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देवबंदी मसलक के मुसलमानों के सामाजिक एवं धार्र्मिक संगठन जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं दारुल उलूम के हदीस के विद्वान मौलाना अरशद मदनी के रुख से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को लेकर नरमी के संकेत मिल रहे हैं। जमीयत ने हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द की भावना की मजबूती की बड़ी पहल शुरू की है। जमीयत की देवबंद में हुई दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में उसके पदाधिकारियों का खास केन्द्र हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द की मजबूती पर रहा। मौलाना अरशद मदनी ने अपने बयान में जोर देकर कहा कि जमीयत की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कोई लड़ाई नहीं है। यदि वे मुसलमानों के करीब आना चाहते हैं तो हम भी उनकी ओर अपना हाथ बढ़ाने में पीछे नहीं रहेंगे। जरूरत इस बात की है कि हिन्दुवादी ये संगठन अपने नजरिए में बदलाव लाएं।
लोकसभा चुनावों के नतीजों से यह साफ हो गया कि देश का 16 करोड़ मुस्लिम समुदाय राजनीतिक रूप से पहली बार अलग-थलग पड़ गया है। लगता है जमीयत ने इसे ठीक और सही समय पर महसूस किया। आम मुसलमान जमीयत की इस पहल की सराहना कर को सराह रहा है। मदनी ने जमीयत की कार्यसमिति और आम जलसे में मदरसों से जुड़े उलेमा से मदरसों से बाहर आने और हिन्दू-मुस्लिम के बीच की खाई को पाटने का काम करने की भावुक अपील की। देश भर में दीनी मदरसों का जाल फैला है।
महात्मा गांधी के साथियोें में शामिल रहे देवबंद के प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी एवं इस्लामिक विद्वान मौलाना हुसैन अहमद मदनी के बेटे मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि लोकसभा चुनाव में पंथनिरपेक्ष ताकतें कमजोर हुई हैं। इससे अल्पसंख्यकों मंे अपनी सुरक्षा और न्याय की अनदेखी की आशंका बढ़ गई है। यह तभी दूर हो सकती है कि जब देश का पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण और उसका पोषण करने वाली राजनैतिक एवं सामाजिक ताकतें फिर से मजबूत हों।
मौलाना मदनी कहते हैं कि यदि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार का दृष्टिकोण और व्यवहार हिंन्दू और मुसलमानों के प्रति एक समान होता है तो हम उनके साथ खडे़ हो सकते हैं। वह कहते हंै कि जब जमीयत अतीत में कांग्रेस, सपा और बसपा के साथ खड़ी हो सकती है तो भाजपा से फिर कैसा परहेज हो सकता है। हमने मदरसों और दूसरी इस्लामिक संस्थाओं से जुडे़ मुसलमानों से कहा है कि वे आगे आएं और अपने हिन्दु भाइयों के साथ मिलकर सौहार्द की भावना बढाने के लिए काम करें।
देश के बदले सियासी माहौल और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अभी के पांच-छह माह के क्रियाकलापों ने उनसे असहमत लोगांे, संस्थाओं और संगठनों की जुबान भी बदल रही है। देश की एकता और अखंडता के लिए इसे सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है। गौरतलब है कि दारुल उलूम नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का समर्थन कर पहले ही बड़ी पहल कर चुका है। ऐसे में यदि जमीयत एक कदम आगे बढ़ाती है तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
देवबंद के आम और खास दोनों तरह के मुसलमानों का कहना है कि प्रधानमंत्री ने देश के मुसलमानों पर कई बार भरोसा जताकर उनका विश्वास जीतने का काम किया है। डॉ़ नजरुल इस्लाम एवं हकीम असलम अंसारी का कहना था कि संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) में प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत का मुसलमान दहशतगर्दी में शामिल नहीं है। उनके इस बयान से मुसलमानों की छवि सुधरी और उनमें भरोसा बढ़ा, जबकि पिछली सरकारों के दौरान मुसलमानों पर आतंकवादी होने के आरोप चस्पा कर दिए गए थे। एक इस्लामिक विद्वान के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी की सरकार प्रगतिशील है और सही दिशा में आगे बढ़ रही है और उससे मुस्लिम हितों को किसी तरह का कोई खतरा नहीं दिखाई देता है। उनके अनुसार रा.स्व.संघ की सोच भी बदल रही है और सरसंघचालक श्री मोहन राव भागवत मुसलमानों से शाखाओं में जाने की अपील करते दिख रहे हैं। एक अन्य आलिम के अनुसार अभी तक जमीयत का दायरा मदरसों तक सीमित था। नई पहल करके वह आम मुसलमानों और उनकी समस्याओं से सीधी जुड़ जाएगी और उसके दायरे में फैलाव होगा। इसका सीधा लाभ मुसलमानों और देश दोनों को होगा।
जमीयत के रुख में नरमी के संकेत इससे भी मिलते हैं कि पहली बार उन्होंने सपा, कांग्रेस एवं अन्य सेकुलर दलों के नेताओंे को अपने जलसे में आमंत्रित नहीं किया। जबकि पूर्व में जमीयत के दोनों धड़ों के आम जलसो के मंचांे की शोभा मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, कपिल सिब्बल, शीला दीक्षित, रीता बहुगुणा जोशी, ममता बनर्जी आदि नेता बढ़ाते रहे हैं।
जमीयत की बैठक में अगले वर्ष फरवरी मार्च में जमीयत का अधिवेशन दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित करने का निर्णय भी लिया गया। बैठक में जमीयत के तमाम पदाधिकारी मौलाना अब्दुल अलीम फारुकी, हबीबुर्रहमान आजमी, मौलाना मुस्तकीम, उ. प्र. के अध्यक्ष मौलाना अशहद रशीदी, महासचिव हसन अहमद, बिहार के मुफ्ती शाहबुद्दीन, आंध्रप्रदेश के मुफ्ती गयासुद्दीन, पंजाब के मौलाना खालिद, दिल्ली के मुफ्ती अब्दुल रज्जाक, कारी मोइन, मौलाना हकीमुल्ला,गुलजार आजमी, हबीबुर्रहमान खैराबादी, फजलुर्रहमान, नजर मौहम्मद, असजद मदनी आदि विशेष रूप से शामिल थे। -सुरेंद्र सिंघल
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