|
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत दिसम्बर के पहले सप्ताह में मणिपुर के प्रवास पर रहे। चार दिवसीय इस प्रवास के दौरान उनसे अनेक वरिष्ठ लोगों और विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भेंट की। उन्होंने अनेक कार्यक्रमों को भी सम्बोधित किया। मणिपुर की राजधानी इम्फाल के भाग्यचन्द्र ओपन एयर थियेटर में आयोजित कार्यकर्ताओं के सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए श्री भागवत ने कहा कि मणिपुर के लोग जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं वे पूरे देश की समस्याएं हैं। मणिपुर इस देश का एक भाग है और उसकी समस्याओं में शामिल होना और उन समस्याओं का हल ढूंढना पूरे देश का दायित्व है। उन्होंने कहा कि हमारे संगठन ने प्रधानमंत्री और देश के लिए काम करने वाले अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का निर्माण किया है। उन्होंने उपस्थित लोगों से निवेदन किया कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़ें। सम्मेलन के अध्यक्ष राजा लिसेम्बा संजोबा ने कहा कि मणिपुर के लोगों को तुरन्त 'इनर लाइन परमिट सिस्टम' की आवश्यकता है। उन्होंने सशस्त्र बल अधिनियम-1958 को हटाने की भी मांग की।
शुद्धता और शुभता पर टिका है पर्यावरण
वाराणसी में 5 दिसम्बर को 'भारतीय संस्कृति एवं बौद्ध दर्शन में पर्यावरण' विषय पर एक अन्तरराष्ट्रीय गोष्ठी आयोजित हुई। गोष्ठी के मुख्य वक्ता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि प्रकृति का शोषण करना राक्षसी प्रवृत्ति है, उसका सम्मान करना मानवीय दायित्व है और उसकी पूजा करना देवी-देवताओं की पूजा करने के समान है। पर्यावरण स्वच्छता, शुद्धता और शुभता पर टिका हुआ है। बाह्य शुचिता को स्वच्छता कहते हैं और आन्तरिक शुचिता को शुद्धता एवं शुभता कहा जाता है। हमारे शास्त्रों में शुद्धता और शुभता पर अधिक जोर दिया गया है।
मुख्य अतिथि और 'श्रीलंका इन्टरनेशनल बुद्धिस्ट एसोसिएशन वाराणसी' के अध्यक्ष डॉ. के.सीरी सुमेध थेरो ने कहा कि बौद्ध दर्शन में पर्यावरण एक महत्वपूर्ण विषय है। बौद्ध ग्रंथों में बाह्य पर्यावरण के संरक्षण के साथ-साथ आन्तरिक पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया गया है। हमें उसे आत्मसात करना होगा। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में जैन-बौद्ध दर्शन विभाग के प्रो. ए.के. जैन ने कहा कि हमारे शास्त्रों में सभी प्राणियों पर समभाव स्थापित करने की बात कही गई है। पर्यावरण संरक्षण के लिए मानवता का संरक्षण बहुत आवश्यक है। गोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. रमेश कुमार द्विवेदी ने की। इस अवसर पर डॉ.अंशुमान द्विवेदी की पुस्तक 'लहर' का लोकार्पण भी किया गया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मालती तिवारी ने किया। गोष्ठी का आयोजन धर्म संस्कृति संगम काशी और बौद्ध दर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में हुआ था। -प्रतिनिधि
टिप्पणियाँ