरपूर है वहीं 'एंग्लिंग' बेहद धैर्यपूर्ण खेल है। यहां इन खेलों के प्रति बढ़ती लोकप्रियता का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा,नागालैंड और मिजोरम के अलावा सिक्किम और उत्तर बंगाल के इलाके भी मिला दिए जाएं तो कुल 70 से भी ज्यादा ऐसे संरक्षित क्षेत्र हैं जिनमें करीब 21 राष्ट्रीय उद्यान और 50 से ज्यादा अभ्यारण्य हैं। । यदि देखा जाए तो देश की 40 प्रतिशत प्राकृतिक संपदा भारत के उत्तर पूर्व क्षेत्र में ही है। प्रदेश के तवांग परिक्षेत्र (वेस्टर्न सर्किल) में 'ईगल नेस्ट', और असम में नमेरी नदी की घाटी और पखुई साथ ही नामदाफा राष्ट्रीय उद्यान भी उतना ही लोकप्रिय है। सिक्किम में शिंगालीला राष्ट्रीय उद्यान, असम में मानस, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान लोगों के लिए अत्यधिक आकर्षण का केन्द्र हैं।
नागालैंड
नागालैंड की राजधानी कोहिमा जाने के लिए दीमापुर सबसे नजदीकी स्टेशन है। यहां से कोहिमा की दूरी करीब 75 किलोमीटर है। नागालैंड में भ्रमण के लिए आपको दीमापुर से इनर लाइन परमिट लेना पड़ता है। पैराणिक कथाओं के अनुसार भीम ने हिडिंब राक्षस को परास्त कर उसकी बहन हिडिंबा से विवाह किया था। विवाहोपरान्त हिडिंबा ने पराक्रमी घटोत्कच को जन्म दिया। यहां की डिमासा जनजाति उन्हें अपना पूर्वज मानती है। इस शहर का नाम पहले हिडिंबापुर था। जिसे बदलकर अंग्रेजों ने दीमापुर कर दिया। यहां राजबाड़ी एक बड़ा सुंदर बाड़ा है। उसमें देखने योग्य बात है कि जिन गोटियों से घटोत्कच खेलता था वे वहां रखी हुई हैं। वे टनों के वजन से युक्त विशाल पत्थर की हैं। इन्हें देखकर कल्पना की जा सकती है कि घटोत्कच कितना बलशाली योद्धा रहा होगा। वहां से आप कोहिमा जाइये। यहां पर 'युद्ध स्मारक' है। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में लड़ते हुए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सिपाहियों के नाम यहां पर लिखे हुए हैं। नागालैंड में यदि जाना है तो एक दिसंबर से दस दिसंबर के बीच जाना चाहिए जब यहां पर हॉर्नबिल फेस्टिवल होता है। यहां 'कीशेमा' नाम का एक गांव बनाया गया है। नागा की 17 जनजातियां और 40 उप जनजातियां हैं। सभी के रहने के तरीके अलग अलग हैं। उनके घर भी अलग-अलग तरह के होते हैं। इस गांव में सभी तरह के घरों को बनाकर दिखाया गया है जो देखने योग्य हैं। यहां जाकर जन जनजातियों की संस्कृति के बारे में जाना जा सकता है।
मणिपुर
मणिपुर एक बहुत सुंदर राज्य है। यह एक कटोरे की तरह है। जिसके चारों सुंदर पहाडि़यां हैं। बीच में घाटी है। पहाडि़यों पर 45 जनजातियां निवास करती हैं। भारत की अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज मैरीकॉम उनमें से एक जनजाति की है। यहां की घाटी में मैतेई लोग रहते हैं। कई सौ बरस पहले मैतेई लोग वैष्णव बन गए थे। यदि कहीं सबसे कट्टर वैष्णवी हैं तो वे यहीं हैं। इनकी संस्कृति देखने योग्य है। यहां की रासलीला, यहां के नृत्य। अभी भी यहां आश्रम प्रणाली है जहां बच्चों को शास्त्र पढ़ाए जाते हैं। वेदों की शिक्षा दी जाती है। यहां पर इमा नाम का एक बाजार चलता है जिसे सिर्फ महिलाएं चलाती हैं। इम्फाल का गोविंद मंदिर अद्वितीय है। यहां का प्रसाद बड़ा आनंददायी और स्वादिष्ट होता है। यहां से 40 किलोमीटर दूर मोयरांग है। जहां लोकटॉक झील है। इस झील में तैरने वाले द्वीप हैं। जो विश्व में किसी झील में नहीं हैं। इन द्वीपों में यहां स्थानीय लोग नाव से जाते हैं और मत्स्य पालन करते हैं। द्वीप झील पर तैरते रहते हैं। झील के किनारे आजाद हिंद फौज का बहुत बड़ा संग्रहालय है जहां आजाद हिंद फौज के सिपाहियों की निशानियां उनके खून से लथपथ कपड़े उनके हथियार आदि रखे हुए हैं। किनारे पर वही तिरंगा फहरा रहा है जो नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने फहराया था। यहां के विष्णपुर जिले में भगवान विष्णु का बहुत सुंदर मंदिर है।
मिजोरम
यहां हिंदू आबादी सबसे कम रह गई है। यहां सिर्फ ईसाई पर्यटन है। 17 लाख की आबादी में पूरे राज्य में महज पांच हजार हिंदू बचे हैं। बाकी सभी ने ईसाई पंथ अपना लिया है। हालांकि यहां के ईसाई फिर से अपनी संस्कृति की तरफ वापस लौट रहे हैं क्योंकि ईसाइयत उनका पंथ है लेकिन पहचान नहीं है। इसलिए अपनी पहचान यानी मिजो संस्कृति को बरकरार रखने के लिए उन्होंने चापचारकुट नाम का एक महोत्सव शुरू किया है। या यंू कहा जाए वे अपनी पूजा पद्धति को जारी रखते हुए वे अपनी संस्कृति के पास फिर से लौटना चाह रहे हैं। इसलिए पिछले कुछ वर्षों से उन्होंने मार्च में अपना पारंपरिक त्योहार चापचारकुट मनाना शुरू किया है। इस त्योहार के समय यहां जाएं तो आप देखेंगे कि सारे मिजो अपनी पारंपरिक वेशभूषा पहनकर त्योहार में शामिल होते हैं।
त्रिपुरा
यहां पर माणिक्य वंश का राज्य था। आज भी यहां राजा का महल है। त्रिपुरा स्थित उदयपुर बहुत बड़ा दुर्गा मंदिर है। यहां मंदिर के बाहर बहुत बड़ा तालाब है। यहां एक जलमहल है। वहां नाव में बैठकर जाना पड़ता है। माणिक्यवंश का जो राजमहल था उसे संग्रहालय बना दिया गया है वह देखने योग्य है।
मेघालय
माओसिन राम एक बहुत बड़ा अजूबा है मेघालय में। यह एक बहुत बड़ी गुफा है। जहां एक प्राकृतिक शिवलिंग है। उसके ऊपर गाय के थन की तरह का एक पत्थर है जिससे बूंद-बंूद पानी शिवलिंग पर गिरकर उसका अभिषेक होता है। ऐसा पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। वर्ष में किसी भी समय जाओ वहां पत्थर से बंूद-बंूद ही पानी गिरता है। माओसिन दुनिया में सबसे ज्यादा वर्षा होने वाला स्थान है। इसके बाद चेरापंूजी है जहां दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा बारिश होती है। चेरापूंजी में एक बहुत सुंदर झरना है। नॉकलेकाई झरना। यहां सुबह सात से नौ बजे तक पहुंचना चाहिए। दोपहर 12 बजे के बाद आपको झरना देखने को मिलेगा या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं क्योंकि बादल इतने नीचे आ जाते हैं कि कोहरे की वजह से यहां कुछ दिखाई नहीं देता। यहां का रामकृष्ण मिशन देखने योग्य है। स्वामी विवेकानंद यहां स्वयं 1901 में आए थे और उन्होंने आश्रम का उद्घाटन किया था। रामकृष्ण मिशन द्वारा यहां किए जाने वाले सेवाकार्यों को देखकर कोई उनकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकता। यदि महिला सशक्तिकरण की बात करें तो पूरे देश में उसका सबसे बड़ा उदाहरण मेघालय है। यहां विवाह के बाद लड़का लड़की के घर जाकर रहता है। यहां मातृसत्ता पद्धति है। बच्चों को मां का उपनाम मिलता है। संपत्ति पर अधिकार भी बेटी का ही होता है। यदि सांस्कृतिक पर्यटन की बात करें तो यहां का डोनबोस्को संग्रहालय जरूर देखना चाहिए। इस संग्रहालय में पूरे उत्तर पूर्व भारत की संस्कृति देखने को मिलती है। शिलांग शहर में शिलांग चोटी और यहां का 'ऐलीफेंट फॉल' बहुत सुंदर है। यहां की वार्डस झील जिसका स्थानीय नाम नॉनपलक भी बहुत सुंदर है। मेघालय में एशिया का सबसे स्वच्छ गांव माओलेन नांग है। इसे एशिया के सबसे स्वच्छ गांव का दर्जा मिला
हुआ है।

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