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कर्नाटक के मंगलुरू और उसके आसपास के क्षेत्रों में मठ-मन्दिरों पर निरन्तर हो रहे हमलों के विरोध में 7 दिसम्बर को अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया और हमलावरों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने की मांग की। बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद्, हिन्दू जागरण वेदिका एवं कई अन्य संगठनों के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने राज्य सरकार के विरोध में नारे लगाए और आरोप लगाया कि सरकार हमलावरों को बचा रही है। गुरपुर वज्रदेही मठ के स्वामी राजशेखरानन्द, भाजपा नेता तेजस्विनी गौड़ा आदि ने प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व किया। इससे अनेक प्रदर्शनकारी घायल हो गए। 5 दिसम्बर की रात को मंगलुरू के पास उलबेत्तू की दत्तापीठ पर कुछ शरारती तत्वों ने हमला किया था। इससे पहले भी अनेक मन्दिरों पर हमले हुए हैं। इन हमलों को लेकर स्थानीय हिन्दुओं में आक्रोश है। कहा जा रहा है कि इन हमलों के पीछे कुछ जिहादी तत्वों का हाथ है। ल्ल प्रतिनिधि
सांस्कृतिक विकास का संकल्प
नई दिल्ली में 1 दिसम्बर को संस्कार भारती ने कला-समवेत का आयोजन किया। इसमें संस्कार भारती के राष्ट्रीय एवं प्रान्त के पदाधिकारियों के साथ-साथ 25 लब्ध प्रतिष्ठित कलाकारों और साहित्यकारों ने भाग लिया। संस्कार भारती की राष्ट्रीय संगीत विधा के संयोजक चेतन जोशी ने कहा कि राष्ट्र एक भावनात्मक इकाई है। किसी न किसी भावना ने विभिन्न राष्ट्रों को एक रखने में योगदान दिया है।
आज विकास की यात्रा में हमारा सांस्कृतिक विकास ओझल न हो जाए, इसकी जिम्मेदारी कलाकारों की है। वरिष्ठ साहित्यकार नरेन्द्र कोहली ने कहा कि हम अपनी भाषा की उपेक्षा कर रहे हैं। यह मानसिकता बदलनी होगी। वरिष्ठ साहित्यकार कमल किशोर गोयनका ने कहा कि वामपंथी विचारधारा वाले शैक्षणिक संस्थानों पर हावी हैं, वे लोग पाठ्यक्रमों में संस्कृति को शामिल नहीं होने दे रहे हैं।
संस्कार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष वासुदेव कामथ ने कहा कि यह एकत्रीकरण कला के प्रचार-प्रसार में मदद करेगा। तुफैल चतुर्वेदी ने कहा कि उर्दू के साहित्यों को ईमानदारी से हिन्दी में लाना होगा तभी राष्ट्रीयता को मजबूत किया जा सकता है। सोनल मानसिंह ने कहा कि जर्मनी में संस्कृत पर बवाल नहीं तो फिर यहां क्यों? कार्यक्रम को मनोज तिवारी, उस्ताद वसीफुद्दीन डागर, सीतेश आलोक, मालिनी अवस्थी, सहित अनेक लोगों ने सम्बोधित किया। ल्ल प्रतिनिधि
'संस्कृत सीखकर जीवन का लक्ष्य प्राप्त किया'
'संसार में सर्वप्रथम मानव-सभ्यता की संकल्पना संस्कृत साहित्य में हुई। संकल्पना के साथ उसका उत्कर्ष और विकास का मार्ग भी आगे बढ़ा। इसीलिए जितने भी पाश्चात्य बुद्धिजीवी हुए उन्होंने संस्कृत-साहित्य का अध्ययन किया। स्वयं का ज्ञान हो अथवा सृष्टि का बिना संस्कृत के नहीं जाना जा सकता।' ये विचार हैं पांडिचेरी और गोवा के पूर्व मुख्य सचिव श्री एस़ आऱ शर्मा के। वे गत दिनों दिल्ली में डॉ. गोस्वामी गिरधारी लाल शास्त्री प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित प्राच्य विद्याओं पर आधारित परिचर्चा में बोल रहे थे। प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. जीतराम भट्ट ने कहा कि मनुष्य को 'मनुर्भव' का सन्देश संस्कृत ही दे सकती है। परिचर्चा में अमरीका के विद्वान श्री शांता बल्किन और श्रीमती इंदिरा बल्किन भी उपस्थित हुए। श्रीमती इंदिरा बल्किन ने कहा कि यद्यपि मेरी भाषा अंग्रेजी रही है, किन्तु मेरा अनुभव है कि संस्कृत सीखकर मैंने जीवन का लक्ष्य प्राप्त किया। श्री शांता बल्किन ने संस्कृत में संगीतमय शब्द और धातु रूप सुना कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्कृत भारती, दिल्ली के संगठन मंत्री श्री सुधीष्ट कुमार ने की। इस अवसर पर संस्कृत के अनेक साधक उपस्थित थे। ल्ल प्रतिनिधि
खट्टर से मिला सिख संगत का प्रतिनिधिमण्डल
पिछले दिनों राष्ट्रीय सिख संगत का एक प्रतिनिधिमण्डल हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहरलाल खट्टर से मिला। प्रतिनिधिमण्डल में सरदार चिरंजीव सिंह, सरदार गुरचरन सिंह गिल, श्री अविनाश जायसवाल व डॉ़ अवतार सिंह शास्त्री थे। प्रतिनिधिमण्डल ने श्री खट्टर को सिरोपा एवं कृपाण भेंटकर सम्मानित किया। ल्ल प्रतिनिधि
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