|
कम्बोडिया में अंगकोरवाट का हिन्दू मन्दिर अपने आकार के कारण दुनिया का सबसे बड़ा धर्मस्थल है। यहां हिन्दू धर्म की ध्वजा बड़ी शान के साथ लहरा रही है। यह मन्दिर कम्बोडिया के राष्ट्रीय ध्वज पर भी अंकित है। सांस्कृतिक पर्यटन का असली आनंद यहीं है। यहां की प्राकृतिक छटा तो सैलानियों का मन मोहने में कोई कसर नहीं छोड़ती, खासकर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय। यह मन्दिर सैकड़ों वर्ग मील क्षेत्र में फैला हुआ है। राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक इस मन्दिर को वर्ष 1983 से कम्बोडिया के राष्ट्रध्वज में स्थान दिया गया है। यह मन्दिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। इसकी दीवारों पर भारतीय धर्म ग्रंथों के प्रसंगों का चित्रण है। कई सनातनी प्रसंगों के साथ असुरों और देवताओं के बीच अमृत मंथन का दृश्य भी दिखाया गया है। विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मन्दिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है।
यह मन्दिर कम्बोडिया के अंगकोर में है जिसका पुराना नाम 'यशोधरापुर' था। यह विष्णु मन्दिर है जबकि इसके पूर्ववर्ती शासकों ने प्राय: शिव मन्दिरों का निर्माण किया था।
खमेर शास्त्रीय शैली से प्रभावित स्थापत्य वाले इस मन्दिर का निर्माण कार्य सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53 ई.) के शासनकाल में शुरू हुआ था।
उनके भांजे एवं उत्तराधिकारी धरणीन्द्र वर्मन के शासनकाल में यह मन्दिर बन कर तैयार हुआ था। मिश्र एवं मेक्सिको के स्टेप पिरामिडों की तरह यह सीढ़ी पर उठता गया है। इसका मूल शिखर लगभग 64 मीटर ऊंचा है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी आठों शिखर 54 मीटर ऊंचे हैं। मंदिर साढ़े तीन किलोमीटर लम्बी पत्थर की दीवार से घिरा हुआ है, उसके बाहर 30 मीटर खुली भूमि और फिर 190 मीटर चौड़ी खाई है। विद्वानों के अनुसार यह चोल वंश के मन्दिरों से मिलता-जुलता है। दक्षिण पश्चिम में स्थित ग्रंथालय के साथ ही इस मन्दिर में तीन वीथियां हैं, जिनमें अन्दर वाली अधिक ऊंचाई पर है। निर्माण के कुछ ही वर्ष पश्चात् चम्पा राज्य ने इस नगर को लूटा। उसके उपरान्त राजा जयवर्मन-7 ने नगर को कुछ किलोमीटर उत्तर में पुनस्स्थापित किया। 14वीं या 15वीं शताब्दी में थेरवाद बौद्ध लोगों ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया।
मन्दिर के गलियारों में तत्कालीन सम्राट, बलि-वामन, स्वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश पुराण तथा रामायण से संबद्ध अनेक शिलाचित्र हैं। यहां के शिलाचित्रों में रूपायित राम कथा बहुत संक्षिप्त है। इन शिलाचित्रों की शृंखला रावण वध हेतु देवताओं द्वारा की गई आराधना से आरंभ होती है। उसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य है। अगले शिलाचित्र में राम जी धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। इसके उपरांत सुग्रीव से राम जी की मैत्री का दृश्य है। फिर, बालि और सुग्रीव के द्वंद्व युद्ध का चित्रण हुआ है। शिलाचित्रों में अशोक वाटिका में हनुमान की उपस्थिति, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम जी की अयोध्या वापसी के दृश्य हैं।
कम्बोडिया में हजारों प्राचीन हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं। गौरतलब है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) कम्बोडिया स्थित 'ता प्रोहम मंदिर' का जीर्णोद्धार कर रहा है। कम्बोडिया में ही भगवान विष्णु का सबसे पुराना मन्दिर है। अभिलेखों से प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग एक हजार वर्ष पहले भारत से कई लोग कम्बोडिया गए और वहां मन्दिरों का निर्माण कराया।
संस्कृत थी कम्बोडिया की राष्ट्रभाषा
कम्बोडिया की राष्ट्रभाषा कभी संस्कृत थी। इतिहास में जाएं तो पता चलता है कि यहां पर छठी शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक देवभाषा संस्कृत को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त था। कम्बोडिया का प्राचीन नाम कम्बुज था।
महाभारत में उल्लेख है कि उस समय इंडोनेशिया, मलय, जावा, सुमात्रा, कम्बुज, ब्रह्मदेश, सियाम, श्रीलंका, जापान, तिब्बत, नेपाल आदि देशों के राजनीतिक और व्यापारिक संबंध थे। इन देशों से अपनी समन्वयी संस्कृति और संस्कृत के आधार पर कम्बोडिया (कम्बुुज) वर्षों से भारत के संपर्क में था।
संस्कृत शिलालेख
शोधकर्ता भक्तिन कौन्तेया अपनी ऐतिहासिक रूपरेखा में लिखते हैं- 'प्राचीन काल में कम्बोडिया को कम्बुज देश कहा जाता था। नवीं से तेरहवीं सदी तक अंगकोर साम्राज्य पनपता रहा। राजधानी यशोधरापुर सम्राट यशो वर्मन ने बसाई थी।
संस्कृत से जुड़ी भव्य संस्कृति के प्रमाण इन अग्निकोणीय एशिया के देशों में आज भी विद्यमान हैं। कम्बुज शिलालेख जो खोजे गए हैं वे कम्बुज, लाओस, थाईलैंड, वियतनाम आदि में पाए गए हैं। कुछ ही शिला लेख पुरानी मेर भाषा में हैं, जबकि बहुसंख्य शिला लेख संस्कृत भाषा में हैं।
संस्कृत उस समय की दक्षिण पूर्व अग्निकोणीय देशों की सांस्कृतिक भाषा थी।
आज कम्बुज भाषा में 70 प्रतिशत शब्द सीधे संस्कृत से लिए गए हैं।
इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि संस्कृत वहां की न्यायालयीन भाषा थी। एक सहस्र वर्षांे से भी अधिक समय तक उसका चलन रहा। सारे शासकीय आदेश संस्कृत में होते थे। भूमि के या खेती के क्रय-विक्रय पत्रों से लेकर मन्दिरों का प्रबंधन भी संस्कृत में ही सुरक्षित रखा जाता था। आज भी इन सबके दिखते हैं। ल्ल
भारत में विराट अंगकोरवाट…
अंगकोरवाट मन्दिर की भारत में बनने जा रही प्रतिकृति को प्रतिष्ठित अमरीकी पत्रिका 'टाइम' ने दुनिया की पांच सबसे आश्चर्यजनक प्रतिकृतियों की सूची में अव्वल माना है। पत्रिका के अनुसार विश्व धरोहर अंगकोरवाट मन्दिर की प्रतिकृति बिहार में पवित्र गंगा नदी के किनारे बनाई जा रही है। करीब 40 एकड़ भूमि पर सौ करोड़ रुपए की लागत से भारतीय मन्दिर ट्रस्ट इसका निर्माण करा रहा है। पत्रिका के अनुसार 222 फीट की यह प्रतिकृति दुनिया में सबसे ऊंचा हिन्दू मन्दिर हो सकता है। इसका नाम विराट अंगकोरवाट राम मंदिर होगा।
इसका उद्देश्य यही है कि जो लोग कम्बोडिया जाकर अंगकोरवाट मन्दिर नहीं देख पाते, वे यहीं पर असली मंदिर की भव्यता और वैभव के दर्शन कर पाएंगे।
टिप्पणियाँ