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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली प्रान्त द्वारा हरियाणा के सोनीपत स्थित भगवान महावीर इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में 25 से 28 सितम्बर तक 'युवा संकल्प शिविर' आयोजित हुआ। शिविर में दिल्ली के वे स्वयंसेवक शामिल हुए, जो किसी न किसी महाविद्यालय मंें पढ़ाई कर रहे हैं और संघ में कोई दायित्व भी निभा रहे हैं। शिविर में दिल्ली के कुल 2050 स्वयंसेवकों ने भाग लिया। इनमें छात्रों की कुल संख्या 1694 रही और शेष स्वयंसेवक व्यवस्था में लगे। शिविर को सफल बनाने में इन स्वयंसेवकों ने रात-दिन कड़ी मेहनत की। शिविर की विशेषता यह थी कि सभी स्वयंसेवक स्वयं के खर्चे से आए थे। चार दिवसीय इस शिविर में छात्रों ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया और युग परिवर्तन का संकल्प लिया। इसके साथ ही उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत एवं अन्य वरिष्ठ प्रचारकों का मार्गदर्शन भी मिला। शिविर का उद्देश्य था महाविद्यालयीन स्वयंसेवकों के बीच योग्य कार्यकर्ता खड़ा करना, उनमें वैचारिक स्पष्टता लाना और नेतृत्व क्षमता पैदा करना।
शिविर का औपचारिक उद्घाटन 26 सितम्बर को श्री मोहनराव भागवत ने दीप प्रज्चलित कर किया। उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि थे प्रसिद्ध वैज्ञानिक और परमाणु आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल काकोडकर। मंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली प्रान्त के प्रान्त संघचालक श्री कुलभूषण आहूजा भी उपस्थित थे।
शिविरार्थियों को सम्बोधित करते हुए श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि मनुष्य को अपना और अन्य जीवों का कल्याण करना है तो उसे सत्य पर आधारित जीवन जीना होगा। सत्य है कि आत्मा एक है और यही आत्मा परमात्मा है। यही आत्मा हर जीव में विद्यमान है। परमात्मा की सेवा करना ही हमारा लक्ष्य है। इसलिए सारी दुनिया के सुख के लिए हमारा जीवन है। जब हम ऐसा करते हैं तो हमारा जीवन उपयोगी होता है, सुख देता है और दुनिया का भी भला करता है। श्री भागवत ने यह भी कहा कि हिन्दू वही है, जो सबके सुख और उन्नति की कामना करता है और सृष्टि के सभी जीवों को समान भाव से देखता है। उन्होंने कहा कि संघ हिन्दू राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए काम करता है, लेकिन आज हिन्दू की चर्चा करते ही कुछ लोग कहने लगते हैं संघ साम्प्रदायिक है। आज हिन्दुत्व को जानने की जरूरत है। श्री भागवत ने कहा कि आज दुनिया और सृष्टि के बारे में मनुष्य की जानकारी बढ़ी है। मनुष्य मंगल ग्रह के बारे में जानकारी लेने का प्रयास कर रहा है। मनुष्य अपनी बुद्धि के बल पर सृष्टि का राजा है और सभी जीवों पर राज करता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि मनुष्य जीवन सुखी है, लेकिन यह सही नहीं है। आज सृष्टि के संसाधनों को लेकर लड़ाई हो रही है। यही नहीं भाषा और प्रान्त को लेकर भी संघर्ष हो रहे हैं। मनुष्य ही मनुष्य को मार रहा है। प्राकृतिक संसाधन समाप्त हो जाएंगे तो क्या होगा, इसका लोगों में भय है। इसलिए मनुष्य दुविधा में है। इससे निकलने का मार्ग एक ही है और वह है सत्य का मार्ग।
डॉ. अनिल काकोडकर ने युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि अच्छी शिक्षा प्राप्त करना पहली बात है, उस शिक्षा के आधार पर देश और समाज के लिए कुछ कर दिखाना दूसरी बात है और अपनी उपलब्धि लम्बी अवधि तक समाज जीवन पर प्रभाव डाल सके, यह तीसरी बात है। हम ऐसा कर दिखाएं कि हमारे न रहने से भी हमारे कार्य का प्रभाव समाज पर दिखे। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे आधुनिक तकनीकी का अधिक-अधिक से इस्तेमाल कर अपने कौशल का विकास करें। इस अवसर पर अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य, अखिल भारतीय शारीरिक शिक्षण प्रमुख श्री अनिल ओक, क्षेत्रीय प्रचारक श्री रामेश्वर, सह क्षेत्रीय प्रचारक श्री प्रेम कुमार, क्षेत्रीय कार्यवाह श्री सीताराम व्यास, सह क्षेत्रीय कार्यवाह श्री विजय कुमार, क्षेत्रीय बौद्धिक प्रमुख श्री अजय कुमार, वरिष्ठ प्रचारक श्री गोपाल आर्य सहित अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित थे। उद्घाटन सत्र के बाद शिविरार्थियों के विभिन्न समूहों के साथ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की बैठकें हुईं। भोजनावकाश के बाद 'संघ की राष्ट्र निर्माण में भूमिका' विषय पर एक गोष्ठी आयोजित हुई। इसकी अध्यक्षता डॉ. अनिल काकोडकर ने की। मुख्य वक्ता थे श्री मोहनराव भागवत। सान्निध्य मिला उत्तर क्षेत्र के संघचालक डॉ. बजरंगलाल गुप्त का। गोष्ठी मंें देश के अनेक विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, प्राध्यापकों और शिक्षण संस्थान चलाने वाले शिक्षाविदों ने भाग लिया। इन शिक्षाविदों ने संघ को लेकर अनेक प्रश्न किए जिनके उत्तर सरसंघचालक ने दिए।
शिविर के दूसरे दिन 'राष्ट्र उत्थान में प्राध्यापकों की भूमिका' विषय पर एक गोष्ठी आयोजित हुई। गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि आज राष्ट्र निर्माण का काम रा.स्व.संघ कर रहा है, लेकिन कुछ लोगों को संघ के विषय में ठीक प्रकार से जानकारी नहीं है। कार्यक्रम के मध्य में प्रश्नोत्तर का भी कार्यक्रम था। इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक भूपेश कुमार ने सवाल किया कि संघ समाज के हर अच्छे काम का सहभागी है, लेकिन अपने काम का प्रचार नहीं करता है, ऐसा क्यों? इस पर सरसंघचालक ने कहा कि हमारा अपना प्रचार का तंत्र है। हम घर-घर जाते हैं, लोगों से मिलते हैं और अपना कार्य करते हैं। एक प्राध्यापक ने सवाल किया कि आज हम डॉक्टर और इंजीनियर बनाते जा रहे हैं, लेकिन इसका परिणाम यह हो रहा कि वे राष्ट्रीयता की भावना से दूर होते जा रहे हैं? इस पर श्री भागवत ने कहा कि सबसे पहले अपने बच्चों की इच्छा को जानना चाहिए। अधिकतर परिवारों में बच्चों पर दबाव होता है कि आपको अमुक क्षेत्र में ही जाना है, पर बच्चों की रुचि किसी अन्य क्षेत्र में होती है। जब वे अपनी रुचि के क्षेत्र में न जाकर किसी अन्य क्षेत्र में जाते हैं, तो वहां उनका एक ही उद्देश्य हो जाता है सिर्फ धन अर्जित करना। इस कारण वे धन के लालच में राष्ट्रीय भावना से दूर होते चले जाते हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय के एक अन्य शिक्षक राकेश कंवर ने सवाल किया कि जो शिक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं उन पर आरोप लगते हैं कि वे राजनीतिक हैं। इस पर सरसंघचालक ने कहा कि हम राष्ट्र की बात करने वालों का समर्थन करते हैं। जो राष्ट्र की बातें करता है संघ उसके साथ है। अच्छे काम के लिए संघ सभी के साथ है। गोहत्या बंद हो, राम मंदिर का निर्माण हो यह हमारा कार्य है। संघ से जुड़ने वालों को अलग नजर से देखा जाए ,यह स्वाभाविक है।
गोष्ठी के अन्त में प्राध्यापकों को सम्बोधित करते हुए श्री भागवत ने कहा कि राष्ट्र निर्माण में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षक को आज शिक्षार्थियों को बताना है कि सत्य पर ही रहना है, किसी भी परिस्थिति में सत्य से नहीं डिगना है। चाहें कितने भी संकट क्यों न आएं। इस अवसर पर डॉ. बजरंग लाल गुप्त सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित थे।
इसी दिन सुप्रसिद्ध साहित्यकार और समाजसेवी श्री गिरीश प्रभुणे ने भी एक चर्चा सत्र में भाग लिया। इसके बाद दिल्ली से आए पत्रकारों ने अनेक विषयों पर सामूहिक चर्चा की।
शिविर का समापन 28 सितम्बर को हुआ। प्रात: विशाल खेल का आयोजन हुआ। इसके बाद समापन समारोह आयोजित हुआ। समारोह को सम्बोधित करते हुए सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि संघ को समझना है तो डॉ. हेडगेवार के जीवन को समझो और डॉ. हेडगेवार को समझना है तो संघ को समझो। उन्होंने अपने खून को पानी कर संघ के लिए काम किया। हिन्दू समाज को संगठित किया। यदि आप उनके बौद्धिकों को पढ़ें तो उन्होंने परिस्थितियों के बारे में बहुत कम कहा है। हमें क्या करना चाहिए इस बारे में उन्होंने सबसे ज्यादा कहा है। संघ में व्यक्ति वंदना नहीं होती, बल्कि संघ परिवार भाव के आधार पर चलता है। संघ आत्मीयता से चलता है। उन्होंने एक लघु कथा के जरिए स्वयंसेवकों को जीवन में सक्रिय रहने व अपने उद्देश्य के प्रति जागरूक रहने का संदेश दिया। श्री भागवत ने कहा कि संघ में हमारा रिश्ता नेता कार्यकर्ता का नहीं होता, बल्कि एक कुटुंब में आत्मीयता से रहने का होता है। हमें अपने दायित्व को पूरी निष्ठा के साथ निभाना चाहिए। दायित्व छोटा या बड़ा नहीं होता। इसलिए आपको जो भी दायित्व मिले उसे सर्वश्रेष्ठ मानकर पूरी ईमानदारी से अपने कार्य को करना चाहिए। संघ के स्वयंसेवक को पहले संघ बनना पड़ता है। संघ के आचरण को अपने जीवन में उतारना पड़ता है। संघ कार्य को आगे बढ़ाने के लिए हमें निरंतर सक्रिय रहना चाहिए।
इस अवसर पर अनेक अखिल भारतीय अधिकारी और वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित थे।
ल्ल साथ में अश्वनी मिश्र और आदित्य भारद्वाज
शिविर में आए स्वयंसेवकों के अनुभव
मेरे दादा, पिता सभी स्वयंसेवक हैं। संघ की शाखा से ही देशभक्ति की प्रेरणा मिली। इस तरह के शिविरों में आने से वैचारिक सोच मजबूत होती है और सामाजिक दायरा भी बढ़ता है।
-पुनीत भारद्वाज, स्नातकोत्तर छात्र
महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक
पहले देर से जगने पर घर में डांट पड़ती थी। संघ के सम्पर्क में आने के बाद ऐसा नहीं होता है। शाखा जाने के लिए सुबह साढ़े पांच बजे ही नींद खुल जाती है। अब तो जल्दी जग जाने पर घर वाले कहते हैं, अभी अंधेरा है,थोड़ी देर रुक कर शाखा जाना। हमारे देश ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है, यह जानकारी संघ से जुड़ने के बाद ही मिली।
-वैभव चड्ढा, एल.एल.बी., द्वितीय वर्ष के छात्र
दिल्ली विश्वविद्यालय
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ही हमें बताया कि हमें समाज के लिए भी कार्य करना चाहिए। इसलिए मैं प्रतिदिन अपने पड़ोस के उन बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाता हूं, जो पैसे के अभाव में कहीं ट्यूशन नहीं पढ़ पाते हैं। किसी आपदा के समय राहत कार्य करने की भी आदत हो गई है।
-अमित कुमार जायसवाल, प्रयोगशाला सहायक
जी.बी. पंत इंजीनियरिंग कॉलेज, ओखला, दिल्ली
संघ के प्रचारकों के जीवन से प्रभावित होकर संघ से जुड़ा। प्रचारक अपनी जन्मभूमि की सेवा करने के लिए अपना घर छोड़ देते हैं, यह कोई साधारण बात नहीं है। यहां शिक्षा मिली कि हमारा यह जीवन तभी सार्थक हो सकता है जब हम भी देश का मान बढ़ाने के लिए कुछ कर पाएंगे।
-मेधावी कृष्ण, शोधार्थी
बौद्ध अध्ययन केन्द्र, दिल्ली विश्वविद्यालय
शिविर की झलकियां
ल्ल शिविरार्थियों को ठहराने के लिए चार निकेत बनाए गए थे। इन निकेतों का नामकरण भारत के चार प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के नाम पर किया गया था। पहले निकेत का नाम डॉ. चन्द्रशेखर वेंकटरमन, दूसरे निकेत का डॉ. विक्रम साराभाई, तीसरे निकेत का डॉ. जगदीश चन्द्र बसु और चौथे का डॉ. होमी जहांगीर भाभा था।
ल्ल शिविर के पहले दिन रात्रि में प्रसिद्ध कलाकार बाबा सत्य नारायण मौर्य ने भारत माता की आरती की। इस कार्यक्रम की बड़ी सराहना हुई।
ल्ल शिविर में रस्सा-कशी, कबड्डी, सहायता दौड़, बाधा दौड़, मण्डल खो, दही हांडी, गेंद मार प्रतियोगिता, गेंद पास प्रतियोगिता, गणेश परिक्रमा, संकलन आदि खेलों के साथ-साथ व्यायाम योग, सूर्य नमस्कार, समता, आशु भाषण, पोस्टर प्रदर्शनी आदि कार्यक्रम हुए।
ल्ल पहले दिन एक साथ 21 स्थानों पर समूहश: बैठकें हुईं। इन बैठकों में 'योग्य एवं जागृत सामाजिक नेतृत्व ही समाज परिवर्तन का आधार' विषय पर चर्चा हुई। स्वयंसेवकों को बताया गया कि किस प्रकार जागृत समाज ने समय-समय पर विभिन्न खतरों को टाला है।
ल्ल शिविर के दूसरे दिन 'समान नागरिक संहिता' विषय पर सामूहिक चर्चा हुई। इसमें पत्रकारों की एक टोली और स्नातकोत्तर और शोध के छात्रों ने भाग लिया। चर्चा में समान नागरिक संहिता पर पक्ष-विपक्ष के अनेक बिन्दुओं पर खुलकर चर्चा हुई।
ल्ल शिविर के तीसरे दिन भी 21 स्थानों पर समूहश: बैठकें हुईं। इन बैठकों में 'पाश्चात्य के बिना आधुनिकीकरण' पर चर्चा हुई। इसमें स्वयंसेवकों को बताया गया कि पाश्चात्य संस्कृति के पीछे न भागें, आधुनिक रहते हुए भी भारतीयता बनाए रखें।
शिविर का गीत
तरुणाई अब जाग उठी है,
जागी तेजस्वी हुंकार
मंगलकारी गौरवशाली,
नव रचना होगी साकार…
-अरुण कुमार सिंह
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