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दक्षिण कोरिया के इंचियोन शहर में आयोजित 17वें एशियाई खेलों के दौरान हर वह बात दिखी जिसे सारे खेलप्रेमी देखना चाहते थे। हालांकि भारत की प्रतिष्ठा के लिहाज से इंचियोन एशियाड उतना सफल नहीं रहा, लेकिन कुछ ऐसी सफलताएं जरूर मिलीं जिनकी चर्चा करना स्वाभाविक है। मसलन, पाकिस्तान पर रोमांचक जीत दर्ज कर भारतीय पुरुष हॉकी टीम का 2016 रियो ओलंपिक के लिए अपनी जगह पक्की करना, एथलिट में महिलाओं की चार गुणा 400 मीटर रिले टीम का एशियाड में लगातार चौथी बार स्वर्ण पदक जीत अपना दबदबा कायम रखना और निशानेबाज जीतू राय व एम. सी. मैरीकॉम की धमाकेदार जीत के साथ सोने का तमगा हासिल करना। इस रपट के लिखे जाने तक भारत के खिलाडि़यों ने 55 पदकों पर कब्जा जमाया है। इनमें 9 स्वर्ण,9 रजत और 37 कांस्य हैं।
भारतीय पुरुष हॉकी टीम की यह स्वर्णिम जीत सिर्फ इसलिए सुकूनदायक नहीं थी कि हमने पाकिस्तान पर रोमांचक जीत के साथ खिताब जीता, बल्कि उससे भी ज्यादा सुखद रहा इस जीत से भारतीय टीम का 2016 रियो ओलंपिक के लिए अपनी जगह पक्की करना। सफलताओं के इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए महिला मुक्केबाज एम. सी. मैरीकॉम ने जहां धमाकेदार अंदाज में जीत दर्ज की, वहीं निशानेबाज जीतू राय, अनुभवी पहलवान योगेश्वर दत्त, टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा और चक्का फेंक (डिस्कस थ्रो) में सीमा पूनिया ने स्वर्णिम सफलताएं हासिल कर भारतीय तिरंगे की शान बरकरार रखी। इस बीच, एक हैरान करने वाली बात यह रही कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी, तीरंदाज और भारोत्तोलक इंचियोन में बुरी तरह से असफल रहे।
हालांकि इंचियोन एशियाई खेलों से पहले भारतीय खिलाडि़यों को पिछले दिनों ग्लासगो राष्ट्रमण्डल खेलों में अपनी तैयारियों को आंकने का अच्छा मौका मिला था। ग्लासगो में भारतीय पहलवानों सहित निशानेबाजों, भारोत्तोलकों, मुक्केबाजों और बैडमिंटन खिलाडि़यों ने अच्छा प्रदर्शन किया था। लेकिन न तो बीजिंग ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा एशियाई खेलों में व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीतने की हसरत पूरी कर पाए और न ही सायना नेहवाल के नेतृत्व में भारतीय बैडमिंटन दल कुछ कमाल दिखा सका। हमारे भारोत्तोलक तो पदकों का खाता भी नहीं खोल सके। इनके अलावा योगेश्वर दत्त ने जरूर एशियाई खेलों की कुश्ती स्पर्धा में पिछले 28 साल से चले आ रहे स्वर्ण पदक के सूखे को खत्म किया, लेकिन उनके अलावा भारतीय पहलवान महज एक रजत और तीन कांस्य ही जीत सके। कुश्ती में एशियाई खेलों का अंतिम स्वर्ण पदक 28 साल पहले 1986 सियोल एशियाड में करतार सिंह ने दिलाया था। लेकिन सुशील कुमार के ओलंपिक में लगातार दो बार पदक जीतने के बाद भारतीय कुश्ती में सुखद बदलाव का दौर आया और भारतीय पहलवान अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में जगह-जगह परचम लहराने में सफल रहे। जाहिर है, उस लिहाज से इंचियोन एशियाड से अमित कुमार व पवन कुमार का खाली हाथ लौटना और बजरंग का अन्तिम दौर में हार जाना कोई विशेष प्रदर्शन नहीं माना जाएगा। बहरहाल, एशियाई खेलों में प्रतिस्पर्धा के बढ़ते स्तर के बीच भारत के कई खिलाडि़यों ने हमें गर्व करने के मौके भी दिए जिनके बारे में चर्चा लाजमी है।
खोई प्रतिष्ठा पाने की राह में हॉकी टीम
भारतीय पुरुष हॉकी टीम को भी लंबे समय से इस जीत का इंतजार था, क्योंकि पिछले कुछ वषोंर् से हरसंभव प्रयास के बावजूद टीम बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही थी। आठ बार के ओलंपिक चैंपियन भारत को अपने राष्ट्रीय खेल की प्रतिष्ठा कायम करने के लिए कड़ी जद्दोजहद करनी पड़ रही थी, जबकि एशियाई खेलों में पिछला स्वर्ण पदक जीते भी 16 साल बीत चुके थे। इस दौरान भारतीय हॉकी टीम को पहली बार ओलंपिक खेलों में क्वालीफाई न कर पाने का दंश भी झेलना पड़ा था, जबकि पाकिस्तान और कोरिया को आसानी से ओलंपिक में प्रवेश मिल जा रहा था। देश में हॉकी के गिरते स्तर को ठीक करने के लिए मोटी तनख्वाह पर तमाम विदेशी प्रशिक्षकों को भारत आमंत्रित किया गया। नतीजा सामने आने में थोड़ा समय लगा जिसकी वजह से हॉकी टीम व खेल संघ की किरकिरी भी हुई। लेकिन इंचियोन में धमाकेदार अंदाज में स्वर्ण पदक जीत भारतीय टीम ने साबित कर दिया कि अब उनकी सफलता की राह को रोकना बहुत आसान नहीं है। भारतीय टीम अपनी परंपरागत शैली में तो पारंगत है ही, अब खिलाडि़यों ने यूरोपीय शैली में तेजतर्रार और पावर हॉकी खेलना भी शुरू कर दिया है।
मैरीकॉम का स्वर्णिम पंच
मुक्केबाजी में भारतीय टीम से काफी उम्मीदें थीं। लेकिन एम. सी. मैरीकॉम के नेतृत्व में महिलाओं ने जहां पदकों पर पंच जड़ा, वहीं पुरुष मुक्केबाजों को खाली हाथ लौटना पड़ा। विजेंदर कुमार की अनुपस्थिति में एल देवेंद्रो सिंह को छोड़ अन्य पुरुष मुक्केबाजों ने निराश किया। वैसे, मुक्केबाजी में रेफरी के निर्णयों पर कुछ सवाल जरूर उठे पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब मौके दिए जाने और तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने के बावजूद भारतीय पुरुष मुक्केबाजों के निराशाजनक प्रदर्शन ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
बहरहाल, महिला वर्ग में पांच बार की पूर्व विश्व चैंपियन एम. सी. मैरीकॉम ने 51 किग्रा वर्ग में स्वर्णिम पंच लगाते हुए एशियाई खेलों में अपना पहला स्वर्ण पदक जीत इतिहास रच दिया। मैरीकॉम ने एशियाई खेलों की महिला मुक्केबाजी में भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया। मैरीकॉम ने पिछले ग्वांगझू एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता था इसलिए उनकी सफलता पर चंद लोगों ने संदेह भी जताया था। लेकिन बढ़ती उम्र के बीच तीन बच्चों की मां और लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता मैरीकॉम ने दिखाया कि दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर वह किसी भी मंच पर भारतीय परचम लहराने में सक्षम हैं। मैरीकॉम को विवादास्पद फैसले के बाद ग्लासगो राष्ट्रमण्डल खेलों में भाग लेने का मौका नहीं मिल सका था। मैरीकॉम चयनकर्ताओं के उस फैसले से बेहद निराश थीं। इसके बाद एशियाड में उन्हें जब मौका मिला तो पहले मुकाबले से ही मैरीकॉम ने अपनी प्रतिद्वंद्वियों पर ऐसे ताबड़तोड़ प्रहार किए जैसे वह साबित करना चाहती हों कि वह अब भी देश की नंबर एक महिला मुक्केबाज हैं। वाकई, मैरीकॉम ने ओलंपिक, विश्व चैंपियनशिप और एशियाड के पदक जीतकर खुद को देश की महानतम महिला मुक्केबाज साबित किया है। मैरीकॉम की चुस्ती, फुर्ती और ताकत को देखते हुए लगता है वह अपना अभियान 2016 रियो ओलंपिक तक जारी रखने में सक्षम हैं। मैरीकॉम के अलावा पूर्व विश्व चैंपियन एल सरिता देवी और पूजा रानी ने कांस्य पदक जीत कर दबदबा कायम रखा। हालांकि सरिता देवी के साथ रेफरियों ने ज्यादती की जिसकी वजह से उन्हें दक्षिण कोरियाई मुक्केबाज के खिलाफ सेमीफाइनल मैच में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद सरिता पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सकीं और रोते हुए उन्होंने कांस्य पदक ग्रहण करने से इनकार कर दिया।
सौरभ का जयघोष
लंबे समय से देश के नंबर एक स्कवॉश खिलाड़ी सौरभ घोषाल को इस बार खिताब का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। सौरभ पिछले दो एशियाई खेलों (दोहा 2006 और ग्वांगझू 2010) में कांस्य पदक जीत चुके थे और इस बार उन्हें इंचियोन में शीर्ष वरीयता मिली थी। अनुभव और रैंंकिंग के लिहाज से सौरभ का स्वर्ण जीतना लगभग तय माना जा रहा था और पुरुष एकल फाइनल में वह कुवैत के अब्दुल्ला से शुरुआती दो चक्र में जीतकर तीसरे चक्र में स्वर्ण पदक से महज एक अंक दूर थे। ऐन वक्त पर सौरभ को शायद अति आत्मविश्वास हो गया और वह उसके बाद लगातार तीन खेलकर हारकर इतिहास रचने से वंचित रह गए। हालांकि सौरभ एकल वर्ग का रजत जीतने के बाद पुरुष टीम को स्वर्णिम सफलता दिलाकर इतिहास रचने में फिर भी सफल रहे।
महिला रिले टीम का चौका
चीन, कोरिया और जापान के आगे भारतीय एथलीट फर्राटा भरते हुए आगे निकल जाए, ऐसा कम ही होता है। लेकिन महिलाओं की चार गुणा 400 मीटर रिले टीम ने वाकई ऐसा करके दिखाया है और लगातार चार एशियाई खेलों में इस खेल का स्वर्ण पदक जीत अपना दबदबा कायम रखा। एम आर पुवम्मा, टिंटु लुका, मनदीप कौर और प्रियंका पंवार ने नए खेल रिकॉर्ड बनाए तो महिला चक्का फेंक में सीमा पूनिया ने भी स्वर्णिम सफलता हासिल कर भारतीय परचम लहराया।
महिला ताकत का जलवा
एथलीट में भारतीय महिलाओं ने धमाकेदार प्रदर्शन का सिलसिला इंचियोन एशियाड में भी जारी रखा। महिला हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीत जापान के हाथों पिछले एशियाड में मिली हार का बदला भी चुकता कर लिया। उनके अलावा एथलीट में टिंटु लुका ने महिलाओं की 8 मीटर दौड़ में रजत पदक और अन्नू रानी ने महिलाओं की भाला फेंक स्पर्धा में कांस्य पदक जीत चीन और कोरियाई एथलीटों को जबरदस्त टक्कर दी। यही नहीं, लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता सायना नेहवाल और विश्व चौंपियनशिप की पदक विजेता पी वी सिंधू भले ही व्यक्तिगत स्पर्धाओं में पदक नहीं जीत सकीं, लेकिन इन दोनों ने टीम स्पर्धा का कांस्य पदक जीत भारत को बैडमिंटन का एकमात्र पदक दिलाया। कमोबेश यही कहानी महिला स्कवॉश की भी रही। ल्ल
अभाविप ने जताया खेद
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीहरि बोरीकर ने एशियाई खेलों मेंे भारतीय खिलाडि़यों के निरंतर अच्छे प्रदर्शन की प्रशंसा तो की ही साथ ही, महिला मुक्केबाज सरिता देवी के साथ हुए भेदभाव पर खेद व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि निर्णायकों द्वारा खराब फैसले के बाद भेदभावपूर्ण तरीके से मेजबान खिल़ाड़ी को विजेता घोषित करना तथा अपना विरोध दर्ज करने वाली सरिता देवी पर कार्रवाई की सिफारिश करना अत्यंत निंदनीय है। – प्रवीण सिन्हा
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