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खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर भारत को बड़ी सफलता मिली है। दरअसल, खाद्यान्न के सार्वजनिक भंडारण के मुद्दे पर भारत व अमरीका के बीच सहमति बन गई है। इससे विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में व्यापार सुगमता करार (टीएफए) के कार्यान्वयन का रास्ता खुल गया है। दोनों देशों के बीच 'शांति उपबंध' को कायम रखने पर सहमति बनी है। साथ ही अमरीका के साथ डील से ट्रेड फैसिलिटेशन करार लागू करना संभव होगा। निश्चित ही भारत के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को बिना किसी अड़चन के जारी रखने की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण है। भारत व अमरीका में यह सहमति बन गई है कि खाद्य सुरक्षा भंडारण के मुद्दे का स्थाई समाधान होने तक 'शांति उपबंध'अनिश्चितकाल तक जारी रहेगा। शांति उपबंध के तहत भारत के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को उचित समाधान निकलने तक डब्ल्यूटीओ में चुनौती नहीं दी जा सकेगी। इससे पहले बाली समझौते में सदस्य देशों को दूसरे डब्ल्यूटीओ समझौतों के तहत चुनौती दिए जाने से बचने के लिए सुरक्षा 2017 तक दी गई थी। इसके तहत खाद्यान्न भंडारण के लिए दी जाने वाली सरकारी छूट को लेकर विकासशील देशों के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में चुनौती नहीं देने का प्रावधान है। हालांकि सफल द्विपक्षीय वार्ता का श्रेय प्रधानमंत्री 'नरेंद्र मोदी की सितंबर की अमरीका यात्रा को देते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा कि 'मोदी की अमरीका यात्रा के बाद भारत के रुख को लेकर समझ बेहतर हुई है।'
भारत के सख्त रवैये के कारण तीन माह से गतिरोध बना हुआ था। अमरीका और डब्ल्यूटीओ के प्रमुख समेत तमाम विकसित देश लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि कृषि और खाद्य सरकारी छूट के मुद्दे पर भारत का अडि़यल रुख डब्लूटीओ समझौते को पटरी से उतार रहा है। बहरहाल, डब्ल्यूटीओ में अलग-थलग पड़ चुके भारत को एक बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। अमरीका ने भारत की इस शर्त को मान लिया है कि वह समझौते पर तब तक दस्तखत नहीं करेगा, जब तक कि खाद्य सुरक्षा कानून की अड़चनें दूर नहीं कर ली जाती। 10-11 दिसंबर को डब्ल्यूटीओ की अहम बैठक होने वाली है। डब्ल्यूटीओ में खाद्य सुरक्षा से जुड़ा नया मसौदा पेश किया जाएगा। ताकि व्यापार सुगमता करार पर दस्तखत हो सकंे ।
बहरहाल भारत और अमरीका के बीच हुए इस समझौते से पटरी से उतरी डब्ल्यूटी की गाड़ी अब फिर से तेजी से आगे बढ़ सकेगी। इसके लिए भारत और अमरीका के बीच जो सहमति हुई है उसके तहत खाद्यान्नों की सरकारी खरीद और राशन प्रणाली (पीडीएस) के तहत दी जाने वाली सरकारी छूट के मुद्दे को हल करने का मसौदा डब्ल्यूटीओ की आम सभा के सामने रखा जाएगा।
भारत ने साफ किया था कि वह खाद्य छूट मामले का स्थायी समाधान होने तक टीएफए का समर्थन नहीं कर सकता, जिसके तहत वैश्विक सीमा-शुल्क मानदंडों को आसान बनाया जाना है। भारत ने डब्ल्यूटीओ से कहा है कि वह कृषि सरकारी छूट के आकलन के लिए मानदंडों में संशोधन करे ताकि देश बिना डब्ल्यूटीओ के मानदंडों के उल्लंघन के किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज की खरीद कर उसे सस्ती दर पर गरीबों को बेच सके। डब्ल्यूटीओ के मौजूदा मानदंडों के तहत इसका दायरा कुल खाद्यान्न उत्पादन के मूल्य के 10 प्रतिशत तक होना चाहिए, हालांकि छूट की मात्रा का आकलन दो दशक पहले की कीमत के आधार पर किया जाता है।
हालांकि विकासशील और गरीब देशों में दी जाने वाली कृषि सरकारी छूट का विरोध सबसे अधिक अमरीका का, यूरोपीय संघ और कनाडा करते रहे हैं, जो खुद अरबों डॉलर की घरेलू और निर्यात छूट देतें है और ये विकसित देश सरकारी छूट में कितना खर्च करते हैं,उसे इस बात से समझा जा सकता है। अमरीका आज भी 6़5 करोड़ लोगों को प्रति व्यक्ति 385 किलोग्राम खाद्य प्रदान करता है। यह खाद्य कूपन और बाल कार्यक्रम आदि के माध्यम से मिलती है। इसके दूसरी तरफ भारत में जहां दो तिहाई से ज्यादा लोग 30 रुपए प्रतिदिन से कम खर्च करते हैं, वहां भारत सरकार यदि (पीडीएस) के तहत भूख के साथ जीने वाले 47़5 करोड लोगों को 1620 रुपए वार्षिक खर्च करके 58 किलोग्राम सस्ता अनाज देती है तो अमरीका का और उनके मित्र देशों को दिक्कत होती है। भारत लगभग बिलकुल नहीं दे रहा थाय कायदे से तो भारत में यह खर्चा बाद में बढ़ना शुरू हुआ पर डब्ल्यूटीओ में हम फंस गए।
असल में मुक्त व्यापार में असंगति पैदा करने वाली सरकारी छूट को रोकने के लिए डब्ल्यूटीओ चाहता है कि कृषि समझौते के तहत कृषि और खाद्य सरकारी छूट खाद्यान्न फसलों के मूल्य के 10 फीसद से ज्यादा नहीं होना चाहिए। लेकिन भारत के मामले में चावल और गेहूं को लेकर यह सीमा बहुत जल्दी खत्म होने वाली है। अगर सरकार आने वाले दिनों में इस सरकारी छूट में कटौती करती है तो यह राजनैतिक रूप से घातक हो सकता है। वहीं इस सरकारी छूट की गणना के लिए तमाम तरह के आंकड़े भी देने की शर्त है। जो मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। -रवि शंकर
(लेखक, सेन्टर फर इन्वायरमेंट एण्ड फूड सिक्योरिटी में रिसर्च -एसोशिएट हैं)
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