|
देश की मिट्टी और उसकी सुगंध क्या होती है, इसका पता हमें तभी चलता है जब हम लम्बे समय के लिए अपने देश से दूर होते हैं। देश से दूर जाकर रहने की बाध्यता तो सबके लिए अलग-अलग हो सकती है, लेकिन देश छोड़ने का दर्द शायद सबके लिए समान होता है। पर जिंदगी चलती रहती है और अपने देश को छोड़कर विदेश जाने वाले लोग भी देश और अपने लोगों से बिछुड़ने का दर्द भूलकर रोजी-रोटी कमाने में व्यस्त हो जाते हैं। पर किसी त्योहार के आते ही अपनी मिट्टी और अपने परिवार से दूर होने का दर्द तीव्र हो उठता है। त्योहार के दौरान देश में अपने परिवार के साथ न होने और साथ-साथ त्योहार नहीं मना पाने का दर्द उन्हें बेचैन करता है। और इसी कारण से विदेशी धरती पर देशी त्योहारों को मनाना एक अलग ही अहमियत रखता है।
दुबई भारत के पश्चिम में अरब सागर के पार एक ऐसी विदेशी भूमि है जो विदेशी होकर भी कई अर्थों में विदेश नहीं लगती। आपको दुबई हवाई अड्डे पर भी हिन्दी में बात करने वाले और हिन्दी समझने वाले बहुत सारे लोग मिल जाएंगे। बहुत मुमकिन है कि इमिग्रेशन काउंटर पर बैठा अरबी व्यक्ति आपसे हिन्दी में बात करने लगे। दुबई कहीं से भी आपको एक विदेशी धरती पर होने का आभास नहीं देता। हां, इसका आभास आपको तभी मिलता है जब आप यह पाते हैं कि आपके प्रियजन आपके साथ नहीं हैं। वे लोग तो फिर भी बेहतर हैं जिनका अपना परिवार उनके साथ होता है। पर त्योहार एक ऐसा मौका होता है जब आदमी अपने परिवार के दायरे से बाहर निकलता है और अपनी खुशियों को अपने निकट संबंधियों, अपने पड़ोसियों और अपने समाज के साथ बांटता है। इसीलिए विदेश में होली और दीवाली जैसे त्योहार में अपने परिवार की उपस्थिति भी आपको पर्याप्त नहीं लगती।
दुबई में भारतीयों की बहुत बड़ी संख्या है, जो देश के विभिन्न भागों से वहां आए हैं। यहां लोग होली भी मनाते हैं और दीवाली भी, बैसाखी भी और ओणम भी। पर इन त्योहारों का रंग यहां कुछ अलग होता है। शायद यूरोप और अमरीका में रहने वाले किसी भारतीय को यह अनुभव न हो, पर दुबई के भारतीयों को होने वाला यह अनुभव खास है।
दुबई जैसा कि हम जानते हैं, एक इस्लामी देश है। यहां इस्लाम के अलावा किसी और धर्म या मत को मानने की कानूनी इजाजत नहीं है। दुबई में बाहर से आए हुए लोगों की संख्या स्थानीय लोगों से कहीं अधिक है और इनमें गैर इस्लामी देशों के लोगों की संख्या काफी है, यह यहां का प्रशासन बखूबी जानता है। दुबई एक बाजार है और बाजार का अपना गणित होता है। बाजार भेदभाव नहीं करता क्योंकि अगर वह किसी तरह का भेदभाव करेगा तो इससे उन उद्देश्यों की पूर्ति नहीं होगी जिनको ध्यान में रखकर बाजार की स्थापना की गई है। सो यहां का प्रशासन ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता जिससे यहां के बाजार की आभा कम हो। यहां भारत के अलावा, श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान, बांगलादेश और फिलीपींस से आए लोगों की संख्या काफी है। यूरोप और अमरीका के भी लोग यहां हैं। दुबई का बर दुबई इलाका एक ऐसी जगह है जहां पर भारतीय काफी संख्या में हैं। बर दुबई का मीना बाजार इलाका छोटा भारत लगता है। यहां की 90 फीसद दुकाने भारतीयों की हैं। यहां पर समुद्र की एक धारा अंदर की ओर आई है जिसे क्रीक कहते हैं। यह क्रीक बर दुबई और डेरा को अलग करता है। बर दुबई से डेरा जाने के लिए धो (मोटरचालित नाव) चलती है। यहीं पर क्रीक के किनारे एक विशाल मस्जिद के पास एक भवन है जिसमें मलयाली बंधुओं के अयप्पा स्वामी भी स्थापित हैं, एक गुरुद्वारा भी चलता है और हिंदुओं के भगवान भी विराजमान हैं। सो प्रतिदिन सवेरे यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होती है। लोग आते हैं, क्रीक के पानी में अपने पाँव धोते हैं और फिर अपने भगवान के दर्शन करने के लिए जाते हैं। हिंदुओं के त्योहार जैसे रामनवमी, कृष्णाष्टमी या अन्य मौकों पर यहां काफी भीड़ होती है और बड़ी संख्या में लोग आते हैं। उस दिन यहां दुबई पुलिस की ओर से यातायात संचालन और भीड़ को नियंत्रित करने की विशेष व्यवस्था होती है। यह इस बात की पुष्टि करता है कि इस्लामी राज्य होने के बावजूद प्रशासन इस बात से वाकिफ है कि यहां दूसरे धर्मांे के लोग भी अपने त्योहार मनाते हैं। पर प्रशासन कभी इन पर पाबन्दियां नहीं लगाता, बल्कि इनके बेहतर आयोजन में मदद करता है।
दीवाली के मौकों पर दुल्हन की तरह सजे यहां के बाजारों को देखकर आपको कतई यकीन नहीं होगा कि आप भारत में नहीं हैं। अपनी दुकानों और घरों की रंगाई-पुताई का काम हर भारतीय दीवाली के मौके पर ही करता है- वैसे ही जैसे भारत में हम करते हैं। सो दुबई में दीवाली के ठीक पहले भवनों और दुकानों की रंगाई-पुताई एक आम दृश्य होता है। दुकानों पर दीवाली की खरीदारी के लिए लोगों की भीड़। दीवाली के ऐन पहले धनतेरस के दिन सोने की दुकानों पर उमड़ी लोगों की भीड़ को देखकर आपको कहीं से यह आभास नहीं होगा कि आप भारत में नहीं हैं। दुबई में आभूषणों के शोरूम शायद अन्य किसी भी दुकान से ज्यादा हैं। पर धनतेरस की भीड़ को देखकर लगेगा कि शायद ये दुकानें कम पड़ गई हैं। ऐसी हर वस्तु आपको यहां मिल जाएगी जो आप दीवाली में खरीदते हैं। और चूंकि यहां दीवाली के लिए जरूरी सभी सामान भारत से आते हैं और इनको दुबई लाने के लिए आयात की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिसमें वक्त लग सकता है, सो यह प्रक्रिया तीन-चार महीने पहले ही शुरू हो जाती है ताकि दीवाली से पहले ये सामान बाजार में उपलब्ध हो जाएं।
दीवाली पर यहां दुबई में दिन में हर दुकान एवं घर में दीपावली की पूजा होती है और जाहिर है कि इतनी संख्या में जब पूजा होगी तो इसके लिए पूजा कराने वाले पंडितों की भी जरूरत होगी। कुछ पंडित तो वहां एक पेशेवर के रूप में ही रह रहे हैं, जो अन्य दिनों में भी लोगों को सामान्य पूजा करवाते हैं। पर दीवाली जैसे मौके पर वहां रह रहे पंडित कम पड़ जाते हैं और इसीलिए दीवाली पर भारत से पंडितों को विशेष रूप से बुलाया जाता है। दीवाली हो और आतिशबाजी न हो तो शायद मजा किरकिरा हो जाता है। खासकर बच्चों के लिए पटाखे चलाने से आनंददायक और कुछ नहीं होता। प्रशासन की सख्ती के बावजूद आतिशबाजी में कोई कमी आपको देखने को नहीं मिलेगी। पर निश्चित रूप से यह उस पैमाने पर नहीं होती जितना कि हम भारत में करते हैं।
अपने वतन से दूर त्योहार की अहमियत कुछ अलग होती है। एक बड़ा अंतर तो यह है कि कई बार लोग विभिन्न देशों के अपने दोस्तों के साथ इस तरह के त्योहारों में शरीक होते हैं जो इस त्योहार को एक अंतरराष्ट्रीय रंग और आयाम देता है। इस दृष्टि से दुबई की दीपावली भी भारतीयों के लिए अलग और विशेष होती है। यद्यपि दीवाली के मौके पर बहुत से लोग तो भारत आकर अपने परिवार एवं स्वजनों के साथ दीवाली मनाते हैं, पर बहुत से लोग ऐसा नहीं कर पाते। भारत और दुबई के बीच कम दूरी के बावजूद ऐसा कर पाना बहुत सारे लोगों के लिए मुमकिन नहीं होता। ल्ल
टिप्पणियाँ