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विश्व का सबसे बड़ा पशु मेला सोनपुर के हरिहर क्षेत्र में लगता है। सैकड़ों वषार्ें से यह परम्परा चली आ रही है। कई एकड़ क्षेत्र में फैले इस मेले में दूर-दूर से व्यवसायी आते हैं। यह स्थल छपरा से 40 किलोमीटर पूर्व, हाजीपुर से 5 किलोमीटर पश्चिम तथा पटना से 20 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह स्थल रेल और सड़क दोनों मार्ग से जुड़ा हुआ है। 1950 तक यहां विश्व का सबसे लंबा रेलवे प्लेटफॉर्म था। वैसे तो बिहार मेलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां एक मेला समाप्त नहीं होता, तब तक दूसरा शुरू हो जाता है। पूर्णिया का गुलाब बाग मेला, खगडि़या का गोशाला मेला, गया का पितृपक्ष मेला, राजगीर का मलमाश मेला, छठ के समय विभिन्न सूर्य मंदिरों पर लगने वाले मेलों की अपनी विशेषता है। लेकिन इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध सोनपुर मेला है। यह मेला कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होकर पूरे एक माह तक चलता है। मेले की प्रसिद्धि भले ही पशुओं की खरीद-बिक्री के लिए हो, लेकिन मेले में अन्य सामान की बिक्री भी खूब होती है। यह मेला सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए भी प्रसिद्ध रहा है। पहले यहां तरह-तरह की कलाओं का प्रदर्शन होता था, लेकिन बाद में इसमें थोड़ी विकृति आयी। उन सांस्कृतिक गतिविधियों के स्थान पर 'थियेटर' दिखाये जाने लगे। अब धीरे-धीरे स्थिति बदलने लगी है। दर्शक वैसा 'थियेटर' नहीं देखना चाहते हैं। प्रशासन भी अब सख्त है, मेले में जादूगरी तथा अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां भी होती रहती हैं। मेले की कथा भी बड़ी रोचक है। यह मेला बाबा हरिहर के प्रसिद्ध मंदिर के समीप लगता है। गंगा एवं गंडक के संगम पर स्थित सोनपुर में बाबा हरिहरनाथ का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर शैव और वैष्णव परम्परा के समन्वय का प्रतीक है। इस स्थान पर शिव और विष्णु का आमना-सामना हुआ था। जिस स्थान पर दोनों का संगम हुआ था उसे हरिहर क्षेत्र कहा जाता है।
भागवत पुराण के अनुसार यहां हाथी-मगरमच्छ का युद्ध हुआ था। गंडक नदी में एक बड़ा ही दुराचारी मगरमच्छ रहता था। वह हर समय लोगों को परेशान करता था। एक बार भगवान विष्णु का भक्त हाथी नदी में स्नान करने गया। तभी उस मगरमच्छ ने उसका पांव पकड़ लिया फिर दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में जब हाथी परास्त होने लगा तो उसने कमल का एक पुष्प लेकर भगवान विष्णु की आराधना की। अन्याय के प्रतीक मगरमच्छ से भगवान विष्णु ने परम भक्त हाथी की रक्षा करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से वार कर उसका उद्धार कर दिया। भक्तजनों ने जब पूछा कि आपने मगरमच्छ का उद्धार क्यों किया तब विष्णु भगवान ने उत्तर देते हुए कहा कि मगरमच्छ तो उनका सबसे बड़ा सेवक है क्योंकि उसने उनके सबसे प्रिय भक्त गज का पांव पकड़ लिया था। तभी से इस क्षेत्र की प्रसिद्धि बढ़ गई। भगवान विष्णु ने कहा है कि कार्तिक मास की पूर्णिमा को यहां स्नान करने वालों को जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिल जाएगी। जो भक्त उनके चरित्र का उत्तम पाठ या श्रवण करेंगे उनका कल्याण होगा। यहां वर्षों तक उनके निवास की बात भी कही जाती है। यहां कार्तिक मास की पूर्णिमा के अवसर पर एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। इस मेले में पशु-पक्षी से लेकर नाना प्रकार की वस्तुओं की बिक्री होती है। इस मेले में देश-विदेश से लाखों पर्यटक हर साल आते हैं।
इस मेले को बच्चा बाबू के परिवार की जमीन पर लगाया जाता है। अब इसका विस्तार और हो गया है। बच्चा बाबू बिहार के एक प्रसिद्ध जमींदार थे जिनका स्टीमर पटना के महेन्दू्र से सोनपुर तक चलता था। गंगा पर महात्मा गांधी सेतु बनने के बाद यह व्यवसाय समाप्त हो गया। अब इस मेले का आयोजन बिहार सरकार द्वारा किया जाता है। मेले में पर्यटकों के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। यहां विदेशी पर्यटक भी आते हैं। पर्यटकों के लिए विशेष झोपड़ीनुमा मकान भी बनाए जाते हैं जिन्हें एक निश्चित राशि देकर कोई भी सुरक्षित करा सकता है। मेले में सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों द्वारा विभिन्न प्रकार की जानकारी दी जाती है। मेले की रौनक सुबह सात बजे से दोपहर ग्यारह बजे तक थोड़ी कम होती है, वरना हर समय मेले में चहल-पहल बनी रहती है। रात को मेले की छटा और निराली हो जाती है। सोनपुर मेले का इतिहास काफी पुराना है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पहले सोनपुर का मेला मुगलकाल से लगना प्रारंभ हुआ। यहां विदेशों से व्यवसायी भी खरीददारी के लिए आते थे। अंग्रेजों के समय में यहां विदेशी लोग अंग्रेजी खेल जैसे- पोलो, टेनिस इत्यादि खेलने आते थे। एम. विल्सन ने अपने संस्मरण में लिखा है कि यहां पर मैनचेस्टर, बकिंघम, काबुल, कश्मीर सरीखे कई जगहों के व्यवसायी अपना सामान बेचने आते थे। कुंवर सिंह ने अपने आन्दोलन के व्यूह की रचना इसी मेले में की थी। -संजीव कुमार
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