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अभूतपूर्व!! प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पांच दिन (26-30 सितम्बर, 2014) की संयुक्त राज्य अमरीका यात्रा का सार इस एक शब्द में बताया जा सकता है। और ऐसा विशेषण सिर्फ मोदी के अमरीका में हुए तमाम कार्यक्रमों में उमड़ी भीड़ को देखते हुए नहीं है; वहां उभरे जोश या दर्ज हुए ऐतिहासिक पलों की वजह से ही नहीं है; या अमरीका के नामी-गिरामी उद्योगपतियों, कारोबारियों, समाज के स्वनामधन्य लोगों के बीच मोदी की लोकप्रियता के बढ़े ग्राफ के कारण भी नहीं है, बल्कि यह इसलिए भी है कि बरसों बाद भारत के किसी नेता ने अमरीका को एक स्वाभिमानी भारत के नेता के नाते सम्बोधित किया था। मोदी ने आह्वान किया था, आइए, आप और हम मिलकर चलें, दोनों देशों के नागरिकों के लिए असीम उपलब्धियों के द्वार खोलें और इस दुनिया को और सुखकर बनाएं।
कैरोलिन मैलोनी एकमात्र अमरीकी सांसद नहीं हैं जो मोदी के अमरीका-भारत संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के कदमों की दिल खोलकर तारीफ कर रही थीं, अमरीका के शीर्ष उद्यमियों ने जब मोदी का 'मेक इन इण्डिया' आह्वान सुना तो उन्हें भी यकीन हो गया कि अब नया भारत करवट ले रहा है और दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने को तैयार है। 'मेक इन इण्डिया' के बुलावे को मिला जबरदस्त समर्थन इस बात की पुष्टि करता है। मोदी की कूटनीतिक महारथ का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि उन्होंने 5 दिन की इस यात्रा में अमरीका में तीन ताकतवर वर्गों से अलग अलग मिलने का कार्यक्रम बनाया। सबसे पहले भारी तादाद में वहां बसे प्रवासी भारतीय, फिर अमरीकी राजनीति पर पर्याप्त दबदबा रखने वाले उद्योगपति और तीसरे वहां के सांसद। उनके न्यूयार्क पहंुचते ही अमरीका के अखबारों की सुर्खियों में भारत में अभी हाल में ही सत्ता की कमान संभालने वाले मोदी की चर्चा छाई हुई थी। मोदी यूं तो पहले से उनके लिए कौतुक का विषय बने हुए थे, खासकर मई में आम चुनावों में उनको मिली आशातीत सफलता को लेकर मंुह बिचकाते हुए गुणा-भाग करने वालों में भारत के सेकुलरों के साथ ही अमरीकी मीडिया भी आगे था। अब मोदी की यात्रा के एजेंडे के अपने अपने कयास छापे जा रहे थे, उन नरेन्द्र मोदी की यात्रा के जिन्हें कुछ साल पहले अमरीका ने गुजरात दंगों की आड़ लेकर वीसा देने से इनकार कर दिया था।
लेकिन मोदी का एजेंडा तो बस एक था-भारत और अमरीका के साझे हितों की राह पर बढ़ना। भारत और अमरीका के पास जो खास है उसे सबके हित के लिए जुटाना। ऊर्जा, रक्षा, संस्कृति, कारोबार, प्रतिरक्षा में सहयोग बढ़ाना और दुनिया के सामने मिलकर तरक्की करने का एक उदाहरण पेश करना। इस एजेंडे में कोई लाग-लपेट, कोई दुराव-छिपाव नहीं था। 27 सितम्बर को प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में हिन्दी में भाषण दिया और शुरुआत में ही कहा कि भारत पड़ोसी देशों के साथ दोस्ती चाहता है। उन्होंने न केवल आतंकवाद पर मिलकर चोट करने का आह्वान किया बल्कि आतंकवाद को अपनी राज्य नीति बनाने वालों की भी भर्त्सना की; पर्यावरण संरक्षण, ऊर्जा, संसाधनों और तकनीक को साझा करने के साथ ही अलग अलग समूहों की बजाय एक ही समूह यानी संयुक्त राष्ट्र को मजबूत बनाने पर जोर दिया।
28 सितम्बर को मेडिसन स्क्वॉयर गार्डन में प्रवासी भारतीयों ने अपने प्रिय प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत में जो कार्यक्रम रखा वह औपचारिकताओं से परे भावनाओं से रचा-पगा था। क्योंकि उसमें मोदी ने बात की अपने भारत को आगे बढ़ने में सहयोग देने की; देश को सबल, सशक्त, स्वाभिमानी, स्वच्छ, संुदर बनाने की; भारत की 40 प्रतिशत आबादी कोे सम्पन्न बनाने की राह बताने वाली मां गंगा को निर्मल अविरल करने की; भारत के युवाओं को भविष्य में मिलने वाले पर्याप्त अवसरों की; भारत के सबसे युवा देश होने की; इसकी विकास दर ऊंची, और ऊंची ले जाने की। मोदी ने 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंंती पर उनको एक स्वच्छ देश अर्पित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भारत की सवा सौ करोड़ की जनसंख्या हमारी ताकत है, यहां कौशल की कमी नहीं है। मात्र 450 करोड़ रु. की लागत से सफल हुआ मंगलयान अभियान इसकी पुष्टि करता है। भारत एक बड़ा बाजार है, पर यहां के कौशल का सदुपयोग करने के लिए उन्होंने अमरीका के कारोबारियों का आह्वान किया-'मेक इन इण्डिया'। वहां बसे भारतवंशियों से भी उन्होंने कहा कि जितना और जिस रूप में भी वे भारत के उत्थान में सहयोग दे सकते हैं, देना चाहिए। भारत में अब न पुराना ढर्रा रहेगा, न पुराने कानून। कारोबार की सहूलियत के लिए जरूरी ढांचागत सुविधाएं मिलेंगी, चुस्त-चौकस प्रशासन होगा, कागजी उलझन नहीं होगी, कोई इंस्पेक्टर राज नहीं, कोई लाइसेंस की भागमभाग नहीं। मेडिसन स्क्वॉयर ने बहुत समय बाद उस दिन 18 हजार से ज्यादा क ी भीड़ देखी थी जो मोदी की एक झलक पाने को पलक पांवड़े बिछाए थी। मेडिसन स्क्वॉयर पर अपना जादू बिखेरने के बाद मोदी अमरीका के तमाम राज्यों के सांसदों, प्रशासन प्रमुखों से मिले, उनसे अमरीकी और वैश्विक राजनीति पर बातचीत की। वे संयुक्त राष्ट्र की आमसभा में बोलने आए इस्रायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू, बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, श्रीलंका के राष्ट्रपति राजपक्षे, नेपाल के प्रधानमंत्री कोईराला से मिले और द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की। मोदी ने 9/11 की घटना में मारे गए लोगों को 'ग्राउंड जीरो' जाकर भावभीनी श्रद्धाञ्जलि दी, वहां संग्रहालय को देखा।
इसके बाद 29 और 30 सितम्बर को राष्ट्रपति बराक ओबामा और अमरीका की आर्थिक नब्ज पर पकड़ रखने वाले उद्यमियों से मोदी की अलग अलग मुलाकात हुई। अमरीकी उद्यमियों के बीच प्रधानमंत्री ने उनके सामने तेजी से प्रगति की राह पर बढ़ते देश में निवेश करके दोतरफा लाभ उठाने की पेशकश की। 29 रात को व्हाइट हाउस में आयोजित रात्रि भोज में मोदी ने अमरीका के प्रमुख नेताओं और राष्ट्रपति ओबामा के सामने एक स्वाभिमानी, सशक्त राष्ट्र के नेता के तौर पर दुनिया की राजनीति में अपनी जगह बनाने और वैश्विक खतरों से निपटने में साझा प्रयासों का आह्वान किया। 30 सितम्बर को भारत-अमरीका शिखर वार्ता में आतंकवाद, आईएसआईएल के बढ़ते खतरे और उनको शह देने वाली ताकतों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। बातचीत के बाद जारी साझा बयान साझे हितों और साझी चिंताओं को रेखांकित करता है। प्रधानमंत्री मोदी की अमरीका यात्रा ने जहां दुनिया को भारत के एक नए दमदार रूप से परिचित कराया है वहीं दुनिया मंे खुद को दरोगा की भूमिका में देखने वाले देश,अमरीका को स्पष्ट रूप से जता दिया है कि जहां तक साझा हितों की बात है तो उसके लिए एक ही मंत्र है-हम चलेंगे साथ साथ।
प्रधानमंत्री मोदी की अमरीका यात्रा ने जहां दुनिया को भारत के एक नए दमदार रूप से परिचित कराया है वहीं दुनिया मंे खुद को दरोगा की भूमिका में देखने वाले देश,अमरीका को स्पष्ट रूप से जता दिया है कि जहां तक साझा हितों की बात है तो उसके लिए एक ही मंत्र है-हम चलेंगे साथ साथ। -आलोक गोस्वामी
बराबरी के स्तर पर हुई वार्ता
पिछले 15 साल के दौरान राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा (2000), प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमरीका यात्रा (2005) और अब 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की इस अमरीका यात्रा की तुलना करें तो पाएंगे कि प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा में हुई शिखर वार्ता सबसे महत्वपूर्ण रही। मोदी-ओबामा वार्ता के बाद जारी साझा बयान बारीकी से देखें। उसमें कई बिन्दुओं पर बल दिया गया है। पहले हमारे यहां के प्रधानमंत्री अमरीकी सरकार, वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ के पास रियायतों की मांग करने ही जाते थे। इस बार मोदी बराबरी के दर्जे से एक बढ़ते भारत में आने का न्योता लेकर गए थे। वह भारत, जो 8-10 प्रतिशत की दर से विकास करने जा रहा है, एक बड़ा बाजार पेश करने जा रहा है। हमने पहली बार अमरीका से बराबरी के आधार पर बात की है। अमरीका जाने से पहले मोदी जापान के प्रधानमंत्री से मिले, चीन के राष्ट्रपति से मिले और उनसे संबंध बढ़ाने की बातचीत के बाद ही ओबामा से मिले। यह कमाल की कूटनीति है। उन्होंने कमजोर मानी जाने वाली भारत की अर्थव्यवस्था को बदलकर रख दिया है। इस कारण भारत से बाहर जाने की सोचने वाले कारोबारियों को यहां जमने का अवसर दिया है।
अमरीका में मोदी वहां बसे भारतीयों से मिले, तो वहीं ताकतवर उद्योग समूहों और राजनीतिकों से भी मिले। तीनों वर्गों से अपनी बातचीत में मोदी एक छाप छोड़ने में सफल रहे। साझा बयान में मोदी ने भारत के हितों को बड़ी मजबूती से रखा है। जैसे, भारत से वहां जाने वाले व्यावसायिक लोगों के लिए कानून सुगम बनाए जाएं, रक्षा क्षेत्र में अमरीका का भारत को बाजार की तरह देखना तभी कामयाब होगा जब वह अपनी रक्षा उत्पादन इकाइयां भारत में ही लगाएगा। यह भारत सरकार की 'मेक इन इण्डिया' योजना का ही एक विस्तार होगा। विश्व व्यापार संगठन में उन्होंने 'ट्रेड फेलिसिटेशन' को लेकर अपनी चिंता जताई, कहा कि भारतवासियों के लिए खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए इस पर बात हो तो हमें कोई दिक्कत नहीं है। आतंकवाद पर साफ कहा गया है कि आईएसआईएल का खतरा है, हम इसकी भर्त्सना करते हैं। अमरीकियों ने भारत में जिहाद फैला रहे तमाम जिहादी गुटों के नामों का उल्लेख किया है और कहा है कि वे इन गुटों को रणनीतिक और आर्थिक मदद देने वालों पर कार्रवाई करेंगे, जिसमें दाऊद इब्राहिम का नाम भी है। 26/11 के साजिशकर्ताओं को पकड़ने पर भी जोर दिया गया है। भारत ने साफ कह दिया है कि अमरीका हमसे सहयोग पाएगा लेकिन तभी जब वह आतंकवाद को लेकर हमारी चिंताओं पर गौर करेगा। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री मोदी की अमरीका यात्रा बेहद सफल कही जा सकती है, जिसके अच्छे परिणाम आने वाले कुछ दिनों में देखने में आ सकते हैं। (लेखक अमरीका में भारत के राजदूत रहे हैं)
मिलकर लडें़गे आतंकवाद से
मोदी और ओबामा द्वारा जारी आर्थिक और आतंकी खतरे का मिलकर सामना करने के 'विजन स्टेटमेंट' के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं-
'विविध परंपराओं और आस्थाओं वाले दो महान लोकतांत्रिक देशों के नाते हमारा इतिहास आपस में बिल्कुल अलग है, लेकिन दोनों ही देशों के संस्थापकों ने स्वतंत्रता की गारंटी चाही है, जिसमें हमारे नागरिकों को स्वयं भाग्य निर्धारण करने और अपनी व्यक्तिगत उम्मीदों को आगे बढ़ाने की अनुमति प्रदान की गई है। हमने पूरे संसार में व्याप्त चुनौतियों का डटकर सामना किया है। समृद्घि और शांति के लिए सामरिक भागीदारी हमारा संयुक्त प्रयास है। गहन विचार-विमर्श, संयुक्त अभ्यास और साझी प्रौद्योगिकी के माध्यम से हमारा सुरक्षा सहयोग इस क्षेत्र तथा विश्व को सुरक्षित और मजबूत बनाएगा। हम मिलकर आतंकवादी खतरों का मुकाबला करेंगे और अपने देशों और नागरिकों को ऐसे हमलों से सुरक्षित रखेंगे। हमने मानवीय आपदाओं और संकटों का तत्परता से सामना किया है। हम सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु हथियारों की प्रमुखता को कम करने के लिए प्रतिबद्घ हैं। इसके साथ-साथ हम परमाणु निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए भी प्रतिबद्घ हैं। हम एक खुली और समग्र कानून आधारित विश्व व्यवस्था का समर्थन करेंगे। जलवायु परिवर्तन दोनों देशों के लिए खतरा है और हम इसके प्रभाव को कम करने के लिए मिलकर कार्य करेंगे। हमारी सरकारें आपसी सहयोग, विज्ञान तथा शैक्षिक समुदायों की मदद से अनियंत्रित प्रदूषण के प्रभाव को दूर करेंगी। हम यह सुनिश्चित करने के लिए भागीदार बनेंगे कि दोनों देशों में सस्ती, स्वच्छ, विश्वसनीय और विविध स्रोतों की ऊर्जा उपलब्ध हो, जिसके लिए अमरीकी मूल की परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को भारत में लाने के प्रयास भी शामिल होंगे। बाहरी अंतरिक्ष में कणों के सृजन से लेकर हर पहलू में संयुक्त अनुसंधान और सहयोग और उच्च प्रौद्योगिकी सहयोग से लोगों के जीवन में बदलाव आयेगा। हम संयुक्त रूप से संक्रामक रोगों की रोकथाम करेंगे और मातृ एवं शिशु मृत्यु को खत्म करेंगे, गरीबी उन्मूलन के लिए कार्य करेंगे। हम एक सुरक्षित वातावरण में महिलाओं का पूर्ण सशक्तिकरण सुनिश्चित करेंगे। अमरीका और भारत दोनों लोकतंत्रों की निहित क्षमता का उपयोग करने और हमारे लोगों के मध्य आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने के लिए अपनी सामरिक भागीदारी को और व्यापक तथा मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्घ हैं। हम साथ मिलकर एक विश्वसनीय और स्थायी मैत्री संबंध चाहते हैं।
'मैं भारत को आपके सपनों का देश बनाने जा रहा हूं'
मेडिसन स्क्वॉयर गार्डन में प्रवासी भारतीयों और अमरीकी राजनीति के प्रमुख नेताओं की उपस्थिति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आह्वान किया कि विकास को एक जन आंदोलन बनाएं। भारतीय-अमरीकी समुदाय से भारत के विकास प्रयास में शामिल होने का अनुरोध करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं भारत को आपके सपनों का देश बनाने जा रहा हूं। प्रधानमंत्री ने कहा कि चुनाव परिणामों के बाद भारत के बारे में आशा और उम्मीद की नई भावना जागृत हुई है। आज सभी प्रवासी भारतीय अपने मूल देश भारत के साथ अपने संबंधों को फिर से नई ऊर्जा के साथ बढ़ाना चाहते हैं। उन्होंने भारत के पास मौजूद तीन महत्वपूर्ण शक्तियों- लोकतंत्र, जनसांख्यिकी और मांग के विशिष्ट संयोजन का उल्लेख किया और कहा कि भारत के लिए लोकतंत्र केवल शासन की प्रणाली ही नहीं है बल्कि एक विश्वास की बात है। 125 करोड़ लोगों के आशीर्वाद से हमें विश्वास है कि हम आम आदमी की आशाओं और उम्मीदों को पूरा करेंगे। 21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए अब देश में क्षमता, संभावना और अवसर उपलब्ध हैं। भारत विश्व में सबसे युवा राष्ट्र और सबसे प्राचीन सभ्यता वाला देश है। प्रधानमंत्री ने कहा कि विकास केवल जनभागीदारी के माध्यम से ही संभव है और विकास को उसी तरह एक जन आंदोलन बनाना होगा जिस प्रकार महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन को एक जन आंदोलन बनाया था। उन्होंने नई सरकार द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री जन-धन-योजना, मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत और स्वच्छ गंगा सहित विभिन्न पहलुओं का भी उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने मंगल ग्रह मिशन की सफलता के उदाहरण के रूप में भारतीय युवा प्रतिभा का उल्लेख किया। मोदी ने कौशल विकास पर जोर देते हुए कहा कि भारत जल्द ही प्रशिक्षित कर्मियों,जैसे नर्स और शिक्षकों की विश्व स्तर पर आपूर्ति करने वाले देश के रूप में उभर सकता है। प्रधानमंत्री ने प्रवासी भारतीयों से इंटरनेट के द्वारा अपने-अपने सुझाव साझा करने का निमंत्रण भी दिया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार का एक प्रमुख कार्य पुराने कानूनों को समाप्त करना है और उन्हें बहुत खुशी होगी अगर हर दिन एक कानून खत्म किया जा सके तो।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्ष 2015 महात्मा गांधी के भारत लौटने का शताब्दी वर्ष है। उन्होंने सभी प्रवासी भारतीयों से इस समारोह में भाग लेने और देश को विकसित करने में सहयोग देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर सभी भारतीयों को भारत को स्वच्छ बनाकर उन्हें श्रद्घांजलि अर्पित करनी चाहिए। गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए किए गए अपने प्रयासों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में प्रवासी भारतीय गंगा में आस्था रखते हैं। उन्होंने कहा कि स्वच्छ गंगा से भारत की 40 प्रतिशत जनसंख्या की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, जिनके लिए यह जीवनदायी है। प्रधानमंत्री ने स्वाधीनता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर 'सभी के लिए आवास' की अपनी अवधारणा पर भी प्रकाश डाला। -ललित मानसिंह
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