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हमारे जीवन में ऐसी अनेक घटनाएं घट जाती हैं, जो हमारे मन पर गहरा असर डालती हैं। ये आघात कई प्रकार के होते हैं- हृदयाघात, पक्षाघात, मानसिक एवं भावनात्मक आघात। किन्तु, इन सभी आघातों का मूल कारण मनोभावनात्मक होता है। ये आघात जीवनपर्यन्त दुखदायी होता है। मनोभावनात्मक समस्याओं के स्थाई निदान के लिए योग से बेहतर कुछ नहीं है। इस समस्या के निदान के लिए इन यौगिक अभ्यास को कर सकते हैं।
शिथिलीकरण एवं धारणा
आज के समय में व्यक्ति को शारीरिक एवं मानसिक आराम मिलना बहुत मुश्किल हो गया है जिसके कारण उसका सम्पूर्ण तंत्र कमजोर और रुग्ण होने लगता है और वह थोड़ी भी समस्याओं के आगे घुटने टेक देता है। धारणा की तकनीक के अभ्यास से इस समस्या का समाधान हो जाता है। इससे शारीरिक और मानसिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
ध्यान
मन को शांत, नियमित तथा नियंत्रित करने के लिए ध्यान सर्वश्रेष्ठ तकनीक है। यदि नियमित रूप से पन्द्रह-बीस मिनट इसका अभ्यास किया जाए तो व्यक्ति सभी मनोभावनात्मक समस्याओं पर विजय प्राप्त कर सकता है। ध्यान के अभ्यास की विधि इस प्रकार है।
विधि
पद्मासन या सिद्धासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाइए। आंखों को ढीला बन्द कर दस बार खूब गहरी श्वास-प्रश्वास लीजिए। तत्पश्चात अपने मन को स्वाभाविक श्वास-प्रश्वास पर एकाग्र कीजिए। किन्तु, विचारों का दमन नहीं करना चाहिए। विचार स्वभावत: आने-जाने दें। बस, उनकी उपेक्षा करते जाएं और अपना मन श्वास-प्रश्वास पर बार-बार टिकाने का प्रयत्न करें।
कुछ दिनों के नियमित अभ्यास से मन श्वास पर एकाग्र होने लगेगा। इसका अभ्यास दस मिनट से लेकर सुविधानुसार समय तक करना चाहिए।
प्राणायाम
इसके अभ्यास से रक्त की शुद्धिकरण प्रक्रिया तेज हो जाती है। शरीर के सभी आन्तरिक अंगों को पर्याप्त प्राणशक्ति मिल जाती है। इस समस्या के निदान हेतु सर्वश्रेष्ठ प्राणायाम है- नाड़ी शोधन। नाड़ी शोधन की द्वितीय एवं तृतीय अवस्था तक का अभ्यास करना चाहिए। जिन्हें हृदयरोग एवं उच्चरक्तचाप की शिकायत हो वे इस प्राणायाम की अवस्था-एक का ही अभ्यास करें।
आसन
शरीर की सम्पूर्ण ग्रन्थियों को क्रियाशील करने एवं उनके स्राव को संतुलित करने के लिए आसनों का अभ्यास बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अभ्यास से शरीर सभी आघातों को सहन करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। इस हेतु महत्वपूर्ण आसन हैं- सर्वांगासन, हलासन, पवनमुक्तासन, मकरासन, पश्चिमोत्तानासन, उष्ट्रासन, अर्द्धमत्स्येन्द्रासन, भुजंगासन तथा धनुरासन आदि। जिन व्यक्तियों को हृदयरोग या उच्चरक्तचाप की शिकायत हो वे पैर को ऊपर करने वाले आसनों का अभ्यास न करें। इसके अलावा जिन्हें स्लिप डिस्क एवं स्पॉन्डिलाइटिस की शिकायत हो, वे आगे झुकने वाले आसनों का अभ्यास न करें।
आहार
शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आहार का संतुलित होना आवश्यक है। तली भुनी, मैदे वाली चीज़ें न लेें।
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