जीवन की पहली शर्त स्वस्थ शरीर
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जीवन की पहली शर्त स्वस्थ शरीर

by
Dec 6, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Dec 2014 14:14:20

अंक संदर्भ: 16 नवम्बर,2014
आवरण कथा 'सफर सच्चे सुख का' से प्रतीत होता है कि मनुष्य को प्रकृति ने वे सभी चीजें दी हैं, जो उसके निरोगी रहने में सहायक सिद्ध हो सकती हैं। बस अगर जरूरत है तो उन्हें जानने और प्रयोग करने की। योग और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से बना प्राकृतिक सुरक्षा कवच मानव की दिनचर्या में स्वास्थ्य की देखरेख का अभिन्न अंग होना चाहिए। आज के समय में जब अधिकाधिक लोग विभिन्न रोगों से पीडि़त नजर आ रहे हैं तो उसके कारण में सिर्फ देखने से एक बात ही स्पष्ट होती है कि वह प्रकृति से बिल्कुल दूर चले गए हैं, जिसका परिणाम है कि वह किसी न किसी रोग से पीडि़त हैं। आज जरूरत है कि हम सभी लोग प्रकृति की दी गई अमूल्य जड़ी-बूटियों को पहचाने और अपने जीवन को सार्थक बनाएं।
—हरिओम जोशी, भिण्ड(म.प्र.)
ङ्म इस अंक के संपादकीय में वास्तव में अनुभवों को निचोड़ कर संजोया गया है। स्वास्थ्य के प्रति महत्वपूर्ण जानकारी से संलग्न अंक है। सरकार को चाहिए कि स्वच्छ भारत अभियान की तरह स्वस्थ भारत अभियान भी चलाना चाहिए। अफसोस इस बात का है कि विदेशों की भांति यहां पर भी कृत्रिम पदार्थों का प्रयोग किया जा रहा है,जो स्पष्ट तौर पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जो चीजें आज विदेशी छोड़ रहे हैं, भारतवासी उसे अपना रहे हैं। समाज और सरकार को स्वयं इस ओर ध्यान देना होगा क्योंकि स्वस्थ भारत ही एक शक्तिशाली देश बन सकता है।
—अखिलेश कुमार साह
नाहरबाग,फैजाबाद(उ.प्र.)
ङ्म अंग्रेजी दवाइयों का सिर्फ एक ही काम है कि तत्काल आराम दो और बाद में उससे बड़ा रोग दे दो। साथ ही 'काटो-चीरो-सिल दो' जिसे आपरेशन कहा जाता है, बस इसे ही अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति कहते हैं। इसके आगे इस प्रणाणी का कोई जोर नहीं चलता है। भारतीय चिकित्सा प्रणाली, योग और आयुर्वेद मन-बुद्धि और शरीर में समतुल्यता संयमित जीवन-सीमित भोजन हमारी रीति रही है-सादा जीवन उच्च विचार। निरोगी जीवन,सहयोगी मनन हमारा विधान रहा है। 'रोग' कैसे नहीं आ सकता इस पर हमारा जीवन व्यवहार होना चाहिए। आज जरूरत है भारतीय आयुर्वेद की वैध शिक्षा का सशक्त अभियान एवं संदेश फैलाने की ।
—जमालपुरकर गंगाधर
श्रीनीलकंठ नगर,तेलंगाना
दिखती छाप भारत की
महात्मा गंाधी के बाद गुजरात की धरती से स्वतंत्रता के बाद भारत के राजनीतिक क्षितिज पर उभरे नरेन्द्र मोदी पहले व्यक्ति हैं, जिनके पीछे हमारी सहस्रों वर्षों की लोक परम्परा की असीम शक्ति है। 15 अगस्त को राजपथ से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो संबोधन दिया वह अपने आप में अनूठा था। यह पहले प्रधानमंत्री हैं, जिनके देश-विदेश के उद्बोधनों में,कार्य प्रणाली में,सूत्रों में,घोष-कथनों में,भारतीय परम्परा की लोकवाणी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। इसी लोकपरंपरा से अपने जुड़ाव के कारण वे मीडिया के माध्यम से देश के विकास कार्यों को व्यापक जन अभियान बनाने वाले पहले इतिहास पुरुष हैं।
—मालती शर्मा, मधु अपार्टमंंंेट,पुणे(महा.)
दोमुंहा चरित्र
इस्लाम में ब्याज हराम है। मत आधारित आरक्षण भी योग्यता पर ब्याज जैसा ही है। सवाल है क्या आरक्षण की मांग हराम नहीं है? मुस्लिम लीग,सिमी,उलेमा काउन्सिल इत्यादि मजहब आधारित संगठन जब तक रहेंगे,तब तक राष्ट्रीय मुख्यधारा तो दूर की बात है,पारम्परिक भाईचारा भी होना संदिग्ध है। मत के नाम पर विशेषाधिकार का मांगा जाना अथवा दिया जाना,राजनीतिक भ्रष्टाचार का ही एक रूप और सामाजिक सौहार्द के क्षेत्र में एक बड़ा घोटाला है। मत के नाम पर सामाजिक समरसता,शैक्षिक,सांस्कृतिक तथा आर्थिक पुनरुत्थान के संगठन बने तो कोई बात नहीं लेकिन बात तो तब बिगड़ती है जब मजहब के नाम पर अलहदा राजनीतिक दल बनाकर देर-सबेरे अलगाववाद की आग व सड़ांध पैदा की जाती है।
—महेन्द्र प्रताप गुप्त
विद्याधर नगर,जयपुर(राज.)
ङ्म हमारा शरीर इस जीवन में सबसे अमूल्य वस्तु है, जैसा हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि 'शरीर माद्यं, खलु धर्म साधनम्'। लेकिन इन सबके बाद भी कुछ लोग हैं जो अपने शरीर के प्रति घोर लापरवाह रहते हैं और इसे किसी दूसरे का शरीर समझकर इसके साथ अत्याचार करते हैं। लेकिन असल में वह नहीं जानते कि यह शरीर उनका है और जो वे कर रहे हैं अपने ही शरीर के साथ कर रहे हैं। सभी को चाहिए कि अपने शरीर के स्वास्थ्य के प्रति सदैव सजग रहें और अधिक से अधिक प्रकृति के सन्निकट रहें।
—कृष्णपाल सिंह, निर्मल नगर,इंदौर (म.प्र.)
उभरता भारत
आज भारत नई शक्ति के रूप मंे उभर रहा है। इसके पीछे हमारे वैज्ञानिकों की अथक मेहनत का परिणाम है। आज हम विज्ञान के क्षेत्र में विश्व पटल पर एक अलग स्थान बना चुके हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर अपना यान स्थापित कर विश्व को एक संदेश दिया है कि हिन्दुस्थान अब पिछड़ा देश नहीं बल्कि अब एक नई शक्ति के रूप में विश्व के समक्ष खड़ा है।
—रूपसिंह सूर्यवंशी, चित्तौड़गढ़ (राज.)
चिंता की बात
कश्मीर में 'आईएसआईएस' के झंडे व समर्थक देखे जाना भारत के लिए चिंता का विषय है। जिस प्रकार इराक आदि देशों में इनके द्वारा किस प्रकार खूनी खेल खेला जा रहा है वह पूरा विश्व देख रहा है। भारत सरकार को कश्मीर में हुई इस घटना को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि कश्मीर में ऐसे लोगों को बरगलाकर आसानी के साथ आतंकी अपने मंसूबों को अंजाम दे सकते हैं।
—दीपक कुमार
साल्वन,करनाल(हरियाणा)
नापाक हरकतें पाक की
विश्व पटल पर पाकिस्तान ने अपनी छवि खराब की है। भारत के प्रति पूर्वाग्रह,छद्म युद्ध और कश्मीर राग जैसी बात अलापकर वह पूरे विश्व में रोना रो रहा है। जबकि सत्य यह है कि वह भारत के खिलाफ प्रतिक्षण छद्म युद्ध छेड़े रखता है। पाकिस्तान की नापक हरकतें आज पूरा विश्व देख रहा है ।
—हरिहर सिंह
जंबरी बाग नसिया (म.प्र.)
ङ्म यह आज सभी को पता है कि पाकिस्तान के शासक खुलेआम आतंकवादियों का साथ देते हैं। जिसका सीधा असर यह होता है कि आतंक की फसल और तेजी से लहलहाने लगती है। इन आतंकियों का पहला निशाना भारत ही होता है, लेकिन कहीं न कहीं आज यह भी दिखने लगा है कि यह आतंकी फसल अब उसके लिए ही खतरा बनती जा रही है। जिसका प्रमाण अभी हाल ही में दो नवंबर को सीमा पर हुए धमाके भारतीय सैनिकों के लिए था लेकिन इसका शिकार स्वयं पाक के लोग हो गए। लेकिन दुख की बात यह है कि इन सबके बाद भी उसको समझ में नहीं आता।
—शशिकांत त्रिपाठी
आवास विकास कालोनी,गोरखपुर (उ.प्र.)
परिवर्तन आवश्यक
भारत विश्व का सबसे बड़ा तथा प्राचीन लोकतांत्रिक राष्ट्र है। भारत की धरती पर शासकों का शासन बदला परन्तु धरती की चेतना और संस्कृति का स्वरूप नहीं बदला। क्योंकि भारत की धरती पर चलने व बढ़ने वाली संस्कृति लोक भावना के अनुरूप पली बढ़ी। देश अंग्रेज शासकों का गुलाम रहा परन्तु यहां की लोक चेतना और लोक भावना ने कभी भी दासत्व स्वीकार नहीं किया। परिणामस्वरूप अंग्रेजों को जाना पड़ा तथा धीरे-धीरे उनके द्वारा थोपे गए नियमों को भी हटना पड़ा। लेकिन अभी भी कुछ चीजें रह गई हैं जिन्हें बदलना आवश्यक है। आज भारत की लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तनों की आवश्यकता है, जिस दिन इस प्रक्रिया में उचित परिवर्तन हो गया उस दिन भारत को विश्व में गौरवशाली राष्ट्र बनने से कोई भी नहीं रोक सकता।
—डॉ. प्रभात अवस्थी
फतेहगढ़-फर्रूखाबाद(उ.प्र.)
खुराफाती दिमाग
समय-समय पर देश में ऐसी फिल्में बन रही हैं, जिन फिल्मों में इस्लामी आतंकवाद तथा जिहादियों को सही ठहराने का दुस्साहस किया जाता है। इन फिल्मों में भारतीय सैनिकों को तो अत्याचारी बताया ही जाता है साथ ही हिन्दू धर्म के बारे में निरर्थक बातें की जाती हैं। सवाल है कि क्या सेंसर बोर्ड ऐसी फिल्मों को गंभीरता से देखता नहीं है? आखिर इन फिल्मों का प्रसारण कैसे कर दिया जाता है? सरकार को चाहिए कि संेसर बोर्ड को कड़ा निर्देश दे कि इस प्रकार की फिल्मों को गंभीरतापूर्वक देखा जाना चाहिए जिसमें हिन्दू धर्म, भारतीय सेना व भारत की छवि को ठेस पहुंचाने का थोड़ा भी मंतव्य प्रदर्शित होता हो।
—सताराम बेनीवाल, वेडि़या (म.प्र.)
गोमाता हो राष्ट्र माता
देश में गोमाता की दशा को पूरा देश जानता है। सुबह होते ही लाखों गायों की निर्मम हत्या कर दी जाती है। कसाइओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि कई स्थानों पर वह खुलेआम गोवंश कटने के लिए ले जाते हैं और सब देखते रहते हैं। सरकार को चाहिए तत्काल गोहत्या पर अंकुश लगाए।
—मनोज सेन, नागदा, उज्जैन (म.प्र.)

फूट अवनति का कारण
आदिकाल से जहां तक इतिहास देख सकें उसमें निकलकर आता है कि हिन्दू जो एक सर्वश्रेष्ठ जाति है जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता की संवाहक है। उसके शिखर पर न होने का कारण केवल मात्र आपस की फूट है। यदि आपस की फूट न होती तो आज इतिहास कुछ और ही होता। गौर करें तो देखने में आता है कि हिन्दुओं में मतैक्य नहीं है। वर्तमान में देख लें तो हिन्दुओं के कल्याण एवं विकास के नाम पर सैकड़ों संस्थाएं और अलग-अलग संगठन बने हुए हैं पर इन सबमें समस्या यह है कि कोई भी एक संगठन दूसरे से मिलकर चलना नहीं चाहता। सभी अपनी-अपनी बात मनवाने के लिए कार्य कर रहे हैं। जबकि गौर से देखें तो सबका एक ही लक्ष्य है। लेकिन इस सबका फायदा राजनीतिक पार्टियां उठाती हैं और समाज में तुष्टीकरण की विषवेल बोती हैं, जो फूट का कारण बनती है। इसी कारण आज बहुसंख्यक होने के बाद भी हिन्दू समुदाय की कई क्षेत्रों में दयनीय दशा है। आज हमें सावधान होना होगा और आपसी फूट और अहंकार से स्वयं व समाज को दूर करना होगा। कंधे से कंधा मिलाकर हर व्यक्ति के सुख-दुख में भागी होना होगा। तभी हम पुन: दिग्विजयी हो सकते हैं, तभी हम देश में हो रही आतंकी गतिविधियों से मुक्त हो सकेंगे। सही बात पर सरकार का समर्थन और गलत बात पर विरोध यह जनता का विशेष अधिकार है और समय-समय पर इसका प्रयोग होना चाहिए।
—हितेश कुमार शर्मा
गणपति भवन,सिविल लाइंस,बिजनौर(उ.प्र.)
जग में मान बढ़ेगा
अपनी भाषा का नहीं, जिनको कुछ भी ज्ञान
जर्मन को बतला रहे, वे भारत की शान।
वे भारत की शान, छात्र संस्कृत पढ़ लेंगे
दुनिया की हर भाषा वे जल्दी समझेंगे।
कह 'प्रशांत' भारत का जग में मान बढ़ेगा
अपनी भाषा-भूषा से गौरव जागेगा॥
—प्रशांत

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