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गत 28 अक्तूबर को नई दिल्ली में वरिष्ठ शिक्षाविद् श्री दीनानाथ बत्रा द्वारा लिखित पुस्तक 'भारतीय शिक्षा का स्वरूप' का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल के कर-कमलों से हुआ। इस अवसर पर डॉ. कृष्ण गोपाल ने श्री दीनानाथ बत्रा के सम्बंध में कहा कि बत्रा जी ने अपना पूरा जीवन शिक्षा को समर्पित किया हुआ है। शिक्षा में सुधार के लिए उनका संघर्ष दिनोंदिन पैना होता गया है। उन्होंने अपनी पुस्तक में शिक्षा में आवश्यक तत्वों का विशद् उल्लेख किया है। सबसे जरूरी है बीमारी का पता लगाना तभी उसका सही इलाज संभव है। विदेशी यात्री मेगस्थनीज ने 'इंडिका' में भारत के समाज के स्वरूप का वर्णन करते हुए लिखा है कि यहां लोग सत्यनिष्ठ हैं,अतिथि का सत्कार करते हैं। यहां तक कि लॉर्ड मैकाले ने भी उल्लेख किया कि भारत के लोग सांस्कृतिक रूप से आदर्श हैं,धोखा नही देते, झूठ नहीं बोलते, करार नहीं तोड़ते। प्रश्न है कि हमारे ऐसे उच्च आदर्श होते हुए भी आज उनका अध:पतन कैसे हो गया? अंग्रेजों ने यहां के स्वाभिमान को ध्वस्त करने का काम किया। आजादी के बाद मौलिक दर्शन का लुप्त होना दुर्भाग्यपूर्ण था। जो खराबी आई उसको सुधारने का प्रयास नहीं किया गया। आज शिक्षा में भारत के बारे में कोई ठोस सामग्री नहीं है। भारत की प्रतिष्ठा,गरिमा को लेकर उसमें कुछ भी नहीं है। शिक्षा ऐसी हो कि वह देश के मर्म को प्रस्तुत करे। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. कपिल कपूर ने कहा कि शिक्षा में बदलाव की जरूरत है। शिक्षा सर्वसुलभ और देश की आत्मा से जुड़ी होनी चाहिए। श्री दीनानाथ बत्रा ने कहा कि शिक्षा और जीवन की परिभाषा में कोई अंतर नहीं है। दोनों का उद्देश्य एक है। शिक्षा विवेकशील बनाती है,शिक्षा का दायरा विशाल होता है,इसके लिए उदार होना जरूरी है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय शहरी विकास तथा संसदीय कार्य मंत्री श्री एम.वेंकैया नायडू ने कहा कि शिक्षा में चरित्र निर्माण और भारतीयता का होना आवश्यक है।
ल्ल प्रतिनिधि
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