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सफल निशानेबाजों की लंबी कतार में शामिल होने के लिए नेपाल के किसान परिवार का एक युवा जीतू राय ने भारत की ओर रुख किया और उसे भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट में नौकरी मिल गई। जीत की जिजीविषा लिए प्रतिभा के धनी जीतू ने पिस्टल शूटिंग में अपना कॅरियर आगे बढ़ाने का मन बनाया। इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धमाल मचाते हुए जीतू न केवल 2016 रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाले पहले भारतीय निशानेबाज बने, पर इंचियोन से स्वदेश वापसी पर जीतू का वैसा स्वागत नहीं किया गया जैसा आमतौर पर भारतीय क्रिकेट टीम या अन्य खिलाडि़यों का किया जाता है। उनसे हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं-
ल्ल भारत के लिए आपने स्वर्ण पदक जीता, पर स्वदेश लौटने पर आपका स्वागत वैसा नहीं किया गया, जैसा कि क्रिकेट खिलाडि़यों का किया जाता है?
मैं पूरी ईमानदारी से स्वीकार करता हूं कि मुझे भारतीय होने पर गर्व है। नेपाल में मुझे न तो इतनी सुविधाएं मिलतीं और न ही सफल खिलाडि़यों की इतनी लंबी फौज। मुझे भारतीय सेना में नौकरी मिली और प्रशिक्षण के लिए इंदौर के विश्व स्तरीय शूटिंग रेंज में भेजा गया। वहां के गहन प्रशिक्षण की बदौलत मैं उन तमाम सफलताओं को हासिल कर सका जिसका एक निशानेबाज सपना देखता है। आज मैं जो कुछ भी हूं, इसी देश, इसी सेना की बदौलत। फिर मेरे लिए शिकायत की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। जहां तक बात स्वागत की है तो मैं इस बात से बेहद खुश हूं कि राइफल संघ के अधिकारियों और सेना के मेरे साथियों ने मुझे दुल्हे की तरह सम्मान देते हुए इंदौर तक पहुंचाया।
ल्ल क्या कभी आपको यह बात कचोटती है कि आप नेपाल के लिए नहीं खेल सके?
मुझे नेपाल और भारत में कोई अंतर नजर नहीं आता। भारत मुझे शुरू से अपना देश जैसा लगता रहा। मैं भारत आया और उत्तर प्रदेश में मुझे सेना की नौकरी मिल गई। सेना के अधिकारियों के प्रोत्साहन की बदौलत मैं पिस्टल शूटर बनने में सफल रहा। मैं आज बेहद खुश हूं। एशियाड में भी जब पहले ही दिन मैंने 5 मीटर पिस्टल स्पर्धा जीतने के बाद भारतीय तिरंगा सबसे ऊपर लहराता देखा तो मैं बेहद खुश था। गौरव के उस क्षण को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता। मैं इतना ही कह सकता हूं कि मुझे भारतीय होने पर गर्व है। आज मैं जो कुछ हूं इसी देश की वजह से हूं।
इंचियोन में बहाया पसीना रियो में आएगा काम
पहलवानी में कभी भारत का नाम ऊंचा करने वाले सतपाल इन दिनों दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में पहलवानों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। इंचियोन के एशियाई खेलों में भारतीय पहलवानों के प्रदर्शन पर उनसे हुई बातचीत के अंश प्रस्तुत हैं-
ल्ल इंचियोन में भारतीय पहलवानोंे के प्रदर्शन से आप खुश हैं?
मैंने छत्रसाल स्टेडियम के पहलवानों के लिए एक ऊंचा मापदंड तय कर रखा है। इसलिए मैं इंचियोन में भारतीय पहलवानों के प्रदर्शन से उतना खुश नहीं हूं जितना कि होना चाहिए। लेकिन मैं इतना जरूर कहना चाहंूगा कि योगेश्वर दत्त एक चैंपियन पहलवान हैं। बाकी कुछ पहलवानों ने हालांकि रजत या कांस्य पदक जीते, लेकिन मैं इतने से संतुष्ट नहीं हूं। मैं चाहता हंू हमारे पहलवान रियो ओलंपिक में देश के लिए चार-पांच स्वर्ण पदक जीतें। इस लिहाज से मेरा मानना है कि इंचियोन के लिए हमारे पहलवानों ने जो पसीना बहाया है वह रियो ओलम्पिक में काम आ सकता है। बहरहाल, योगेश्वर ने दिखाया कि उसमें अब भी जीत की इच्छाशक्ति प्रबल है। योगेश्वर ने लंदन ओलंपिक और ग्लासगो राष्ट्रमण्डल खेलों में अपने मशहूर फितले दांव की बदौलत पदक जीते थे। मैं जानता था कि विपक्षी पहलवान योगेश्वर के इस दांव की काट ढंूढ लेंगे इसलिए इस बार उसे नए दांव आजमाने की नसीहत दी। आज मैं बेहद खुश हूं कि योगेश्वर ने बड़ी जल्दी नए दांव को अपनाया और देश के लिए सोना जीतने में सफल रहा।
अन्य पहलवानों के लिए आप क्या कहना चाहेंगे?
जहां तक बात बजरंग और नरसिंह यादव की है तो ये दोनों क्रमश: रजत और कांस्य पदक जीतने में सफल रहे। कुश्ती में एशियाई पहलवानों से पार पाना कतई आसान नहीं है। कोरिया, चीन, कजाकिस्तान और ईरानी पहलवान विश्व स्तरीय होते हैं और उन्हें मात देते हुए अगर कोई रजत या कांस्य जीतने में सफल रहता है तो इसे बहुत खराब प्रदर्शन भी नहीं माना जाएगा। लेकिन मुझे तकलीफ सिर्फ इस बात की है कि ये पहलवान अपनी गलती से सिर्फ एक कुश्ती हारे और स्वर्ण के करीब पहुंचकर भी उससे दूर रह गए। कमोबेश यही कहानी युवा पहलवान अमित कुमार, पवन कुमार और प्रवीण राणा के साथ भी रही जो अति आत्मविश्वास की वजह से पदक की दौड़ में शामिल नहीं हो सके। बहरहाल, अनुभव से ही खिलाड़ी सीखता है। मैं इसे युवा पहलवानों के लिए सीख के तौर पर ले रहा हूं।
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