गांवों में कैंसर का कहर
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आदित्य भारद्वाज
पाच लाख रुपए निजी अस्पतालों में इलाज के लिए लगाने के बाद जब कुछ नहीं बचा तो अब सफदरजंग में इलाज करवाने जाना पड़ता है। पानी हरे रंग का है। पीने में खारा है। कई बार गांव से पानी के नमूने लिए गए हैं पर होता कुछ नहीं है। लोगों ने घरों में आरओ लगवा लिए हैं, लेकिन पशुओं का काम तो आरओ के पानी से नहीं चल सकता। गाय और भैंस जैसा पानी पीएंगे वैसा ही दूध भी देंगे। ऐसे में हम करें तो क्या करें? ये शब्द ग्रेटर नोएडा परिक्षेत्र में स्थित खेड़ा धर्मपुरा गांव के सतपाल के हैं। उनकी पत्नी बाला को 'ब्रेस्ट कैंसर' है। तीन वर्ष पहले उन्हें इस बात का पता चला। लाखों रुपए खर्च करके इलाज कराया। बाला ठीक भी हो गई, लेकिन छह महीने पहले दोबारा कैंसर उभर आया। ग्रेटर नोएडा के इस परिक्षेत्र में स्थित दस गांवों की कमोबेश यही स्थिति है। इन गांवों में कैंसर से दर्जनों मौतें हो चुकी है। किसी गांव में कम तो किसी में ज्यादा, लेकिन ऐसा कोई गांव नहीं है जहां कैंसर के पीडि़त नहीं है। जो लोग कैंसर से पीडि़त हैं वे कर्जा लेकर अपना इलाज कराने के लिए मजबूर हैं। बहुत से लोग ऐसे हैं जिनकी सारी जमा पूंजी खत्म हो चुकी है। वे बेचारे सरकारी अस्पतालों में जाकर इलाज कराने के लिए मजबूर हैं। इन गांवों में बच्चे, बूढ़े, जवान और बुजुर्ग हर तरह के लोग कैंसर पीडि़त हैं। यहां तक किआठ वर्ष का एक बच्चा भी ऐसा है जिसकी गर्दन से कैंसर का एक ट्यूमर निकाला जा चुका है और दूसरे का इलाज चल रहा है।
ग्रेटर नोएडा परिक्षेत्र के बिसरख खंड में सादोपुर एक ऐसा गांव है जहां सबसे ज्यादा मौत कैंसर से हुई हैं। इस गांव की आबादी करीब 4500 है। ग्रामीणों के मुताबिक पांच साल में तकरीबन 50 लोग कैंसर से मर चुके हैं। इसके अलावा 30 से ज्यादा लोग कैंसर से पीडि़त हैं। ये वे लोग हैं जिनके बारे में गांव वालों को पता है। हालांकि ग्रामीणों का दावा है कि गांव में ऐसे और भी लोग हैं जिनको कैंसर है लेकिन उनके बारे में किसी को जानकारी नहीं है, क्योंकि वे लोग सामने नहीं आना चाहते। यदि आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो यहां कैंसर से होने वाली मौतों का आंकड़ा देश में कैंसर से होने वाली मौतों से कहीं ज्यादा है। आंकड़ों के अनुसार देश में प्रतिवर्ष एक लाख कैंसर पीडि़तों में 80 लोगों की मौत होने का औसत आता है। कैंसर से सर्वाधिक प्रभावित पंजाब में प्रति वर्ष एक लाख पर 90 मौतों का औसत है। यहां पर भी सबसे ज्यादा प्रभावित इलाका मालवा है जहां हर साल एक लाख में से औसतन 136 लोग कैंसर से मरते हैं।
ग्रेटर नोएडा के बिसरख खंड के गांवों के ग्रामीणों का कहना है कि क्षेत्र में स्थित विभिन्न फैक्टरियों से निकलने वाले रसायनों की वजह से भूमिगत जल प्रदूषित हो गया है। इसी पानी का प्रयोग खेती के लिए और पीने के लिए किया जाता है जिसकी वजह से लोग कैंसर से पीडि़त हो रहे हैं। जिला प्रशासन को शिकायत किए जाने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पानी के नमूने लिए थे, लेकिन न तो आज तक उसकी रपट के बारे में लोगों को बताया गया है और न ही इस संबंध में कोई ठोस कदम उठाए गए हैं।
सादोपुर गांव के हरचंद (75) को गले का कैंसर है। सात महीने पहले उन्हें कैंसर का पता लगा था। तभी से उनका इलाज चल रहा है। कीमोथैरेपी के लिए उन्हें हर तीसरे दिन दिल्ली स्थित गुरु तेगबहादुर अस्पताल आना पड़ता है। उनका कहना है कि घर से किसी न किसी को उनके साथ अस्पताल में जाना पड़ता है। थैरेपी के बाद स्थिति ऐसी हो जाती है कि दो दिनों तक आंखें नहीं खुलतीं।
इसी गांव के भगत सिंह (48) को गले का कैंसर हैं। उन्होंने बताया कि पूरे जीवन में उन्होंने कभी बीड़ी सिगरेट या गुटखे जैसे किसी तंबाकू उत्पाद को हाथ नहीं लगाया। दो साल पहले उनकी जीभ में हल्का सा छाला हुआ था। जब डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कैंसर है। इलाज के बाद वह ठीक भी हो गए लेकिन अब उनके गले में कैंसर हो गया है। जबकि उनके इलाज के बाद डॉक्टर ने उनसे कहा था कि अब कभी उन्हें कम से कम मुंह में या गले में कैंसर नहीं होगा।
कैंसर पीडि़तों के बारे में और अधिक जानकारी के लिए हम अछेजा गांव पहुंचे। अछेजा के धर्मवीर (45) को गले का कैंसर है। वह कीमोथैरेपी के लिए अस्पताल गए हुए थे। उनकी पत्नी इंद्रेश ने बताया कि दो साल पहले अचानक उन्हें सांस लेने में और खाना निगलने में दिक्कत होने लगी। जब जांच कराई तो पता चला कि कैंसर है। हालांकि कैंसर का पता शुरुआती दौर में चल गया था, लेकिन इलाज महंगा होने के चलते उनका पूरा घर बर्बाद हो गया। उन्हें सप्ताह में दो बार कीमोथैरेपी के लिए जाना पड़ता है।
अछेजा के श्यामेंद्र नागर (54) को फेफड़े का कैंसर है। छह महीने पहले उन्हें अचानक सांस लेने में तकलीफ होने लगी। दो कदम चलने पर उनकी सांस फूल जाती थी। जांच कराई तो कैंसर निकला।
इसी गांव की बिमला (58) को 'ब्रेस्ट कैंसर' है। 2006 में उन्हें कैंसर होने का पता लगा था। इलाज कराया तो कैंसर ठीक हो गया अब दूसरी छाती में फिर से कैंसर हो गया है।
विशनूली गांव में 19 लोगों की पिछले तीन-चार वर्षों में कैंसर से मौत हो चुकी है। अब तीन लोग गांव में कैंसर से पीडि़त हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें कैंसर है लेकिन वे लोग सामने नहीं आते हैं।
विशनूली के पूर्व प्रधान तेजपाल सिंह (54) से जब हमने इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि दो वर्ष पहले उन्हें सांस की नली में कैंसर होने का पता लगा था। चूंकि उन्हें शुरुआती दौर में कैंसर का पता चल गया था। इसलिए उन्होंने तत्काल इलाज करवाना शुरू कर दिया और वह ठीक हो गए, लेकिन बहुत से लोग उनके गांव में ऐसे थे जिन्हें कैंसर होने का पता ही तब लगा जब वह अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका था। इसके चलते इलाज के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका।
श्री सिंह का कहना है कि प्रशासन को इन गांवों की स्थिति और इस परिक्षेत्र में प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों के बारे में जानकारी है लेकिन इसके बावजूद प्रशासन की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की जाती है।
नतीजतन गांव वाले कैंसर से पीडि़त हो रहे हैं। प्रदेश सरकार को इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है। ताकि लोगों को इस जानलेवा बीमारी से बचाया जा सके।
खेड़ा धर्मपुरा गांव के प्रिंस (8) को कैंसर है। तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले प्रिंस के गले का ऑपरेशन कर डॉक्टर एक गांठ निकाल चुके हैं। जबकि दूसरी गांठ का इलाज चल रहा है।
बच्चों के रिश्ते होने में हो रही परेशानी
विशनूली गांव के वेदप्रकाश रोशा (72) बताते हैं कि कैंसर जैसे मर्ज का नाम सुनकर लोग इस परिक्षेत्र में रिश्ते करने से भी कतराने लगे हैं। हमें भी ऐसा लगने लगा है इस गांव को छोड़कर कहीं दूसरी जगह जाकर बस जाना चाहिए। जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान होना जरूरी है नहीं तो लोग यहां से पलायन करना शुरू कर देंगे।
साधुओं का गांव था अब पता नहीं क्या हुआ?
सादोपुर के सतपाल सिंह (46) ने बताया कि हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि इस गांव का नाम सादोपुर इसलिए पड़ा कि यहां के लोग बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के थे। साधु प्रकृति के लोगों के चलते गांव का नाम सादोपुर पड़ गया। दस साल पहले तक गांव में कैंसर जैसी बीमारी का कोई नामोनिशान नहीं था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में अचानक कैंसर पीडि़तों की संख्या में अचानक बढ़ोतरी होने लगी। गांव के कितने ही जवान युवकों की कैंसर के चलते मौत हो चुकी है।
बिसरख क्षेत्र में फैल रहे कैंसर को लेकर सबसे पहले मुहिम छेड़ने वाले और इस पूरे मामले को मीडिया के माध्यम से सबके सामने लाने में मदद करने वाले रविंद्र रोशा (32) विशनूली गांव के प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक हैं। उनका कहना है कि मामले के प्रकाश में आने के बाद राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यहां के पानी के नमूने लेने के निर्देश दिए हैं। जिला प्रशासन ने भी अपने स्तर पर यहां से पानी के नमूने उठवाए हैं, और भी कई टीमों ने पानी के नमूने लिए हैं, लेकिन अभी तक किसी की तरफ से कोई रपट प्रस्तुत नहीं की गई है न ही किसी रपट से इस बात की पुष्टि हुई है कि गांवों में कैंसर क्यों फैल रहा है। इस बारे में वास्तविकता लोगों के सामने जल्द आनी चाहिए।
पांच वर्षों में 209 की कैंसर से हुई मौत
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. आर.के गर्ग का कहना है कि बिसरख ब्लॉक के गांवों में विभाग की टीमों ने सत्तर गांवों में सर्वे किया। इन गांवों में पिछले पांच वर्षो में 209 लोगों की कैंसर की वजह से मौत हुई है। वर्तमान में इस खंड के विभिन्न गांवों के 199 कैंसर पीडि़त लोगों का इलाज चल रहा है। मामले के प्रकाश में आने के बाद विभिन्न जगहों से पानी के नमूने लिए गए थे, जल निगम द्वारा लिए गए इन नमूनों की जांच दिल्ली ओखला फेस-2 स्थित प्रयोगशाला से कराई गई। पानी में कैंसर फैलाने वाले हानिकारक तत्व जैसे कैडमियम, क्रोमियम, सीजीएम, लैड, मरकरी जैसा कुछ नहीं मिला।
70 % गांव हैं ग्रेटर नोएडा के बिसरख खण्ड में
10 % गांवों में सबसे ज्यादा है कैंसर पीडि़तों की संख्या
50 % लोगों की कैंसर से मौत हो चुकी है सादोपुर गांव में
209 % ग्रामीणों की पिछले पांच वर्षों में हो चुकी है मौत
199 % ग्रामीण विभिन्न अस्पतालों में करा रहे कैंसर का इलाज
3.9 % मामले आते थे देश भर में कैंसर के 1985 में
7.9 % मामले हो गए 2001 में
17.9 % कैंसर के मामले हो गए 2014 में
18% मौत विकसित देशों में कैंसर की वजह से होती हैं
7.6% मौत विकासशील देशों में कैंसर की वजह से होती हैं
सही जीवन शैली से ही हो सकताहै कैंसर से बचाव
कैंसर होने के कारणों को लेकर हमने धर्मशिला अस्पताल के कैंसर विशेषज्ञ और सर्जन डॉ. बी निरंजन नायक से बातचीत की। उन्होंने कैंसर होने के कारण और उससे बचने के लिए कुछ सुझाव दिए।
कैंसर क्यों होता है और क्या होता है?
वैसे कैंसर क्यों होता है, इस बारे में आधुनिक चिकित्सा में स्पष्ट कोई कारण नहीं है। इसे आधुनिक चिकित्सा में इडिओपैथिक (यानी इसके बारे में आधुनिक चिकित्सा जगत अभी तक अनभिज्ञ है) कहा जाता है। जहां तक कैंसर क्या होता है, तो इसका जवाब आधुनिक चिकित्सा में है। मनुष्य के शरीर में लाखों कोशिकाएं होती हैं। कोशिकाओं के बीच में एक केंद्रक होता है। केंद्रक के बीच बहुत छोटे डीएनए होते हैं। जब डीएनए सही तरह से बनना बंद हो जाते हैं या फिर उनकी प्रक्रिया में कोई बाधा आती है तो वह कैंसर का रूप ले लेती है। मनुष्य के शरीर में स्वाभाविक कोशिकाएं बनने और मरने की प्रक्रिया चलती रहती है। उदाहरण के तौर पर आरबीसी (लाल रक्त कणिकाएं) हर 120 दिन में शरीर में स्वाभाविक रूप से बदलती हैं। पुरानी कणिकाएं मृत हो जाती हैं उनकी जगह स्वयं ही नई रक्त कणिकाएं ले लेती हैं। इसी तरह नई कोशिकाएं बनती हैं और पुरानी खत्म होती हैं। जब इस प्रक्रिया में बाधा आ जाती है तो वह कैंसर का रूप ले लेती है।
ल्ल कैंसर पैदा करने वाले कारक क्या हैं?
आधुनिक चिकित्सा के अनुसार रसायन युक्त सब्जियां, आधुनिक खान पान में ऐसे हानिकारक तत्व होते हैं जो डीएनए को प्रभावित करते हैं। इनकी वजह से भी कैंसर होने की संभावनाएं रहती हैं। इन्हें चिकित्सकीय भाषा में 'कैंसर कॉज़िंग एजेंट ' यानी (कोर्सिनोजिन्स) कहते हैं। उदाहरण के तौर पर फिनाइल भी एक कोर्सिनोजिन्स है। इसके अलावा लेड, मरकरी, क्रोमियम भी ऐसे हानिकारक तत्व हैं, जो औद्योगिक इकाइयों से पैदा होते हैं।
कैंसर से कैसे बचा सकता है?
सही खान पान, सकारात्मक सोच और नियमित व्यायाम करने से कैंसर से 70 प्रतिशत तक बचाव हो सकता है। इसके अलावा 40 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति को नियमित अपने शारीरिक जांच करानी चाहिए। जिसमें रक्त जांच से लेकर शरीर के दूसरे अंगों के भी चिकित्सकीय परीक्षण किए जाते हैं। कैंसर से बचाव हो सकता है बशर्ते कि उसका शुरुआती दौर में पता लग जाए। यदि व्यक्ति को शरीर के किसी भी हिस्से में अचानक कुछ बदलाव दिखाई दे तो उसे अनदेखा नहीं करना चाहिए।
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