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एक बार एक लड़का अपने विद्यालय की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था। वह सुबह-सवेरे घर से निकलता, दोपहर तक लोगों के घरों के दरवाजे-दरवाजे जाकर सामान बेचता। सामान बेचकर उसे जो पैसे मिलते उससे वह विद्यालय की फीस भरता और अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताएं पूरी करता। एक बाद रात को वह जमकर पढ़ाई करता।
एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी। जब भूख बर्दाश्त से बाहर हो गई तो उसने यह तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांगकर खा लेगा।
जैसे ही उसने पहला दरवाजा खटखटाया तो एक लड़की ने दरवाजा खोला। लड़का शर्म के मारे खाना तो मांग नहीं सका लेकिन वह घबराया था तो उसने एक गिलास पानी मांग लिया।
लड़की उसकी स्थिति देखकर समझ गई कि वह भूखा है। इसलिए वह एक बड़ा गिलास दूध का ले आई और लड़के ने दूध पी लिया।
कितने पैसे दूं? लड़के ने पूछा। पैसे किस बात के? लड़की ने जवाब में कहा-मां ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए ?
तो फिर मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूं, यह कहकर वह लड़का वहां चल पड़ा। लड़का जैसे ही वहां चला तो उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव थे। दूध पीने से उसके शरीर में ताकत भी आ गई थी। साथ ही ईश्वर पर उसका भरोसा और भी ज्यादा हो चला था। वह हृदय से बार बार उसका लड़की को धन्यवाद दे रहा था।
बात बहुत पुरानी हो गई। कई वर्षों बाद अचानक वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गई। स्थानीय डॉक्टर जब उसका इलाज नहीं कर सके तो उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भिजवा दिया। वहां पर विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया जाता था। जैसे ही डॉक्टर ने लड़की और उसके कस्बे का नाम सुना तो उसकी आंखों में चमक आ गई। वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया। उसने उस लड़की को देखा और एकदम से उसे पहचान लिया। हालांकि डॉक्टर ने उसे यह महसूस नहीं होने दिया कि वह उसे पहचान गया है। उसने तय किया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन आसमान एक कर देगा। डॉक्टर ने लड़की का इलाज शुरू कर दिया। लड़की की सेहत सुधरने में महीनों का समय लगा। डॉक्टर की मेहनत और लगन रंग लाई। वह धीरे-धीरे ठीक होने लगी और अब उसकी जान को कोई खतरा नहीं रहा, वह बिल्कुल ठीक हो गई।
डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जाकर उस लड़की के इलाज का बिल लिया। उन्होंने उस बिल के एक कोने पर कुछ लिखा और उसे लड़की के पास भेज दिया। लड़की की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। वह बिल देखकर घबरा गई। उसे लगा कि वह बीमारी से तो बच गई लेकिन अस्पताल का बिल जरूर उसकी जान ले लेगा। इसके बाद लड़की ने हिम्मत करके धीरे से बिल के लिफाफे को खोला। उसकी नजर बिल के कोने पर लिखे नोट पर गई, जहां लिखा था कि एक गिलास के दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है ? नीचे उस नेक डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे। खुशी और अचम्भे से उस लड़की की आंखों से दो बूंद आंसू निकलकर गालों पर ढलक पड़े। उसने दोनों हाथ ऊपर उठाए और कहा कि हे भगवान आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। -बाल चौपाल डेस्क
प्रेरक प्रसंग – परमात्मा को पाने का मार्ग
रामानुज एक विख्यात संत हुए हैं। एक बार वह किसी गांव में ठहरे हुए थे। बहुत से लोग उनके दर्शन करने आए। उनमें से एक आदमी ने रामानुज से कहा-मुझे परमात्मा को पाना हैं,मार्ग बतलाइए, रामानुज बोले, तूने कभी किसी से प्रेम किया या नहीं ? वह बोला, मैं प्रेम के झंझट में कभी नहीं पड़ा। मुझे तो परमात्मा को खोजना है, पाना है, आदमी ने उत्तर दिया। रामानुज ने दूसरी बार फिर यही प्रश्न किया तो उसने वही उत्तर दिया। रामानुज फिर बोले, सोचकर बताओ, जरूर किसी न किसी से थोड़ा बहुत प्रेम किया होगा तूने। आदमी ने सोचा कि यदि मैं कहूंगा कि मैने प्रेम किया है तो संत जी कहेंगे कि पहले प्रेम के रोग से छुटकारा पाओ, फिर मेरे पास आना। इसलिए उसने धृष्टतापूर्वक कहा कि उसने कभी प्रेम की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखा।
उसके मुंह से ऐसा सुनकर रामानुज बोले, बस तो मुझे क्षमा करो भाई, तुम कहीं और जाओ व परमात्मा की खोज करो। मेरा अनुभव तो यह कहता है कि जिस आदमी ने जिंदगी में कभी प्रेम नहीं किया, वह परमात्मा को पाने की बात तो दूर उनके निकट तक भी नहीं पहुंच सकता। परमात्मा को पाने के लिए पहले उसको पुत्र-पुत्रियों से प्रेम करना सीखना होगा। आदमी के भीतर प्रेम होना चाहिए। चाहे वह थोड़ी मात्रा में ही क्यों न हो ? उस प्रेम को इतना बड़ा रूप दिया जा सकता है कि परमात्मा को पाया जा सके। ल्ल प्रतिनिधि
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