लाल आतंक :घर टूटा तो घात लगाई
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नक्सली अपना प्रभाव खोते जा रहे हैं। पिछले छह महीने के दौरान सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से आत्मसमर्पण किया है। ऐसा माना जा रहा है कि नक्सलियों द्वारा किया गया यह हमला उनकी बौखलाहट का नतीजा है।
देवव्रत घोष
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में माओवादियों ने कायरतापूर्ण तरीके से सीआरपीएफ के जवानों पर हमला कर उनकी निर्ममता से हत्या कर दी । सुरक्षाबलों द्वारा दबिश देने व इलाके में लगातार ऑपरेशन चलाए जाने से इलाके में अपना वजूद खो रहे नक्सलियों ने अपना दबदबा कायम रखने के लिए इस कांड को अंजाम दिया। जवानों को घेरकर किए गए हमले में सीआरपीएफ के दो अधिकारियों उप अधीक्षक डीसी वर्मा और सहायक उप अधीक्षक राजीव कपूरिया समेत 14 जवान बलिदान हो गए। एलमागुंडा के जंगलों में इस वारदात को अंजाम दिया गया। यह जगह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से तकरीबन 400 किलोमीटर दूर है। पिछले छह महीने में सबसे ज्यादा नक्सलियों ने सुरक्षाबलों के आगे आत्मसमर्पण किया है। कुछ दिन पहले ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने बयान दिया था कि जल्द ही छत्तीसगढ़ से माओवदियों का सफाया कर दिया जाएगा। गौर करने की बात यह है वर्ष 2014 में नक्सलियों के साथ सुरक्षाबलों की तकरीबन आधा दर्जन मुठभेड़ हुईं। इस दौरान नक्सलियों की गोलाबारी से 22 सुरक्षाबलों और आम आदमियों की मौत हुई। जब भी नक्सली सुरक्षाबलों पर हमला कर उन्हें मारते हैं तो यह सवाल उठता है कि आखिर वे लड़ाई के तौर तरीकों में पूरी तरह प्रशिक्षित जवानों को मारने में कामयाब कैसे हो जाते हैं ? आखिर जवान क्यों नक्सलियों के सामने आने पर अपने आपको असहाय पाते हैं। नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे इस 'ऑपरेशन' के असफल होने की बात की जाए तो इसके कारण उंगलियों पर गिनाए जा सकते हैं।
नक्सलियों के पास थी पल-पल की खबर
दरअसल 29 नवंबर से सीआरपीएफ के जवानों की आठ टीमें इस क्षेत्र में 'ऑपरेशन' पर थीं। सीआरपीएफ की विशेष कोबरा बटालियन इस क्षेत्र में गश्त कर छिपे हुए नक्सलियों को तलाशने में जुटी थी। पिछले कई दिनों से एलमागुंडा के जंंगलों में नक्सलियों की तलाश में लगातार छापेमारी की जा रही थी। जवानों ने जंगल में शिविर भी लगाए हुए थे। 29 नवंबर को सुरक्षाबलों ने ऑपरेशन के लिए आठ जगहें चिंतलनार, चिंतागुफा, कांकेर-लंका, पेंढाकुर्ति, पोलमपल्ली, पुसवाडा, भेज्जी और बुरकापाल तय की थीं। इन आठों टीमों की रणनीति थी कि चिंतागुफा में ऑपरेशन से पहले छोटे-छोटे समूह में इकट्ठे होकर कासलपाड में अभियान चलाया जाएगा। रात में एक पहाड़ी के पास शिविर लगाने के बाद सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के 500 जवान सुबह करीब 3 बजे चिंतागुफा से चले। सुरक्षाबलों को इस बात की जानकारी थी कि नक्सलियों के वरिष्ठ नेता वहां पर इकट्ठे होकर पीपुल लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) सप्ताह मनाने वाले हैं। नक्सलियों द्वारा हर वर्ष यह सप्ताह वार्षिकोत्सव की तरह मनाया जाता है।
हर वर्ष 2 से 9 दिसंबर के बीच इस सप्ताह को मनाया जाता है। इस दौरान बड़ी रणनीति तय की जाती है। इस सप्ताह के दौरान भारी संख्या में नक्सली इकट्ठा होते हैं और आगे की रणनीति तैयार करते हैं। सुरक्षाबलों के द्वारा मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों को भी इस दौरान श्रद्धांजलि दी जाती है। उनका श्रद्धांजलि देने का तरीका भी यही होता है कि हमारे लोगों को सुरक्षाबलों ने मारा तो हम भी उन्हें मारेंगे। यही नक्सलियों की रणनीति भी है
घात लगाकर किया गया हमला
जवानों पर जिस जगह हमला हुआ वह नक्सलियों का गढ़ है और सबसे खतरनाक इलाकों में से एक है। यह इलाका चारों तरफ से पहाडि़यों और घने जंगलों से घिरा हुआ है। एलमागुंडा जंगल के बारे में कहा जाता है कि यह कुछ ऐसी जगहों में से है जहां गुरिल्ला युद्ध में नक्सलियों का पलड़ा इसलिए भारी रहता है क्योंकि वे इसके चप्पे-चप्पे की जानकारी रखते हैं। शुरुआती जानकारी के अनुसार सुबह करीब नौ बजे सीआरपीएफ के जवानों का दल कासलपाड पहुंचा। वे 'ऑपरेशन' करते इससे पहले ही चारों तरफ से उन पर फायरिंग शुरू कर दी गई। इसके बाद दूसर हमला सीआरपीएफ की 223वीं बटालियन पर किया गया। सूत्रों के अनुसार आधुनिक हथियारों से सुसज्जित करीब 50-60 नक्सलियों ने कासलपाड के पास सीआरपीएफ के जवानों पर हमला किया। नक्सली गांवों की ओट लेकर गांव में छिपकर जवानों पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहे थे। इस हमले में 14 जवान बलिदान हो गए। जबकि जवाबी कार्रवाई में 06 नक्सलवादियों के मारे जाने की खबर है। पीएलजीए सप्ताह के दौरान सुरक्षाबलों पर हमला कर उन्हें अपनी उपस्थिति का अहसास कराना नक्सलियों का पुराना चलन है। इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया। सुरक्षाबलों से यही बड़ी चूक हो गई। वे इस घात का अंदाजा नहीं लगा सके।
सही समय पर सही निर्णय नहीं लिया
इस बात की पुख्ता जानकारी खुफिया इकाइयों के पास थी कि नक्सली पीएलजीए सप्ताह मना रहे हैं। इस सप्ताह के दौरान बड़ी संख्या में वे एकत्रित होते हैं और उनके पास भारी मात्रा में गोला बारूद होता है, इसके बाद भी इस इलाके में ऑपरेशन चलाए जाने के दौरान अतिरिक्त सावधानी नहीं बरती गई। कुल मिलाकर कहा जाए तो सही समय पर सही निर्णय लेने में चूक रही।
रणनीति बनाने में हुई चूक
अभी तक मिली जानकारी के अनुसार नक्सलियों ने सीआरपीएफ के जवानों पर तीन तरफ से हमला किया। उन्होंने गांववालों की ओट लेकर लाइट मशीनगनों से जवानों पर ताबड़तोड़ फायरिंग की। सूत्र बताते हैं कि हमले के बाद जवानों ने वायरलैस पर मदद मांगी, लेकिन समय पर उन्हें मदद नहीं पहुंची। यदि ऐसा होता तो शायद इतने जवान की जान नहीं जाती। इसके अलावा नक्सलियों के लिए चलाए गए अभियान के दौरान एक भारी चूक जवानों से हुई।
उनकी तलाश में छापेमारी करने के बाद वे उसी रास्ते से 'बेस कैंप' वापस लौट रहे थे। जिस रास्ते से होकर वे गुजरे थे। जबकि नक्सलवादियों की तलाश में चलाए जा रहे ऑपरेशन का यह नियम होता है कि हमेशा रास्ता बदलकर चलें। नाम न छापने की शर्त पर पुलिस के एक आला अधिकारी ने दावा किया कि नक्सली इलाके में स्थानीय पुलिस और सीआरपीएफ के बीच हमेशा श्रेय लेने की होड़ रहती ही है। दोनों के बीच सही सामंजस्य का न होना और खाकी को मिला इतना बड़ा जख्म शायद इस दावे पर मुहर लगाता है।
सीआरपीएफ को जंगलों में तैनाती के लिए और गुरिल्ला युद्ध के लिए नहीं बनाया गया है। इस बल की शुरुआत चुनावों और दंगों के दौरान शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए हुई थी। नक्सली इलाके में 'ऑपरेशन' के लिए गुरिल्ला युद्ध में पारंगत विशेष सुरक्षा बलों की तैनाती की जानी चाहिए। ताकि दोबारा ऐसा न हो। — धु्रव कटोच, सेवानिवृत्त मेजर जनरल
हमें वामपंथी नक्सलियों से निपटने के लिए सही रणनीति बनाने की जरूरत है। नक्सलवाद पर काबू पाने के लिए अभी तक जो भी रणनीतियां बनाई गई हैं वे सही नहीं हैं। जमीनी स्तर पर हमारे द्वारा किए प्रयास लगभग शून्य हैं। पुलिस महकमे में फैले भ्रष्टाचार को हमें खत्म करना होगा यदि एक बार किसी बात का प्रण ले लिया तो उस पर अमल करना होगा। सही समय पर सही रणनीति अपनाकर ही नक्सलियों पर काबू पाया जा सकता है।
—प्रकाश सिंह, पूर्व महानिदेशक, बीएसएफ
नक्सली इलाके में लगातार तैनाती से टूट रहा मनोबल
सीआरपीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सीआरपीएफ के जवान बड़ी विषम परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। शिविर में पांच जवानों को मलेरिया हो गया है। बावजूद इसके उन्हें ड्यूटी करनी पड़ रही है। जिसके चलते जवानों का मनोबल टूट रहा है। उनका मनोबल बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। सूत्रों के अनुसार नक्सलियों को कुछ स्थानीय लोगों का सहयोग मिलता है। गांववाले उनके लिए हमदर्दी रखते हैं। जब स्थानीय पुलिस गांव में नक्सलियों की तलाश में जाती है तो वह ग्रामीणों से गाली गलौज कर मारपीट करती है। इस कारण से कई बार सुरक्षाबलों को स्थानीय लोगों का सहयोग नहीं मिल पाता। जिसकी वजह से उनका ऑपरेशन फेल हो जाता है।
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