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पाञ्चजन्य के पन्नों से
वर्ष: 9 अंक: 23
19 दिसम्बर,1955
यह उत्तर प्रदेश है
विधानसभा में कांग्रेसियों की धांधली
दो जाली पत्रों के कारण गुप्तचर विभाग परेशान
लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा में गत सप्ताह सिंचाई दरों में संशोधन के निमित्त जब विचार किया जा रहा था। उस समय सत्तारूढ़ दल द्वारा कुछ ऐसी कार्रवाही की गईं जिनसे उसकी स्वेच्छाचारिता पर प्रकाश
पड़ता है।
आजकल उत्तर प्रदेश गुप्तचर विभाग के लिए दो पत्र सिर-दर्द बन गए हैं।
बात यह है कि बलिया में एक ओवरसियर हैं। कुछ दिन पूर्व ओवरसियर महोदय का बलिया से अन्यत्र स्थानांतरण कर दिया गया था। किंतु इसी बीच उपमंत्री लक्ष्मीरमण आचार्य बलिया गए। स्थानीय विधानसभाई सदस्यों ने ओवरसियर महोदय की सिफारिश की कि उनकी पत्नी रुग्ण है अत: उनका स्थानंातरण कुछ समय के लिए रोक दिया जाय। उपमंत्री ने प्रार्थना स्वीकार कर स्थानांतरण स्थगित कर दिया।
किंतु जैसे ही उपमंत्री लखनऊ आए उन्हंे बलिया के संसद सदस्य श्री मुरली मनोहर तथा ओवरसियर महोदय की पत्नी के पत्र मिले जिनमें कहा गया था कि ओवरसियर महोदय का स्थानांतरण स्थगित न किया जाय। उपमंत्री ने उक्त पत्रों की चर्चा सिफारिश करने वाले विधानसभाई सदस्यों से की जिन्होनें श्री मुरली मनोहर से पूछताछ की। श्री मुरली मनोहर को अत्यंत आश्चर्य हुआ । उन्होंने तुरंत श्री लक्ष्मीरमण आचार्य (उपमंत्री) को तार द्वारा सूचित किया कि उनके द्वारा इस प्रकार का कोई पत्र नहीं डाला गया है। पत्र जाली है। … उसी प्रकार जब ओवरसियर ने अपनी पत्नी से पत्र के सम्बन्ध में पूछताछ की तो उन्होंने भी पत्र को जाली बताया है।…
जब जलमग्न पंजाब की
संघ के स्वयंसेवकों ने जान पर खेलकर रक्षा की
हाल में ही आई पंजाब,पेप्सू की जल प्रलय अभी तक लोक स्मृति में ताजी है। भारी जलवृृष्टि तथा नदियों की मर्यादा तोड़ स्थिति से हुई हानि की व्याप्ति इतनी बड़ी है कि इसका विस्मरण केवल क्षतिपूर्ति से ही सम्भव है।
विपत्ति की भीषणता अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में मौत के खुले मुंह जैसी भयावनी होकर प्रकट हुई थी जबकि अखण्ड जल-वृष्टि ने मानव की सब माया को जलमग्न कर देने क ी क्रूर मनमानी मचा रखी थी।…
बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के सभी बड़े-छोटे स्थानों पर संघ के कार्यशील स्वयंसेवक विद्यमान होने से विपत्ति अवतरण के प्रथम दिन से ही उन्हें अपने कर्तव्य का निर्णय करने और उसी की पूर्ति के लिए जुट जाने में कुछ भी समय नहीं लगा। फोन,तार और डाक व्यवस्था ठप्प होने से प्रान्त एवं जिला कंेद्रों से सहायता कार्य प्रस्तुत करने का आदेश उन्हें कछ देरी से मिला था परन्तु वो तो कर्तव्याकर्षण की कक्षा में शुरू से ही चिपक चुके थे।
'समाज का दुख मेरे तथा मेरे परिवार का दुख है' संघ की इस सीख को उनके स्वयंसेवकों ने सदैव से अपने हृदय में धारण कर रखा है। अत: इसका परिचय हमें उनके द्वारा समाज सहायता के प्रयत्नों से मिल सकेगा। …
बटाला- वर्षा जल जमा हो जाने से शहर के सभी मार्ग रुद्ध हो गए थे और नगर भर के राशन डिपो खाली हो चुके थे। स्वयंसेवक आटे की बोरियां सिरों पर उठाकर खतरे के पानी को पार करते हुए शहर में ले गए। परिस्थितिवश असमर्थ लोगों में 60 मन आटा मुफ्त भी बांटा।…इस बीच प्राय: 100 मन चने इकट्ठे किए और बांटे गए। पानी उतरने पर 100 रजाइयां बनवाईं और बांटी गईं।
अमृतसर- अमृतसर नगर के स्वयंसेवकों ने शरीफपुरा मुहल्ला में 5-6 फुट पानी से घिरे सहस्रों लोगों का सामान निकाला। भोजन बांटने का उपक्रम विविध उपायों द्वारा कई दिन तक चलता रहा। संघ द्वारा संचालित रामबाग तथा डेमगंज के दोनों सार्वजनिक नि:शुल्क औषधालय दिन-रात काम करते रहे।
तरनतारन- यह नगर निचाई पर होने से जलमग्न होने लगा। सारी आबादी को,ऊंचाई पर स्थित रेलवे स्टेशन पर जाकर रहना पड़ा। लोगों को सामान सहित निकालना तथा उनमें भोजन वितरण 3 दिन तक स्वयंसेवकों पर आश्रित था।…
फिरोजपुर- फिरोजपुर नगर में सरकारी घोषणा कर दी गई थी कि सब लोग अपना-अपना प्रबंध कर लें,सरकार पर कोई जिम्मेदारी नहीं है। फौज को छावनी से निकाल कर कासुबेग ले जाया जा चुका था।…तत्पश्चात् सहस्रों लोगों को साथ लेकर स्वयंसेवकों ने नहर पर काम शुरू किया जो 5 दिन तक चलता रहा। उसका खतरा भी टल गया और शहर
सुरक्षित रहा।
संगरूर- … दूसरे दिन शहर में दो ढ़ाई मील तक नाला टूट जाने से नगर को खतरा उत्पन्न हुआ। अन्य किसी संस्था का कोई कार्यकर्ता नहीं आया परंतु संघ के 53 स्वयंसेवक पहुंचे। मिट्टी खोदने, डालने के सरकारी सामान की प्रतीक्षा करते-करते काफी देर हो गई और सामान नहीं आया तो साथ लाईं आठ-दस गैंतियों से बांध बनाना शुरू किया। जहां रेत, पत्थर,सीमेंट के द्वारा बांध बनाया जाना आवश्यक था,वहां ठोस चीजों के आभाव में स्वयंसेवकों ने भीति युद्ध खेल की स्थिति में खड़े रहकर जल प्रवाह को रोका और केवल मिट्टी से बांध बनाकर शहर की रक्षा की।…
हमारे संगठन का आधार: क्रियात्मक भाव -श्रीगुरुजी
कुछ लोग यह भी कहते हैं कि एक समय था,जब हिन्दू-संस्कृति और समाज पर परकीय सत्ता एवं समाज का आघात होता रहता था,उस समय तो संगठन आवश्यक था। किंतु अब तो अपना राज्य है। जिन्हें हम हिन्दू कह सकते हैं ,उनका ही राज्य है। अब किसी के भय का कारण नहीं। अत: अब किसी भी प्रकार के संगठन की क्या आवश्यकता है? आघात का जो सर्वसाधारण स्वरूप दिखता है,अर्थात हमारे देव-देवालयों पर आक्रमण होना,हमारी लड़कियों का भगाया जाना आदि,इनको देखकर पहले भी लोग पुछा करते थे कि संघ इनको रोकने के लिए क्या करने वाला है? हम तब यही कहते थे और आज भी यही कहते हैं कि आघात और आघात की संभावना- दोनों ही समाज की वर्तमान अवस्था के परिणाम हैं। जब तक यह अवस्था है, तब तक इन परिणामों से हम किसी भी दशा में मुक्त नहीं हो सकते। इस अवस्था को दूर करने का एक ही उपाय है और वह है संगठन। साथ ही , आघातों की स्थिति अथवा उनकी संभावना से उत्पन्न प्रतिक्रिया के आधार पर ही संगठन करने की अपेक्षा तो जीवन के क्रियात्मक भाव के आधार पर ही संगठन अधिक स्थायी एवं हितावह होगा। अत: हमने इस आधार पर संगठन प्रारम्भ किया कि हम हिंदू हैं, हमारी एक संस्कृति और सभ्यता है तथा इस संस्कृति रूपी आत्मा से प्रेरित हमारा एक समाज है,एक राष्ट्र है। इस राष्ट्रजीवन को सुसंगठित,बलशाली एवं वैभवशाली बनाना हमारा एकमात्र कर्तव्य है।… (श्रीगुरुजी समग्र : खण्ड 2 ,पृष्ठ 72)
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