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कुलबुलाते घावों की खीझ में उलझा पाकिस्तान

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Nov 17, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 17 Nov 2014 13:05:19

सितम्बर में जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ में फंसने के बाद मौत को करीब से देख चुके राकेश चंद्र अभी उस हादसे से उभरने की कोशिश में ही थे कि महीने भर बाद ही दोबारा उन पर आफत टूट पड़ी। एक रात अचानक पाक सेना की ओर से हुई बमबारी में उनका घर तबाह हो गया। यह शब्द अरनिया में स्कूल शिक्षक राकेश चंद्र के हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर अरनिया स्थित है।

गत पांच अक्तूबर की रात राकेश और उनकी पत्नी सुदेश अपने घर में आराम कर रहे थे। उनके दो बच्चे पढ़ाई करने में व्यस्त थे, तभी अचानक उन्हें धमाकों की आवाज सुनाई देने लगी और वे सहम गए। सुदेश ने अपने दोनों बच्चों को मोबाइल से फोन किया और कहा कि वे तुरंत ऊपर वाले कमरे से नीचे आ जाएं। उस समय 12 बजकर 40 मिनट हो चुके थे। कुछ देर बाद उन्होंने दूसरे तेज धमाके की आवाज सुनी। यह सीमा पर आमतौर पर होने वाली सामान्य गोलाबारी नहीं थी, बल्कि युद्ध के समय की जाने वाली जबरदस्त गोलाबारी थी। राकेश उठे और दौड़कर अपने बच्चों के पास पहुंचे। तभी तीसरा धमाका बिल्कुल उनके कमरे के बाहर हुआ, तब तक दोनों बच्चे भागकर अपने माता-पिता के कमरे में पहुंच चुके थे, लेकिन इस धमाके में सुदेश भी गंभीर रूप से घायल हो गई थीं। बम का का छोटा टुकड़ा सुदेश की गर्दन में धंस गया था और लगातार खून बह रहा था। सुदेश को तत्काल अस्पताल पहुंचाया गया।
चार दिनों बाद उन्हें छुट्टी दी गई। हालांकि उनकी गर्दन में फंसे हुए बम के छरार्ें को पूरी तरह नहीं निकाला जा सका। डॉक्टरों ने कहा कि यदि ऐसा किया गया तो उनकी जान को खतरा हो सकता है। धमाके में उनका घर भी बुरी तरह से टूट गया।
पाक सेना की गोलाबारी में राकेश का घर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। इस हादसे से महीने भर पहले ही राकेश का परिवार एक और विपदा का शिकार हो चुका था। दरअसल राकेश और उनका बड़ा बेटा श्रीनगर में आई बाढ़ मेंे फंस गए थे। वे एक छात्रावास की चौथी मंजिल पर चार दिनों तक फंसे रहे थे।
पांचवें दिन जब पानी थोड़ा कम हुआ तो वे 55 अन्य लोगों के साथ वहां से निकल पाए थे। कई किलोमीटर पैदल चलकर हवाई अड्डे पहुंचे और करीब 12 दिनों बाद वे अपने घर पहुंच सके। महीने भर बाद ही पाक सेना की गोलाबारी में घर खोने और पत्नी के गंभीर रूप से घायल होने का दर्द उनके चेहरे पर साफ दिखाई देता है। इसके बाद भी राकेश भगवान को धन्यवाद देते हैं कि उनकी पत्नी जीवित हैं।
सीमा पर रहने वालों के लिए गोलीबारी की आवाज सुनना आम बात है, लेकिन सीमा पर पाक की तरफ से अचानक हुई भारी गोलाबारी सीमा से सटे गांव वालों और सीमा सुरक्षा बल के लिए भी एक झटके की तरह थी। सांबा और आरएस पुरा सेक्टर की जमीन कृषि के लिहाज से बहुत उपजाऊ है। इस बार गोलाबारी कर पाक की ओर से वहां रहने वाले लोगों और खेती को नुकसान पहंुचाया गया है। पाक सेना ने आबादी वाले इलाकों पर 'मशीन गन' से ताबड़तोड़ गोलाबारी की और मोर्टार से गोले दागे। हैरानी की बात है कि ईद की रात को मुस्लिम पाकिस्तान की ओर से गोले दागे गए। हैरानी की बात है कि ईद की रात को मुस्लिम पाकिस्तान की ओर से गोले दागे गए। सीमा पर तैनात सीमा सुरक्षा बल के वरिष्ठ अधिकारी ने अपने समकक्ष पाक सेना के अधिकारी से 'हॉटलाइन' पर बातचीत की और कहा कि ऐसे मुबारक मौके पर सीमा पर तनाव की स्थिति पैदा करना ठीक नहीं है, लेकिन पाक सेना ने इसे अनसुना कर दिया और गोलाबारी जारी रखी। सीमा सुरक्षा बल के महानिरीक्षक राकेश कुमार ने संवाददाता को बताया कि स्थिति ऐसी हो गई थी कि पाक को कड़ा जवाब देना पड़ा।
पाक सेना ने घनी आबादी वाले इलाकों को निशाना बनाया। दो से 11 अक्तूबर के बीच अकेले अरनिया पर पाक सेना ने करीब 200 गोले दागे। उस क्षण को याद करते हुए अरनिया निवासी एक दुकानदार पवन गुप्ता ने बताया कि इससे पहले उन्होंने ऐसी गोलाबारी कभी नहीं देखी। स्थानीय व्यवसायी तारा सिंह बताते हैं कि आजादी के बाद से आज तक इस इलाके में कभी पाक की ओर से इस तरह की गोलाबारी नहीं की गई। गोलाबारी को देखते हुए अरनिया में रहने वाले 30 हजार लोग सीमा सुरक्षा बल के शिविरों और अपने रिश्तेदारों के घर चले गए थे। बहुत से लोग दिन में अपने घरों को देखने आते थे और रात को वापस लौट जाते थे। सीमा सुरक्षा बल द्वारा पाक को मुंहतोड़ जवाब देने पर स्थिति नियंत्रण में की जा सकी। पाक सेना की बमबारी में ऐसे बहुत लोगों के मकान भी नष्ट हो गए जिनके लिए मकान की मरम्मत करा पाना बड़ा मुश्किल है।
करीब दस दिनों तक अरनिया के लोग खौफ के साए में जीते रहे। हालांकि अब उनकी दिनचर्या पटरी पर लौट रही है। अरनिया के लोग पहले की तरह सामान्य तरीके से जीवन जी रहे हैं, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो और यह बेहद सराहनीय है। यदि आप वहां जाएंगे तो देखेंगे कि सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो चुका है। वहां के बाजारों को देखकर यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि डेढ़ महीने भर पहले यह इलाका पूरी तरह सुनसान हो गया था। पाक सेना की गोलाबारी से बचने के लिए लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर चले गए थे। यहां यदि आप किसी से भी पाकिस्तानी सेना द्वारा की गई गोलाबारी के बारे में पूछेंगे तो बड़े आराम से आपको उस समय के अनुभव की जानकारी मिलेगी। सीमा पर रहने वाले इन जिंदादिल लोगों की जीवटता के लिए उन्हें सलाम। ल्ल

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