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अपनी बात :महालय की 'मंगलबेला'

by
Sep 27, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Sep 2014 13:17:23

शुभकार्य के लिए अमावस्या को आमतौर पर अच्छा नहीं माना जाता। पितृपक्ष को तो बिल्कुल नहीं। किन्तु यह भारत है। अडि़यल-अपरिवर्तनशील को खारिज करते हिन्दुत्व के लोचदार दर्शन का देश। नर का शुभ, नारायण की इच्छा। ऐसी विशिष्ट भूमि पर ही धर्म और विज्ञान का विलक्षण मेल संभव है। इसलिए जब पितृपक्ष अमावस्या को मंगलयान मंगलग्रह की कक्षा में स्थापित हुआ तो अमावस्या या पितृपक्ष का जिक्र कहीं नहीं था।
घटते चंद्र की अमावस्या। नवरात्रि का आरंभ और पितृपक्ष का अंतिम दिन। दिवंगत पुरखों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का यह ऐसा अवसर था जब महालय अमावस्या को प्रज्वलित दीयों में वैज्ञानिक उपलब्धि का ओज भी सहज ही सम्मिलित था। मंगलयान की सफलता का उत्सव मनाते-मनाते ही शुरू हुए शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा के नवरात्र। 'मार्स ऑर्बिटर मिशन' के पुकारे जाने वाले नाम, यानी 'मॉम' की स्नेहिल गूंज कब थमी और कब मां गौरी की स्तुति के स्वर मुखर हो गए, पता ही नहीं चला।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।
बहरहाल, इस देश के खास स्वभाव को रेखांकित करने के अलावा मंगल अभियान ने हमें उन पाठों को दोहराने का मौका दिया है जिनके चलते यह सफलता विशिष्ट हो गई।
पहला, दूसरों की गलतियों से सीखना- ठोकर खाकर सीखने की बजाय अच्छा है ठोकर खाने वाले को देखकर सीखना। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम इस दृष्टि से सफल कहा जा सकता है कि यहां दूसरों की विफलता को अपना सबक बनाया गया। 1998 में शुरू हुआ जापान का मंगल अभियान ईंधन की कमी के कारण गच्चा खा गया। अमरीका 7 बार विफल हुआ। चीन का मंगल अभियान यंगहाउ-1 भी असफल रहा। लेकिन भारतीय वैज्ञानिक हर देश की विफलता के कारणों को पढ़ते-समझते बढ़ते गए। पहले ही प्रयास में अर्जित यह अप्रतिम सफलता दूसरों की त्रुटियों पर ताली पीटने की बजाय अपनी गलतियों को समय रहते सुधार लेने से मिली सफलता है।
दूसरा, किसी से होड़ नहीं- ऐसा देखने में आया कि ज्यादातर मंचीय विश्लेषक इस पूरे अभियान को भारत बनाम चीन या अमरीका के तौर पर खंगालते नजर आए। लेकिन असल में अंतरिक्ष कार्यक्रमों के वैश्विक उपयोग को बढ़त या होड़ की नजर से देखना ठीक नहीं। हाल तक अमरीका अपनी कृषि उपज का अनुमान लगाने के लिए भारत के 'रिसोर्स सैट' उपग्रह से आंकड़े लेता था। 'रियल टाइम कवरेज' और संचार-संवाद के लिए दुनिया भर के देश अंतरिक्ष विज्ञान की एक माला में गुंथे हैं। ऐसे में, किसी से प्रतिस्पर्द्धा में पड़े बिना बड़ी सोच रखते हुए आगे बढ़ना, यह भी मंगल अभियान से प्राप्त सबक है।
तीसरा, बुद्घि लड़ाना, संसाधन बचाना- कैसे पहले से बेहतर बनें? यह ऐसा सवाल है जो इसरो वैज्ञानिकों को लगातार मथता रहा और जिसका परिणाम अभियान की सफलता के रूप में सामने आया। वैसे भी 'ग्रेविटी' जैसी फिल्म के लिए हॉलीवुड जितना पैसा कल्पनाओं में फूंक देता है उससे भी कम खर्च में इसरो ने मंगल अभियान को हकीकत बना दिया। नासा के मुकाबले इसरो का बजट सिर्फ 6 प्रतिशत है और पूर्व इसरो प्रमुख, के. कस्तूरीरंगन के अनुसार, इसमें भी अंतरिक्ष कार्यक्रम पर बजट का शून्य दशमलव 34 प्रतिशत भाग ही खर्च होता है। संस्थान का अघोषित मंत्र है- पहले के अभियानों में सफल सिद्घ तकनीक की सीढ़ी पर कदम जमाना और ऊंचा लक्ष्य पाने के लिए प्रौद्योगिकी को लगातार परिमार्जित करते रहना। किफायत और कौशल के मेल का यह अनूठा समीकरण भी इस अभियान से निकला है। दुनिया के लिए आश्चर्य और ईर्ष्या की बात यह है कि मंगलयान को लॉन्च करने वाले पीएसएलवी की यह 25वीं उड़ान थी। इसे साबित तकनीक पर भरोसा करने और संसाधन बचाने का अनूठा उदाहरण कहा जा सकता है
चौथा, समर्पण- विज्ञान को हमेशा पश्चिम से जोड़कर देखने वालों के लिए इस अभियान टोली का समर्पण देखना दिलचस्प हो सकता है। जुनून में डूबी इसरो टोली के पास सप्ताहांत की मस्ती में खोने या हफ्ते में सिर्फ 35 घंटे काम करने वाली पश्चिमी शैली नहीं थी। गत दस माह से 200 वैज्ञानिक दिन-रात काम में जुटे थे। अभियान की सफलता ने सिद्घ कर दिया कि अटूट संकल्प के साथ किए गए साझे प्रयास से कैसी बड़ी उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है।
पांचवां, समयबद्घता- पांच नवंबर को प्रारंभ हुआ अभियान चमत्कारिक गति से पूरा हो सका तो इसका सबसे बड़ा श्रेय समयबद्घता को जाता है। अंतरिक्ष अभियान विभिन्न ग्रहों, उनकी कक्षाओं और परस्पर गुंथी हुई परिस्थितियों को एक साथ समझने-साधने का काम है। ऐसी अत्यंत जटिल गणनाओं में जरा सी सुस्ती और इसकी वजह से होने वाली देरी अभियान की विफलता या वर्षों लम्बे इंतजार का कारण बन सकती थी।  'गया वक्त हाथ नहीं आता' इस मुहावरे की विस्तृत व्याख्या भी इस अभियान से मिली है, काम समय पर हो तो कैसी सफलता हाथ आती है, यह इसरो के इस अभियान ने बताया है।
बहरहाल, जिस समय अपना मंगलयान ग्रह की कक्षा में चक्कर काट रहा है, ठीक उसी समय मंगल पर नासा के दो रोबोयान, रोवर ऑपर्च्युनिटी और क्यूरिओसिटी जीवन के तत्व तलाश रहे हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि सफलता के ढेरों सूत्र समेटे यह उपलब्धि भले अनूठी है लेकिन आगे और भी मंजिलें हमें तय करनी हैं। आगे की भी यात्रा मंगलमय हो, ऐसी कामना हर भारतीय मन में है।

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