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आवरण कथा/योग-आनंद100 नृत्य करते मनाइए वां जन्मदिन

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Nov 8, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Nov 2014 13:00:04

देश के जाने-माने उदर रोग विशेषज्ञ डॉ. विपिन मिश्रा से बातचीत का सिलसिला योग से शुरू हुआ, लेकिन उन्होंने योग से लेकर जीवनशैली तक पर इतनी सटीक और अपने अनुभव पर आधारित बातें बताईं कि लगा ही नहीं वह एलोपैथी की इतनी बड़ी हस्ती हैं। भारतीय पद्धतियों में उनकी आस्था का यह आलम है कि उनके निर्देशन में दर्जनों शोध चल रहे हैं। 'मैजिक ऑफ टेन' नाम का एक सिद्धांत उन्होंने दिया है जो काफी लोकप्रिय है और हजारों लोग उसका अभ्यास कर रहे हैं। डॉ. मिश्रा कहते हैं कि आप सौ साल तक एकदम हट्टे-कट्टे रहें, ऐसा शरीर आपके पास है। उन्हें इस बात का बड़ा दुख है कि मनुष्य के अलावा किसी भी प्राणी को स्वास्थ्य को लेकर कोई खास समस्या नहीं है। वह तो नैसर्गिक रूप में सबको मिला है। मनुष्य इतने रोगों का शिकार इसलिए है कि उसके कारण उसे अपने भीतर और अपनी जीवनशैली में ही खोजने पड़ेंगे।

योग एक पावन उपचार है। शरीर और मन के हर तल पर यह फायदा करता है तथा निश्चित फायदा करता है। हर इन्सान को योग करना चाहिए। योग करने का केवल एक कारण है कि आप इन्सान हैं इसलिए आप योग करें। योग के बिना इन्सान अपूर्ण है। योग शरीर को मजबूत बनाता है, दिमाग को सेहतमंद रखता है, तरह-तरह के तनाव, अवसाद, नैराथ्य आदि को दूर करता है और आयु लम्बी होती है। समाज में आजकल एक बड़ा भ्रम फैला है, उसे मैं दूर कर दूं कि योग की हम एलोपैथिक मेडिकल साइन्स से तुलना नहीं कर सकते। दोनों अलग-अलग चीजें हैं। योग एलोपैथिक मेडिकल साइन्स का विकल्प नहीं है। योग एक जीवन शैली है। यह वैसे ही है जैसे अगर कोई आदमी रोज स्नान करता है तो कहा जा सकता है कि उसे त्वचा संबंधी समस्याएं नहीं होंगी। लेकिन अगर उसे कोई त्वचा संबंधी समस्या हो गई है तो फिर उसे एंटीबायोटिक्स और एन्टी फंगल क्रीम लगानी पड़ेंगी, गोलियां खानी पड़ेंगी। तब सिर्फ स्नान करने से ही वह ठीक नहीं होगा। योग बीमारियों का निदान नहीं है। लेकिन हां, जो व्यक्ति लगातार योग करता है, उसे आम तौर पर बीमारियां नहीं होतीं। उसका शरीर साफ रहता है इसलिए बीमारियां नहीं होतीं, लेकिन अगर बीमारियां हो जाती हैं तो फिर दवाइयां लेनी पड़ती हैं। ठीक होने पर भी योग करता रहे तो फिर दोबारा बीमारियां होने की संभावनाएं समाप्त या काफी कम हो जाएंगी।
इसकी शुरुआत हो जानी चाहिए विद्यालयी दिनों से ही। हर विद्यालय को योग की शिक्षा देनी चाहिए। हर व्यक्ति को योग करना चाहिए। योग से सत्तर फीसद तक बीमारियों को रोका जा सकता है। लेकिन अगर कोई बीमारी हो जाती है, तब उसका इलाज कराना चाहिए। आज जो लोग बीमार पड़ रहे हैं, जिनकी बाईपास सर्जरी हो रही है, एंजियोप्लास्टी हो रही है, वे कल बच्चे थे। उनको योग नहीं सिखाया गया तो आज उनके आपरेशन हो रहे हैं, और अन्य प्रक्रियाएं हो रही हैं। और आज अगर हम बच्चों को नहीं सिखाएंगे तो कल वे भी उसी स्थिति में पहुंच जाएंगे।
योग एलोपैथिक दवा नहीं है कि इन्जेक्शन लगा दिया और आधे घंटे में बुखार 104 या 105 से उतरकर सामान्य आ जाएगा। योग का असर धीमा है लेकिन वह बहुत भीतर तक जाता है। योग मस्तिष्क और शरीर की क्रियाओं और जीन्स के प्रभाव तक में सकारात्मक बदलाव लाता है। योग के फायदे बहुत हैं। वे धीरे-धीरे आते हैं, लेकिन निश्चित रूप से आते हैं। इसे दवाओं के साथ भी अपनाना चाहिए, जैसा कि तमाम डॉक्टर और अस्पताल कर भी रहे हैं, और जब कोई बीमारी न हो तब भी अपनाना चाहिए। मैं तो कहूंगा कि बचपन से ही योग सिखाया जाना चाहिए। जितने भी अच्छे डॉक्टर हैं, वे सब सलाह देंगे कि आप योग भी करिए।
आप स्वस्थ ही नहीं, अच्छे भी बनेंगे
मैं कह सकता हूं कि योग, ध्यान, प्राणायाम करने से व्यक्ति अच्छा व्यक्ति भी बनता है। उसका चरित्र बदल जाता है। बुरा आदमी निश्चित तौर पर अच्छा बन सकता है। आखिर यह समझना पड़ेगा कि जो आदमी झूठ बोलता है, चोरी करता है, भ्रष्टाचार में लिप्त है वह आखिर ऐसा क्यों है? वह ऐसा इसलिए है क्योंकि अपने जीवन से असंतुष्ट है। उसको जीवन में ऐसा कुछ चाहिए जो उसे बाहर से मिलता हुआ दिखता है। जो आदमी योग करता है वह अपने आंतरिक (कोर), अपने अंतरतम से जुड़ जाता है और वहां पर नैसर्गिक प्रसन्नता है, नैसर्गिक आनंद है। आप इसको ऐसा समझिए कि एक छोटा बच्चा है साल भर का, वह क्यों खुश रहता है। उसको कौन सा पैसा मिल गया, प्रमोशन मिल गया या प्रॉपर्टी उसके हाथ लग गई। लेकिन अगर उसका पेट भरा रहता है तो वह खुश रहता है क्योंकि खुश रहना हमारा नैसर्गिक अधिकार है। लेकिन जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है वह अपने स्वभाव से कटता जाता है क्योंकि उसकी कंडीशनिंग की जाती है, उसे समझाया जाता है कि खुशी पैसा कमाने में है, जब कोई पदोन्नति मिल जाए, सम्पत्ति मिल जाए तो उसमें खुशी है सम्मान है। जब इस तरह सिखाया जाता है और ऐसा ही माहौल उसके आसपास रहता है तो वह तीस-चालीस साल का होने तक पूरी तरह भूल जाता है कि हमारे अंदर भी खुशियों का कोई स्रोत है। वह भूल जाता है बचपन में हम कैसे थे और क्या थे, उसका सारा ध्यान इसी में लग जाता है कि पैसा कमाओ। चाहे बेईमानी से कमाओ, चोरी करके कमाओ, झूठ बोलकर कमाओ, पर पैसा कमाओ, प्रॉपर्टी खड़ी करो। लेकिन वह योग करना शुरू करता है तो योग फिर उसे उसके अंतरतम से जोड़ देता है। तो उसे फिर लगता है कि उसके भीतर तो खुशी के अलावा कुछ नहीं है। फिर सारी चीजें बेमानी हो जाती हैं। तब लगने लगता है कि अब तो बेईमानी करने में तनाव है। और जो आनंद है वह तो वैसे ही जीवन में आ रहा है। फिर सारा लालच, सारे भय सब समाप्त हो जाते हैं।
जो व्यक्ति योग करेगा वह सामान्यत: अच्छा इन्सान रहेगा। ऐसा 100 प्रतिशत सच है। लेकिन जितनी जल्दी शुरू किया जाए उतना अच्छा। जब केस बहुत बिगड़ जाए तब उतना लाभ नहीं होता। जैसे आपको किसी का हृदय अच्छा रखना है तो किस उम्र में इस पर ध्यान दिया जाए? जब वह बचपन में है या जवान है, जब उसका दिल स्वस्थ है। आप यह तो नहीं इन्तजार करेंगे कि जब इसे हार्ट अटैक पड़ जाए तब हम बताएंगे कि इसे कैसे अपने हृदय को स्वस्थ रखना है। तो वैसे ही जब आदमी भ्रष्टतम हो जाए और भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं लांघ जाएं तब उसको योग सिखाने का भी क्या फायदा। योग तो तब सिखाना चाहिए जब उसके अंदर बीमारियां पनपी नहीं हैं। इसे कक्षा एक से ही सिखाया जाना चाहिए जिससे दिमाग बेईमानी की तरफ जाए ही नहीं।
दुर्भाग्य से भारत में पांच प्रतिशत से भी कम विद्यालयों में योग सिखाया जा रहा है। सरकार की तरफ से योग शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। बच्चे स्कूल से घर आएं तो उनके मां-बाप भी योग करें जिससे बच्चे को लगे कि विद्यालय में जो बात सिखाई जा रही है वह सही है और हमारे मां-बाप भी उसे करते हैं। अभी विद्यालयों में सच बोलो, ईमानदारी से रहो ऐसे पाठ पढ़ाए जाते हैं, ये नैतिक शिक्षा का हिस्सा हैं, लेकिन बच्चा देखता है कि उसके घर में और समाज में सब तरफ बेईमानी का बोलबाला है। न केवल बोलबाला है बल्कि आज ऐसा समय आ गया है कि जो जितना ज्यादा बेईमान है उसकी उतनी ज्यादा इज्जत है। तो उसको विद्यालय में सिखाई गई बातें झूठ लगने लगती हैं। विद्यालय में तो एक बनावटी माहौल है, नकली बातें सिखाई जा रही हैं लेकिन असली जीवन तो यहां है, विद्यालय से बाहर है। वह बेईमानी का आदर होता देखता है तो वह विद्यालय की बातें भूल जाता है और बेईमान बन जाता है।
योग तो एक ही है
योग एक ही है जो पतंजलि ने एक विज्ञान के रूप में विकसित किया है। उन्होंने परिभाषित किया कि यह अष्टांग योग है जिसके आठ भाग होते हैं- 1-यम, 2-नियम, 3-प्राणायाम, 4-प्रत्याहार, 5- आसन, 6- धारणा, 7-ध्यान और 8-समाधि। अब यह लोगों को समझ में आने लगा और लोग इसे अपनाने लगे। अपनाना करना आसान हो गया। बाद में इसी को लोगों ने अपने हिसाब से परिष्कृत कर अपने नाम से मार्केट किया है। आत्मा या सार सभी का वही है जिसे पतंजलि ने दिया। सारे योग पूरी तरह वैज्ञानिक हैं।
योग का अंतिम लक्ष्य है कि आप परम आनंद को प्राप्त हों। इससे खुशियां बढ़ती हैं। ये खुशियां ऐसी हैं जो अंदर से प्रकट होती हैं। आपको पता चलता है कि खुशियों का स्रोत आपके अंदर है और कभी खत्म नहीं होता। तो योग से व्यक्ति वह परम आनंद प्राप्त कर सकता है। परम आनंद, जैसे सूर्य का प्रकाश, फिर अंधेरा वहां पर हो नहीं सकता। जिस व्यक्ति को ऐसा आनंद मिलता है फिर वह चोरी, बेईमानी या किसी नकारात्मक कार्य में कैसे संलग्न हो सकता है।
सब सुखी हों, रोगमुक्त हों
योग के अमरीका में सबसे ज्यादा फैलने का कारण यह है कि अमरीका के लोग ज्यादा समझदार हैं, ज्यादा वैज्ञानिक बुद्धि वाले हैं। तार्किक बात जल्दी समझ आती है। कोई भी मेडिकल शोध होती है तो उसके परिणाम सबसे पहले अमरीकी अपनाते हैं। इधर अपने देश में योग प्रचलित करने का मुख्य श्रेय मैं बाबा रामदेव को देता हूं। ये उनकी बड़ी सफलता है। लेकिन हमारे देश में ज्यादातर लोग योग को इसलिए कर रहे हैं कि उनका दर्द ठीक हो जाए, मधुमेह या दिल ठीक हो जाए। वह इसे एलोपैथी का विकल्प समझकर कर रहा है। वह कोई बहुत बड़ा लक्ष्य देख ही नहीं रहा है। बस दर्द ठीक हो जाए और इसके लिए एलोपैथी गोली न लेनी पड़े। बड़ी छोटी सोच है उसकी। वह योग को दर्द निवारक पैरासिटामॉल की गोली की तरह उपयोग करता है। यह उचित नहीं है।
योग तो इन्सान को देवता बना देता है। यह बहुत बड़ी चीज है। रामदेवजी बहुत मेहनत कर रहे हैं इसे सर्वत्र पहुंचाने में वे लोगों हैं कि योग से तुम्हारी तकलीफ, दर्द दूर हो जाएगा। रामदेव परम योगी हैं लेकिन वह आनंद, खुशी की बात करेंगे तो सुनने वाला कौन है? उन लोगों को तो यह सब चाहिए नहीं। लेकिन आज इसी बहाने करोड़ों लोग योग, प्राणायाम कर तो रहे हैं। सकारात्मकता की यह धारा देश को बहुत आगे तक ले जाएगी और इस दृष्टि से रामदेव का काम बहुत सराहनीय है। उन्होंने देश में योग को पुनर्स्थापित किया है। मैंने आर्ट ऑफ लिविंग का भी पाठ्यक्रम किया है और वह भी काफी प्रभावशाली है।

तरह-तरह के योग
शक्ति योग
इसके प्रवर्तक भरत ठाकुर हैं। इसके अंतर्गत एक हॉल में हीटर जला दिया जाता है और हॉल के तापमान को चालीस से छियालीस डिग्री तक ले जाया जाता है। इस तापमान पर योग शक्ति करवाया जाता है ताकि खूब पसीना आए। इस योग में पसीने पर जोर दिया जाता है यानी पसीना खूब आना चाहिए।
विक्रम योग
इसके प्रवर्तक बिक्रम चौधरी हैं। यह शक्ति योग का ही अमरीकी रूप है। अंतर सिर्फ इतना है कि यह अमरीका आधारित है। चौधरी ने योग का एक खास पैकेज तैयार किया है, जिसे वह अपने नाम से पेटेंट करना चाहते हैं। इस पर तमाम भारतीय ऋषि-मुनियों ने आपत्ति प्रकट की है।
शिवानंद योग
इसमें ध्यान पर अधिक जोर दिया जाता है। यहां ध्यान और अध्यात्म मुख्य हैं। इसके अलावा इसमें षट्कर्म, शोधन क्रिया भी करवाई जाती है। इस योग में प्राणायाम वगैरह भी करवाए जाते हैं।
आयंगर योग
इसमें खास तरह की रस्सी, कुर्सी, लकड़ी, मूढ़ा, गेंद, गद्दा, चटाई और पोशाक के माध्यम से योग करवाया जाता है। जैसे किसी व्यक्ति के पैरों में कोई तकलीफ है और वह जमीन पर नहीं बैठ सकता तो यहां उसके लिए खास तरह की कुर्सी है, जिस पर बैठकर वह आसन कर सकता है। इसमें खास विधि द्वारा योग करवाया जाता है इसलिए इसे यांत्रिक योग भी कहा जाता है। इसमें जिम और फिजियोथैरेपी को मिला दिया गया है। पश्चिमी देशों में योग के नए भारतीय रूप को प्रचलित करने में इस योग के प्रवर्तक बीकेएस आयंगार का बहुत बड़ा योगदान है।
रामदेव योग
इसमें मुख्य जोर कपालभाति और अनुलोम-विलोम पर दिया जाता है। यहां योग, आयुर्वेद और नेचुरोपैथी तीनों को शामिल किया गया है। उचित खान-पान और सही जीवन शैली अपनाने पर ध्यान।
श्री श्री योग
श्री श्री रविशंकर प्रवर्तित आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से श्री श्री योग शुरू किया गया है, जिसमें तीन दिन के शिविर में योगासन और प्राणायाम आधारित क्रियाएं कराई जाती हैं। विशेषत: सूर्य नमस्कार। यह सभी तरह के योग पैकेजों का समन्वित रूप है। यहां जड़ता कम है। खुलापन अधिक है।

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