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गांधी शांति प्रतिष्ठान और 'सेंटर फॉर हिमालयन एशियन स्टडीज एंड एंगेजमेंट्स' (सीएचएएसई) द्वारा संयुक्त रूप से एक संगोष्ठी गत 22 नवम्बर को नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित की गई। संगोष्ठी का विषय था- चीन में लोकतंत्र आंदोलन के समक्ष चुनौतियां। संगोष्ठी में 'ताइवान फाउंडेशन फॉर डेमोक्रेसी' की उपाध्यक्ष मेसिंग यांग, 'ज्वाइंट वर्किंग कमेटी फॉर दा चाइनीज डेमोक्रेटिक मूवमेंट' की सचिव चिन जिन, गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्षा सुश्री राधा भट्ट, चेज के चेयरमैन विजय क्रांति और गांधी शांति प्रतिष्ठान के मंत्री सुरेन्द्र कुमार आदि ने भाग लिया। मेसिंग यांग ने कहा कि तिब्बत में जो हिंसा हो रही है उसके लिए चीन ही उत्तरदायी है। इसलिए यह समस्या तिब्बत की नहीं, बल्कि चीन की है। ताइवान के लोगों को विश्वास है कि वे ताइवानी हैं, चीनी नहीं। ताइवान और हांगकांग चीन के कारण ही आज बुरे दौर का सामना कर रहे हैं। दोनों देशों को भरोसा है कि एक बड़ा लोकतंत्र होने के कारण भारत हमारी समस्याओं को समझता है ओर लोकतंत्र स्थापना का समर्थन भी करता है। चिन जिन ने कहा कि चीन की सरकार सशक्त है, इसलिए वह विरोध को दबा देती है, लेकिन हमें विपक्ष को सशक्त बनाना है और लोकतंत्र के पक्ष में राजनैतिक रिक्तता को भरना है। वक्ताओं ने हांगकांग और ताइवान में लोकतंत्र के लिए होने वाले संघर्षों पर विस्तृत चर्चा की चाहे वे छात्र आंदोलन हों अथवा इन देशों के सामान्य नागरिकों द्वारा जारी प्रदर्शन।
विभिन्न स्थानों पर दस हजार से भी अधिक लोगों ने धरने प्रदर्शन किए हैं और जेल भरो आंदोलन चलाए हैं। इनका उद्देश्य बीजिंग पर दबाव बनाना था ताकि वह ब्रिटिश सरकार के हाथों से 1997 में मुक्त हुए हांगकांग में लोकतंत्र स्थापना के अपने वायदे को पूरा करे। संगोष्ठी में उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों व शिक्षाविदों ने इन दोनों देशों को चीन के चंगुल से मुक्त होने के साथ तुरंत लोकतंत्र स्थापना की मांग पर सहमति जताई। ल्ल
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