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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने सम्मेलन में कहा कि समस्त संसार को मानवता का ज्ञान देने का दायित्व परंपरा से भारत का रहा है, जिसकी आवश्यकता संसार को सदा रहेगी। हिन्दू का अस्तित्व सबसे पुराना है। ऐसे हिन्दू समाज की पूरी दुनिया को आवश्यकता है। 50 देशों के प्रमुख हिन्दू यहां एकत्रित हुए हैं। हम किसी भय से ग्रस्त नहीं हैं। हम किसी प्रतिक्रिया में काम नहीं करते, न ही किसी के विरोध में हम काम करते हैं।
उन्होंने आध्यात्मिक गुरु परम पावन दलाई लामा को उद्धृत करते हुए कहा कि फेथ, ह्यूमैनिटी की आवश्यकता तो संसार को सदा थी, सदा है, सदा रहेगी और उसे देने का काम हमको करना है।
उन्होंने कहा कि एक समाज, एक राष्ट्र और एक देश के नाते भारत के अस्तित्व का यही प्रयोजन है। इसीलिये पचास से अधिक देशों से हिन्दू के नाते, हिन्दू समाज का विचार करते हुए सम्पूर्ण विश्व को आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान कर सकें, ऐसा रूप हिन्दू समाज को देने के लिये क्या किया जाये, इसका विचार करने के लिये प्रतिनिधि यहां आये हैं। श्री भागवत ने कहा कि जहां तक उपयुक्त समय की बात है तो समय को तो पकड़ना पड़ता है। उपयुक्त समय वही है जब हम काम शुरू कर दें।
विकास की वर्तमान अवधारणा पर चुटकी लेते हुए श्री भागवत ने कहा कि विकास करने जाते हैं तो पर्यावरण का सफाया कर देते हैं, पर्यावरण को ठीक करना है तो विकास को रोक देते हैं। व्यक्ति को स्वतन्त्रता देनी है तो परिवार का या समाज का विचार छोड़ देते हैं। समाज का विचार करना है तो व्यक्ति को दबाते हैं।
उन्होंने इच्छाओं की पूर्णता में संतुलन को परम आवश्यक बताया और कहा कि विविधता में एकता का दर्शन करके ही सही विकास प्राप्त हो सकता है। यह संतुलन चूंकि न जड़वादी और कोरे पंथिक विचार से मिला और न ही पूर्ण समाजवादी या पूर्ण व्यक्तिवादी विचार से मिला। इसलिये सारी दुनिया के चिंतक 2000 वर्ष तक प्रयोग करते-करते थकने के बाद किसी तीसरे पक्ष की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे अब सोच रहे हैं कि समाधान हिन्दू ज्ञान एवं परम्परा में ही मिलेगा।
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