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पिछले हफ्ते अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा चीन गए। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ओबामा के बीच सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत हुई और कई समझौते भी हुए। दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि अमरीका और चीनी नागरिकांे को व्यापार और पर्यटन के लिए दस-दस वर्ष की अवधि के वीजा दिए जाएंगे। वहीं दोनों देशों के विद्याार्थ्िायों को पांच-पांच वर्ष का वीजा दिया जाएगा।
कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की मोदी सरकार की विएतनाम के प्रति मैत्री भाव से चीन शंकालु है। इसलिए उसने शायद भुजाएं फड़फड़ाती दिखाने की गरज से ओबामा को बुलाया हो। चीन को यह भी बर्दाश्त नहीं हो रहा है कि भारत बहुत तेजी से नेपाल और भूटान से नजदीकियां बढ़ा रहा है। उल्लेखनीय है कि भारत में मोदी सरकार के आने से पहले नेपाल और भूटान में चीन बड़ा प्रभाव जमाता था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन देशों की यात्रा कर के वहां का माहौल बहुत हद भारत के अनुकूल बना दिया है।
चीन का गुस्सा अक्तूबर के अन्त मंे तब और बढ़ा जब विएतनाम के प्रधानमंत्री गुयेन टैन डेंग भारत आए और उन्होंने दक्षिण चीन सागर में स्थित अपने सात तेल कंुओं में से दो भारत को दे दिए। अब भारत इन कुंओं से तेल निकालने की संभावनाओं को तलाशेगा। लेकिन चीन इन कंुओं को अपना मानता है। इसलिए वह भारत और विएतनाम के बीच हुए करार का विरोध कर रहा है। पर भारत चीन के विरोध को कोई अहमियत नहीं दे रहा है। कूटनीतिज्ञों का मानना है कि भारत की बेरुखी से हो सकता है चीन आहत हो और शायद इस वजह से वह अमरीका के साथ खड़ा होने का दिखावा कर रहा है। ल्ल
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