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.अरुणेन्द्र नाथ वर्मा
कभी एक कहानी सुनी थी एक चिडि़याघर की। उसमें एक हाथी था। बहुत समझदार, बहुत होशियार। महावत ने तरह-तरह के करतब उसे सिखाये थे। उसके इशारे पर सूड उठाकर नमस्कार करता था। महावत जिसकी तरफ इंगित करता उसे सूंड से माला पहना देता। फुटबाल दी जाती तो पैर से किक मारता, फुटबाल हवा पर सवार हो जाती। महावत उसे पुत्रवत् प्यार करता था। पर संसार में सब कुछ नश्वर है तो हाथी कैसे अमर रहता। एक दिन वह मर गया। महावत के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। चिडि़याघर के निर्देशक महोदय स्वयं सांत्वना देने आये। महावत को पुचकारते हुए बोले 'जीवन मरण पर किसका वश है, पर तुम्हारा दु:ख कम करने के लिए जो कुछ हो सकेगा करूंगा। तुम्हारे लिए बहुत जल्द हम नया हाथी मंगा देंगे। महावत ने सुबकते हुए कहा 'वह सब तो ठीक है, साहेब। पर जाने वाले को नहलाना-धुलाना, खिलाना-पिलाना सब मेरे ही जिम्मे था। अब आप जरा ये बता दीजिये इसकी कब्र कौन खोदेगा?
सुना है केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में शहरी निवास और विकास मंत्रालय जिस किसी को सौंपा जाता है वही बधाई स्वीकार करने के बजाय दहाड़ मार कर रोने लगता है। कहता है मैं स्वयं किसी रैनबसेरे में रह लूंगा किन्तु ये जो सैकड़ों सांसद, दर्जनों मंत्री, राजधानी में सर के ऊपर साया मांगेंगे, उनका क्या करूंगा। रोटी कपड़ा और मकान में से रोटी की समस्या तो खैर संसद की कैंटीन में सस्ते में हल हो जाती है। जितने में सांसद अपने क्षेत्र में सत्तू खाते थे उतने में यहां मुर्गा खाते हैं और देश को बताते हैं कि बारह रुपये में कितने ठाठ से पेट भरता है। अभी तक महाराष्ट्र भवन की तरह संसद कैंटीन की रोटी जबरन कैंटीन मैनेजर के मुंह में घुसेड़ कर उसके स्वाद की परीक्षा भी किसी सांसद ने नहीं की है। जहां तक कपड़े की बात है सभी सांसद उस डिजाईनर और टेलर से सीधे संपर्क साध रहे हैं, जो नरेंद्र भाई मोदी की स्मार्ट वेशभूषा के लिए जिम्मेदार है। चलो उनके जैसा 'ड्रेस- सेन्स' भले हर किसी को नसीब न हो, पुरुष सांसद मोदीकट वाली दाढ़ी तो उगा ही सकते हैं। पर ये जो मकान वाली जरूरत है यही सारी मुसीबतों की जड़ है।
वैसे तो अधिकांश सांसद करोड़पति हैं। चाहें तो पांच सितारा होटलों में ठाठ से अपने बूते पर रह लें पर आलीशान से आलीशान जगह में वह बात कहां जो लुटियन की दिल्ली में है। इतने बड़े बंगले कि उनमें रहते हुए एक उप प्रधानमंत्री तो उल्टे बांस बरेली की तर्ज पर उल्टे दूध हरियाणा को भेजते थे। उनमें रहकर बिजली पानी की कमी जैसी घटिया परेशानियों से आदमी मुक्त हो जाता है। सबसे बड़ी बात ये कि उन बंगलों में एक बार घुस लिए तो किसी माई के लाल की मजाल नहीं जो वहां से हिला सके।
लुटियन की दिल्ली के बंगले में एकाधिक बार रह लिए तो पूरी संभावना हो जाती है कि कालांतर में उसमें रहने वाले की स्मृति देशवासियों के मन में अमिट बनाए रखने के लिए वह संग्रहालय या स्मृतिस्थल बना दिया जाएगा। वैसे भी यमुना के किनारे अब देश के अमर नेताओं के लिए समाधियां, मकबरे, प्रेरणा स्थल इत्यादि बनाने के लिए जगह ही कहां रह गयी है। यमुना पार पुश्ते को झुग्गी झोंपड़ी वोट बैंक के लिए सुरक्षित कर दिया गया है अत: स्वर्गीय को उधर भेजने का प्रश्न नहीं उठता। इस किनारे पर राष्ट्रपिता बापू की समाधि क्या बना दी गयी कि हर नेता की महानता इसी से नापी जाने लगी कि उसकी भी समाधि यमुना किनारे बनी या नहीं। संसद में अपनी अगली पीढ़ी को घुसा पाने वाली महान हस्तियों का तो डबल फायदा। यमुना किनारे समाधि पक्का समझो और लुटियन की दिल्ली में जिस बंगले में रह लिए उसे अपने खानदान की पैतृक संपत्ति घोषित कर दो। कोई सिरफिरी सरकार कहे कि ये बंगले वर्तमान सांसदों और मंत्रियों के लिए हैं, भूतपूर्व लोगों के भूत वहां डेरा नहीं डाल सकते तो अपनी मांग पूरी कराने के लिए तमाम हथियार हैं। बंगले को पैतृक संपत्ति बनाने की मांग करने वाला भूतपूर्व सांसद यदि किसी ऐसे प्रदेश का है, जहां से दिल्ली को बिजली, पानी मिलता है तो वह उसकी आपूर्ति भाड़े के टट्टुओं द्वारा रुकवाने की धमकी दे सकता है। नासिक का हुआ तो दिल्ली में प्याज की आमद, तटीय प्रदेशों का हुआ तो मछली की आमद, दक्षिण का हुआ तो गरम मसालों की आमद — छोड़ो भी, बेचारी दिल्ली में अपना क्या उगता है सिवाय समाधियों और स्मृति स्थलों के? पर कितना बड़ा भ्रम है ये भी। छोटी-मोटी चीजों की आमद रोकी जा सकती है पर बाहर जाने वाली चीजें उनसे बहुत बड़ी हैं। आजादी के सात दशकों के बाद जनता जनार्दन को सच्ची स्वतंत्रता और स्वाभिमान का जो संदेश दिल्ली से जाना प्रारम्भ है,उसे कौन रोक पायेगा? दिल्ली के दिल पर अनाधिकार हक जमाने वाले सांसद? महाभारत के इन्द्रप्रस्थ से लुटियन की नई दिल्ली तक के इतिहास ने बार-बार साबित किया है कि वक्त की आंधी कई बार बड़ी जगहों से बड़े-बड़े लोगों को उखाड़ फेंकती है। बस वे जमे रह पाते हैं जो बंगलों में नहीं,जनता के दिलों में रहते हैं। ल्ल
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